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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

08 मार्च, 2010

फ़िल्म निर्देशक माजिद मजीदी का साक्षात्कार

यह साक्षात्कार फ़िल्म- SONG OF SPARROW के संबंध में एक अमेरीकी पत्रकार द्वारा लिया गया था, इसका उनुवाद बिजूका लोक मंच की साथी सुश्री रेहान हुसैन द्वारा किया गया है।

प्रश्न- सामान्य अमेरीकी यह फ़िल्म देखकर मानता है कि आधुनिकीकरण के कारण मनुष्य का औचित्य ढँक गया है। आप इस बारे में क्या कहेंगे ?

उत्तर- हाँ ! सामान्य व्यक्ति आधुनिकता के वेग में एक कठपुतली बनकर रह गया है। मैं अपने सारे पात्र सच्ची घटनाओं से प्रेरिअत होकर लेता हूँ। इसीलिए यह वास्तविक जान पड़ते हैं। एक पात्र करीम का परिवर्तित होना यही दर्शाता है।
प्रश्न- इसमें एक पात्र जब केबल की वायर लेकर छत पर चढ़ जाता है और फिर हँसी की स्थिति बनती है, ऎसा क्यों ?
उत्तर- वो परिस्थिति से उपजी हुई हँसी थी, इसमें कुछ भी जोड़ा नहीं गया है। करीम पहले सीधा-साधा व्यक्ति होता है जो शहरी हवा लगने के कारण सख़्त दिल और लालची बन जाता है।
प्रश्न- इस फ़िल्म में नीले दरवाज़े का क्या महत्त्व है ?
उत्तर- वैसे तो कुछ विशेष नहीं। हाँ, नीला रंग पवित्रता का प्रतीक है एावां करीम उससे इतना जुड़ा होता है कि पड़ोसी के माँगने पर वह दरवाज़ा देने से इंकार कर देता है।
प्रश्न- आपको यह विषय कहाँ से मिला ?
उत्तर- तेहरान से कुछ दूरी पर ही एक फार्म हाउस है, वहीं पर जाना हुआ और करीम जैसे पात्र से मिलने का संयोग हुआ और उसके बाद धीरे-धीरे कहानी की बनावट संभव हुई।
अनुवादः रेहाना हुसैन

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