image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

05 मई, 2019

कभी-कभार: आठ


हार्लेम पुनर्जागरण के इतिहास का एक  महत्वपूर्ण नाम : ग्वेन्डोलिन बी. बेनेट

विपिन चौधरी

ग्वेन्डोलिन बी. बेनेट (1902-1981) एक बहुश्रुत कवि, लघु कथाकार, दृश्य कलाकार, और अमेरिकन पत्रकार थी.  उनके लेखन में  अफ्रीकी विरासत की प्रेरणा और अफ्रीकी नृत्य और संगीत के प्रभाव दिखाई देता है।  1920 के दशक के मध्य में, 'द क्राइसिस', ‘एनएएसीपी’ की पत्रिका, ‘ओपरचुनिटी’  पत्रिका और एलेन लॉक  द्वारा संपादित  'न्यू नीग्रो' में उनकी कविताएं प्रकाशित हुई.


ग्वेन्डोलिन बी बेनेट


बेनेट का एक भी कविता संग्रह  प्रकाशित नहीं हुआ मगर उनकी कविताओं में सम्माहित  नस्लीय गौरव और अफ्रीकी संस्कृति की जानकारी और अपनी रोमांटिक लेखन शैली से अपने  अश्वेत समुदाय को उत्साहित करने के कारण वह हार्लेम पुनर्जागरण आंदोलन की एक  मजबूत कड़ी मानी गयी ।

हार्लेम नवजारगण  के दौरान और उस दौर के बाद में भी विभिन्न समूहों के बीच सामुदायिक एकता को लेकर उनकी दृष्टि  और हार्लेम समुदाय को लेकर जागरुक्ता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के कारण ग्वेन्डोलिन बी. बेनेट  भावी पीढ़ी के लेखकों और कलाकारों के लिए एक प्रेरक हस्ती बनी।


रेल में एकरसता

वर्तमान के मेरे दिन और अतीत के दिवस
हैं इन बेरंग विस्तार वाले मैदानों से
कुछ घरेलू चीज़ें
घर या पेड़
या छोटी आड़ी-तिरछी से राहें
जहां कुचल दिए गए थे
सीसे के बने हुए पाँव


कस्बों या शहरों की
कीलों के बीच तना हुआ
कैनवास का नीरस फैलाव

ऐसे दिन मेरे
थोड़े आनंद या उदासी के
टीलों  के मध्य बंजर पटरियों से
00

रात का दृश्य

गर्मी के दिनों के बीच
अजीब सी है यह सर्द रात

दूर चंद्रमा की पीली रोशनी में
पकड़ा गया है पाला
और ध्वनियाँ हैं दूर की हँसी
स्फटिक आंसुओं को करती सर्द
00




श्याम रंग की एक लड़की  के लिए

मैं करती हूँ  प्रेम तुम्हें
तुम्हारे  भूरेपन के चलते
और तुम्हारे सीने के गोल अंधियारों को
तुम्हारी आवाज़ में टूटी उदासी
और उन प्रतिबिंबों को कहाँ तुम्हारी  मनमौजी पलकें करती हैं आराम

कुछ  भूली हुई  वृद्ध बेगमें
दुबकती हैं जो अपने चाल की फुर्तीली
लापरवाही की आज़ादी  में
और कभी गुलाम बना हुआ दास
सिसकता तुम्हारी चाल की लय पर

ओह, छोटी सांवली लड़की
अपने जिसने जन्म लिया दुख के बगल में
आप सभी को सम्राज्ञी सदृशता बनाये रखें,
और जाने दो तुम्हारे भरे-पूरे होंठों  को  हंसने को अपना  भाग्य
000


विपिन चौधरी


कभी-कभार की पिछली कड़ी नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2019/03/1875-1935.html?m=1



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें