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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

18 जून, 2020

कविताएँ : डॉ अनुराधा 'ओस'




डॉ  अनुराधा 'ओस'

गिलहरी के चावल

आती है सर्र से 
किसी हल्की आहट से
भागती है सर्र से
रसोई में रखे चावल
की गंध खींचती है तुम्हे
वैसे ही जैसे 
बुद्ध को ज्ञान
जैसे धरती को पानी
एक मुट्ठी चावल 
रोज धर देती हूँ
तुम्हारे लिए
अपना प्राप्य तुम्हे प्रिय होगा ही
चिड़िया के लिए
किसान जैसे छोड़ देता है
कुछ दाने खेतों में
जैसे तालाब बचा के
रखता है पानी
अपने आत्मीय के लिए
उसी तरह 
कुछ कर्ज चुका देती हूँ तुम्हारा

   

कभी बतियाते हैं!

कभी बतियाते हैं 
एकांत में गिरे
उस फूल से
जिसकी झड़ती पंखुरियों ने
बचाया है 
न जाने कितनी मुस्कानों को

और चलना निरन्तर 
उस चींटी की तरह
जिसकी जिजीविषा ने
न जाने कितनी बार
जीना सिखाया है
              
प्रकृति का दिया 
उसे सूद समेत लौटाते हैं
जीवन से कुछ क्षण
बतायाते हैं

मूक रहकर
पर्वत की तरह ,बादलों को
लिखतें हैं पत्र 
नाव के  काठ की
तरह पानी-पानी 
हो जातें हैं
  
फूल सी कोमलता 
हो मन मे हमारे
जितना पाया धरा से
कुछ धरा को लौटाते हैं




हल की धार को याद कर लेती हूँ

बहुत पहले मां ने
कहा था कि
कुछ बनाते समय 
उसको याद कर लेना चाहिए
जो उस काम को
अच्छे से करता हो
तो मैं
खाना बनाते समय
माँ को याद कर लेती हूँ
जिंदगी की कड़वाहट कम के लिए
पानी को याद कर लेती हो
जिंदगी को समतल बनाने के लिए
हल की नुकीली धार को
और दुःख को हराने के लिए
समुद्र को
काँटे हटाने के लिए
हंसिया और दराती को
उधड़ी सीवन ठीक करने के लिए
पेड़ की छाल को
कतरन -कतरन जोड़ कर
तुरपाई करने के लिए
मकड़ी को याद करती हूँ
मन की बर्फ पिघलने के लिए
कुम्हार के आंवा को



नाव  उदास है

नदी के किनारे 
नाव उदास पड़ी थी
नाविक  का मुँह 
उतरा हुआ था ,
आज कमाई नही हुई,
सुबह से एक-दो ग्राहक  
आये मगर उतने से 
रोटी दाल का खर्च 
कैसे चलेगा
जिस घाट के किनारे 
वो यानी कुशल 
अपनी नाव लगाता है
उसके ठीक सामने 
चूड़ियों का बहुत बड़ा 
और सुंदर मार्केट है
उसकी औरत रूपा 
अपने नाप की रंग-बिरंगी 
नए फैशन की चूड़ियाँ 
लाने को कहती है
 मगर इतने  थोड़े पैसे में 
कौन देता उसे?
आज भी कोई ठीक- ठाक 
ग्राहक नही आया
रूपा के हाथ बहुत गोरे हैं 
उसके हाथों में
कत्थई चूड़ियाँ 
बहुत अच्छी लगेंगी
सामने घर की मेम साहब 
ने पुरानी चूड़ियों से 
ऊब कर उसकी लच्छी
कूड़ेदान में फेंकी है अभी-अभी

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 डॉ  अनुराधा 'ओस'
 मिर्ज़ापुरउ.प्र.
 मो. 9451185136


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