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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

16 जुलाई, 2025

विक्रम सिंह की कविताऍं

              

 

महीने की तनख्वाह

                  

महीने की तनख्वाह में, 

आखिर मेरा हिस्सा कितना ?

कुछ दिये दूध वाले को,

कुछ हिस्सा गया परचून वाले को,

कुछ सब्जी वाले को,

कुछ पैसा ले जाती हैं बर्तन, कपड़ा धोने वाली मासी। 

कुछ हिस्सा मकान मालिक का,

कुछ बच्चों के स्कूल, ट्यूशन फीस

और दवा दारु में।

तो मेरा हिस्सा कहां ? 












अंत में मेरी जमा पूंजी से बने घर में 

क्या केवल मैं रहा ? 

नहीं अपितु 

इसमें रहती है चिड़ियां,

रहती है छिपकलियां,

रहती है बिल्लियां,

किसी कोने में चूहें भी,

तिलचट्टे भी,

रहती है चीटियां भी,

रहते है मेरे बच्चे,

मेरी पत्नी,

बच्चो का अपना कमरा। 

अंत में हिसाब करने बैठा, 

पता चला अब मेरे हिस्से क्या ?

नहीं है, 

मेरी कोई हिस्सेदारी, 

सब बांट देना है हिस्सों में, 

क्योंकि, 

मैं हूं, 

महज़ महीने की तनख्वाह। 

०००


सस्ता क्या है


अब लगने लगा है 

किताब पढ़ना कठिन है

उसे लिखना आसान!


अब लगने लगा है

किताब बेचना कठिन है

प्रकाशन गृह खोलना आसान


अब पाठक बनना कठिन है

लेखक बनना आसान


अब लगने लगा है कि 

झूठ बोलना कठिन है

सच बोलना आसान!


शहर में रहना कठिन है

जंगल में रहना आसान


अब लगने लगा है 

पेट्रोल, सब्जी, मकान, गाड़ी

लेना महंगा है, 

किसी की जान लेना सस्ता!


फल लेते वक़्त 

फल वाले से पूछा,

यार, सस्ता फल कोई नहीं है 

तुम्हारे पास? 

पहले तो वह मुसकराया 

फिर बोला -  सस्ती है गर कुछ

तो है वह इनसान की जान!

०००


परिचय 

जन्म : १ जनवरी १९८१ को जमशेदपुर (झारखण्ड)  में

शिक्षा: ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा


0 देश भर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में  कहानियाँ  प्रकाशित

0 प्रकाशित कहानी  संग्रह : 

" और कितने टुकड़े"(२०१५) 

प्रकाशित उपन्यास -"अपना खून","लक्खा सिंह",मऊ जंक्शन

फ़िल्म-निर्माण - "पसंद-नापसंद" (शॉर्ट फिल्म) "वजह''(शॉर्ट फिल्म)

अभिनय:- "त्वमेव सर्वम्" (शॉर्ट फिल्म)

पी से प्यार फ से फरार (हिंदी फीचर फिल्म)

"मेरे साँई नाथ," (हिंदी फिल्म)

पसंद-नापसंद (शॉर्ट फिल्म)

 लेखन और अभिनय

वजह(शॉर्ट फिल्म)- लेखन और अभिनय

एक अजनबी शाम - मुख्य भूमिका

पुरस्कार:-

* बेस्ट स्टोरी (मधुबनी फिल्म फेस्टिवल)

* अवार्ड ऑफ एक्सीलेंस (हमीरपुर, हिमाचल फिल्म फेस्टिवल)&

*आउट स्टैंडिंग अचीवमेंट अवॉर्ड (टैगोर इंटरनेशनल शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल)

*बेस्ट शॉर्ट फिल्म  ऑन सोशल अवॉर्नेस (पिंक सिटी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल)

*अवॉर्ड फेस्टिवल स्पेशल मेंशन (चंबल इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल)

*बोरोलीं द्वारा कोलकाता कोलकाताइंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर, "त्वमेव सर्वम" शॉर्ट फिल्म फिल्म के लिए।

*हैदराबाद फिल्म एसोसिएशन द्वारा 

बेस्ट एक्टर, "त्वमेव सर्वम" शॉर्ट फिल्म फिल्म के लिए।

संपर्क : बी-११, टिहरी विस्थापित कॉलोनी, हरिद्वार, उत्तराखंड-२४९४०७

ईमेल: bikram007.2008@rediffmail.com

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