महमूद दरवेश (13 मार्च 1941 – 9 अगस्त 2008)
खत्म हो जाएगा युद्ध
महमूद दरवेश
नेतागण हाथ मिलाएंगे।
वह बूढ़ी औरत अपने शहीद बेटे का इंतज़ार करती रहेगी।
वह लड़की इंतज़ार करेगी अपने प्रिय पति का।
और वे बच्चे अपने वीर पिता का करेंगे इंतज़ार।
मुझे नहीं पता हमारी मातृभूमि को किसने बेचा।
पर किसने इसकी कीमत चुकाई, मैंने देखा है।
०००
मोसाब अबू तोहा - जन्म 17 नवंबर 1992, गाजा पट्टी के एक फ़िलिस्तीनी लेखक, कवि, विद्वान और पुस्तकालयाध्यक्ष हैं । उनकी पहली कविता पुस्तक, " थिंग्स यू मे फाइंड हिडन इन माई ईयर" (2022) ने फ़िलिस्तीन बुक अवार्ड और एक अमेरिकन बुक अवार्ड जीता।
अबू तोहा एडवर्ड सईद लाइब्रेरी के संस्थापक हैं , जो गाजा की पहली अंग्रेजी भाषा की लाइब्रेरी है। उन्हें नवंबर 2023 में इज़राइली सेना ने हिरासत में लिया था जब वह अपने परिवार के साथ मिस्र भागने की कोशिश कर रहे थे। बाद में पूछताछ के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया और तब से वे दूर से युद्ध के इतिहासकार के रूप में काम कर रहे हैं। द न्यू यॉर्कर में गाजा युद्ध के चित्रण के लिए उन्हें 2025 में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
ग़ज़ा का हर बच्चा मैं हूँ
मोसाब अबू तोहा
हर माँ-बाप मैं।
हर घर मेरा दिल है
हर पेड़ मेरा पैर।
हर पौधा मेरी बांह है
हर फूल मेरी आँख।
पृथ्वी पर हर सूराख़ मेरा घाव है।
०००
अब तक मिली जानकारी के अनुसार जूद सबै (जूद अल सबै ) 2015 में मीडिया की नज़र में वही लड़की है जो इज़राइली हमले में मारी गई माँ की मृत्यु के बाद बेहद व्यथित थी.
अगली बार
जूद सबे
एक
अगली बार मैं प्यार करूंगी समुद्र को
बिना हथियारों वाली नावों के।
मैं जाऊँगी बिना डर के।
मैं सपने देखने से डरूँगी नहीं।
अगली बार, जब मैं सड़क पर एक महिला को रोते हुए देखूँगी,
मैं कहूँगी उसने अच्छा समाचार सुना,
यह नहीं कि अभी-अभी वह मरने से बच गई।
अगली बार, जब मैं बाहर शोर सुनूँगी,
मैं मेरे दिमाग से खंडित देहों के दृश्यों को परे हटा दूँगी
मैं कहूँगी यह एक विवाह कार्यक्रम है न कि शहीद की मौत का जुलूस
अगली बार, जब मैं क़तार देखूँगी
मैं सुबह की प्रार्थना सभा में स्कूल के अनुशासन की प्रशंसा करूंगी।
मैं खाने की सहायता की क़तारें, पानी के लिए क़तारें, और अपमान भूल जाऊँगी।
अगली बार, मैं नकार दूँगी ऐसे जीवन को,
जो मैं अब जी रही हूँ।
मैं अपनी यादों से आज की कड़ुआहट मिटा दूँगी
मैं एक गुलाबी भविष्य बनाऊँगी
जो दुस्वप्नों या भयावह दृश्यों के बिना होगा।
अगली बार, मैं निडर होकर खुशी के दिन जियूँगी। कृपया...
दो
अगली बार मैं सीखूँगी करना कुछ ज़्यादा तारीफ़।
मैं हर बार विस्मित हो जाऊँगी,
जब देखूँगी स्वच्छ फ़ुटपाथ वाली कोई सड़क।
मैं हर दरार-मुक्त इमारत के पास ठहर जाऊँगी।
मैं हर दुकान को अपलक निहारूँगी,
और पेड़ों को पेड़ की तरह देखकर प्यार करूँगी,
जलाऊ लकड़ी नहीं।
अगली बार, यदि मुझे कोई तंबू दिखा,
तो मैं दावा करूँगी कि वह कैंपिंग होगा,
महज़ प्रसन्नचित्त लोगों का।
और जो धुआँ उठ रहा होगा, वह सपनों के जलने का नहीं,
बल्कि बारबेक्यू पार्टी का होगा।
अगली बार, मैं खिड़कियों के पास जाने से नहीं डरूँगी।
न ही मुझे सड़कों पर मौतें देखने की आदत होगी।
मैं हर तेज़ आवाज़ पर तनाव में नहीं आऊँगी।
मैं सबसे बुरे अंजाम की उम्मीद नहीं करूँगी।
मैं कहूँगी यह नए साल का जश्न है,
उड़ते हुए सिरों का मंज़र नहीं।
मैं मिसाइलों को भूल जाऊँगी।
०००
मुमीनाह महरीन एक फोटोग्राफर, लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ता और क्यूरेटर हैं, जो विवेक और मानव पीड़ा के विषयों की खोज करने वाले काम के लिए जाने जाते हैं। मुमीना महरीन न्यूयॉर्क में रहती हैं।
दुनिया की अंतरात्मा
मुमीना महरीन
वे कहते हैं ─
लकड़ी और कपड़े का बना एक जहाज़ क्या कर सकता है,
लोहे की दीवारों के विरूद्ध
बमों की भूख के विरुद्ध
जो ग़ज़ा के आकाश को फाड़कर खा जाते हैं?
लेकिन वे नहीं जानते।
वे नहीं जानते
कि समुद्र हर उस हाथ को याद रखता है
जो घेर लिए गए लोगों की ओर पतवार चलाता है।
उस हवा को जो उन लोगों की फुसफुसाहटों को लेकर चलती है
जो साहस से कहते हैं:
अकेले नहीं हो तुम।
ओ ग़ज़ा, पीड़ा की संतान,
तुम जिस हवा में साँस लेते हो वह भारी है धुएं के भार से
तुम जो पानी पीते हो वह नमक और ख़ून है,
तुम्हारे चारों ओर जो दीवारें हैं
उन पर बच्चों के नाम खुदे हैं
जो ‘कल’ कभी नहीं पहुँच पाए।
तुम्हारी ज़मीन सीख चुकी है पालना उन बच्चों को
जो ताबूत के लिए बहुत छोटे हैं अभी।
और फिर भी ─
जहाज़ अब भी आते हैं
तोपों के बिना,
सेना के बिना,
वे आते हैं केवल अंतरात्मा की पुकार
पर, प्रेम की अदम्य भावना के साथ।
वे प्रसिद्धि के लिए जलयात्रा नहीं करते,
न ही किसी पुरुस्कार के लिए,
बल्कि वे दिल के फ़र्ज़ की ख़ातिर आते हैं ─
रोटी देने के लिए,
उम्मीद देने के लिए, और इन सबसे बढ़कर
इस बात का प्रमाण देने के लिए
कि अब भी साँस लेती है इंसानियत।
ओ समुद्र के यात्री,
तुम जो कांपते हाथों से क्षितिज को पार करते हो,
तुमने पहले से ही प्रतिरोध की किताब में
लिखे जा चुके हो,
ग़ज़ा के बंदरगाह,
तुम्हारे क़दमों का इंतज़ार करते हैं,
और इतिहास स्वयं आगे झुककर
स्मृतियों की शिला पर तुम्हारा नाम उकेरती है।
उन लोगों से जो मज़ाक उड़ाते हैं और कहते हैं,
इससे क्या अंतर पड़ेगा?
हम कहेंगे ─
इससे यह अंतर पड़ेगा:
कि लहरें साक्षी बनने के लिए स्वयं ऊपर उठ जाएंगी।
कि ग़ज़ा में एक माँ अपने भूखे बच्चे को झुलाती है,
वह जानती है कि समुद्र के रास्ते आ रहे अपरिचितों ने
उसके दर्द को अपना लिया है।
यहाँ तक कि मृत्यु के सामने भी,
प्रेम की नाव अडिग चलती है।
ओ ग़ज़ा,
रात की ख़ामोशी में,
सुनो:
ज्वार आवाज़ें साथ लेकर आता है।
वे तुम्हारे लिए गा रहे हैं।
वे तुम्हारे लिए दुआ कर रहे हैं।
वे तुम्हारे बच्चों के लिए रो रहे हैं।
और फिर भी पतवार चला रहे है।
और यदि दीवारें बच जाती हैं,
यदि आसमान क्रूर बना रहता है,
यदि क़ब्रें लगातार इतनी जल्दी खुलती रहीं ─
तब भी, तुम्हारी कहानी अलग होगी।
क्योंकि इंसानियत ने तुम्हें नहीं छोड़ा है अब तक।
क्योंकि कहीं न कहीं,
किसी ने असंभव समुद्र से पार पाने का दुस्साहस किया है,
और यह अपनेआप में विजय है।
तो चलो जहाज़ों को चलने दो,
उन्हें न केवल मदद का सामान लाने दो,
बल्कि दुनिया की अंतरात्मा भी लेकर चलने दो,
और यदि वे डूब जाते हैं,
जागेगी उनकी याद।
यदि वे रोके गए, जारी रहेगा उनका प्रतिरोध।
यदि उन्हें चुप कराया जाता है
प्रतिध्वनियाँ चुप्पी की बमों से ज़्यादा ज़ोर से गूँजेगी ।
यह क्या अंतर लाएगा?
इससे यह होगा:
कि ग़ज़ा को भुलाया नहीं जाएगा,
कि डूबी नहीं है आशा।
कि दुनिया में अब भी लोग हैं
जो जब ग़ज़ा अकेले मरता है
वे समुद्र में मृत्यु का जोखिम उठाना चाहेंगे
बजाए इस दुनिया में चुपचाप जीने के।
०००
अंग्रेजी भाषा से अनुवाद : भास्कर चौधुरी




कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें