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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

04 फ़रवरी, 2018


विनोद शंकर की कविताएँ


विनोद शंकर 

कविताएँ

 कश्मीर का पंक्षी
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मैं कश्मीर का पंक्षी हूँ
और अपने घोंसले में कैद हूँ
जब भी मैं इसके खिलाफ
आवाज उठाता हूँ
तो मेरी आवाज को
बन्दूकों के आवाज में डुबो दिया जाता हैं
कहा जाता है कि मेरी आवाज से
आजादी की बू आ रही है
जो पसन्द नही है बहेलियों को
इसलिए वो मुझे बहलाने और धमकाने में रात-दिन लगा हैं
वो मुझे जितना दे रहा है
मैं उसी में खुश रहू
और अपनी ज़िद छोड़ दूं
पर वो इतनी छोटी सी
बात नही समझना हैं की
ये मेरी ज़िद नही स्वभाव है
जिसके बिना मैं
जिंदा नही रह सकता हूँ !





 संविधान

अगर इस देश का संविधान
गरीबो ने बनाया होता तो
सबसे पहले वो रोटी पर
कानून बनाते की कोई
इसके साथ खेलवाड़ न कर सके

अगर इस देश का संविधान
मजदूरों ने बनाया होता तो
सबसे पहले वो कारखानों पर क़ानून बनाते
की अब से वे इसके मालिक खुद है

अगर इस देश का संविधान
किसानों ने बनाया होता तो
सबसे पहले वो खेतों पर कानून बनाते
की  अब वह खेत जोतने वालो की हैं

अगर इस देश का संविधान
औरतो ने बनाया होता तो
सबसे पहले वे अपनी आज़ादी पर कानून बनाते
की अब वे स्वतंत्र है अपने फैसले लेने के लिए

पर अफ़सोस इन में से कोई भी नही था
संविधान बनाने वालों में
बस जुटे थे लूट-पाट कर खाने वाले
जिन्होंने सबसे पहला ही कानून बनाया
कैसे इस देश पर शासन किया जाए
लोकतंत्र के नाम पर तानाशाही कायम किया जाए
ताकि उन पर उंगली उठाने वालों को
देशद्रोही ठहराया जा सके
अपने फ़ायदे के लिए
जो मन में आए
वो कानून बनाया जा सके
अंग्रेज़ो के जाने के बाद भी
इस देश में बहुत कुछ बचा हैं
उसे भी लुटा जा सके









जिन्दगी

जिन्दगी मैंने तो अभी तुम्हें
छुआ भी नहीं
गले लगाना तो दूर की बात है
बस मैंने तुम्हें चाहा है
प्यार किया है
तुम्हारे लिए हसीन सपने देखा है
जो ले आयी है मुझे
इस वर्ग संघर्ष में

जहाँ तुम्हारे लिए जीते हुए
तुम्हे अपने आस-पास महसूस करते हुए
मैंने जाना है
तुम कितनी खूबसूरत और हसीन हो
तुम्हारे बारे में अभी
कितना कम लिखा और बोला गया है
और हमे जो बताया गया है
वो कितना सतही
और बिखरा हुआ है
जहाँ तुम सांस तो लेते हो
खाते और पीते तो हो
पर ऐसा कुछ नही करते हो
जिसे ज़िन्दगी कहाँ जा सके

मैंने तुम्हें देखा
पहाड़ से उतरती उस लड़की की आँखों में
जो हमारे गुरिल्ले दस्ते को
दुश्मन से सचेत करने
दौड़ती हुई आयी थी
मैंने तुम्हें महसूस किया
उस आदिवासी किसान के सीने में
जिसने अपने गाँव से
विदा देते हुए
हमें प्यार से गले लगाया
मैंने तुम्हें जाना
अपने महिला साथी के उस विचार में
जिसने अपने जंगल के अलावा
दुनिया को नहीं देखा है
फिर भी हजार फूलो को खिलने दो
की बात करती हैं

सच मे मैं जब से यहाँ आया हूँ
तब से जैसा महसूस कर रहा हूँ
वैसा मैंने अब तक कभी नहीं किया था
भले ही अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच के बीच रहा हूँ
जहाँ तमाम प्यार और अपनापन के बावजूद
एक दूरी थी
एक सूनापन था
जिसे साथियों ने
अपने दिल में जगह दे कर मिटा दिया
और मेरे ज़िन्दगी को सच्चा अर्थ दिया

अब मैं अपने लिए नहीं
उन सब के लिए जीता हूँ
जो ज़िन्दगी के असली वारिस है
जिन्होंने फूल,तितलियों,नदी,पहाड़ो में भी
प्यार भरा हैं
और गाया है मानवता के मुक्ति का गीत
जो चारो दिशाओं में गुंज रहा हैं!



 कीड़े

यह उन्माद जो फैल रहा है
कभी गाय के नाम पर कभी देश के नाम पर
उसमें मैंने सुनी कुछ जानी पहचानी आवाज
देखे हैं मैंने कुछ जाने पहचाने चेहरे
जिनके बारे में मेरी राय कभी अच्छी नहीं रही
मैंने हमेशा माना है इन्हें
अपने मोहल्ले और कॉलेज के सबसे गंदे लोग

मुझे याद नहीं आता
कब इन्होंने अच्छा किया था
जबकि इनके बुरे कामों की जानकारी सबको है
कई बार तो मैंने खुद देखा है
इन्हें लड़कियों को छेड़ते हुए
छोटी-छोटी बात पर किसी के साथ
गाली गलौज और मारपीट करते हुए
किसी छुटभैये नेता के पीछे चलते हुए
दारू और मुर्गे पर बिकते हुए

आज इनके देशभक्ति के प्रदर्शन को देख कर
मुझे देश नहीं इनके बुरे काम ही याद आते हैं
जो मुझे यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि
कहीं ये फिर किसी को छेड़ने
धमकी देने या मारने तो नहीं निकले हैं

क्योंकि इनके नारों से
मुझे सड़ी हुई संस्कति और सड़े हुए विचारों की गंध आती हे
जिससे ये देश को नहीं खुद को ही बचाने निकले हैं
ताकि ये सड़ी हुई दुनिया कायम रहे
और जिसमें यह कीड़े जिंदा रह सके









मैं जा रहा हूं 

हमारी आंखों के सामने
एक संसार गढा जा रहा है
और एक संसार मिटाया जा रहा है
विकास के सागर में
एक गांव नहीं
एक शहर नहीं
एक पूरी दुनिया के डुबोया जा रहा है
जिसकी चीखों से गूंज रहा है आकाश
और धरती फटती जा रही है
फिर भी पूरे देश में विकास का गीत
गाया जा रहा है
जिसे सुनना उन चीखों से मुंह मोड़ना है
जो हमारे समय की सबसे मजबूत आवाज है

जिसमें सपना है संघर्ष है
दुनिया को बदलने का संकल्प है
ये आ रही है जंगलों से खेतों से कारखानों से
जिनके स्वर में स्वर में स्वर मिलाने के सिवा
आज कविता का कोई काम नहीं है
मैं जा रहा हूं
उनके गीतों को गाने
उनके संघर्षों में हाथ बंटाने

ओ मेरे देश
ओ मेरे लोगों
ओ मेरी मां
मैं तुम सब के लिए जी तो नहीं पाया
पर मरना चाहता हूं
मुझे क्षमा करना

अब मेरे पास बिल्कुल समय नहीं है
कि कुछ पल तुम्हारे साथ रहूं
तुम्हें प्यार करूं
मैं जा रहा हूं
तुम्हारे सपनों के लिए
तुम्हारी खुशियों के लिए
जिसके लिए अब तक भटकता रहा हूं
टुटपुंजिया नौकरियों के बहाने
खुद को बेचता रहा हूं
पर कहां तुम्हारे चेहरे पर मुस्कान ला पाया
कहां तुम्हारे दिल की गहगाइयों में उतर पाया

इसलिए बाजार से नहीं
इस बार युद्ध से तुम्हारे लिए खुशियां लाऊंगा
जो कब का शुरू हो चुका है
न जाने कब से बुलावा आ रहा है
पर अब तक टालता रहा हूं
खुद को भ्रम में डालता रहा हूं
कि बिना लड़े भी जिया जा सकता है
जी तोड़ मेहनत करूं
तो क्या नहीं पाया जा सकता है
पर भ्रम तो भ्रम है
श्रम तो श्रम है
जिसमें खून पसीना बहता है
मैंने भी जी भर कर बहाया है
बदले में इसकी कीमत तो दूर
यहां इज्जत से नहीं हासिल कर पाया

इस समाज में जीना
पल पल मरना है
जीते हुए वर्ग की अधीनता स्वीकार करनी है
जो अब मैं कर नहीं सकता
इसे सह नहीं सकता
बहुत रो लिया
गिड़गिया लिया
दया का पात्र बनने के लिए क्या क्या नहीं किया
पर इस समाज में दया एक माया है
जिसके हाथ में शासन उसकी छाया है
ये उसी पर पड़ती है
जो इसके नीचे झुकती है
फिर कभी नहीं उठता

आज मैंने जान लिया है
खुद को पहचान लिया है
कि मुझे रोना नहीं हंसना है सर झुकाना नहीं उठाना है
आंखों में आंखें डालकर बतियाना है
अपने होने का एहसास कराना है
कि मैं मरा नहीं जिंदा हूं
गुलाम नहीं आजाद हूं
दुनिया को सुंदर बनाने में
बराबरी का हिस्सेदार हूं



     लाल सूरज 

 ( फिदेल कास्त्रो को समर्पित )
         
    कुछ लोग हवा की तरह होते हैं 
    वह जिधर बहता है 
    उधर ही बहने लगते है 
    ये अपने जीवन में 
    नक़ल करने के सिवा  
    कुछ नहीं कर पाते है 

    कुछ लोग पानी 
    की तरह होते है 
    जो अपना रास्ता खुद 
    बनाते है 
    पर सिर्फ अपने लिए 
    दूसरे चाह कर भी 
    उस पर चल नहीं पाते है 

     कुछ लोग सूरज 
     की तरह होते है 
     खुद जल कर 
     दुनिया में प्रकाश 
     फैलाते है 
     फिदेल कास्त्रो हमारे लिए 
     सूरज ही थे 
     जो जलते रहे जीवन भर 
     मानवता के मुक्ति के लिए 
      
     सूरज पर वही लिख सकता है 
     जिसने उसे देखा हो 
     महसूस किया हो 
     मैंने तो उसे देखा नही 
     पर महसूस किया है 
     उसकी गर्मी को 
     पूंजीवाद के कड़कड़ाती ठण्ड में भी 
     जब पूरी दुनिया में इसका बर्फ जम रहा था 
     तब फिदेल अपने साथी 
     चे ग्वेरा के साथ
 सूरज बन कर इसके खिलाफ 
  जल रहा था 

जिसकी गर्मी में पिघल गया 
क्यूबा में बर्फ का पहाड़ 
मुक्त हुआ श्रम रचने 
शोषण मुक्त समाज 
जिसके लिए याद किया जायेगा 
यह लाल सूरज 
जो नहीं रहा अब हमारे साथ !









 बच्चों की दुनिया

बच्चों की दुनिया से
बहुत तेजी के साथ
गायब हो रहा है बचपन
गायब हो रहा है
हरे-भरे खेल का मैदान
बचपन अब बीते जमाने की
बाते होती जा रही है
बच्चों की दुनिया में

बच्चों की दुनिया
पहले खेलो और शरारतों की
दुनिया हुआ करती थी
दादी-नानी की कहानियां
और परियो की रानियां हुआ करती थी
बच्चों की दुनिया में

पर आज बच्चों की दुनिया
बड़ो कि दुनिया से भी ज्यादा कठिन
और जटिल होती जा रही हैं
बच्चे आज बड़ो से भी ज्यादा
बड़े दिखना चाहते हैं

पर बच्चों
मुझे अभी भी तुमसे
बच्चों सी बातें करनी हैं
तुम्हारे मम्मी-पापा के बारे में
ढ़ेर सारी बातें जाननी हैं मुझे
जिसका जवाब तुम
बच्चों की तरह ही देना
कही वो भी तो नही
गायब हो रहे तुम्हारी दुनिया से ?

बच्चे कुछ तो बोलो
अपना मुख तो खोलों तुम फिर बड़ो कि तरह
खामोश क्यो हो गये ?
तुम्हें पता होना चाहिए
की बच्चों की दुनिया में
सिर्फ कम्पयुटर के गेम
भारी स्कूली बैग
और एक-दूसरे को पछाड़ कर
आगे बढ़ जाने कि होड़
नही होती !

बच्चों की दुनिया में तो
चाँद-तारे होते हैं
सूरज होता है
बादल होता है
बारिस होती है
फूल, तितली और जुगनू होते हैं

बच्चों कभी फुर्सत मिले तो
अपनी इस दुनिया में
ज़रूर वापस आना
तुम्हारे बिना ये सब अधूरे है
औऱ इन्हें सबसे ज़्यादा
तुम्ही से उम्मीदे हैं
क्योंकि तुम बच्चे हो !




 देशप्रेम

जब मैने कविता लिखना शुरू
 किया
तो सोचा सबसे पहले
अपने देश पर लिखु

और जब मैने अपने देश पर
लिखना शुरू किया
तो सोचा सबसे पहले
अपने देशप्रेम पर लिखु

और अपने देशप्रेम मे
मैने सबसे पहले
हल जोतते किसान के बारे मे
घर बनाते मजदूर के बारे में
अपने जल,जंगल और जमीन
के लिए लडते
जनता के बारे में लिखा

जो अपने खून-पसीने से
देश को सींचते है
इसके खेतो,कारख़ानो मे रंग भरते है

इसके बाद मैने सोचा
राजा के बारे मे
उसके दरबारियो के बारे मे
उसकी सेना के बारे मे
और धर्म के बारे मे लिखु
पर मै चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाया
इनमे मैने देशप्रेम का एक भी
तत्व नहीं पाया

जो देश से दीमक की तरह चिपके है
इसे अंदर ही अंदर
खोखला कर रहे है
और खुद को सबसे बडा देशभक्त कह रहे है

पर इनकी देशभक्ति मे मुझे
देश कहीं नजर नहीं आया
अगर आपको आये तो बताना
नहीं तो इनकी औकात बताना
जैसा ये हमारी-तुम्हारी बता रहे है

फिलहाल मै जा रहा हू
देशप्रेमियों के साथ जीने और मरने
आप भी मेरे साथ चलेगे क्या.?



 देश के लिए

ओ मेरे देश
मै नही दूँगा
तुम्हे कोई उपदेश
मै नही माँगूंगा मन्नत
तुम्हारे लिए किसी ईश्वर से
और नही इंतजार करूंगा
किसी मसीहा का
की ओ आयेगा
तभी मेरा देश आगे जायेगा
मै खूद तुम्हारे लिए
जीऊँगा और मरूँगा
मशाल की तरह जलूँगा
जब तक की अँधेरा मिट न जाये !

मै जाऊँगा
मिट्टी की खुश्बु बचाने
मै जाऊँगा खेत में
धान के साथ विचारो की
फसल की रखवाली करने
जो हमे मुक्ति देगी
जिसे बोया है चारु ने
अपनी जान दे कर
सींचा है किशन जी ने
अपने ख़ून से

आज यह फसल
जैसे -जैसे बड़ी हो रही है
वैसे ही इसको खाने के लिए
जानवरो के हमले भी
बढ़ रही है
यह फसल सिर्फ जनता का है
और इसे जनता ही बचा सकती है
इसे महसूस कर रहे है
मेरे गाँव के लोग
मेरी माँ और मै भी
की आज हमे इन
जानवरो के हमले से
अपने विचार अपने खेत
और अपने जंगल को ही नही
इस देश को भी बचाना है

जो एक बार फिर घिर चुकी है भेडियो से
जो एक बार फिर निकल पड़े है
अपने हिंसक इरादों के साथ
देश को रौदने
जो एक बार फिर इसे पहुँचा
देना चाहते है उस काल में
जहाँ इंसान दास होगा
किसी देवता का
गायेगा गीत गुलामी का
जिसमे उसकी विवशता के अलावा
कुछ भी नही होगा


वैसे आज भी हमारे देश में
ऐसे ही गीतों और कविताओं
की भरमार है
जिसमे जिंदगी से ज्यादा मौत दिखती हैं
आशा से ज्यादा निराशा हैं
जो दुखो में डूबे मेरे देश को
और दुःख ही देती हैं
आज इसे चाहिए
सिर्फ आशा, विश्वास और प्यार
जैसे की भगत सिंह ने दिया
नक्सलबाड़ी ने दिया
अगर तुम नही दे सकते हो तो चुप रहो
आज देश के लिए
रोने का नही
हँसते हुए जान देने
और लेने का समय हैं !










स्पार्टाकस की संतान

मै स्पार्टाकस की संतान हूँ
मेरे खून में आज भी उसका खून बहता है
मेरे विचारो में आज भी उसका विचार चलता है
मेरे सपनो में आज भी उसका सपना पलता है
भले ही उसके और मेरे बीच
युगों का फासला है
फिर भी वो मेरा साथी है
मेरी प्रेरणा है!

मिटने को कितनी चीजें मिट गयीं वक्त के साथ
बदलने को कितनी चीजें बदल गयीं इतिहास के साथ
पर आज भी शोषण और मुक्ति का संघर्ष चलता है
आज भी शासक वर्ग हम से डरता है
आदिविद्रोही की बोयी
विद्रोह की फसल को लहलहाता देख
रोज ही काँपता है
कितनी कोशिश करता है
उसे काट देने की
जला डालने की
इतिहास की धारा पीछे मोड़ देने की
पर शुरू से लेकर अब तक हारा है
हमारा बलिदान कभी बेकार नहीं गया है

हमने अपने खून -पसीने से धरती को सींचा है
अपने हाथों से इतिहास गढ़ा है
शोषण के कई चक्र तोड़ने के बाद भी
हमारा हथौड़ा नहीं रुका है
यह चल रहा है समय की गति के साथ
समाज को बदलने के लिए
सड़ चुकी दुनिया को ध्वस्त कर
नयी दुनिया गढ़ने के लिए
हमारे हथौड़े में
सूरज की तरह आग है
जो किसी भी गुलामी की बेड़ी को
गला सकती है
हमारे हथौड़े में सागर की तरह पानी है
जो किसी भी साम्राज्य को
डुबा सकती है
हमारे हथौड़े में तूफान की तरह रफ़्तार है
जो कितने ही बास्तील के किलों को
एक झोके में उड़ा सकती है!

हम दुनिया को यहाँ तक लाये हैं
तो आगे भी ले जायेंगे
इंटरनेशनल के गीत
किसी भी आंधी-तूफान में गायेंगे
क्योंकि हम जानते हैं
लड़ाई हमारे जीवन का हिस्सा है
इसके बिना यहाँ सब कुछ फीका है
इसी से हमने सब कुछ पाया है
आगे भी पाएंगे
इसके बिना तो इस दुनिया में
 इंसान भी नहीं कहलायेंगे
ये हमारे लिए खाना खाने और पानी पीने
की तरह जरुरी है
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को
 परम्परा के रूप में मिला है
हमारी खुशियां हमारा सपना
इसी से जुड़ा है !

हम तो युद्ध भूमि में पैदा हुए हैं
उसी में पले-बढे हैं
जिसे ख़त्म कर देने की तरफ
रोज ही आगे बढ़ रहे हैं
ये हमारा पेशा नहीं है
ये तो हम जिंदगी जीने की चाह में
आजादी पा लेने की आस में
लड़े जा रहे हैं
यही हमारा जीवन पथ है
यही हमारा मुक्ति पथ है
बाकी सब गड्ढा है खायीं है
ठहरे हुए पानी में कीड़ों की लड़ाई है
जहाँ जिंदगी नहीं मौत पसरी है
जहाँ किसी व्यक्ति की तरक्क़ी
मेढ़कों के उछल -कूद  के अलावा
कुछ भी नहीं है !

हमे पूरी धरती
पूरा आकाश चाहिए
जीवन की हर स्वांस चाहिए
जिसे हम बाँट सकें
अपने साथ संघर्षरत पशु -पक्षियों को
विलुप्त हो रहे जीवों को
कह सकें उनसे
जितनी ये धरती हमारी है
उतनी ही तुम्हारी है
आओ सहजीविता के गीत गाएं
हम सब मिलकर जीवन बिताएं
यही वादा किया है हमने
बहती नदियों से
हरे-भरे जंगलों से
खेत जोतते अपने बैलों से
जिसे हम आज नहीं तो कल पूरा करेंगे
मानवता का अध्याय फिर से लिखेंगे
जो समर्पित होगा
उन गीतों को उन युद्धों को उन शहीदों को
जो वर्गहीन समाज के लिए लड़े..!                                                     


विनोद शंकर


नाम-विनोद शंकर
शिक्षा- एम.ए (इतिहास) बीएचयू से 
फ़िलहाल छात्र राजनीति में सक्रिय और भगत सिंह छात्र मोर्चा का सचिव (बीएचयू बनारस) हूँ।
और बनारस में रहता हूँ।

मो.-7310096244


चित्र: गूगल से साभार 

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