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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

28 मई, 2018

यात्रा वृत्तांत:

बर्फ के लौंदे के बीच से 

सुरीन्दर पाल सिंह 

29 अप्रेल 2018 को ब्राम्पटन से एक मित्र की कार से करीब 700 किलोमीटर शीतलहर में सूखे हुए मेपल के वृक्षों व सड़क किनारे बर्फ़ के बिना पिघले हुए लौंदो के बीच यात्रा करते हुए सेंट मेंरी रिवर के किनारे बसे एक शान्त लेकिन ऐतिहासिक शहर में हमारे पुराने मित्र सुधाकर के पुत्र डॉ. क्षितिज और पुत्रवधू डॉ. सुमेधा के घर एक लंबा पड़ाव आज 20 मई को पूरा होने जा रहा है। कल से आगे की यात्रा शुरू हो जाएगी।

सुरीन्दर पाल सिंह


इस 21 दिनों के अन्तराल में बहुत कुछ नया जानने और समझने को मिला। तीन विशेष बातों ने मुझे अत्याधिक प्रभावित किया। विभिन्न राष्ट्रीयताओं और धर्मों के व्यक्तियों का शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व, मूलनिवासियों के लिए विशेष रिज़र्व और अन्य प्रावधान व एक बड़ी संख्या के बाशिन्दों द्वारा बिना किसी धार्मिक पहचान के सामाजिक जीवनयापन।
सन 1871 में 879 की जनसंख्या वाला ये कस्बा सन 1981 में आजतक की अधिकतम जनसंख्या 82,697 को दर्ज कर पाया। सन 2016 की जनगणना के अनुसार यहाँ की जनसंख्या 73,368 है जोकि 2011 की गणना से 2.4% गिरावट पर है।

यहाँ दक्षिणी एशियन, चीनी, अफ़्रीकी, फिलीपीन्स, लेटिन अमेरिकन, अरब, दक्षिणी- पूर्वी एशियन, कोरियाई, जापानी, इतालवी, फ्रेंच, स्वीडिश आदि मूल की राष्ट्रीयताओं से जुड़े नागरिक रहते हैं। धार्मिक पहचान के नाम पर क्रिस्चियन में 9 तरह के समुदाय हैं जिनमें से मुख्यतः कैथोलिक क्रिस्चियन 40.64% फ़ीसदी हैं। यहूदी, हिन्दू, मुस्लिम, बुद्धिस्ट, पारंपरिक और अन्य पहचानों के अलावा बिना किसी धार्मिक पहचान वाले नागरिकों का फ़ीसदी 24.56% है।
ये इलाक़ा परंपरागत रूप से योजिब्वे नाम के मूलनिवासियों का था जो अनिशिनाबे नाम की भाषा बोलते थे। वे इस इलाक़े को बाइटिगोंग कहते थे क्योंकि यहाँ नदी के एक हिस्से में पानी का ज़बरदस्त ज्वार सा उठता है। सन 1623 में एक फ़्रेंच मिशनरी ने इस जगह का नाम फ़्रांस के सम्राट लुइस xiii के भाई के नाम से सॉल्ट दे गेस्तों रख दिया था लेकिन सन 1668 में फिर से इसका नाम बदल कर सॉल्ट सेंट मेंरी रखा गया। यहाँ भी सॉल्ट शब्द जिसका अर्थ पानी में तेज़ उफ़ान है कायम रहा। लेकिन, आम भाषा में इसे सू के नाम से उच्चारित किया जाता है।

गूगल से


उत्तरीरी अमेरिका का यह इलाक़ा सबसे पहले की फ़्रेंच बसासत में से एक है। अब ये स्थान मोंट्रियल से सू और लेक सुपीरियर से ऊपर के उत्तरी क्षेत्र में फैले हुए 3000 मील वाले फर्र व्यापार का महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। इस प्रकार धीरे धीरे ये क्षेत्र यूरोपीय व्यापारियों से भर गया जो स्थानीय मूलनिवासियों की सहायता से फर्र को जुटाने और उसके व्यापार में व्यस्त हो गए। इन तमाम यूरोपीय लोगों में दबदबा फ़्रांस का ही था। सर्दियों में नदी का उपयोग पानी के ठोस बर्फ़ के रूप में जम जाने की वजह से सड़क की तरह किया जाता था। इस दौरान योजिब्वे और इरॉकोइस मूलनिवासियों की आपसी लड़ाई इस हद तक बढ़ गई कि 1689 तक फ़्रांस वाले सॉल्ट सेंट मेंरी मिशन से उदासीन से हो गए थे लेकिन 1701 में मॉन्ट्रियाल में ग्रेट पीस समझौते पर फ्रांस और उत्तरी अमेरिका के 40 फर्स्ट नेशन (मूल निवासियों को यहाँ फर्स्ट नेशन के नाम से जाना जाता है) पर समझौता होने के बाद लम्बे समय से चलने वाले कलह से फ्रांस को राहत की साँस मिली। इसके बावजूद व्यापारिक हितों के चलते अब ब्रिटेन और फ़्रांस की आपसी तनातनी ने एक बड़ी और लम्बी लड़ाई का रूप ले लिया। सन 1754 में शुरू हुए इस युद्ध को सेवन इयर्स वॉर के नाम से जाना जाता है। अंततः 1763 में पेरिस सन्धि के अनुसार उत्तरी अमेरिका के क्षेत्र अब फ़्रांस के हाथ से निकलकर ब्रिटेन और स्पेन के हवाले हो गए। और इस प्रकार से अब सू का इलाक़ा ब्रिटेन के आधिपत्य में आ गया।
1783 में अमेरिकन क्रांति के बाद ब्रिटेन और अमेरिका के बीच एक नई पेरिस सन्धि हुई जिसके अनुसार सेंट मैरी नदी को दो देशों के बीच का बॉर्डर मान लिया गया। इस प्रकार एक सू के दो हिस्से हो गए- कनाडा का सू और अमेरिका का सू । इसी दिशा में फिर लन्दन में 1794 में हुई जे सन्धि के अनुसार इस क्षेत्र के मूल निवासियों (फर्स्ट नेशन) को दोनों देशों में आने जाने और बसने का समान अधिकार मिल गया।



कालान्तर में सन 1871 में यहाँ की बसासत को आधिकारिक स्तर पर एक गाँव का दर्जा मिल गया था। सन 1875 में यहाँ पहले स्कूल की स्थापना हुई जो आज अल्गोमा विश्वविद्यालय के रूप में विद्यमान है। धीरे धीरे यहाँ बिजली, टेलीफ़ोन, होटल, बाज़ार, उद्योग आदि का प्रसार होना शुरु हो गया। सन 1895 में सू की एक विशेष और आश्चर्यजनक उपलब्धि यहाँ ऊंचे और नीचे जल स्तर के बीच जहाजों के आवागमन के लिए लॉक व्यवस्था की स्थापना है। इस लॉक के माध्यम से लेक सुपीरियर और सेंट मैरी नदी के पास निम्न जलस्तर वाली ग्रेट लेक के बीच जहाज़ गुजारे जाते हैं। उल्लेखनीय है कि दोनों तरफ़ के जलस्तर में 21 फुट का फर्क़ है।

उद्योग के नाम पर मुख्यतः यहाँ एक पेपर मिल और दो स्टील इंडस्ट्रीज हैं जिनमें एक एक स्टील इंडस्ट्री तो एस्सार की है।
अन्त में बाकी जो और बातें लिखी जा सकती हैं वे तो कनाडा के इतिहास, अर्थशास्त्र, समाज, राजनीति आदि के व्यापक फ़लक़ का हिस्सा है। सू जैसे एक शान्त, सुंदर, ऐतिहासिक शहर के बारे में फ़िलहाल इतना ही।
००
सॉल्ट सेंट मेंरी
अल्गोमा डिस्ट्रिक्ट
ओंटेरियो स्टेट
कनाडा
20/05/2018



2 टिप्‍पणियां:

  1. उक्त स्थान की बहुत सी जानकारी के साथ साथ वहां के इतिहास और संस्कृति की जानकारी मिली। बहुत तेज सुंदर वृतांत।

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  2. ਸਰਦਾਰ ਬਲਦੇਵ ਸਿੰਘ ਜੀ, ਇਸ ਵ੍ਰਿਤਾਂਤ ਨੂੰ ਪਸੰਦ ਕਰਣ ਲਈ ਮੈਂ ਤੁਹਾਡਾ ਸ਼ੁਕਰਗੁਜ਼ਾਰ ਹਾਂ । ਪਿੱਛਲੇ ਇਕ ਮਹੀਨਾ ਕੈਨੇਡਾ ਚੇ ਘੁੰਮਦੇ ਹੂਏ ਇਸੀ ਤਰਾਂ ਦੇ ਕੁਝ ਹੋਰ ਲੇਖ ਭੀ ਲਿਖੇ ਹੈਂ ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਮੇਰੀ ਟਾਈਮ ਲਾਈਨ ਤੇ ਪੜ੍ਹ ਸਕਤੇ ਹੋ।
    ਸੁਰਿੰਦਰ ਪਾਲ ਸਿੰਘ

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