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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

13 अक्तूबर, 2016

कविताएं : अवतार सिंह पाश

नमस्कार मित्रो, हाल ही में प्रसिद्ध क्रान्तिकारी कवि अवतार सिंह पाश के जन्‍मदिवस (9 सितम्‍बर 1950) बीता है। अन्य क्रांतिकारी कवियों की भाँति उनकी कविताएँ भी आज तक प्रासंगिक हैं,  जिन्हें हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं...

कविता :

1 अपनी असुरक्षा से

यदि देश की सुरक्षा यही होती है
कि बिना ज़मीर होना ज़िन्दगी के लिए शर्त बन जाये
आँख की पुतली में ‘हाँ’ के सिवाय कोई भी शब्द
अश्लील हो
और मन बदकार पलों के सामने दण्डवत झुका रहे
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है

हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़
जिसमें उमस नहीं होती
आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है
गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है

हम तो देश को समझे थे आलिंगन-जैसे एक एहसास का नाम
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा
हम तो देश को समझे थे क़ुर्बानी-सी वफ़ा
लेकिन ’गर देश
आत्मा की बेगार का कोई कारखाना है
’गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है
तो हमें उससे ख़तरा है

’गर देश का अमन ऐसा होता है
कि कर्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह
टूटता रहे अस्तित्व हमारा
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे
कीमतों की बेशर्म हँसी
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो
तो हमें अमन से ख़तरा है

’गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है
कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा
कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा
अक़्ल, हुक़्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी
मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।

2 संविधान

यह पुस्‍तक मर चुकी है
इसे मत पढ़ो
इसके लफ़्ज़ों में मौत की ठण्‍डक है
और एक-एक पन्‍ना
ज़िन्दगी के अन्तिम पल जैसा भयानक
यह पुस्‍तक जब बनी थी
तो मैं एक पशु था
सोया हुआ पशु
और जब मैं जागा
तो मेरे इन्सान बनने तक
ये पुस्‍तक मर चुकी थी
अब अगर इस पुस्‍तक को पढ़ोगे
तो पशु बन जाओगे
सोए हुए पशु ।

3 सबसे खतरनाक

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
गद्दारी, लोभ की मुट्ठी
सबसे ख़तरनाक नहीं होती

बैठे बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी सी चुप्पी में जकड़े जाना बुरा तो है
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होती

सबसे ख़तरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
ना होना तड़प का
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

सबसे खतरनाक वो आँखें होती है
जो सब कुछ देखती हुई भी जमी बर्फ होती है..
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीज़ों से उठती अन्धेपन कि भाप पर ढुलक जाती है
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई 
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है 
जिसमे आत्मा का सूरज डूब जाए
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा 
आपके ज़िस्म के पूरब में चुभ जाए

4 मेरा अब हक़ बनता है

मैंने टिकट ख़र्च कर
तुम्हारे लोकतन्त्र का नाटक देखा है
अब तो मेरा नाटकहॉल में बैठकर
हाय हाय कहने और चीख़ें मारने का
हक़ बनता है
तुम ने भी टिकट देते समय
टके भर की छूट नहीं दी
और मैं भी अपनी पसन्द का बाज़ू पकड़कर
गद्दे फाड़ डालूँगा
और परदे जला डालूँ

( प्रस्तुति-बिजूका)
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टिप्पणियाँ:-

संजीव:-
बहुत खतरनाक बेहद सर्द जमा देने वाली ठंडक में भी खून को पिघला देंने वाली कविताएं हैं।

संध्या:-
शुक्रिया पाश की कवितायें पढ़वाने का  खून कुछ सर्द हो चला था

दीपक मिश्रा:-
पाश इस जमीन पर पैदा हुए सबसे क्रन्तिकारी कवि हैं। कविता के भगत सिंह। सिहरन हो जाती है उनकी कविताएं पढ़ कर।

पूनम:-
सादर नमस्कार । यह कविता सबसे खतरनाक तो इतनी ज्यादा सारगर्भित है कि इसकी कई copies करके मनुष्यो  (बच्चे ,बूढ़े ,जवान ) मे वितरित कर दिया जाना चाहिए । मान्यवर कई संगठनो के निराले अनुभव जो मिले है उसमे अनगिनत जगह यही महसूस किया है कि कुछ समझा नही कुछ किया नही बस तटस्थ रह गए कई सक्षम लोगो को ऐसा ही देखा है । यह कविता सचमुच एक चेतावनी है । बहुत शुभकामनाये

पल्लवी प्रसाद:-
हक बनता है Anarchist कविता है। ऐसा किसी का हक नहीं बनता।

संदीप कुमार:-
खतरनाक कविता की यह प्रस्तुति अधूरी है कृपया पूरी कविता डालें. जिन साथियों ने नहीं पढ़ा हो उन्हें उसे समग्रता में समझने का अवसर मिलेगा

संजीव:-
हक बनता है सब का हक बनता है। अनार्किस्ट होने का।

पल्लवी प्रसाद:-
Yeh uprokt rumani kalpana hum tabhi karte hyn jab suvyasthit samaj me ji rahe hon sukh se. Aur sukh bhaar ho. [ libya ityadi walon se puchen]

आनंद पचौरी:-
क्राँतिकारी कवि की   झकझोर देने वाली सशक्त रचनाएँ ।आभार

राजवंती मान:-
पता तो लगे लेखक को कि पढ़ा है
मेरी अपनी  राय है।

सुवर्णा :-
सबसे खतरनाक होता है हमारे सपनो का मर जाना.... बढ़िया कविताएँ..

मनचन्दा पानी:-
"कला का फूल बस राजा की खिड़की पर ही खिलेगा"
"ना होना तड़प का सब कुछ सहन कर जाना"
"मेरा हक़ बनता है"
पाश ने बहुत अच्छा लिखा है। राजनितिक पर्दों के छलावे के पार देख पाना और फिर उसपर बेबाकी से अपनी बात रखना बहुत कम लोगों के बस का काम है। ज्यादातर तो अपनी कला को राजदरबारी बनाने में ही अपना जन्म सफल कर रहे होते हैं। कई बार बिजूका पर पाश को पढ़ा है, हर बार ऊर्जावान।

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