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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

09 अक्टूबर, 2016

कविता : ओतो रेने कास्तिय्यो

नमस्कार मित्रो, 

आज आपके लिए प्रस्तुत हैं ग्वाटेमाला की जनता के संघर्षों के सहयोद्धा और जीवन के चितेरे कवि 'ओतो रेने कास्तिय्यो' की कविताएँ... 

1 इन चन्द-एक महीनों में

यह ठूँठा पेड़
बसन्त में
चिडि़यों से भर जायेगा
और यह
धुँआ बादलों
के बीच अपनी जवानी खो देगा
सर्दियों से जकड़ी और भागती हुई सड़कें
गर्मियों में बेहद आराम से चलेंगी
और पहले से कहीं अधिक भरी होंगी
मेरे नहीं होने पर।
शायद अप्रैल में इन बड़े कुत्तों से डरता यह बच्चा
नवम्बर में उन्हें पुचकार रहा होगा
और यह बूढ़ा आदमी जो अभी हमारी ओर देख रहा है शायद किसी बेहद दूर के तारे से तब तुम्हे देखे
या किसी ताज़े खिले फूल से
जिसकी अभी कल्पना भी नहीं की जा सकती
कि वे ऐसी बूढ़ी आँखों से खिल सकते हैं।

लेकिन मेरी जान, कोई भी
कोई भी तुम्हें अपने जलते हुए ह्रदय से नहीं देखेगा
मानों किसी दु:ख झेलते, दूर के घायल तारे की तरह।
भोर के बिना, फूल के बिना, गौरयों के बिना।
हवा की धड़कनों से दूर
तुम्हारे बालों को सँवारता
जब आमना सामना होगा
तुम्हारी शिनाख्त से मेरी नामौजूदगी का।
तब नदी का पानी
शायद
कई पुलों को
पार कर चुका होगा।
और तुम्हारी प्यार भरी छुअन में
नामौजूद होगा मेरा सीना।
और हवा में रहेगी मेरे स्पर्श की कोमलता।

2 आज़ादी

तुम्हारे लिए
हमनें चमड़ी में कई आघात
जमा किये हैं
कि खड़े-खड़े भी
हम मौत की
नाप में नहीं समायेंगे।

मेरे देश में,
आज़ादी मात्र आत्मा से निकली
नाज़ुक साँस नहीं है,
बल्कि यह
चमड़ी का साहस भी है।
इसके अथाह विस्तार के
हर एक मि‍लीमीटर में
तुम्हारा नाम लिखा है:
आज़ादी।
उन यंत्रणा झेले
हाँथों पर,
शोक से अचम्भित उन खुली आँखों में।
गर्व से झिलमिलाते
ललाट पर।
उस सीने में जहाँ
जीवट व्यक्ति हमारे अन्दर
महान बनता है।
खुद पर गर्व करने वाले
उन अण्डकोषों में।
वहाँ तुम्हारा नाम है,
तुम्हारी कोमलता और तुम्हारे नाम की नर्मी
उम्मीद और साहस के गीतों में गाया जाता है।

हम कई जगह झेल चुके हैं
उन यंत्रणा देने वालों की यातनाएँ
और हमारी छोटी चमड़ी पर
तुम्हारा नाम इतनी बार लिखा है,
कि अब हम मर नहीं सकते
क्योंकि आज़ादी मरती नहीं।
मगर वे हमारी यंत्रणा
बेशक लगातार जारी रख सकते हैं।
लेकिन आज़ादी, तुम हमेशा
विजयी रहोगी।
और जब हम अपनी बन्दूकों से
आख़िरी गोली दाग रहे होंगे
तो आज़ादी तुम पहली होगी
जो मेरे साथियों के कण्ठ
से गा रही होगी।
क्योंकि इस धरती के अथाह विस्तांर में
कोई भी चीज़
इतनी खूबसूरत नहीं है
जितने किसी समाप्त होती
व्यवस्था पर
आज़ाद जनता के गौरवपूर्ण
पैर।

3 ‘दी ग्रेट नॉन कनफॉरमिस्ट’

किसी भी इंसान से
यह मत पूछो
कि क्या
वह दु:खी है,
क्योंकि
इस या उस रूप में
किसी न किसी राह पर
सभी दु:ख झेल रहे हैं।

आज,
मिसाल के लिए,
मेरी मिट्टी
मैं अपनी आत्मा की गहराई तक
तुम्हारे दु:ख से दुखी हूँ।

और
तुम्हारी त्रासदी से आहत
मैं इससे
भाग नहीं सकता।

मैं तुम्हें जीऊँगा
क्योंकि तुम्हे
ज़िन्दगी की पीठ
दिखाने के लिए
मेरा जन्म नहीं हुआ है
बल्कि मेरे पास
जो श्रेष्ठ और सबसे सार्थक है:
वह है मेरी ज़िन्दगी,
उसकी गरिमा और उसकी कोमलता।

4
यदि तुम्हारे साथ कोई दु:खी है
तो वह दीन आदमी मैं हूँ
मैं वह हूँ
जो तम्हारे भिखारियों, तुम्हारी वेश्याओं,
तुम्हारी भूख,
तुम्हारी टूटी-फूटी बस्तियों
के दुख झेल रहा है
जहाँ भूख और ठण्ड के
गिद्ध मण्डराते हैं।

लेकिन मैं सिर्फ़ अपनी
खुली आँखों से तकलीफ़ नहीं झेलता
बल्कि शरीर और आत्मा के
आघातों के साथ दु:खी हूँ
क्योंकि कुछ और होने से पहले मैं
एक विद्रोही हूँ
जो अपने समय की प्रतीक्षा
कर रहे लोगों की चमड़ी के नीचे
रहता है
ये वही आम लोग हैं
जिनके अलावा
कोई नहीं जानता कि
संघर्ष कभी त्यागा नहीं जाता
और न ही त्यागी जाती है जीत।

5 अपराजेय

मेरी प्यारी, हम सभी अपराजेय हैं।
इतिहास और लोगों से हम बने हैं।
जनता और इतिहास भविष्य को चलाते हैं।

और कुछ नहीं जीवन से अधिक अपराजेय;
इसके झोंके हमारी पाल में हवा भरते हैं।

जब हम हासिल करेंगे जीत तो
हमारे साथ विजयी होगी जनता, इतिहास और ज़िन्दगी।

हमारे हाथों के अन्तिम छोर पर अभी ही भोर होने लगी है और हमारे अन्दर सुबह अपनी आँखें खोल रही है,
क्योंकि हम उसका घर बनाते हैं, उसकी किरणों के संरक्षक हैं।

हमारे साथ आओ कि लड़ाई अभी जारी है।
औरतों! अपने मिलिशिया गर्व को जगाओ।
हम सभी जीतेंगे मेरी प्यारी साथियो!

परिचय - 
ओतो रेने कास्तिय्यो, जन्म: 1936, ग्वाटेमाला के क्रान्तिकारी, गोरिल्ला योद्धा और कवि थे। 1954 में ‘सीआईए’ द्वारा प्रायोजित जनवादी ‘आरबेन्ज़  सरकार’ के तख्तापलट के बाद कास्तिय्यो निर्वासन में एल सल्वादोर चले गये। यहाँ उनकी मुलाकात कवि रोके दाल्तन और दूसरे लेखकों से हुई जिन्होनें उनकी शुरुआती कविताओं के प्रकाशन में मदद की। 1957 में आर्मास तानाशाह के मरने के बाद वे ग्वाटेमाला वापस आये और 1959 में पढ़ाई के लिए जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक गये जहाँ से उन्होंने स्नातकोत्तर की डिग्री हासिल की। 1964 में वे ग्वाटेमाला वापस आये और ‘वर्कर्स पार्टी’ में सक्रीय हो गये और साथ ही ‘कैपिटल सिटी म्युनिसिपैलिटी’ में ‘एक्स्पे रिमेण्टल थियेटर’ की स्थापना की। इसी दौरान इन्होंने कई कविताएँ लिखी और उन्हें प्रकाशित कराया। उसी साल कस्तिय्यो को गिरफ़्तार कर लिया गया लेकिन किसी तरह वह भाग निकलने में क़ामयाब रहे और इस बार वे यूरोप चल निकले। साल के अन्तर तक वह गुप्त रूप से ग्वाटेमाला वापस आ गये और जाकापा पर्वतों में चल रहे गोरिल्ला आन्दोलन में सक्रीय हो गये। वर्ष 1967, ग्वाटेमाला के लिए दुर्भाग्यपूर्ण रहा, उसने एक योद्धा, एक कवि, एक ज़िन्दादिल नौजवान खो दिया। 1967 का अन्त होते-होते कई क्रान्तिकारियों के साथ कास्तिय्यो भी पकड़े गये; अन्य, कॉमरेड और किसानों के साथ उन्हें भयंकर यंत्रणा दी गयी और आख़िर में उन सभी को ज़िन्दा जला दिया गया। इस प्रकार एक योद्धा कवि अपनी मिट्टी, अपने लोगों के लिए अन्तिम साँस तक लड़ता रहा। एक बेहतर, आरामदेह ज़िन्दगी जीने के तमाम अवसर मौजूद होने के बावजूद उसने जनता का साथ चुना और आख़िरी दम तक उनके साथ ज़िन्दगी को खूबसूरत बनाने के लिए लड़ता हुआ शहीद हो गया

कविताओं का मूल स्पानी (स्पेनिश) से अनुवाद और परिचय प्रस्तुति -लता

(प्रस्तुति-बिजूका)
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टिप्पणियां:-

पूनम:-
आदरणीय कितना बेहतरीन है कि हमारे लिए हाथो के अंतिम छोर पर भोर  होने की लगी है और भीतर सुबह अपनी आंखे खोलने लगी है ।
जीवन से अधिक अपराजेय कुछ नही ।इसके झोंके हमारी पाल मे हवा भरते है । लता जी को सुन्दर अनुवाद के लिए बहुत बहुत शुभकामनाये ।

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