साथियो नमस्कार,
आज पढ़ते है समूह के साथी की कुछ रचनाएँ।
आप सभी साथियों के विचार अपेक्षित है।
रचनाकार का नाम भास्कर चौधरी है।
1
जम्हाई
अब रहने लायक नहीं रही
दुनिया
कहा उसने
फिर
लम्बी गहरी जम्हाई ली ...
2
विजेता
वे चार मिलकर
पछीट रहे हैं लड़की को
विरोध में उछल-उछ्ल रही है लड़की
लड़की ने दाँतों से
नाखूनों से
लातों से मुँह तोड़ जवाब दिया है
वे चारों
जिनके सारे कपड़े
घर की औरतें ही पछीटती आई है अब तक
खड़े हैं पसीने से तरबतर
सर और मुँह ढाँपे गमछे से
उधर मर चुकी लड़की का
खुला है मुँह
आँखें खुली
एक मुस्कान चस्पा है
तिरछे होंठों पर
विजेता की !!
3
गाज़ा पट्टी पर ईद
दूर धरती से
बिल्कुल साफ है आसमान
पर क्या
नज़र आयगा चाँद लोगों को
खड़े-बिखरे इधर-उधर
या ताकते हुए सूराखों से
या उतरेगा चाँद
इज़राइल की पहाड़ियों पर !
4
मुनिया की दुनिया
बहुत होशियार है मुनिया
कहती है मुनिया की अम्मा...
मुनिया नये पुराने गीत गा लेती है
अमूल-दूध के खाली डिब्बे को बखूबी बजा लेती है
मुनिया की उंगलियों की भाषा
पहचानते हैं एस्बेस्टास के
आयाताकर टुकड़े...
कमानी की भांति लचीला है
मुनिया का बदन
दोनों हाथ पैर और सिर जोड़कर
बड़ी आसानी से निकल आती है बाहर
मुनिया लोहे की रिंग से...
छोटी बहन को बहुत प्यार करती है मुनिया
उसे एक पल के लिए भी
अपने से दूर नहीं करती है
कहती है मुनिया की अम्मा
कि मुनिया के संस्कार बहुत अच्छे हैं
दिन-भर की सारी रेजगारी
अम्मा के हाथों में रख देती है....
एक पाठशाला है
मुनिया के घर के पास
मुनिया के पेट बराबर
खाना भी मिलता है वहाँ
पर मुनिया की दुनिया में
शाला की कक्षा नहीं
रेल के डिब्बे हैं -
रेल के डिब्बों से
एक नहीं चार जनों का पेट पलता है
मुनिया के दम पे
अम्मा का घर चलता है...!
5
कक्षा पहली के बच्चे
पहली कक्षा के बच्चे
जैसे मछलीघर में मछ्लियाँ
नाम जिनके अनेक
अनेक आकृतियाँ
हरकतें अनेक–
कुछ मुड़तीं
मुड़तीं जैसे बिजलियाँ
कुछ शांत धीर गंभीर
खिसकती आहिस्ते बहुत आहिस्ते
आहिस्ते से जैसे
कान में कहती कुछ –
अपनी सहेली से
बाहर चलें बाहर
बाहर मछलीघर की चारदीवारी से
खुले आसमान के नीचे
बहती नदी हो जहाँ
या समुद्र कोई खुला –
जैसे पहली कक्षा के बच्चे
भींग रहे बारिश में या
बारिश की बूंदों को ले हथेलियों में
घूम रहे गोल-गोल–
घोर-घोर रानी
इत्ता-इत्ता पानी
ऐसी ही कोई जगह
जहाँ बच्चे पहली कक्षा के
पहने-पहने ही जूते
या पकड़े हाथों में
खाली पैरों से
उछलते एक-ब-एक
और करते हैं छईं-छपाक-छईं
स्कूल के बीचों बीच जहाँ
बच्चों की ही तरह
नन्हें से मासूम गड्ढे में
भरा हो ज़रा सा पानी
और बच्चे खिलखिला रहे हों
संग संग पानी भी
जाना चाहती हैं मछ्लियाँ
ऐसी ही कोई जगह....!
6
सूखा
रोटी चांद सी
थाली सी गोल
रोटी अम्मा के माथे की बिंदी सी
पर जहाँ रोटी ही नहीं
सारी उपमाएं
धरी की धरी !
7
गोदाम
चूहे कुतर सकते हैं
गोदामों में भरा अनाज
पर
यहाँ मना है
आना जाना
आदमियों का !
8
8.1
अभी कल की ही तो बात है
जब ये बच्चे मुस्कुरा रहे थे
खिलखिला रहे थे
और इनकी माँए
पड़ोसियों को
बता रही थी इन बच्चों के किस्से
आज भी उन बच्चों के ही किस्से हैं
फैले चारों तरफ
पर इस बार मुस्कुराने को बच्चे नहीं
माँओं की छाती से चिपकी उनकी तस्वीरें हैं !
8.2
उन बच्चों के साथ खुदा था...
वे चले गए खुदा के पास
काश मेरे साथ भी होते खुदा
तो मैं लौटा पाता
बच्चों को उन
अपने पास !!
8.3
ये पंक्तियाँ हो ही नहीं सकती
किसी कविता की पंक्तियाँ मुकम्मिल
क्योंकि यह
जीवित बच्चों के बारे में नहीं है !!
9
चिंता
दिन के उजाले में
बंद कर भी दें अगर
कमरे की सारी खिड़कियाँ-
दरवाजे
चादर से मुंह ढाँप
करें उपक्रम सोने का
सोचें की
चिंताओं से कोई भी
महफ़ूज़ हैं आप
या कि
चिंताएँ सारी की सारी
ढांपते ही मुंह
परे हो जाती हैं आप से
तो आप ग़लत हैं
उजाले की तरह
चिंता भी
पा ही जाती हैं घुसने की जगह
कभी खिड़कियों में दरारों से
तो कभी
चादर में धागों की बुनावट के बीच
कहीं से ... ॥
भास्कर चौधरी
परिचय
जन्म: 27 अगस्त 1969 रमानुजगंज, सरगुजा(छ.ग.)
शिक्षा: एम. ए. (हिंदी एवं अंग्रेजी) बी एड
प्रकाशन: एक काव्य संकलन ‘कुछ हिस्सा तोउनका भी है’प्रकाशित। लघु पत्रिका ‘संकेत’का छ्टा अंक कविताओं पर केंद्रित। कुछ संस्मरण एवं पत्र ‘बस्तर में तीन दिन’ शीर्षक से बोधि प्रकाशन से शीघ्र प्रकाश्य.. कविताएँएवं संस्मरण देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकींहै।
मोबाइल: 09098400682
ई मेल :bhaskar.pakhi009@gmail.com
प्रस्तुति-बिजूका समूह
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टिप्पणियां:-
अनाम:-
बेहतरीन । कवितायें । खासकर बच्चों के मनोभाव में उतरकर लिखी गई कविता पहली कक्षा के बच्चे " इस पूरे तंत्र पर सवाल खड़ा करता है । हम अक्सर बच्चों की भावना को बच्चों की मनोभूमि से समझने की बजाय अपनी भावभूमि से देखने और नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं । बच्चे छपक छपाई करते हुये उन्मुक्त बन्धनरहित रहना चाहते हैं । बढ़िया ।
कवि को बधाई ऐसी सुन्दर कविता पढ़वाने के लिए ।
अनाम:-
उजाले की चिंता का किस तरह प्रवेश पा जाती है उन तमाम जगहों पर जहाँ जाना मना है ।
एक नये तरीके से उजाले के बिम्ब का प्रयोग कवि ने अपनी अंतिम कविता में की है । आज अंधेरे से लड़ने में उजाले की मनःस्थिति कैसी है । और सतत कोशिश एक नाउम्मीदी भरे वातावरण में उम्मीद जगाती है । अच्छी कविता । बधाई भास्कर जी ।
पूनम:-
बधाई हो भास्कर जी । आज भी सभी कविताऐ पढना सुखद लगा । चिंता पर चर्चा करती कविता सच्ची है सही है अनाज पर भी फिक्र बहुत ईमानदार और गंभीर है । ऐसी कविता समाज मे बार बार सम्प्रेषण के योग्य है । हम सभी को संसार मे रहने का कुछ न कुछ कर्ज चुकाना होगा । ऐसे मे इन कविताओ को समय समय पर सामने लाना भी सार्थक है ।
पाखी:-
बहुत बहुत धन्यवाद पूनम जी शेखावत जी सुषमा जी संध्या जी सृजन जी शोभा जी पवन जी सूर्य प्रकाश जी प्रदीप जी भागचंद जी तितिक्षा जी एवं बिजूका टीम के सभी साथियों को.. भास्कर
अनाम:-
बधाई भास्कर भाई मै पहले दिन की कविता पढ़ कर जानगया था अरे यह तो अपने भास्कर चौधुरी भाई की कवितायें ।सहजता और सोद्देश्यता आपकी कविता के अन्तर्निहित गुण हैं ।यहाँ प्रस्तुत सभी कवितायें बढ़िया हैं ।
बेहद अच्छी और जरूरी कविताएँ, बधाई।
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