image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

09 अक्तूबर, 2016

आनंद मोहन जी की कुछ हाइकू कविताएँ

आइये आज पढ़ते हैं आनंद मोहन जी की कुछ हाइकू कविताएँ ।

पढ़कर अपने विचार व्यक्त अवश्य करिये।

सात हाइकू कविताएं

1.
ठूंठ पेड़ खड़ा है एकदम शांत
निर्विकार
बैठी एक चिड़िया उड़ती है
एक टहनी हिल रही है।

2.
एक संत दे रहा प्रवचन
मैं देख रहा हूॅं केवल
उसकी झक्क सफेद दाढ़ी।

3.
जाड़े की रात बारह बजे
निकलता हूॅ ऑंफिस से
घर के लिए।
सन्नाटी सड़क पर 
फडफड़ाती है ऊॅची होर्डिंग।

4.
स्टोर बंद होने पर 
सेल्सगर्ल
बदल रही स्टोर की यूनीफार्म
देख रही है घड़ी।

5.
अस्पताल के गलियारे में
एक पूर्ण सन्नाटा।
फिर एक लम्बी चीख
फिर एक पूर्ण सन्नाटा।

6.
लड़की देखने आये कई लोगों के सामने,
असहज बैठी है लड़की।
देख रही है एकटक
सामने बैठे बुजुर्ग की मूॅछ पर अटका 
बिस्कुट का एक छोटा टुकड़ा।

7.
सुबह सुबह
रिक्षे पर लदे बच्चे, बस्ते, बॉंटल
रंग-बिरंगे
एकदम शांत
केवल पैडल की आवाज 
चर्र, खट, चर्र, खट।

प्रस्तुति-बिजूका समूह
-----------------------------------------------------------------
टिप्पणियां:-

संजीव:-
ये हाइकू नहीं है . लघु कवितायें है.

पल्लवी प्रसाद:-
Haiku 17 words ki hoti hy shayad

सुषमा सिन्हा:-
मेरे ध्यान में भी है कि हाईकू 17 अक्षरों की होती है।
5
7
5

हनीफ मदार:-
हाँ हायकू तो यह कम से कम नहीं ही है । लेकिन सार गहरा और वज़नी छुपाये हैं तो छोटी और अच्छी कविता है ।

पूनम:-
आनंद मोहन जी को साधुवाद देना चाहिए बहुत ही सरल और सहज भाव से लिख दी है कविताऐ जीवन के प्रति जागरूक फलसफा दिखाई देता है आजकल तो कविता के नाम पर भयंकर शाब्दिक बाजीगरी पढकर महसूस होता है कि कविता यह नही है मन को जो भी झंकृत कर गया उसे अभिव्यक्त कर दिया बस यही है सच्ची कविता दिल  से कही गई दिमाग से नही । कितने भी बार पढो इनको पढना बहुत सुखद लगा है ।

उदय अनुज:-
इनको हाइकु कविताएँ नाम देने की आवश्यकता ही नहीं है। हिन्दी में लघु कविता शब्द प्रचलित है। जब ये हाइकु की 5,7,5 के फार्मेट में हैं नहीं तो  हाइकु शब्द इनके साथ जोड़ने का कोई तुक नहीं
      ये लघु कविताएँ प्रभावशाली है

सत्यनारायण पटेल:-
चलिए हाइकू नहीं तो नहीं सही...रचनाओं के कथ्य पर बात हो...कविताएँ या लघुकथाएँ या जो भी रचनाएँ है...क्या वे अपनी बात..संदेश संप्रेषित कर रही है!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें