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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

28 फ़रवरी, 2019

कौन थी विश्वयुद्ध में जासूसी करने वाली भारतीय शहज़ादी नूर 
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  जसबीर चावला 

ब्रिटिश प्रधानमंत्री श्री डेविड कैमरन ने अपने एक वक्तव्य में नूर के स्मारक के बारे में कहा था कि -"बहादुर नूर इनायत खान का यह स्मारक उस युवा मुस्लिम महिला के प्रेरक आत्म बलिदान को सच्ची श्रद्धांजलि है,जिसनें ब्रिटिश रेंक में शामिल होकर नस्लवाद और उत्पीड़न के विरुद्ध विश्वव्यापी लड़ाई लड़ी थी।"




जसबीर चावला



कौन थी नूर ? यह गाथा भारतीय मूल की एक ऐसी खूबसूरत लड़की कि है,जिसका परिवार भारत की आजादी के बहुत पहले से ब्रिटेन में निवासरत होनें के कारण वह वहाँ का नागरिक था।लड़की का मन बच्चों सा निश्छल,करुणामय,और मानवतावादी है।वह बुद्ध और गाँधीजी के नान वायलेंस मिशन से प्रभावित है।कई भाषाओं की जानकार है।वीणा और पियानों दोनों बजा लेती है।कलात्मक रुचियों की धनी,अपनें सूफी गुरु पिता के विचारों की है।लड़की का पूरा नाम है नूर-उन-निसा इनायत खान।

द्वितीय विश्व युद्ध में नाजियों द्वारा फ्रांस पर आक्रमण के बाद इस लड़की नूर को परिस्थितियों के दबाव नें ब्रिटेन की तरफ से लडाई में नई भूमिका में उतार दिया।युद्ध और कलात्मकता की दोहरी मानसिकता के कारण नूर कई बार कठोर निर्णयों के दौरान गहरे असमंजस में पड़ जाती है।

नूर का जन्म एक जनवरी 1914 में मास्को में हुआ।पिता इनायत खान भारतीय मूल के अभिजात्य,उदारवादी मुस्लिम थे और इंग्लेंड में रहते थे।पिता इनायत खान की माँ मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान की वंशज थी इसलिये एक लेखिका ने नूर को प्रिंसेस (शहज़ादी) लिखा।इनायत खान सूफी संप्रदाय के आध्यात्मिक गुरु थे और युरोप,अमेरिका में सहिष्णुता और भाईचारे का संदेश फैलाते थे।वे अमरीकी मूल की महिला रे बेकर से विवाहित थे जो बाद में अमीना बेगम कहलाई।1921 में वे लंदन से पेरिस में आ गयेउनकी आध्यात्मिक सूफी मान्यताओं का नूर पर आजीवन गहरा प्रभाव रहा।1927 में भारत की यात्रा के दौरान हजरत इनायत खान की मृत्यु हो गई।महज तेरह वर्ष की उम्र में नूर अपनी माँ,भाइयों विलायत,हिदायत और बहन खैर-उन-निसा की देखभाल करते हुए घर की मुखिया बन गईं।










नूर प्रतिभाशाली थी।उसने लंदन में अध्ययन शुरू किया।रेडियो पेरिस और 'ले फिगरो' के लिए कहानियां लिखीं।बुद्ध की जातक कथाओं पर आधारित बच्चों के लिये कहानियाँ लिखी।बाल मनोविज्ञान अध्ययन के लिये एक पाठ्यक्रम में दाखिला लिया।

जर्मनी के फ्रांस पर आक्रमण करनें के बाद 26 साल की नूर ने इंग्लेंड में 1940 में वायु सेना में वायरलेस ऑपरेटर के रूप में भर्ती होकर उन्नत वायरलेस कोर्स और गुप्तचरी का प्रशिक्षण लिया।धाराप्रवाह फ्रेंच बोल सकनें के कारण उसे 'एसओई' (स्पेशल आपरेशन एग्जिक्युटिव) के 'एफ' सेक्शन' (फ्रेंच सेक्शन) के चेलेंजिग जाब में ले लिया गया।

फरवरी 1943 में उसके तीन सप्ताह के पाठ्यक्रम में सशस्त्र,निहत्थे मुकाबला करना,वायरलेस और क्रॉस-कंट्री नेवीगेशन का गहन प्रशिक्षण लिया.पहिचान छुपानें के लिये उसनें नर्स की ड्रेस पहनी।वह दूसरों की अपेक्षा अधिक शारीरिक व्यायाम करती थी लेकिन दोहरी मानसिकता के कारण हथियारों से डरती भी थी।।उसके प्रशिक्षक ने उसके स्वभाव के बारे में प्रशंसा करके हुए कहा कि उसमें गहरी नैतिक प्रतिबद्धता है,लेकिन एसओई के सैनिकों को क्रूर निर्णय भी लेनें होते हैं।वहाँ मानवता,आदर्शवाद नहीं चलता।लेकिन एफ सेक्शन में दक्ष वायरलेस ऑपरेटरों की तुरंत आवश्यकता होनें से नूर चुनी गई।

नूर को कोड नाम 'मेडेलीन' देकर फ्रांस के एक गुप्त लैंडिंग क्षेत्र के के लिये 'आरएएफ' के विमान से वायरलेस ऑपरेटर के रूप में भेजा गया।अब उसकी झूठी पहचान एक आया की थी।उसे फ़्रेंच राशन कार्ड और परमिट बनवा कर 'एल' गोलियाँ भी दी कि पकड़ी जाने पर निगल कर जान दे दे। तीन अन्य साथी डायना राउडन,सेसिली,लेफोर्ट,भी अलग जहाज से फ्रांस गई।वहाँ उनका इंतजार कर रहा ब्रिटिश गुप्तचर सेवा का हेनरी डेरीकोर्ट भी था,जो जर्मनी के लिये भी काम करने वाला डबल एजेंट था।उसके द्वारा गेस्टापो को पता था कि ये उड़ानें कहाँ उतरेंगी।इन पर निगाह रखनें के लिये गेस्टापो ने अपनें जासूस नियुक्त कर दिये।नूर फ्रांस में गुप्तचर प्रमुख फार्सिस सुट्टिल,एमिल गैरी,गिल्बर्ट नॉर्मन और एंटेलम से मिली।गिल्बर्ट नॉर्मन उसे अपने रेडियो ठिकाने पर ले गया,जहां से नूर ने कुछ महीनों में बीस महत्वपूर्ण जानकारियाँ भेजी।

गुप्तचरी ठीक चल रही थी कि अचानक आफत आ गई ।घटनाओं की एक दुर्भाग्यपूर्ण श्रृंखला में सुट्टिल,नॉर्मन और सैकड़ो जासूस परिवारों सहित पकड़े गये।सुट्टिल का नेट वर्क ध्वस्त हो गया।गिरफ्तारी से बचने के लिये नूर,गैरी और गुप्तचरों ने नए सुरक्षित ठिकाने ढूँढे।वायरलेस आपरेटर सुरक्षित जगहों पर चले गये पर नूर ने लंदन जानें के बजाय नेटवर्क फिर से खड़ा करनें के लिये वहीं रुकना बेहतर समझा।इतनी गिरफ़्तारियों के बाद स्थिति भ्रामक हो रही थी।नॉर्मन की गिरफ्तारी के बाद जर्मनों ने उसके कोड और वायरलेस सेट से इंग्लेंड झूठे संदेश भेजे।इंग्लेंड से पेरिस में स्थिति का आकलन करनें भेजे गये अधिकारी का वायरलेस ऑपरेटर भी गेस्टापो ने पकड़ लिया और उससे वे,नॉर्मन के सेट से गलत सूचनाएँ भिजवानें लगे।नूर का काम और भी महत्वपूर्ण हो गया।भारी वायरलेस सेट को सूटकेस में भरकर वह पेरिस की सड़कों पर वाहन से स्थान बदल बदल कर गोपनीय सूचनाएँ भेजती रही।






अगस्त में ग़द्दार हेनरी डेरीकोर्ट ने नूर के वायरलेस कोड से कुछ गुप्तचरों को लंदन वापस उड़ान से भेजनें की बात की।उसनें नूर के गोपनीय दस्तावेज,पत्र,सूचनाएँ,और फ़ोटोग्राफ गेस्टापो के पास पहुँचा दिये।गेस्टापो अब नज़दीक था।नूर को सुरक्षित ठिकाने छोड़कर पुराने दोस्तों के घरों में शरण का जोखिम उठाना पड़ा।काले चश्मे पहनें,बालों को डाई करके रंग बदल कर इधर उधर छुपते रहना रोज का काम था।इस भागदौड़ ने उसे शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रूप से बहुत तोड़ा।अक्टूबर के मध्य में इंग्लेंड द्वारा उसके लंदन वापस लौटने के लिये उड़ान की व्यवस्था की गई पर नूर वह उड़ान कभी नहीं पकड़ पाई।चार महीनों तक जर्मनों के हाथों से बचनें के बाद नूर का दुर्भाग्य शुरु हो गया जब गेरी की फ्रांसिसी बहन रेमी ने भी ग़द्दारी कर उसकी गुप्त जानकारी जर्मन जासूसों को एक लाख फ्रेंक में बेच दी।
उसे पेरिस में जर्मनों के मुख्यालय लाया गया।नूर ने वहाँ चालाकी से स्नान के बहाने बाथरूम का दरवाजा बंद कर रोशनदान से निकल कर भागनें का प्रयास किया।वह पकड़ी गई।दुबारा उसने एमआई 6 के (ब्रिटिश सेना का गुप्तचर विभाग) के अधिकारी स्टार और लोन फेय के साथ पाँचवे माले से भागनें का प्रयास किया।कँबल और चादरें जोड़कर रस्सियाँ बनाई गई लेकिन नूर बाथरूम की राड हटा नहीं पाई।सबेरे के तीन बजे आरएएफ़ के विमानों ने वहाँ हवाई हमला कर दिया।अफ़रा तफ़री मच गई।जर्मन चौकन्ने हो गये।बंदियों की सेल की तलाशी में बनाई रस्सियाँ मिल गई।सारा प्लान फेल हो गया।
नूर से जर्मनों ने सूचनाएँ उगलवानें के लिये जबरदस्त मशक़्क़त की।इस पूछताछ से नूर ने अपनें प्रशिक्षण काल के सारे आलोचकों को गलत साबित कर दिया,जिन्हे उसकी क्षमता में विश्वास नहीं था।जर्मन कोई भी सटीक गुप्त सूचना नहीं उगलवा सके।

दूसरी बार भागने के प्रयास से जर्मन किफर गुस्से में था।उसनें उन सबको वहीं गोली मारने की धमकी दी और फिर न भागनें का आश्वासन चाहा।स्टार ने हाँ कर दी पर फेय और नूर ने साफ इंकार किया।उसनें नूर और तीन अन्य महिला एसओई एजेंटों को म्यूनिख के लिए ट्रेन में सवार कर दिया।सबको बदनाम 'फ़ौर्ज़ाइम' जेल में रखा गया।जेलर को गेस्टापो नें आदेश दिया कि नूर को सबसे अलग थलग एकांत कोठरी में हाथ-पैरों में ज़ंजीरे बाँध कर रखे और खाना कम दें।नूर पर भयंकर अत्याचार किये गये।वह शारीरिक रूप से टूट गई लेकिन हारी नहीं।कल्पना की जा सकती है कि दुश्मन देश की एक जवान लड़की पर जर्मनों नें कौनसा अत्याचार नहीं किया होगा। मरणासन्न नूर के अंतिम स्पष्ट शब्द थे "लिबरेट" (आजादी )।12 सेप्टेम्बर को उसे 'दचाऊ केंप' में लाया गया और 13 सेप्टेम्बर 1944 को तीन अन्य एसओई महिलाओं के साथ उसे मौत की सजा सुनाई गई।किसी पादरी को भी प्रार्थना के लिये नहीं बुलाया गया।अधिकारी फ्रेडरिक विल्हेम रूपर्ट ने उसे पिस्तोल से गोली मारी।मारनें के बाद उसनें जवानों से कहा कि इनके शरीर कार्यालय में लायें ताकि वे इनके कोई ज़ेवर हो तो ले सकें।नूर को गोली मारने वाले इस हत्यारे रूपर्ट को युद्ध के बाद मई 1946 में फांसी दी गई।





                        (जर्मनी का बदनाम दचाऊ केंप जहाँ नूर को रखा गया)
नूर पर कई पुस्तके और संसार भर में लेख लिखे गये.नूर पर सबसे ताजी पुस्तक 2006 में प्रकाशित शबानी बासु की 'प्रिंसेस स्पाय' (जासूस राजकुमारी) है।अक्टूबर 1946 में फ्रांस द्वारा नूर की सेवाओं के लिये उसे 'क्रिक्स डी गुएरे' सम्मान दिया।ब्रिटेन नें 'जॉर्ज क्रॉस' से सम्मानित किया।नूर की स्मृति,सम्मान में इंग्लेंड की सरकार नें डाक टिकट जारी किया।जर्मनी के दचाऊ केंप में एक स्मारक पट्टिका,इंग्लेंड में 'दि एयर फोर्सेस मेमोरियल युद्ध स्मारक' और फ्रांस के वैलेनके में 'एफ सेक्शन' की स्मृति में बने स्मारक पर उसका नाम श्रद्धा से अंकित है।नूर का एक स्मारक इंगलेंड में उसके घर के बाहर गॉर्डन स्क्वायर, ब्लूम्सबरी में "नूर इनायत खान मेमोरियल ट्रस्ट" द्वारा बनाया गया है।इस स्मारक का अनावरण नवंम्बर 12 में हुआ।इस स्मारक पर नूर को श्रद्धा सुमन अर्पित करनें भारत रत्न प्रणव मुखर्जी,फिल्म निर्देशिका गुरूविंदर चड्ढा,लेखिका अँरुधती राय भी आ चुके हैं।
इन दिनों 2018 में इंग्लेंड में 2020 में छपने वाले 50 पाउंड के नोट पर नूर सहित तीनों एसओई महिलाओं का फोटो प्रिंट किया जाये इसके लिये इंग्लेंड में एक अभियान चल रहा है।
2012 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री श्री डेविड कैमरन ने अपने एक वक्तव्य में कहा था कि -"बहादुर नूर इनायत खान को कठोर कारावास में डालकर पूछताछ के बहाने जैसा उत्पीड़न हुआ,उसकी गहराई में जाना संभव नही है।उसकी क्रूर मृत्यु उसके अदम्य साहस को दिखलाती है।नागरिक क्षेत्र का सर्वोच्च सम्मान 'जार्ज क्रास' उसकी वीरता को मान्यता देता है।
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जसबीर चावला जी का एक लेख और नीचे लिंक पर पढ़िए

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