नारायणदत्त स्मृति व्याख्यान माला का समापन
प्रस्तुति: रीता दास राम
'राष्ट्रीय सेवा योजना स्नातकोत्तर इकाई' एवं 'मुंबई विश्वविद्यालय हिंदी विभाग पूर्व छात्र मंच' के संयुक्त तत्वाधान में मुंबई विश्वविद्यालय विद्यानगरी परिसर के 'मराठी भाषा भवन' में आदरणीय नारायणदत्त जी की स्मृति में 17 फरवरी 2019 को दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक आयोजित कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा। मंच पर उपस्थित आदरणियों में मुंबई विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर व अध्यक्ष डॉ रतन कुमार पाण्डेय, भवंस नवनीत पत्रिका के संपादक विश्वनाथ सचदेव, धर्मयुग की सुप्रसिद्ध पत्रकार श्रीमती सुदर्शना द्विवेदी, प्रसिद्ध विज्ञान लेखक डॉ देवेन्द्र मेवाड़ी, श्री रवि खानविलकर, महाराष्ट्र अकादमी सदस्य डॉ प्रमिला शर्मा, नवभारत टाइम्स के श्री हरि मृदुल और मेजबान स्वयं मुंबई विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ हूबनाथ पाण्डेय थे।
देवेन्द्र मेवाड़ी |
कार्यक्रम की शुरुआत 14 फरवरी के कश्मीर हादसे में शहीद हुए जवानों की याद में दो मिनिट के मौन से हुई। उसके बाद मुंबई विश्वविद्यालय पूर्व छात्र मंच का गठन एवं पदाधिकारियों के चयन का कार्य सम्पन्न हुआ। इसके बाद मुंबई
विश्वविद्यालय की पूर्वछात्रा डॉ सुनीता शर्मा के कविता संग्रह 'पलाश की पगडंडियाँ' का लोकार्पण हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि डॉ रतन कुमार पाण्डेय ने आशीर्वाद स्वरूप अपनी बात कही एवं डॉ प्रमिला शर्मा ने कविताओं पर अपनी विशेष टिप्पणी करते हुए लोकार्पित पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए। डॉ सुनीता शर्मा ने अपनी पहली पुस्तक के लिए अपने विचार व्यक्त कर सभी का धन्यवाद अदा किया। तत्पश्चात मुख्य कार्यक्रम आरंभ हुआ।
2016 से हर साल की तरह आज 17 फरवरी को 'नारायणदत्त स्मृति व्याख्यान माला' की चौथी कड़ी में नए विषय के तहत 'वैज्ञानिक सोच एवं अंधश्रद्धा' पर डॉ देवेन्द्र मेवाड़ी एवं श्री रवि खानविलकर, को सुनना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही। जिन्होंने जीवन के हर पल में होते परिवर्तन को वैज्ञानिक सोच के अंतर्गत देखने, प्रश्न पूछने के प्रति सभी को प्रोत्साहित किया। साथ ही बताया कि अंधश्रद्धा के कारण आज के आधुनिक युग में भी अज्ञानतावश लोग बाबाओं की गिरफ्त में आ जाते हैं। जबकि बाबाओं के द्वारा की गई हरकतें सिर्फ हाथों की सफाई होती है और दिखाए कुछ घटनाओं के पीछे वैज्ञानिक कारण होते है। जैसे जलती अगरबत्ती का अपने आप घूमना, अपने आप आग प्रज्वलित होना, नारियल से फूल निकलना, नींबू से बाल निकलना, चावल से भरे कलश का त्रिशूल के दंड से उठना, इत्यादि। जलते कपूर को हाथ में लेना ही नहीं बल्कि बिना जले मुंह में डालकर बुझाना इसकी तो खुद पर की हुई मैं रीता खुद साक्ष्य हूँ। विद्यार्थी एवं उपस्थित सभी सुधिजनों ने आश्चर्यचकित होकर अत्यंत महत्वपूर्ण इन सभी जानकारियों का लाभ लिया। समाज में पसरे अंधविश्वास के विरुद्ध सबकी आँख खोलकर जागरूकता लाना ही इस कार्यक्रम का उद्देश्य था। जिसे सभागार में लोगों की महत्वपूर्ण उपस्थिती ने सफल बनाया। विश्वनाथ सचदेव जी ने अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिती के बाद स्वर्गीय नारायण दत्त की स्मृति में अपने अद्भुत अनुभव साझा किए जो नवयुवाओं का मार्गदर्शन करते रहेंगे। श्रीमती सुदर्शना द्विवेदी ने आदरणीय नारायणदत्त की याद में पिछले तीन सालों से हो रहे कार्यक्रम की चर्चा करते हुए अपने महत्वपूर्ण विचार प्रस्तुत किए। जिसमें प्रथम वर्ष के कार्यक्रम में आए अनुपम मिश्र जी का जिक्र महत्वपूर्ण था। श्री हरि मृदुल ने प्रसिद्ध विज्ञान लेखक डॉ देवेन्द्र मेवाड़ी का बहुत ही महत्वपूर्ण सविस्तार परिचय प्रस्तुत किया। डॉ हूबनाथ पाण्डेय ने अतिथियों एवं विषय के सटीक मुद्दों पर अपनी बात रखी। प्रोफेसर रामलखन पाल ने कार्यक्रम का सफलता पूर्वक सुंदर संचालन किया। शकील अहमद के आभार ज्ञापन के बाद राष्ट्रगीत के साथ समारोह का समापन हुआ। हर साल की तरह ही इस साल भी एक नई अनुभूति और विचारों से सभी परिचित हुए।
अंत में 'पूर्व छात्र मंच' के स्वेच्छा से चयनित पदाधिकारियों की बैठक हुई। जिसमें मंच की सालाना गतिविधि और कार्यक्रम तय किए गए ताकि आगे महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ जुड़ती रहें।
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रीता दास राम की कविता नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/12/16.html?m=1
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