परख छतीस
तपते मौसम से गुजरने के बाद!
गणेश गनी
निरंजन देव शर्मा इधर हिमाचल से इकलौते आलोचक हैं जिनकी कविता और कहानी की समझ पर कोई संदेह नहीं है। आलोचना, कहानी और कविता एक लंबे अर्से से लिख रहे हैं। एक बात आश्वस्त करती है कि बेहतर कविता लिखने का कवि में जज़्बा है। हालांकि बहुत कम लिखते हैं और अध्ययन अधिक करते हैं। युवाओं के बीच साहित्य सम्वाद को लेकर अधिक सक्रिय हैं। निरजंन अपनी कविता को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं और रचना में कई कई बदलाव करते रहते हैं-
स्कूल से लौटते बच्चे को देख
सोचा मैंने
काश कि
ऐसा ही होता जीवन
स्कूल से घर लौटता
उमंग से उछलता
बच्चा जैसे।
बच्चों पर लिखना सच में बच्चों वाला काम नहीं है। इनके मनोविज्ञान को भांपने की समझ सब में कहां होती है। बड़े बड़ों से चूक हो जाती है-
देवदारों के बीच घने जंगल से
सेब और खुबानी तोड़ते
बेपरवाह लौटते हैं घरों को
पहाड़ी बच्चे
शहरी बच्चों की बसों
मोबाइल और विडियो गेम्स से
अलग दुनिया है यह
जहाँ अब भी
लकड़ी छील कर बनाए बल्ले
और रबड़ की गेंद से
खेलते हैं बच्चे
देवदारों से घिरे छोटे से मैदान में
बड़े घिस चुके पत्थर पर बस्ते रख कर
गाते हैं गीत सरसराती हवाओं के साथ
किताब गिर जाने पर टेकते हैं माथा
उसे विद्या माता कह कर।
निरंजन देव शर्मा दरअसल बच्चों के बीच रहते आए हैं। वो बच्चों को बहुत करीब से जानते हैं, उनपर शोध करते रहते हैं। इनकी कविताओं में विभिन्नता भी है। अलग तेवर की कविता पर भी कवि हाथ आजमाए तो बात बनती है-
हेलमेट लगा कर
काला चश्मा चढ़ाए
जब कांता राणी बुलेट चलाती है
तो छोटे से शहर में
यह बड़ी सी खबर बन जाती है
कि कांता राणी बुलेट चलाती है
लोग पलट कर देखते हैं
तो ठीक से देख ही लेते हैं
गाँव की लड़की
शहर को ठेंगा दिखाती है
यार क्या मस्त तो बुलेट चलाती है
किसकी छोकरी है
पूछ ही लेते हैं लोग
ऐसे ही फिरते हैं जी लड़कियों के दिमाग
हें जी
कमाल है !
कवि की कविताएं तपते मौसम से गुजरने के बाद झरने के पानी की बौछार जैसी ठंडक देती हैं। निरंजन देव शर्मा की एक पूरी कविता यहां देना ज़रूरी है, यह पाठक को कवि को समझने और परखने का अवसर है। कविता का जादू सर चढ़कर बोलना चाहिए-
झमाझम बरसात की बारिश है पहली
सुबह का काम निपटा कर
छत पर आ गई है लड़की
दोनों हाथ आसमान की ओर उठाये
गोल घूम रही है
मस्ती में झूम रही है
झमा झम बारिश में
तपते मौसम से गुजरने के बाद
मानो भीग रही हो धरती
घर के काम से छूटते ही
छत पर निकल आती है लड़की
आसमान से बातें करने को
आसमान भी बादलों के जरिये
झुक आता है उसकी ओर
आसमान –बादल और पंछी
सबकी भाषा सीख चुकी है वह
बारिश और इन्द्रधनुष की भी
पहाड़ ने सिखाया है उसको
इन सबसे से बातें करना
देखो-देखो
उसके झूमते - झूमते इन्द्रधनुष निकल आया है
सतरंगी
बारिश की डोर थामे वह उतर गई है
इन्द्रधनुष की पीठ पर
समेट लिए हैं उसने कुरते की जेबों में
इन्द्रधनुष के तमाम रंग
इन्द्रधनुष की ढलान पर से फिसल कर
रंग बिखेरते हुए
वह उतर गई है दूसरी ओर
देख पा रहा हूँ मैं इस पार से
कि सीधे जा उतरी है वह पहाड़ी के उस पार
ढलवां छत वाले स्कूल के प्रांगण में
जहाँ बिखरते हैं जीवन के सात रंग
वह सीख चुकी है यह जादू का यह खेल
जो पहाड़ की इस ओर की कंक्रीट की छत से
संभव होता है हर बार
बरसात के दिनों की बारिश में।
००
परख पैंतीस नीचे लिंक पर पढ़िए
https://bizooka2009.blogspot.com/2019/01/blog-post_27.html?m=1
तपते मौसम से गुजरने के बाद!
गणेश गनी
निरंजन देव शर्मा |
निरंजन देव शर्मा इधर हिमाचल से इकलौते आलोचक हैं जिनकी कविता और कहानी की समझ पर कोई संदेह नहीं है। आलोचना, कहानी और कविता एक लंबे अर्से से लिख रहे हैं। एक बात आश्वस्त करती है कि बेहतर कविता लिखने का कवि में जज़्बा है। हालांकि बहुत कम लिखते हैं और अध्ययन अधिक करते हैं। युवाओं के बीच साहित्य सम्वाद को लेकर अधिक सक्रिय हैं। निरजंन अपनी कविता को लेकर बेहद सतर्क रहते हैं और रचना में कई कई बदलाव करते रहते हैं-
स्कूल से लौटते बच्चे को देख
सोचा मैंने
काश कि
ऐसा ही होता जीवन
स्कूल से घर लौटता
उमंग से उछलता
बच्चा जैसे।
बच्चों पर लिखना सच में बच्चों वाला काम नहीं है। इनके मनोविज्ञान को भांपने की समझ सब में कहां होती है। बड़े बड़ों से चूक हो जाती है-
देवदारों के बीच घने जंगल से
सेब और खुबानी तोड़ते
बेपरवाह लौटते हैं घरों को
पहाड़ी बच्चे
शहरी बच्चों की बसों
मोबाइल और विडियो गेम्स से
अलग दुनिया है यह
जहाँ अब भी
लकड़ी छील कर बनाए बल्ले
और रबड़ की गेंद से
खेलते हैं बच्चे
देवदारों से घिरे छोटे से मैदान में
बड़े घिस चुके पत्थर पर बस्ते रख कर
गाते हैं गीत सरसराती हवाओं के साथ
किताब गिर जाने पर टेकते हैं माथा
उसे विद्या माता कह कर।
निरंजन देव शर्मा दरअसल बच्चों के बीच रहते आए हैं। वो बच्चों को बहुत करीब से जानते हैं, उनपर शोध करते रहते हैं। इनकी कविताओं में विभिन्नता भी है। अलग तेवर की कविता पर भी कवि हाथ आजमाए तो बात बनती है-
हेलमेट लगा कर
काला चश्मा चढ़ाए
जब कांता राणी बुलेट चलाती है
तो छोटे से शहर में
यह बड़ी सी खबर बन जाती है
कि कांता राणी बुलेट चलाती है
लोग पलट कर देखते हैं
तो ठीक से देख ही लेते हैं
गाँव की लड़की
शहर को ठेंगा दिखाती है
यार क्या मस्त तो बुलेट चलाती है
किसकी छोकरी है
पूछ ही लेते हैं लोग
ऐसे ही फिरते हैं जी लड़कियों के दिमाग
हें जी
कमाल है !
कवि की कविताएं तपते मौसम से गुजरने के बाद झरने के पानी की बौछार जैसी ठंडक देती हैं। निरंजन देव शर्मा की एक पूरी कविता यहां देना ज़रूरी है, यह पाठक को कवि को समझने और परखने का अवसर है। कविता का जादू सर चढ़कर बोलना चाहिए-
झमाझम बरसात की बारिश है पहली
सुबह का काम निपटा कर
छत पर आ गई है लड़की
दोनों हाथ आसमान की ओर उठाये
गोल घूम रही है
मस्ती में झूम रही है
झमा झम बारिश में
तपते मौसम से गुजरने के बाद
मानो भीग रही हो धरती
घर के काम से छूटते ही
छत पर निकल आती है लड़की
आसमान से बातें करने को
आसमान भी बादलों के जरिये
झुक आता है उसकी ओर
आसमान –बादल और पंछी
सबकी भाषा सीख चुकी है वह
बारिश और इन्द्रधनुष की भी
पहाड़ ने सिखाया है उसको
इन सबसे से बातें करना
देखो-देखो
उसके झूमते - झूमते इन्द्रधनुष निकल आया है
सतरंगी
बारिश की डोर थामे वह उतर गई है
इन्द्रधनुष की पीठ पर
समेट लिए हैं उसने कुरते की जेबों में
इन्द्रधनुष के तमाम रंग
इन्द्रधनुष की ढलान पर से फिसल कर
रंग बिखेरते हुए
वह उतर गई है दूसरी ओर
देख पा रहा हूँ मैं इस पार से
कि सीधे जा उतरी है वह पहाड़ी के उस पार
ढलवां छत वाले स्कूल के प्रांगण में
जहाँ बिखरते हैं जीवन के सात रंग
वह सीख चुकी है यह जादू का यह खेल
जो पहाड़ की इस ओर की कंक्रीट की छत से
संभव होता है हर बार
बरसात के दिनों की बारिश में।
००
गणेश गनी |
परख पैंतीस नीचे लिंक पर पढ़िए
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बेहतरीन कविताएं बालमन , बचपन की संपूर्ण भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती कविताएं , बहुत ही मर्मस्पृशी
जवाब देंहटाएं*कांता राणी* कविता एक दम परफेक्ट टोन में कहीं गई है। मुझे बहुत पसंद है ।
जवाब देंहटाएंगनी भाई को बधाई कि उन में आस पास के मित्र लेखकों पर लिखने का साहस है ।