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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

07 फ़रवरी, 2019


शशांक पाण्डेय की  कविताएँ



शशांक पाण्डेय


एक

इस देश का नाम भारत है

जब मैंने लिखा-बेईमान
लोगों ने कहना शुरू कर दिया
कि वह धोखेबाज भी है
फिर मैंने लिखा-हत्या
अब सब हत्यारे के पीछे पड़े थे
जब अपने किसी परिचित के मृत्यु पर
मैंने लिखा-
'अब वे नहीं रहे'
तब लोगों ने झटपट लिखा-नमन!
फिर,जब मैंने लिखा-व्यवस्था
लोग उसे देने लगे गाली
लेकिन वहीं जब मैं लिखने लगा-
शिक्षा
गरीबी
किसान
मजदूर
किताब
भूखमरी
आदि-आदि
तब किसी ने नहीं लिखा
इस देश का नाम भारत है।।





दो

वृक्ष

लगभग विलुप्त होने की श्रेणी में खड़े है
इस देश के अनेक वृक्ष
इस देश में भाषा की तमीज भी
अब खत्म हो रही है
मैं समझता हूँ
कि भाषा और वृक्ष में
एक मूलभूत संबंध अवश्य
अभी भी कायम है
भाषा और वृक्ष
जब भी कटते है
जड़ से कट जाते है।।









तीन

दर्द

मेरे घर की दीवार पर
अभी वहीं अलगनी बँधी हुई है
जिसे दशकों पहले
घर में बँटवारे के नाम पर बाँधी गयी थी
हाँलाकि उसका रंग थोड़ा मटमैला हो गया है
और देखने में भले ही लगने लगा हो बेहद बदसूरत
लेकिन जब उसे इन दिनों देखता हूँ
तब उसके चारों तरफ उदासी छाई रहती है
लेकिन फिर भी
वह अभी वहीं बधी हुई है
जब घर बँटा
हम सब बँट गये
सबसे पहले मन बँटा
उसके बाँट अनाज बँटे
फिर खेत बँटा
सदियों पुरानी ईंट बँटी
लोग बदले
लोगों का व्यवहार बदला
लेकिन उसके बाद जो बँटा
उसे मैं अच्छी तरह जानता हूँ
वह हमारे पूर्वजों के दर्द थे
जो कई शताब्दियों से नहीं बँटे थे।।





चार

अहमियत

इस दुनिया में
दो लोगों के साथ होने से
उनके बीच कितना कुछ साझा होता रहता है
यह सब जानते है
लेकिन एक शब्द
जिसे मैं कविता में नहीं कहना चाहता
वह 'अहमियत ' है
जो केवल महसूस और दूर होने पर ही पता चलता है।।










पाँच

अपने-अपने घरों से लौट आओ बेटियों
______________
[यह कविता पिछले वर्ष तब लिखी गयी थी जब बी.एच.यू में वहाँ के सोये हुये प्रशासन को जगाने के लिये बेटियों ने संगठित होकर धरने को आंदोलन में बदल दिया था]


अब लौट आओ बेटियों
अपने-अपने घरों से
कि जिससे हममें लड़ने की
उम्मीद बची रह सके,
जब तुम कल सब लौटोगी उसी द्वार से
अपने-अपने घरों की ओर
जहाँ पिछली रातें
हमने एकसाथ लड़ी थी लड़ाईयाँ,
तो बहुत कुछ याद भी तुम सब छोड़ जाओगी
वह अब बस यादें न रह जायें
कि हमने जिन अधिकारों के लिये
छेड़ी थी जो लड़ाईयाँ
प्रशासन के खिलाफ जो खोले थे मोर्चे
वह हम अब तुम सब के बिना
हार जायें
इसलिये
अपने-अपने घरों से लौट आओ
हम फिर उठेंगे
लड़ेंगे,मारे जायेंगे,जेलों के अन्दर
भर दिये जायेंगे भले ही
लेकिन
हम इस क्रूर प्रशासन के खिलाफ
आवाजें पहले से
अब और ज्यादा बुलंद करेंगे
मैं जानता हूँ
तुम सब अभी अपने-अपने घर को पहुँचें भी नहीं होगे
लेकिन मैं
अभी से जानने लगा हूँ
कि जब तुम सब
अपने-अपने घरों को चले जाओगें
और अभी घर की सबसे ऊँची चौखट को
पार भी नहीं किये होगे
कि तुम्हारे पिता
तुम्हारी माँ,तुम्हारे सभी रिश्तेदार
तुम पर उँगलियाँ उठायेंगे,
तरेर-तरेरकर वो तुम्हारा अधिकार बतायेंगे
सड़ी-गली नाबदान में
पुरानी सभ्यताओं की तरह
वे अब भी रहने को आदी है
उसी जीर्ण सभ्यता में ही तुम सब को भी
वे रखना चाहेंगे
जिससे कुछ खास नहीं
बस परम्परागत मूल्यों को ठेस न पहुँचे
लेकिन बेटियों तुम उन सब अधिकारों को तोड़
अपने-अपने घरों से लौट आओ
जिससे लड़ने की उम्मीद
हम में बची रह सके।।


छ:


जिसने प्यार नहीं किया


तुम्हारी आँखों से
मैं रोज़ एक नया सपना देखता हूँ
उनमें ऐसी बहुत सी चिंगारी छिटकती है
जिससे मैं प्यार करता हूँ
तुम भी तो यहीं कहते हो
कि प्यार, दो लोगों के बीच विश्वास की ऊपज है
जो हममें है
प्यार इसे ही तो कहते है
जिसने प्यार नहीं किया
उसने जलना सीख लिया
वे केवल यहीं जानते रहे कि
प्यार दो लोगों के बीच
देह रहित केवल आकर्षण है
मैं कहता हूँ
भाड़ में जायें ऐसे लोग
जिन्हें रिश्ते तोड़ने में मजा आया
वह जोड़ने की तरकीब कहाँ सीख पायेंगे?
रिश्तों की गाँठ भी तो
उन सबके समझ से परे है
मैं तुम्हारी उन्हीं आँखों से
रिश्ते निभाता रहा हूँ
और अपने प्यार के लिये रोज़ एक नया सपना देखता हूँ
जिसे विश्वास से पूरा कर सकूँ।।
००



परिचय 
●नाम-शशांक पाण्डेय
●पता-सुभाष लाँज,छित्तुपुर,वाराणसी।
●शिक्षा-एम.ए(हिन्दी साहित्य),काशी हिन्दू विश्वविद्यालय.
●मो.नं-09554505947
●ई मेल-shashankbhu7@gmail.com

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