image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

28 अगस्त, 2024

हरदीप सबरवाल की कविताएं


क्रम अनुसार 


चूंकि वो मुसलमान था 

इसलिए निशाना भी आसान था 

उसे पाकिस्तानी कहा गया

हां! कहीं एक पाकिस्तान था 


उसके बाजू में खड़ा था एक सिख 

उसकी वेशभूषा से रहा था दिख 

उसे खालिस्तानी कहा गया 

कहां! कोई खालिस्तान था 


पड़ोसी देश में वो हिन्दू था 

सबके निशाने का वो केंद्रबिंदु था 

उनके न्याय का मकसद ही 

उस काफ़िर को सजा देना था 


इलाका वो सिंहली बहुल था 

अफसोस कि वो तमिल था 

उस पर संसाधन हथियाने का दोष था 

इसलिए ही उसके खिलाफ रोष था 


चूंकि अमरीका में वो काला था 

सच में ही वो गुनाह करने वाला था

वो फिलिस्तीन में यहूदी भी था 

वो कश्मीर में पंडित भी था

रूस में वो यूक्रेनी रहा 

चीन में वो उइगर बन गया


वो सच में सार्वभौमिक रहा 

क्रम अनुसार वो जहां भी रहा 


वो जो भी था संख्या में कम था 

इसलिए दूसरे के निशाने में दम था...

०००

अम्माएं 

गुड़ की बनी चाय पीती थीं, 

और कहती थीं इससे सुगर नहीं बढ़ती, 

यूं अपने इस ज्ञान पर इतना ही भरोसा रखती थीं

सुनने वाले की सहमति असहमति जितना,


अंग्रेजी के शब्दों का कत्लेआम करती, 

और नाती पोतों के चेहरे पर बिखर जाती

ढेर सारी हंसी बनकर, 

इन अम्माओं के पास बातों की कमी नहीं थी, 


हर महीने पाकिस्तान के घर के पास के मासिक मेले से 

पंचतोलिया सोने के हार लेने से लेकर, 

चूल्हे के नीचे दबा कर आईं गहनों के ढेर की 

अमीर दास्तान से लेकर

सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए 

कतारों की तकलीफ़ बताते गिड़गिड़ाते किस्से तक, 


एक दोस्त की अम्मा 

शक करती थी, आते जाते दोस्तों पर, 

दिन भर गालियां बकती

कि दोस्त के चाचा को किसी ऐसे ही दोस्त ने 

नशे की आदत लगवा दी,

और हर दोस्त को वैसा ही समझती, 


अम्माएं जो घर में प्रेत सी भटकती,

अवांछित,

बहुओं की आंखों की किरकिरी बन, 

और बेटियों की आंखों के दर्द 


कई कई बार इसके विपरीत भी,

अम्माएं चाहे कितनी ही कंगाल दिखती थीं

घर आती जाती लड़कियों के हाथ में धरने को

किसी अजनबी शहर से आए अनजान रिश्तेदार के लिए भी,

जाने कौन सी पोटली से कुछ निकाल ही लाती, 


यूं देने को उनके पास कमी नहीं थी,

वो लुटाती रहती थीं हर आने जाने वाले पर

ढेर सारी मुस्कुराहटें, 

आशीर्वादों के गुच्छे, 

दुआओं की कतारें, 

नज़र उतारते हिलते हाथ, 


उनकी आंखों में उतरते भोलेपन के कायल होने लगते 

आने जाने वाले जब

बहुएं खीझ भरी टिप्पणी करती, 

और अम्माएं 

अपनी टीस को होले से होठों के नीचे दबा लेतीं 


अम्माओं की बातों की तरह ही 

उनके पास कमी नहीं होती ईश्वरों की, 

और उन अनगिनत ईश्वरों के लिए

अनगिनत प्रार्थनाओं की, 


जैसे कोई अंत नहीं था इन प्रार्थनाओं का

वैसे ही

खत्म नहीं होती, उनकी बीमारियां 

उनके रात भर खांसने की आवाजे, 

लगातार चलने वाले घुटनों के दर्द, 

आंखों की कम होती रोशनियां, 

कहानियों जैसी लंबी तकलीफों की दास्तानें, 


यूं तो

अम्माओं ने एक लंबी दुनियां देखी थी, 

अम्माएं कितना कुछ जानती थीं

फिर भी अम्माएं नहीं जान पाई

इतने ढेर सारे ईश्वरों के पास भी

उनकी ढेर सारी तकलीफों के हल नहीं थे…..

०००









चित्र 

पिकासो



अनंत 

इतनी कविताओं के लिखे जाने के बाद भी 

जरूरत रही कुछ और कविताओं की


इतनी धुनों पर कदमताल होते होते भी 

मचलते रहे पांव नई धुन पर थिरकने को


सारा सावन बरसती रही मेघ से बूंदे 

धरती फिर भी लबालब रही भीगने की ख्वाहिश से


लदे रहे फूलों से पूरी बहार में पेड़ हर ओर

नजर फिर भी भरी नहीं नए रंगों को खोजने से


स्मृतियों की ढेरों बातें सांझा करते वक्त 

कोशिश रही खूब सारी अन्य स्मृतियां खोजने की


इतने सुखद अनुभवों को जीने के बाद भी 

रही तलाश कायम कुछ नया अनुभव पाने की


कितने भी दर्शन लिखे जाए आदि और अंत के

इच्छाएं साथ साथ चलेंगी तलाश में अनंत की...

०००

खाई 

कॉलेज में तीनों गहरे दोस्त हैं, 

घर तक पहुंचते पहुंचते

उन में से दलित बन गया, 

दूसरा पिछड़ा, 

तीसरा बन जाता है सवर्ण, 

अब ये नहीं पता कि कॉलेज से उनके घर तक, 

कोई सड़क जाती है

या फिर खाई…..

०००




परिचय

नाम - हरदीप सबरवाल 

शिक्षा - MA (English) पंजाबी यूनीवर्सिटी पटियाला से

लेखन विधा- कविता, लघुकथा और कहानी

लेखन भाषा - हिंदी, इंग्लिश और पंजाबी

प्रकाशन 

हिंदी काव्य संग्रह "और कितने दुर्योधन" शब्दाहुति प्रकाशन दिल्ली से प्रकाशित

पंजाबी काव्य संग्रह " मनी प्लांट वरगा आदमी" कैलीबर प्रकाशन पटियाला से प्रकाशित 


 हिंदी, इंग्लिश और पंजाबी में तीन दर्जन से अधिक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हुई

Spectrum publishing house UK published a poetry book Faceless( English) 

अब तक ६ सांझा संग्रहों में रचनाएं प्रकाशित 

अनुवाद - दविंदर पटियालवी के लघुकथा संग्रह उड़ान का पंजाबी से हिंदी अनुवाद ( बोधी प्रकाशन)   

२. राहुल सांकृत्यायन के नोवेल का हिंदी से पंजाबी में अनुवाद ( प्रकाशनाधीन) 


सम्मान और उपलब्धियां 

   २०१४ में उनकी कविता HIV Positive को Yoalfaaz best poetry competition में प्रथम स्थान मिला। 

2015 में उनकी कविता The Refugee's Roots को The Writers Drawer International poetry contest में दूसरा स्थान मिला. 

2016 मे उनकी कहानी "The Swing" ने The Writers Drawer short story contest 2016 में तीसरा स्थान जीता . 

प्रतिलिपी लघुकथा सम्मान 2017 में इनकी में तृतीय स्थान मिला.

Two times winner of 10 days poetry challange by poets in Nigeria


प्रतिलिपि कविता सम्मान 2019 से सम्मानित

पटियाला रेडियो पर कविताओं का पठन, 

लागोस के रेडियो पर भी इनकी कविता पढ़ी गई


पंजाबी लघुकथा की त्रैमासिक पत्रिका 'छिण' के सह संपादक

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर कविता

    जवाब देंहटाएं
  2. पहली और आखिरी कविता ने गहरे से छुआ है

    जवाब देंहटाएं
  3. अम्माएं जो घर में प्रेत सी भटकती,

    अवांछित,

    उफ़! हर कविता विशिष्ट..मन छू गई! आपकी लेखनी अद्भुत है!

    जवाब देंहटाएं
  4. एक से बढ़कर एक गहरी और अर्थपूर्ण कविताएं। हरदीप जी बहुत ही गुणी और ज्ञानवान कवियों की श्रेणी में आते हैं। बहुत बधाई एवं शुभकामनाऍं ✍️📚😊

    जवाब देंहटाएं
  5. अनिता रश्मि28 अगस्त, 2024 19:55

    अच्छी कविताएँ हैं. अम्माएँ तो तमाम अम्माओं का यथार्थ चित्रण है. साधुवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुंदर कविताएँ।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुदर्शन रत्नाकर

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत सुंदर कवितायें।

    जवाब देंहटाएं
  9. लाजवाब कविताएं, जीवन के हर पहलू से जुड़ी, बहुत सरल और सादगी भरी भाषा,मगर गहन गंभीर और सार्थक।

    जवाब देंहटाएं