डॉ. अशोक कुमारी
भारत के अन्दर उपरोक्त घटनाएं देश के कोने-कोने से व्यक्तिगत कुंठित मानसिकता का परिणाम हैं इसके अलावा यहां पर इस तरह के संगठित अपराध भी होते रहे हैं जैसा कि 2017 में गठित हेमा कमिटी (मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण के मामले) की रिपोर्ट लोगों के सामने आई हैं । 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़े कानून बनाने के कई दावे किए गए। साल 2013 में केंद्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए निर्भया फंड बनाया, जिसका मकसद राज्यों में महिलाओं की सुरक्षा को पुख्ता करना था, मगर, पैरामेडिकल की स्टूडेंट से गैंगरेप के बाद पता चला की निर्भया फंड की 9 हजार करोड़ रुपये की धनराशि का लगभग 30 प्रतिशत हिस्सा भी सही से इस्तेमाल नहीं हो पाया हैं । 12 साल बाद जिस तरह कोलकाता अस्पताल में बलात्कार की घटना के बाद भारत के सभी राज्यों से रोज बलात्कार की घटनायें रिपोर्ट की जा रही है उससे पता चलता है की हम 12 साल पहले जहां थे आज भी वहीं पर हैं, स्थिति ज्यों-की-त्यों बनी हुई हैं ।
पितृसतात्मक समाज में महिलाएं
हाल ही में ओलम्पिक खेलों में अपना लोहा मनवा चुकी विनेश फोगाट ने कहा कि ‘‘बेटियां को पेट से ही जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है’’। विनेश की ये बात सच है कि लड़कियों को पेट से ही संघर्ष करना पड़ता है इसका मुख्य कारण हैं कि हम पितृसत्तात्मक समाज में जी रहे हैं जहां लड़कियों को दोयम दर्जे का माना जाता हैं और उसे जीवन जीने के लिए सामन्ती मूल्यों को ढोना पड़ता हैं जो इन मूल्यों को ढोने से मना करती हैं उन्हे समाज का बहिष्कार के साथ और न जाने क्या क्या झेलना पड़ता हैं? यह भी तथ्य है कि जो इन सामन्ती मूल्यों को ढो कर चल रही हैं वह खुद इन्ही मूल्यों से पीड़ित और ग्रसित हैं लेकिन जब तक वह इस बात को समझ पाती तब तक बहुत देर हो चुकी होती है जैसा कि 22 अगस्त मसूरी क्षेत्र गाजियाबाद में हुआ जहां एक शक्की पति अपनी पत्नी के मुंह पर तकिया रख कर तब तक बैठा रहा जब तक वह मर नही गई। 25-26 अगस्त, 2024 को महाराष्ट्र के संभाजी नगर में महिला डाक्टर ने इसलिए आत्महत्या कर लिया क्योकि पति उस पर शक करता था और फोन नंबर बदलने की बात करता था, वह 7 पेज के सुसाईड नोट में लिखती हैं कि आपने आत्मनिर्भर, महत्वाकांक्षी लड़की को आश्रित बना दिया मैं स्त्री विशेषज्ञ बनना चाहती थी। आप हमारे घर वालों से बात नहीं करने देते थे। वह आखिर में लिखती है ‘‘मुझे आपके हावी होने वाले स्वभाव से बहुत कुछ मिलता हैं इंसान को हावी नहीं होना चाहिए, मैं जीना चाहती थी, लेकिन शादी के बाद से हमारे बीच कुछ भी संभव नहीं था। मुझे कभी समझा ही नहीं, बस बंदिशों में रखा। इस परेशानी से तंग आकर मैं खुद को खत्म कर रही हूं। अच्छे से दिखो, अच्छे से रहो... और यदि तुमने कभी मुझसे थोड़ा भी प्यार किया है तो मुझे कसकर गले लगाओ और फिर चिता पर रखना। मुझे भूल जाओ और बाकी जिन्दगी खुशी से जियो।’’ अपने अंतिम पत्र में भी डाक्टर को सफाई देना पड़ रहा हैं और लिखती है- आपका संदेह खत्म नहीं होता। लगातार मेरे चरित्र पर संदेह करते रहे लेकिन देव शपथ के साथ कहना चाहती हूं कि मैं आपके प्रति ईमानदार थी, हूं और रहूंगी, मेरे किरदार में कुछ भी गलत नहीं था।
हर जगह असुरक्षित
सवाल यह उठता है की महिलाएं कहां सुरक्षित हैं, घर में पिता, स्कूल में शिक्षक और सफाई कर्मचारी, पड़ोस में पड़ोसी, बस में ड्राइवर, ऑफिस में बॉस, कंपनी में मालिक, यहाँ तक की थाने में महिला सिपाही भी सुरक्षित नहीं हैं । यहाँ तक की जनता के प्रतिनिधि माने जाने वाले नेताओं के पास भी महिला सुरक्षित नहीं हैं एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की रिपोर्ट के अनुसार मौजूदा 151 (16 सांसद और 135 विधायक) ‘जन प्रतिनिध’ महिलाओं के खिलाफ अपराध से संबंधित आरोपों का सामना कर रहे हैं, इनमें से 16 पर (2 सांसद और 14 विधायक) बलात्कार का केस है। इनमें प्रज्वल रेवन्ना जैसे नेता भी हैं जिनका महिलाओं के साथ अत्याचार करने में भारत में ही नहीं दुनिया में भी एक रिकॉर्ड बना दिया हैं । आज महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं है। बेटियों को बचपन से सिखाया जाता है की संभल कर रहना चाहिए, बाहर का माहौल बहुत खराब है। लड़कियों को देर रात अकेले नही घूमना चाहिए, माहौल अच्छा नही हैं । लड़कियों को किसी के साथ नही चलना चाहिए आज कल किसी पर भरोसा नही करना चाहिए। लड़कियों को छोटे कपड़े नही पहनना चाहिए, पुरुष आकर्षित होते हैं। लड़कियां ज्यादा मेकअप करके निकलेंगी तो पुरुष छेड़ेंगे ही। बाहर जाओ, स्कूल जाओ तो रास्ते में किसी से बात मत करो। इस तरह के निर्देश अक्सर हमें घर में बचपन से मिलते रहे हैं और यह निर्देश देने में हमारी माताएं ही है जो कि पुरुष प्रधान समाज के बोझ को उठाती हुई हमें पाल-पोष रही होती हैं। मां चाहती है कि वह अपनी बेटियों को कहां सुरक्षा से रखे कि वह इस समाज में सुरक्षित अनुभव कर सके।
इन खबरों के बीच हाल ही में रामपुर उत्तर प्रदेश से खबरें आ रही हैं एक प्राथमिक स्कूल की शिक्षिका के साथ स्कूल निरीक्षक के दौरान सीएमओ द्वारा अश्लील बात करने पर शिक्षिका ने करारा जवाब दिया इस पर सीएमओ एस पी सिंह की मौखिक शिकायत पर स्कूल शिक्षिका को निलंबित कर दिया गया। शिक्षिका ने यह भी बताया कि ‘’अपने साथ होने वाले यौन-दुर्व्यव्हार के खिलाफ बोलने पर हो सकता है कल उसे भी ट्रक से मार दिया जाएं और एक सड़क दुर्घटना का रुप दे दिया जाएं।‘’ इस घटना का वहां के लोकल लोगो को पता चला तब शिक्षिका के साथ स्कूल के बच्चे और उनके माता-पिता खड़े हुए और सीएमओ के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और टीचर का निलंबन रद्द करने की मांग की। इस घटना का जिक्र मैने दो कारणों से किया पहला अगर हम देखते है कि महिला को सेक्स आब्जेक्ट की तरह देखने वाले लोग हर जगह मिल जायेंगे, जरुरी है कि ऐसे लोगो की पहचान गली- मौहल्लें के स्तर पर की जाएं और छेड़खानी के मामले को भी गंभीरता से लिया जाएं । यौन-उत्पीड़न के मामले की रिपोर्ट अगर लिखवाने जाओ तो ऐसे मामलों मे पुलिस का रवैया अक्सर टालमटोल का ही होता है, पुलिस का रवैया अक्सर समझा-बुझा कर रफा-दफा करने का होता है। हमारे देश में बहुत सारे यौन उत्पीड़न के मामलों में परिजन चुप्पी साध लेते है क्योकि ऐसे मामलों मे अक्सर जान पहचान वाले लोग शामिल होते है, और जो मामले पुलिस तक पंहुचते है उनमें दोषियों को सजा दिलाने में तत्परता नही दिखाई जाती। उल्टा महिला पर ही सवाल किये जाते हैं। बहुत सारे मामलों में पुलिस का रवैया पक्षपातपूर्ण होता है क्योकि यह भी सच है कि पुलिस पर राजनैतिक प्रभाव अधिक होता है अधिकांश बलात्कार ताकतवर लोगों द्वारा किया जाता है। ऐसा ही एक मामला अजमेर के यौन उत्पीड़न का था जिसमें डरा-धमका कर सौ महिलाओं का उत्पीड़न किया गया था, इस मामले में फैसला आने में 32 साल लग गए जब दोषियों को सजा दी गईं ऐसे बहुत सारे मामले है जिसमें पीड़िता को इंसाफ के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। इसलिए जरुरी है कि रोजमर्रा के जीवन में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर चर्चा की जाएं, कार्यस्थल से लेकर सड़कों पर होने वाले यौन-उत्पीड़न में महिलाओं के कपड़ों आदि को न बोलकर उत्पीड़न करने वाले पुरुष की ओर उंगली उठाई जाये।
देखा जा रहा हैं कि बलात्कार की घटना को भी वोट बैंक बनाने के लिए प्रयोग किया जा रहा हैं, जहां एक राज्य में दूसरी पार्टी की सरकार है तो वहां पर दूसरी पार्टी के लोग जोर-शोर से मुद्दे को उठाते हैं लेकिन वही विरोध करने वाली पार्टी के राज्य में जब बलात्कार होता है तो वह उस पर चुप रहना ही बेहतर समझती हैं । बलात्कार की घटना किसी राज्य और पार्टी की देन नहीं है यह पुरूष प्रधान की देन हैं जहां पर महिलाओं को एक वस्तु के रूप में देखा जाता हैं । उपरोक्त घटनाएं बताती हैं कि महिलाएं कहीं भी घर से सड़क तक, आफिस से अस्पताल तक, कोर्ट से लेकर थाने तक कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। वह तीन साल की अबोध बच्ची हो या 70 साल की वरिष्ठ नागरिक पुरुषों की नजर में हवस को पूरा करने की वस्तु दिखती है। इसलिए जरुरी है कि कम से कम जहां पर इस तरह की घटनाएं होती है वहां लोकल स्तर पर जनता एकजुट हो और विरोध करे, शासन-प्रशासन को जवाब देह बनायें। हम अपने घरों में अपने बच्चों और पुरुषों को बतायें की महिला कोई वस्तु नहीं है वह भी इंसान हैं जिसके पास तुम्हारे ही तरह दुनिया में घूमने -फिरने-बोलने की आजादी हैं। हमें ऐसे ‘जन प्रतिनिधि चुनने से बचने होंगे जो अपराधी और दुराचारी प्रवृत्ति के हों ।
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लड़कियों का संघर्ष पेट से शुरू होता है और चिता तक चलता है । जब तक देश में कोई सख्त कानून बलात्कार के संदर्भ में नहीं बनता तब तक इस स्थिति में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं,
जवाब देंहटाएंसत्य लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंAbsolutely correct you are
जवाब देंहटाएंसही कहा है आपने
जवाब देंहटाएंये सचाई है 🙏
जवाब देंहटाएंकड़वी सच्चाई.
जवाब देंहटाएंजब तक इस उपभोक्तावादी संस्कृति में महिलाओं को उपभोग की वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा तब तक इस प्रकार के कृत्य को रोकना असंभव है चाहे कितना ही कठोर कानून बना दिया ।
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