जनता और जन प्रतिनिधि
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चित्र -अनुप्रिया
कुछ लोग
मंच पर बैठे हैं
और कुछ लोग
मंच के नीचे थे
मंच पर बैठे लोग
जन-प्रतिनिधि थे
और मंच के नीचे
आम जनता थी
जन-प्रतिनिधि लोग
बता रहे थे
इतिहास में दर्ज
अपने पुरुखों की कहानियाँ
दिखा रहे थे
फ्रेम में मढ़ाये उनके चित्र
और चित्र के नीचे उनके स्वर्णिम नाम
वे नाम
राजा के थे
मंत्री के थे
सलाहकार और मनीषी के थे
एक दूसरा मंच था
जिस पर बैठे
कविगण, लेखक और दार्शनिक
उनकी महिमा का
प्रशस्ति-गान कर रहे थे
मौन जनता
उन चित्रों में
इतिहास में
गायन में
ढूँढ़ रही थी
अपने पुरुखों का नाम
जिन्होंने सबसे आगे बढ़कर
सबसे ज्यादा दी थी कुर्बानियाँ
वे प्रजा थी
आम सैनिक थे
सेवक थे
वे तब भी
मंच के नीचे थे
और आज भी नीचे ही हैं
विभिन्न शिलाओं और इतिहास के पन्नों पर
उनके नाम
न तब थे
न अब हैं।
०००
हम अच्छे थे बुरे हो गए
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मैं अच्छा बना रहा
जब तक आपके घरों में
सेवाभाव से करता रहा चाकरी
बिना दम लिए दबाये आपके पैर
दाढ़ी बनाये
बंग्ला छांटे
मसाज किये
आपके हर कार-परोजन
शादी-विवाह, तिलक बरक्षा,
गृहप्रवेश, मरनी-करनी आदि में
बुलावा-नेवता देते रहे
जानवरों की तरह खटते रहे
और उठाते रहे आपके जूठे पत्तल
मैं अच्छा बना रहा
जब तक मेरे घर की औरतें
आपके घरों में जाती रही
सउर में आपकी बीवी की मूड़ दबाती रही
आपके पैरों में महावर लगती रही
चौक पूरी
नाखून काटी
पाहूर बांटी
और हर कार-परोजन में
दौड़ धूपकर सारी व्यवस्था संभालती रहीं
तब तक हम बहुत अच्छे रहें
अब हम बुरे हो गए
जब हमारे बच्चे
स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालयों में जाने लगे
आपकी चाकरी करने से कतरने लगे
और अपनी योग्यता के अनुसार
नौकरी की मांग करने लगे
जिसे आप
अपने हिस्से की भागीदारी में
कटौती कहते हैं
०००
चित्र पीटीआई से साभार
विनेश फोगाट
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विनेश!
तुम खुद देश की मेडल हो
निराश मत होना
तुम्हारी बहादुरी और संघर्ष को
दुनिया ने देखा है
तुमने न केवल
विश्व चैंपियन रेसलर को हराया है
अपितु उन सभी आलोचकों को भी हराया
जिन्हें तुम्हारे काबिलियत पर शक था
तुमने उन्हें हराया
जिन्होंने तुम्हारे राह में रोड़े अटकाए
काँटे बिछाए
घात लगाए
उन सबको एक साथ चित किया है
देश हारने वालों का भी इतिहास लिखता है
लेकिन तुम तो विजेता हो
विश्व विजेता!
०००
उपले और कम्प्यूटर
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मुझे उपले बनाना आता है सर !
मैं गोबर ज्ञान से मुक्त होने के लिए
गाँव से चलकर
आया हूं शहर
बीस बरिस पहले
उपले पाथते हुए मेरी माँ ने
थमाया था मुझे कॉपी और कलम
गाय-गोरू चराते हुए पिता ने
भेजा था मुझे पाठशाला
और कहा था कि
बेटा विज्ञान का युग है
अब तुम
कलम और कंप्यूटर चलाना सीखो!
यह बात आपको भी पता होगा कि
उपले का पाठ पढ़ाने में जितना सुख है
पाथने में उतना नहीं है
आप बेहतर पढ़ाई किए होंगे सर
और आपके पास
शिक्षण का लंबा अनुभव भी है
मगर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि
आप मेरी निरक्षर माँ से अच्छा
उपला नहीं बना सकते।
नहीं तो
एक काम कीजिए न सर !
एक महीने के लिए
आप अपने बच्चों को
मेरे साथ भेज दीजिए गाँव
मैं उन्हें सिखा दूँगा उपले बनाना
और आप मुझे सिखा दीजिए
कंप्यूटर चलाना।
वैसे भी
सिलेंडर के युग में
उपले का क्या काम ?
संस्कृति की रक्षा के लिए?
तो आप बांध लीजिए
अपने द्वार पर दो-चार गाय और भैस
भर लीजिए अपने दफ्तर में भूसा
चूनी और चोकर
मैं आपके ड्राइंग रूम को
विभिन्न आकृतियों से
गोबर और घासनुमा म्यूजियम बना दूँगा
०००
तालाब में मछली पकड़ते हुए बच्चे
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तालाब में
मछली पकड़ते हुए बच्चे
अभी निकलेंगे
तालाब से बाहर
और जाएंगे स्कूल
स्कूल जाते जाते
वे पढ़ने लगेंगे किताबें
किताबें पढ़ते-पढ़ते
सीख जाएंगे
अंग्रेजी, गणित, दर्शन और विज्ञान
धीरे-धीरे पढ़ जाएंगे
देश का संविधान
फिर मछली पकड़ने
नहीं जाएंगे
वापस कभी तालाब में
०००
परिचय
शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य (काशी हिंदू विश्वविद्यालय), बी. टी. सी. यूजीसी जे आर एफ
लेखन-विधा - कविता, आलेख, लघुकथा, समीक्षा व कहानी
प्रकाशित रचनाएं - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, साझा षंकलनों व अंतर्जाल पर प्रकाशित कविताएं, लघुकथाएँ व आलेख व कहानी
सम्मान- पद्मश्री पंडित बलवंत राय भट्ट भावरंग स्वर्ण पदक एवं विभिन्न साहित्यिक मंचों से सम्मान
सम्प्रति - सहायक अध्यापक बेसिक शिक्षा विभाग वाराणसी
स्थाई पता- ग्राम-रामपुर, पोस्ट- जयगोपालगंज, केराकत जौनपुर उत्तर प्रदेश- 222142
मो० 8931826996
अति सुंदर कविताएं
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर और आपको इस तरह की कविता के सोच को सलाम
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