प्रस्तुत है रुनु महांती की कविताएँ जिनका अनुवाद किया है शंकर पुणतांबेकर जी ने।
सभी साथी अपनी प्रतिक्रियाओं से अवगत कराऐं ऐसी आशा है।
प्रेमिका
रुनु महांति
अनुवाद - शंकर पुणतांबेकर
जिस राह पर वह चलती है
वहाँ अनेकों की आँख फिरती है।
अनेक अकर्म शिला फेंक कर
एक मोती
प्रेमिक हाथ की मुट्ठी में रखती ।
प्रेम एक साधना, कोई खेलघर नहीं
प्रेमिका एक मयूरकंठी साड़ी,
पटवस्त्र नहीं।
जैसा वह हीरे का टुकड़ा
हजार गलमालाओं में
वह निःसंगता का मंत्र पढ़ती।
नदी गढ़े, सागर गढ़े
भूगर्भ से खुल आए बन्या में।
रवि अस्तमित के समय भी वह झटकी
ऊँची भूमि को जाए
अमृत पीए - विष भी पीए।
पिछली जमीन उड़ाने
त्रिवेणी घाट पर डुबकी लगाए।
पेड़-पौधे में बह जाए
जैसे वह धीर पवन है।
वह कितनी सीधी है, सुबह की धूप की तरह
वह कितनी चंचल
जैसे साँझ की बदली, सागर की लहर।
रंगमय उसकी सत्ता,
पुरुष दहल जाएगा
उसकी कटाक्ष एक ऊँचाई की बाड़।
वर्षा होने पर चढ़ना किसी के बरामदे में
वर्षा होने पर चढ़ना किसी के बरामदे में
झड़ में जैसे किवाड़ खिड़की बंद करना
आओ सम्हाल लें दबाब को।
देह से झाड़ लें धूल,
साफ कर लें काँच की किरचों को।
पिंजरे में बंद पक्षी, पंछी नहीं
जो नहीं उड़ सके आकाश में।
मैं क्या नहीं जानती ?
नंगा होना कितना असम्मान ?
अगर साड़ी में लगी आग
फेंकें या नहीं फेंकें ?
जीवन में दुख तो हैं गाड़ी भर
कूड़े की तरह
तीन भाग दबाए बैठा घर।
सब क्या दिखा सकती ?
मैं पाँव से छाती तक डूबी हूँ पानी में।
अब हम क्या करें ?
सीढ़ी चढ़ें या कुआँ में उतरें ?
पागल का कांड करना ?
पहाड़ को तोड़ना ?
भूतनी होना ?
मंडल में बैठना, मधु चूसना ?
या रूमाल उड़ाते चलें राज रास्ते पर ?
जितना गुणा करें, गुणनफल हमारी आत्मीयता।
खो जाएँ क्या ? पवन की तरह फूल में।
मीत रे ! प्राण पोखर न बने
सागर में अधिक पानी तो
सच कितनी अधिक लहरें !
प्रेमिका की जन्मकुंडली तो अलग
ताकि पहचानें मंदिर को,
हों चक्र, कलश और पताका।
बड़ी बात
व्यवस्था के बीच रह
एक हो सकेंगे रसिक।
फालतू लड़की : चंद्रमुखी
अँधेरी बस्ती में घर मेरा
किसने नाम दिया चंद्रमुखी ?
अनेक तितलियों के बीच
तुम तो एक मधुमक्खी।
घने वन में तुम
चंदन के पेड़।
करंज के तेल में
जल-जल बुझती आती
मैं आखिरी शिखा।
(बुझने से पूर्व शेष शिखा
क्यों इतना जलती ?)
बीतती जाती रात।
तभी जा रहे, जाओ।
पर याद रखो, यह बदनाम गली।
यह माटी पवित्र है, मन भी
ठीक चाँदनी रात-सी
जा रहे, जाओ।
देखो, पीछे बह रही
अनबूझ आँसुओं की नदी।
देखो, पंख फड़फड़ा रही
तुम्हारे साथ उड़ जाने
एक चित्रित चिड़िया।।
000 रनु महांती
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टिप्पणियाँ:-
प्रज्ञा :-
अच्छी कविताएँ। बहुत गहराई है इनमें। दूसरी और तीसरी फालतू लड़की तो मन को छू गयी।
शुक्रिया मनीषा जी।
अनुप्रिया आयुष्मान:-
सभी कविताएँ बहुत ही बेहतरीन है
जिस राह पर वह चलती है ।
वहाँ अनेकों कीआँख फिरती है ।बहुत अच्छी लगी
फ़रहत अली खान:-
तीसरी कविता सबसे अच्छी लगी। दूसरी भी अच्छी है। कविताओं में(ख़ासकर पहली वाली) कई बार ऐसा लगा जैसे कवयित्री चीज़ों और विचारों को छू-छू कर दूर चली जाती हैं।
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