|| भूख का कटोरा ||
आज कल चिता की आंच पर
पकते हैं कितने भूखे किसान
जो बोते हैं तड़पती भूख के बीज को
धरती के उमसते आंवें में
चढ़ाते हैं धधकते सूरज को जल
करते हैं इंद्र से प्रार्थना
कि बारिश की नर्म बूंदों से
खिल जाये सुनहरी गेंहू की बालियां
मगर उन्हें नहीं पता
कैसे मनाये समय के कुचक्र को
जो भरने नही देता
उनके अनाज की कोठली
उड़ा देता है सर से
गिरवी पड़ा आस का छत्तर
छोड़ जाता है नादान भूखे हाथों में
कुलबुलाता खाली दूध का कटोरा
और चूल्हे की सोई आंच के पास
औंधी पड़ी हुई देकची
अब तो परमात्मा भी नहीं आते
देकची में पड़े एक दाने से
भूखों का पेट भरने!
पर धरती का पूत भूखा रहके भी
नहीं देख पता अपने आस पास
आँखों में लिलोरती भूख
तंग आकर समय के खेले से
खुद ही लगा लेता है फाँसी
या चढ़ा लेता है खुद को
चिता के धधकते चूल्हे पर
भूख मिटाने की चाह में
मिटा लेता है खुद को
पर चिता की भूख है कि
कभी मिटती ही नहीं!!
अब भूख के कटोरे में दर्द भी है!
|| नितान्त अकेली ||
पहले जब तुझे जानती नहीं थी
सुनती थी तेरी हर एक बात
तेरे इशारों पर चला करती थी
जो कहना मानती थी तेरा
तो खुश रहने जैसा लगता था
ओ मेरी रूह,
कितना दबाव था तेरा मुझ पर
लेकिन एक दिन
मैं हो गयी विद्रोही
लोग मनमन्नी कहने लगे
तुझे जानने की कोशिश में
पहचान गयी खुद को
आदेशों के सांकलों में बाँध के
कोशिश भी की तूने रखने की
मगर मैंने एक ना सुनी
सारी रिवाज़ें रवायतें तोड़ भाग निकली
दुखता था दिल
कांपता था शरीर
दफ़्न होती जाती थी धड़कनें
मगर मैं भागती रही
नापती रही साहस के पहाड़ों को
तैरती रही दरिया के रौ के विरुद्ध
और छिपाती रही खुद को
बस अपने लिए खोज के निकाले गए
समय के घने वीरान जंगल में
मैं जान रही थी कि
तू खोज रही होगी मुझको
लेकिन मैं जानती हूँ ना
कि मैं कहाँ पाना चाहती थी तुझको
अब ना तेरे सुख का कोई गीत
या विचारों की प्रतिध्वनि
मुझ तक पहुँचती है
और ना तेरे विश्वास की कोई कड़ी
या नियम की कोई ज़ंजीर
मुझे गहरे तक जकड़ती है
तुझे खुश रखने की आकांक्षा भी
अब कहाँ बची है मुझमें?
अब मैं भगोड़ेपन के सुकून में जी रही हूँ
अलमस्त, बेलाग, नितांत अकेली!!
रेणु मिश्रा
प्रस्तुति:- तितिक्षा
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टिप्पणियाँ:-
रेनू मिश्रा की दोनों कविताएँ अभी अभी पढ़ी। बहुत अच्छी होना चाहिए था इन्हें लेकिन ये अच्छी ही हो पायीं।किसी भी कविता में विषय में गहरे तक जाना और विचार को पकाना अनिवार्य शर्त है।संवेदनाओं की खोज कविता नहीं है। सम्वेदना कविता हो सकती है । रेणुजी की ये कविताएं अभी कच्चापन लिए हुए है। इनका कविता होना बाकी है। मै जानता हूँ ये बातें माँ सम्भावना पूर्ण कवि के बारे में कह रहा हूँ । सादर...
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