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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

14 जुलाई, 2015

कविता : यक़ीन दिलाने की क़वायद : डॉ राजेन्द्र श्रीवास्तव

यक़ीन दिलाने की क़वायद

आंकड़े ग़लत हैं
न तो लोग मारे गए इतनी संख्या में
न दुरुपयोग हुआ व्यवस्था का !
अनीति , अराजकता ,
भ्रष्टाचार की बात कर रहे हो
दिखता है कहीं ?
आंखें खोलो
दिख रहा है सिर्फ़ और सिर्फ़ विकास

ये तो ठीक है
पर धूप से झुलसे मरणासन्न आदमी को
आप इस बात का यक़ीन दिलाकर
क्या कर लेंगे
कि सूरज पृथ्वी से
चौदह करोड़ छियानबे लाख किलोमीटर
दूर है

उत्तर

पूछते रहो तुम बार - बार
भला क्या होगा कविता लिखने से
क्या भला होगा कविता लिखने से
क्या होगा भला कविता लिखने से
या फिर क्या होगा कविता लिखने से भला
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                  
मैं फिर कलम उठाऊंगा
मैं फिर लिखूंगा
मेरी कविता ही
तुम्हारे प्रश्न का उत्तर बनेगी
हर बार !!

XXX

गारंटी

कवि के लिखने से
कुछ बदलेगा
इसकी कोई गारंटी नहीं
हां
इस बात की गारंटी ज़रूर है
कि उसके न लिखने से
कतई कुछ नहीं बदलेगा

XXX

     दूसरा तरीका

हमें पता है
कि औरत के सामने होता है
एक विस्तृत आसमान
कभी भी
दूर तक उड़ सकती है
औरत उस आसमान में
हमें भनक भी लगे बिना

हम उस आसमान को
हटाने के हरसंभव उपाय करते हैं
उसकी आंखों के सामने से
पर हम सफल नहीं हो पाते
हमारे बस का नहीं
आसमान को नष्ट करना
समझ में आ जाता है जल्दी ही

तब हम दूसरा तरीका
निकालते हैं
हम औरत के पर कतर देते हैं।

XXX

एडीसन के बाद अब समस्या पर मेरे विचार

बहुत कुछ कहा गया है
दिल्ली के बारे में
बहुत कुछ सुना गया है
दिल्ली के बारे में

सुनते हैं कि दिल्ली में
समस्याएं बहुत हैं...
समस्याएं हैं
तो एडीसन का कहा भी याद आता है
कि कोई भी समस्या इतनी बड़ी नहीं
जिसका हल न हो

भाई लोगो
दिल्ली के बारे में 
देखने और सुनने के बाद
मैं भी कह सकता हूं यक़ीन से
कि कोई भी समस्या इतनी बड़ी नहीं
कोई भी समस्या इतनी विकट नहीं...
जिससे कन्नी न काटी जा सके

000 डॉ राजेंद्र श्रीवास्तव

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टिप्पणियाँ:-

चंद्र शेखर बिरथरे :-
सभी कविताओ में कविता लिखने भर का प्रयास प्रतीत हो रहा है । कविता के विषय अपनी आंरभिक अवस्था में कहन की गहनता से वंचित होने के साथ साथ अंत में भी कोई प्रभाव नहीं छोड़ते है । प्रयासरत रहने से गहन पठन पठान रत रहने से लेखन में प्रगति संभव । चंद्रशेखर बिरथरे ।

नयना (आरती) :-
आज की कविताएँ कुछ साधारण सी लगी । सिर्फ "दूसरा तरीका "मन में जगह बना पाई। "एडिसन के बाद" ,"उत्तर" में कवी क्या कहना चाहते है? यहाँ मेरी सोच कुछ कमतर पड रही हैं अन्य साथी प्रकाश डाले  'यकीन दिलाने की कवायद"और "गारंटी" औसत"

ब्रजेश कानूनगो:-
कवि के परिचय और प्रतिष्ठा के अनुरूप  नहीं लगी उनकी कवितायेँ।पर ठीक है बैंक में काम करते हुए ये भी कुछ कम नहीं साहित्य में।बधाई।

निधि जैन :-
यकीन दिलाने की कवायद
बढ़िया रही
उत्तर
भी अच्छी लगी
गारन्टी
कविता नही एक बात सी रही
दूसरा तरीका
सामान्य कविता रही
एडिशन तो एडिशन ही लगी

संजीव:-
विकास के नाम पर नेता और सरकार जनता को धोखा रहे हैं।इस बात रेखांकित करती कविताएँ हैं। यह एक अपाहिज विकास की अवधारणा को फैलाये जाने षडयंत्र है। इसकी विसंगति यह है कि इसी को विकास मानने के लिए विवश किया जा रहा है।पूरा मीडिया यह काम कर रहा है। हमें जनता के बीच इस भ्रम को लेकर जाना चाहिए।इस विकास का कार्टून बनाया जाए तो कुछ इस तरह से होगा जिसमें एक व्यक्ति की एक टांग बीस फीट की होगी और दूसरी दो इंच की। एक हाथ एक किलोमीटर लंबा और दूसरा एक अंगुली बराबर। कैसा दिखेगा मानवता का यह रूप। ऐसा ही है आज का विकास।

प्रदीप मिश्र:-
प्रज्ञा जी आपने बहुत बेहतर तरीके बात रखी।आपके विचारों के सनिद्य में मैं और भी समृद्ध हुआ।वागीश तो सदाबहार हैं।उनसे बहुत कुछ सीखना है।आशीष मेहता आपका हस्तक्षेप विषय को समझने में सहयोग करता है।बाकी मित्रों का भी जिनके विचारों ने झाला साफ़ करने का काम किया।आज की कविता पर शाम को बात करूँगा।

निरंजन श्रोत्रिय:-
मनीषा। यह कवि जो भी है बहुत सम्भावनापूर्ण है। यदि यह एक युवा है तो मैं इस अनाम साथी की कविताएँ "रेखांकित" में छापना चाहूँगा। हालांकि कुछ श्रम दोनों याने कवि और मुझे करना होगा।

अलकनंदा साने:-
अच्छी कविताएं हैं, तंज करती सी । पहली तो पहले क्रम पर ही है । दूसरा तरीका में पर की बजाय पंख होता तो मेरे विचार से ज्यादा बेहतर होता । उत्तर कविता भी अच्छी लगी । शुभकामना ।

रेखांकित में संभावित चयन के लिए अग्रिम बधाई ।

राजेन्द्र श्रीवास्तव:-
आदरणीय संजीव जी, मिश्र जी, देवेन्द्र जी, कविता जी, अरुण आदित्य जी, अंजू जी और समूह के सभी मित्रों तक मेरा आभार पहुंचे। ताई को प्रणाम।  निरंजन जी श्रोत्रिय को प्रणाम।  आप सभी के शब्द प्रेरक हैं, भविष्य में बेहतर लिखने के लिए प्रवृत्त करते हुए। आप सभी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करता हूं।

वर्तिका मिश्रा:-
सभी कविताये अच्छी है ।।विषय चयन  बढ़िया है ।।कवि को हार्दिक बधाई।।। हमारी लेखनी से यदि किसी एक का भी ह्रदय परिवर्तन होता है या उसमे सही गलत की पहचान करने की शमता विकसित होती है तो हमारे लेखन का उद्देश्य सफल हो जाता है ।।

और जहा तक समस्याओ की बात है तो वास्तव में कोई भी ऐसी समस्या नही है जिसका समाधान हमारे पास न हो जरुरत है उसे पहचानने की ।।

यकीन दिलाने की कवायद अच्छी कविता है तत्कालीन परिस्तितियो पर चरितार्थ ।।

और स्त्री विमर्श पर काफी कुछ लिखा और सुना जा चुका है और उसका प्रभाव भी देख रहे है अपने आस पास  अपने समाज में अपने घरो में , तो  इस विषय में कुछ नही कहना चाहती ।।

आपका प्रयास उत्तम है, शिल्प और बिम्ब के दृष्टीकोण से थोड़े और सुधार की आवश्यकता   ।।  लिखते रहे आपको साधुवाद।।

मनीषा जैन :-
आज की कविताऐ समूह के साथी डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव जी की हैं। इनका परिचय इस प्रकार है-

शिक्षा : बी. एससी. , बी. ए. (अंग्रेजी साहित्य) ,
  एम. ए. (हिंदी) ,  पी-एच. डी. (हिंदी)

प्रकाशित कृतियां –

(i) “अभी वे जानवर नहीं बने” (कहानी-संग्रह)
(ii) “सुबह के इन्तज़ार में” (नाटक-संग्रह) 
(iii) “काग़ज़ की ज़मीन पर”(संपादित पुस्तक)
(iv) “कोई तकलीफ़ नहीं” (कहानी-संग्रह)

2) प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में 200 से अधिक रचनाएं (कहानी, कविता, लेख, नाटक आदि) प्रकाशित।   
3) आकाशवाणी द्वारा नाटकों और कहानियों का नियमित प्रसारण।

4) विभिन्न नाटकों का प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा मंचन ।

5) विभिन्न राज्यों के पाठ्यक्रमों में रचनाओं का समावेश।
6) रचनाओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद।

सम्मान व पुरस्कार –

(i) हिन्दी के श्रेष्ठ कार्य के लिए नवंबर, 2014 में नई दिल्ली में आयोजित भव्य समारोह में महामहिम राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के करकमलों से सम्मानित।

(ii) नाटक विधा के लिए महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का प्रतिष्ठित विष्णुदास भावे पुरस्कार – वर्ष 2014

(iii) गुरूकुल संस्थान का प्रतिष्ठित " आंतरभारती साहित्य       पुरस्कार " -  वर्ष 2012  

(iv) हिन्दी आन्दोलन द्वारा साहित्य सेवा हेतु " हिन्दीश्री सम्मान " से अलंकृत - वर्ष 2011

(v) राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विभिन्न पुरस्कार व सम्मान।
(vi) श्रेष्ठ साहित्यिक पत्रिका ‘ सारिका ’ द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर रचना पुरस्कृत
(vii) कलमकार फाउंडेशन, नई दिल्ली द्वारा अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता में रचना पुरस्कृत – पुरस्कार माननीय राज्यपाल, नई दिल्ली के करकमलों से नई दिल्ली में प्रदत्त।

संप्रति : बैंक ऑफ महाराष्ट्र में मुख्य प्रबंधक।

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