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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

03 अक्टूबर, 2017



बी एच यू घटना की जांच रिपोर्ट

बीएचयू में छेड़खानी के विरोध में लड़कियों का प्रदर्शन और 23 सितम्बर को उन पर हुये लाठीचार्ज की जांच रिपोर्ट

पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज

21 सितम्बर को हुई छेड़खानी की घटना और उसके बाद का घटनाक्रम

21 तारीख की घटना का बयान लेने के लिए पीड़ित लड़की से मुलाकात नहीं हो सकी, क्योंकि वो कहां है कोई नहीं बता सका। लड़कियों का कहना था कि जैसे ही धरना शुरू हुआ, उस लड़की को विवि प्रशासन ने खुद घर भेज दिया, इसके बाद से उससे कोई नहीं मिला। धरने पर बैठी लड़कियों ने उस दिन की घटना के बारे में बताया कि 21 तारीख को बीएचयू के कला भवन के सामने बीएफए प्रथम वर्ष की एक लड़की साइकिल से अपने छात्रावास, की ओर आ रही थी। दो बाइक सवार लड़के उसके पीछे से आये और उन्होंने उसके कपड़ों में हाथ डाला। लड़की गिर गयी और उसे चोटें आयी। विरोध करने पर लड़कों ने उससे कहा- ‘‘रेप कराओगी या हॉस्टल जाओगी।’’ लड़की ने मदद के लिए कुछ ही दूर पर बैठे सिक्योरिटी गार्ड को आवाज लगायी, लेकिन वह नहीं आया, इतने में लड़के भाग गये। लड़की ने फिर से गार्ड के पास जाकर इसकी शिकायत की, लेकिन उसने कुछ नहीं किया। लड़की वापस अपने हॉस्टल त्रिवेणी आ गयी और उसने हास्टल की वार्डेन से इस सम्बन्ध में शिकायत की तो वार्डेन ने लड़की से कहा कि ‘छः बजे तक कमरे में वापस आ जाया करो, नहीं तो यही सब होगा।’ उस वक्त शाम के 7 भी नही ंबजे थे। लड़की ने विरोध किया तो वार्डेन ने कहा ‘लड़कों ने छूआ ही तो है, इस पर इतना हंगामा मचाने की क्या जरूरत है।’ लड़कियों का कहना है कि लड़की को शरीर पर चोट भी आयी थी और हॉस्टल आने के बाद थोड़ी देर के लिए वो बेहोश भी हो गयी थी। वार्डेन के इस रवैये से नाराज छात्राओं ने रात में ही हास्टल के अन्दर मीटिंग की और वहीं 12 बजे तक धरने पर बैठ गयीं। सुबह छात्रावास का गेट खुलते ही ये छात्रायें लगभग 150 की संख्या में बीएचयू के मुख्यद्वार स्थित मालवीय जी की प्रतिमा के पास आकर धरने पर बैठ गयीं। इन्होंने इसी दौरान अपना मांग पत्र तैयार कर लिया, जिसमें मुख्य मांग थी-
1- बीएचयू के अन्दर की बहुत सारी अंधेरी जगहों पर रोशनी की व्यवस्था की जाये
2- कई जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाये जाय।
3- लड़कियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाय।
4- विवि में जीएसकैश स्थापित किया जाय, जहां इस तरह की घटनाओं की शिकायत दर्ज कराई जा सके।
लड़कियां चाहती थीं कि वीसी आकर उनका मांगपत्र ले लें और उन्हें पूरा करने का आश्वासन दे दें।
बीएचयू के मुख्यद्वार के पास ही स्थित महिला महाविद्यालय की लड़कियां सुबह जब वहां से गुजरने लगीं, तो कुछ लड़कियों को धरने पर बैठा देखकर समर्थन में वे भी वहां बैठ गयी, इसके बाद ये खबर फैलती गयी और वहां लड़कियों की संख्या बढ़ती गयी। धूप होने के बाद और बढ़ती संख्या के कारण सभी लड़कियां मालवीय प्रतिमा के पास के उठकर मुख्यगेट जिसे सिंहद्वार कहा जाता है, वहां आकर बैठ गयीं। इस कारण 22 सितम्बर को 11 बजे के लगभग मुख्यगेट से गाड़ियों का आवागमन बन्द हो गया। लड़कियों ने इसे प्रदर्शन के तरीके के तौर पर लिया। केवल एम्बुलेन्स को ही आने-जाने का रास्ता दिया गया, बाकी गाड़ियों के लिए रास्ता पूरी तरह बन्द कर दिया गया। लड़कियों के समर्थन में लड़के भी आ गये और उनकी संख्या की काफी बढ़ गयी। शाम तक यहां मौजूद लोगों की संख्या सैकड़ों में पहुंच गयी। लड़कियों द्वारा मुख्य द्वार बन्द कर दिये जाने की खबर विवि के वीसी और प्रशासन को हो गयी, फिर भी उनमें से कोई भी मांगपत्र लेने और लड़कियों को आश्वस्त करने नहीं आया, इसलिए लड़कियों ने रात भर यहीं बैठने का निर्णय लिया, उनके समर्थन में लड़के भी भारी संख्या में यहां पहुंचने लगे। दोपहर से ही पुलिस बल यहां तैनात कर दिया गया था। रात में भी वे यहां मौजूद रहे। अगले दिन सुबह तक लड़कियों के धरने पर बैठने की खबर क्योंकि फैल चुकी थी, इसलिए 23 तारीख की सुबह लड़कियों और लड़कों की संख्या और भी बढ़ गयी। लगभग सभी महिला छात्रावासों की लड़कियां यहां जमा होने लगी। अपने जरूरी कामों से वे कुछ समय के लिए जाती थीं, लेकिन फिर आ जाती थीं। 23 की सुबह तक जब वीसी या प्राक्टर लड़कियों का मांगपत्र लेने नहीं आये, तब कुछ रिसर्च स्कॉलर लड़कियों और अध्यापकों ने मध्यस्थता के लिए धरना स्थल पर आना-जाना शुरू कर दिया। उनका कहना था कि लड़कियों के एक डेलीगेशन को खुद वीसी के पास चलकर मिलना चाहिए। धरने पर बैठी बहुत सी छात्राओं का मानना है कि इन लोगों को प्राक्टोरियल बोर्ड के लोगों ने धरने को खत्म करने के लिए भेजा था। फिर भी इनके कहने पर कुछ लड़कियों का डेलीगेशन चार या पांच बार वीसी ऑफिस पर उनसे मिलने पहुंचा, लेकिन वीसी ने मिलने से इंकार कर दिया। महिला महाविद्यालय के एक डेलीगेशन के पास उन्होंने यह सन्देश भी कहलवाया कि ‘क्योंकि लड़कियां मालवीय जी द्वारा स्थापित विवि की इज्जत पर कालिख पोत रहीं है, इसलिए वे उनसे कोई बात नहीं करेंगे।’ 23 को आन्दोलन का धैर्य खत्म होता जा रहा था, छात्राओं और छात्रों का कहना था कि 23 की रात में एबीवीपी के लोग धरना स्थल पर आकर अव्यवस्था फैलाने लगे थे जिसके कारण बहुत से लड़के और लड़कियां जाने भी लगे थे। रात तक कुछ लड़कियां इस बात के लिए तैयार हो गयीं कि वीसी ऑफिस जाकर वहीं पर मांगपत्र सौंप दिया जाय।
लाठीचार्ज और उसके बाद
लड़कियों का एक डेलिगेशन वहां गया। इस वक्त रात के 11 बज रहे थे। लड़कियों ने काफी देर तक वीसी का इन्तजार किया। वीसी ऑफिस के सामने उस वक्त चीफ प्राक्टर ओंकार नाथ सिंह मौजूद थे। जिस भी छात्र या छात्रा से हमने बात की सभी का बयान था कि वीसी ऑफिस पर लड़कियां नारे लगा रहीं थीं और फोन में रिकार्डिंग कर रही थीं। जिससे  बौखलाकर चीफ प्राक्टर ने एक पुलिस वाले का डंडा खींचकर लड़कियों को पीटना शुरू कर दिया, इसके बाद सारे पुलिस कर्मी और पीएसी बल, जो पहले से वहां पर मौजूद थे, छात्राओं पर लाठी लेकर टूट पड़े। यहां पर हुए लाठीचार्ज के 15 मिनट बाद मुख्य गेट पर जहां अभी भी सैकड़ों छात्र-छात्रायें धरने पर बैठे थे और नारे लगा रहे थे, सैकड़ों पीएसी वाले टूट पड़े। लड़कों के साथ लड़कियों को भी बुरी तरह से मारा गया। लड़कियों को लाठीचार्ज करते हुए महिला महाविद्यालय के गेट के अन्दर ढकेल दिया गया और गेट के अन्दर घुस कर पीएसी के लोगों ने उन पर लाठी भांजी, उन्हें गन्दी-गन्दी गालियां दीं। इस समय कोई भी महिला पुलिस कर्मी तैनात नहीं थीं। लड़कियों को बुरी तरह मारा गया। इसके कई वीडियो भी सोशल मीडिया पर सार्वजनिक हो चुके हैं। लड़कियों का कहना है कि इस लाठीचार्ज में सिर्फ लड़कियों को नहीं, बल्कि महिला अध्यापकों, वार्डन और पत्रकारों को भी पीटा गया। हालांकि जांच टीम चोटिल अध्यापकों का बयान नहीं ले सकी, क्योंकि 25 तारीख तक, जिस दिन यह जांच की जा रही थी, कोई भी अध्यापक या वार्डेन अपना बयान देने के लिए तैयार नहीं हो रहे थे। लेकिन 29 अक्टूबर के ‘इण्डियन एक्सप्रेस’ में महिला महाविद्यालय की अध्यापक और वार्डेन प्रतिमा गौड़ का बयान आया है कि पुलिस ने उनके ये कहने के बाद भी उनपर लाठी चलाई कि ‘वे टीचर हैं।’ उनके हाथ की उंगली टूट गयी है। उन्होंने यह भी बयान दिया कि लड़कियों के साथ खड़े पत्रकारों पर भी लाठी चलाई गयी, जबकि वे अलग से चिन्हित हो रहे थे कि वे छात्र नहीं हैं। इस लाठीचार्ज के दौरान छात्रों की ओर से हुयी पत्थरबाजी के सन्दर्भ में पूछे जाने पर लड़कियां और लड़के दोनों इस तथ्य को स्वीकार करते हैं। लड़कियों का कहना है कि ‘हां हमने पत्थर फेंका, लेकिन तब, जब पुलिस वाले हॉस्टल के अन्दर घुसकर हमें मारने लगे, हमारे पास वहां अपना बचाव करने का और कोई चारा नहीं था। इसलिए हमने उन पर पत्थर फेंका।’ लड़कों ने भी कहा कि पुलिस वाले बीएचयू के अन्दर और बाहर जो भी लड़का मिल रहा था उसे बुरी तरह पीट रहे थे, इसलिए लड़कों ने भी इसलिए पत्थर चलाये, ताकि वे अपने कमरों तक पहुंच सकें। जैसा कि वीसी का कहना है और पहले दिन अखबारों में भी यह खबरें आयी कि वहां पेट्रोल बम चले, इस तथ्य से सभी ने इंकार किया। लंका स्थित दुकानदारों ने भी किसी भी तरह के बम चलने की बात से इंकार किया। बल्कि छात्रों का कहना है कि सिर्फ लाठी ही नहीं पुलिस वालों ने उनपर रबर बुलेट और आंसू गैस के गोले भी छोड़े। कई रबर बुलेट की तस्वीरें भी अखबारों मे आ चुकी है। वीसी बोल रहे हैं कि लाठीचार्ज अराजक बाहरी तत्वों पर किया गया, लेकिन बीएचयू के सरसुन्दरलाल अस्पताल में जहां यहां पढ़ने वाले छात्रों का परिचयपत्र के साथ मुफ्त इलाज किया जाता है, और वहां के रिकार्ड से जाना जा सकता है कि बीएचयू में पढ़ने वाले कितने घायल छात्र-छात्राओं ने यहां आकर अपनी मरहम पट्टी करवाई है।
लाठीचार्ज के बाद सभी महिला छात्रावासों को बन्द कर दिया गया और उनकी लाइट काट दी गयी। छात्रावासों में रहने वाली कई लड़कियां इस कारण से रात भर बाहर ही रहीं और उन्हें अपने दोस्तों मित्रों के यहां रात बितानी पड़ी, इस बात से भी उनमें काफी गुस्सा है। अगले दिन सुबह वार्डन ने यह फरमान जारी कर दिया कि सभी लड़कियों को शाम 4 बजे तक छात्रावास खाली कर देना है, नही ंतो उन्हें पुलिस बल द्वारा बाहर कर दिया जायेगा। लाठीचार्ज की खबर हर जगह फैल जाने के कारण सभी लड़कियों के घरों से फोन आने भी शुरू हो गये। ज्यादातर लड़कियों को बिना तैयारी के बिना रिजर्वेशन के अपने घर जाना पड़ा, दूर की कई लड़कियां को 10-10 घण्टे रात का सफर बस से करना पड़ा। कई लड़कियों की ट्रेन का समय मध्य रात्रि था, लेकिन 4 बजे से छात्रावास खाली करने के फरमान के कारण उन्हें काफी पहले से ही स्टेशन पर जाकर बैठना पड़ा। लड़कियों का कहना है कि हम सुरक्षा की मांग कर रहे थे, लेकिन हमें और भी असुरक्षित कर दिया गया। अगले दिन जब इस बात की आलोचना होने लगी तो वीसी का बयान आया कि उन्हांेने छात्रावास खाली करने का कोई आदेश नहीं दिया है। लेकिन जो लड़कियां नहीं गयी, वे छात्रावासों में कैद कर दी गयी। ‘ज्वाइंट एक्शन कमेटी’ के एक छात्र ने गोमती छात्रावास में रहने वाली एक छात्रा की हमसे फोन पर बात कराई। नाम नहीं देने का आग्रह कर छात्रा ने बताया कि छात्रावास का गेट बन्द कर दिया गया है, किसी भी लड़की को बाहर जाने की इजाजत नहीं है। वार्डेन का आदेश है कि जिस भी लड़की को बाहर जाना है, वो बैग लेकर घर जाने के लिए निकले, फिर उसे अन्दर नहीं आने दिया जायेगा। वार्डेन का कहना है कि 2 अक्टूबर तक हॉस्टल का गेट नहीं खोला जायेगा। लड़की ने बताया कि इसी कारण वह जांच टीम से मिलने नहीं आ सकती है क्योंकि फिर उसे अन्दर नहीं आने दिया जायेगा, लेकिन वह फोन पर कई लड़कियों से बात करा सकती है। लड़कियों का कहना है कि वे अब इस कारण भी घर नहीं जाना चाहती है क्योंकि अगर वे इस समय घर गयीं तो उन्हें जल्दी विवि नहीं आने दिया जायेगा और उनकी पढ़ाई का नुकसान होगा। लड़कों ने बताया कि इस अफरा-तफरी के कारण उनके भी छात्रावास आधा खाली हो चुके हैं।
जिस दिन जांच टीम बनारस में थी उसी दिन बीएचयू के 1200 अज्ञात छात्रों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमें दर्ज किये जा चुके थे और 1 अक्टूबर को 10 लड़कों के पास पुलिस थाने से नोटिस भेजी जा चुकी थी, खबर थी कि 25 छात्रों के पास ऐसी नोटिस आनी है। जबकि मानवाधिकार आयोग ने यहां हुई लाठीचार्ज की निंदा की है, महिला आयोग का मामले की जांच के लिए आना तय हो चुका है। लड़के-लड़कियां विवि प्रशासन की इस कार्यवाही से इतना डरे हुए हैं कि वे इस जांच टीम से विवि परिसर या गेट के आसपास मिलने की बजाय अस्सी घाट पर मिल कर बातचीत कर रहे थे।
मौजूदा आक्रोश की पृष्ठभूमि
बीएचयू की लड़कियों ने बताया कि यह प्रदर्शन बेशक 21 सितम्बर की घटना के विरोध में था, लेकिन विवि के अन्दर लड़कियों से बदतमीजी, उस पर कोई सुनवायी नहीं होने और प्रशासन द्वारा भेदभाव किये जाने के कारण उनमें काफी पहले से गुस्सा था, जो कि इसी साल मार्च में लोगों ने देखा भी था, जब महिला महाविद्यालय की लड़कियों ने अपने साथ हो रहे भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई थी।
पूर्व में घटी मुख्य घटनायें
1-पिछले साल अगस्त के महीने में बीएचयू के एक छात्र को कुछ लोगों ने जिसमें सर सुन्दर लाल अस्पताल का एक कर्मचारी भी शामिल था, ने प्राक्टर ऑफिस के पास से गाड़ी में खींच लिया और उसके साथ दुराचार किया। लड़के ने जब इसकी शिकायत दर्ज कराने की हिम्मत जुटाई तो पुलिस ने उसकी हंसी उड़ाते हुए एफआईआर दर्ज करने से इंकार कर दिया। विवि प्रशासन भी इस घटना को दबाने में लगा रहा, और पीड़ित छात्र और उसके परिजनों को ही धमकाने में लगा रहा। लेकिन इसके खिलाफ हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद मीडिया में यह खबर आ जाने के कारण लगभग 10 दिन बाद पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी पड़ी और विवि प्रशासन ने भी तभी दोषी कर्मचारी के खिलाफ कार्यवाही की।
2- उत्तर प्रदेश में मौजूदा सरकार के गठन के बाद जब एण्टी रोमियो स्वैड का गठन किया गया, तो अप्रैल की शुरूआत में ही बाहर से खाना खाकर लौट रहे बीएचयू आईआईटी के दो छात्र और एक छात्रा को परिसर के अन्दर हैदराबाद गेट के पास रात 9 बजे कुछ लड़कों ने बुरी तरह पीटा, उनके पर्स छीन लिये। उनका कहना था कि वे लोग रात में साथ क्यों घूम रहे हैं। पीड़ित लोगों में एक लड़के ने इसकी शिकायत दर्ज करायी और प्रोटेस्ट में एक दिन की परीक्षा छोड़ने का निर्णय लिया। आईआईटी के छात्रों ने ‘स्टूडेंट फॉर चेन्ज’ के बैनर तले इसके विरोध में 3 अप्रैल को प्रदर्शन किया था। लेकिन दोषियों का पता लगाने और कार्यवाही करने का आश्वासन भी नहीं दिया गया।
3- बीएचयू आईआईटी की लड़कियों के छात्रावास में कुछ लड़कियों के प्रवेश समय से कुछ देर बाद प्रवेश करने के कारण उनके खिलाफ वार्डेन ने अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया, जिसे लेकर छात्रावास की सभी लड़कियों ने इसके खिलाफ विरोध दर्ज कराया तथा आईटी डायरेक्टर से इसकी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन अब तक उन पर कोई कार्यवाही नहीं हुई है और इस छात्रावास में लगभग डेढ़ महीने से लड़कियों की भाषा में ‘डिसओबेडिएन्स’ जारी है यानि लड़कियां अपने अन्दर आने का समय रजिस्टर पर नहीं दर्ज कर रही हैं।
4- मौजूदा घटना यानि 21 सितम्बर की घटना के दूसरे दिन गुस्साई लड़कियों ने बताया कि लड़के  लड़कियों के हॉस्टल के सामने खड़े होकर अश्लील कमेंट करते हैं। नवीन छात्रावास के गेट के या खिड़कियों के सामने खड़े अश्लील हरकतें करते हैं, यहां तक कि हस्तमैथुन करते हैं, क्योंकि इसके सामने सन्नाटा रहता है। लड़के लड़कियों के कमरों की खिड़कियों से कंकड़ या पत्थर फेंकते हैं, इसकी शिकायत कुछ लड़कियों ने वार्डेन की तो उन्होंने इसका हल बताया कि ‘लड़कियां अपनी खिड़कियां बन्द रखा करें।’
5- लड़कियों ने बताया कि बीएचयू परिसर के अन्दर अगर आप सुबह या शाम वॉक के निकलें, तो बिना किसी दुर्घटना के वापस नहीं लौट सकती हैं। बाइक सवार लड़के या तो उनके आगे-पीछे चलेंगे, या अश्लील कमेन्ट करेंगे, या कंकड़ फेकेंगे या पीछे से हिप पर मार कर भाग जायेंगे, कुछ न कुछ होना पक्का है। और यह सब परिसर स्थित विश्वनाथ मन्दिर के रास्ते में सबसे ज्यादा होता है, जबकि यह सबसे भीड़भाड़ वाला रास्ता है।
बीएचयू की सुरक्षा व्यवस्था पर एक नजर
बीएचयू का परिसर एक ऐसा परिसर है, जिसके अन्दर 109 फैकल्टी भी है, आवास भी है छात्रावास भी है और एक मन्दिर भी, जिसे देखने बाहर से भी लोग आते रहते हैं। वीसी गिरीश चन्द्र त्रिपाठी ने एनडीटीवी को बताया कि बीएचयू में कुछ छात्र-छात्राओं की संख्या 45 हजार के करीब है। आवास और मन्दिर में आने-जाने वालों की आबादी को शामिल कर लें तो यहां हर वक्त लगभग 1 लाख की आबादी रहती है। ‘इण्डियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक पिछले दस सालों में यहां पढ़ने के लिए आने वाली लड़कियों में 131 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। इन परिस्थितियों को देखते हुए यहां सुरक्षा व्यवस्था नगण्य है, जबकि यह एक शहर जैसा है। है। उसमें महिला सुरक्षा कर्मियों की संख्या तो नगण्य है। लड़कियों का कहना है कि महिला छात्रावासों के बाहर भी महिला सुरक्षाकर्मी नहीं हैं। पुरूष सुरक्षाकर्मी सेवानिवृत फौजी हैं, जो किसी लड़की की शिकायत को सुनते ही नहीं हैं। उनके वहां रहने का कोई फायदा नहीं है। सुरक्षाकर्मी तो दूर प्राक्टर खुद भी किसी की नहीं सुनते हैं, उल्टे कई बार पीड़ितों की शिकायत पर उन्हें ही डांट कर वे दोषियों के पक्ष में खड़े हो गये हैं। कैम्पस के अन्दर ही पीएसी की छावनी मौजूद है, लेकिन ये यहां केवल छात्रों के विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए लगाये जाते हैं, किसी भी अपराध को रोकने में इनकी कोई भूमिका नहीं है।
कहने को तो बीएचयू परिसर के अन्दर कोई भी राजनैतिक गतिविधि प्रतिबन्धित है, लेकिन यहां हर सुबह आरएसएस की शाखा लगती है, जिसमें शामिल होने लोग बाहर से भी आते हैं, बल्कि ज्यादा संख्या बाहरियों की होती है। आरएसएस विभिन्न अवसरों पर अपने कार्यक्रम भी परिसर के अन्दर ही आयोजित करती है। कुछ ही दिन पहले यहां संघ का पदचालन कार्यक्रम हुआ है, जिसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गयीं थीं। इन कारणों से यहां असुरक्षा का माहौल रहता है। 2014 में ब्रोचा और बिड़ला छात्रावासों के बीच हुई मारपीट के बाद जब प्राक्टोरियल बोर्ड ने इन छात्रावासों पर छापा मारा तो कुछ कमरों से बम बनाने का सामान मिला। यह बात भी उसी समय सामने आ गयी थी कि यह कमरा आरएसएस से जुड़े लड़कों का था, लेकिन इस क्षबर को दबा दिया गया, और उन लड़कों पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी, जिसे लेकर लड़कों में काफी आक्रोश था।
इतने महत्वपूर्ण परिसर के कई हिस्से रात में अंधेरे में डूबे रहते हैं, लेकिन कई बार की मांग के बावजूद यहां रोशनी की व्यवस्था नहीं की जा रही है।
लड़कियों की एक मांग है कि विवि परिसर में जगह-जगह कैमरे लगाये जाय, ताकि दोषियों को पकड़ने में आसानी हो सके, लेकिन लड़कियों ने बताया कि कैमरे उनके छात्रावासों के प्रवेशद्वार और मेस के अन्दर लगाये गये हैं, जहां उनकी जरूरत है वहां नहीं। ‘इन दोनों जगहों पर कैमरे लगा कर विवि प्रशासन हम पर निगरानी रखना चाहता है, अपराधियों पर नहीं।’ लड़कियों का कहना हैं।
सुरक्षा सम्बन्धी हर शिकायत पर दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की बजाय लड़कियों पर बन्दिशें बढ़ा दी जाती हैं।
महिला महाविद्यालय और त्रिवेणी की छात्राओं का कहना है कि ‘सुरक्षा सम्बन्धी हमारी हर शिकायत के बाद दोषियों पर कार्यवाही करने की बजाय हमारे ऊपर बन्दिशें बढ़ा दी जाती हैं। हमारे हॉस्टल आने के समय में कटौती कर दी जायेगी, फोन पर बात करने से मना कर दिया जायेगा, हमारे कपड़ों पर रोकटोक शुरू हो जायेगी। हमारे रहने के ढंग पर सवाल खड़े होने लगेंगे। और यह सब चूंकि अनऑफिशियली होता है, इसलिए आप कहीं इसे चैलेंन्ज भी नहीं कर सकते।’ महिला महाविद्यालय की लड़कियों ने बताया कि सबसे ज्यादा बुरा बर्ताव वहीं के हॉस्टलों में होता है क्योंकि यहां पहले और दूसरे साल की लड़कियां रहती हैं, इसलिए इन पर ज्यादा बन्दिशें लगायी जाती हैं। यहां तो ऑफिशियली भी लड़कियों के साथ भेदभाव किया जाता है। यहां के मेस मेन्यू में किसी भी दिन नॉनवेज भोजन नहीं स्वीकृत है, जबकि लड़कों के हर छात्रावासों में यह स्वीकृत है। यहां लड़कियों के लिए रात 10 बजे के बाद वाई-फाई की सुविधा नहीं है। जबकि लड़कों के लिए 24 घण्टे है। वार्डेन और ‘आण्टी जी’ लड़कियों को देर रात फोन पर बात नहीं करने देती हैं। उन्हें छोटे कपड़े पहनने के लिए मना करती हैं। लड़कियों ने बताया कि यहां की वार्डेन नार्थ-ईस्ट की लड़कियों को देखकर बोलती हैं कि ‘इन्हें तो सबसे दूर रखना चाहिए, क्योंकि ये छोटे कपड़े पहनती हैं, अजीब होती हैं और बाहर से लाकर नॉनवेज खाती हैं।’ इस छात्रावास का प्रवेश समय भी सबसे पहले, रात के 8 बजे शुरू हो जाता है। यहां तक कि यदि किसी लड़की को बाहर जाना है और उसकी ट्रेन का समय रात में 12 बजे के बाद और सुबह 6 बजे के पहले है भी है, तो उसे रात के 8 बजे के पहले ही हॉस्टल छोड़ देना होगा। या फिर उसे वार्डेन से स्पेशल परमिशन लेना होगा, जो कि बहुत ही मुश्किल होता है। लड़कियों का कहना कि हॉस्टल की सुरक्षा का बहाना बना कर हमें और भी असुरक्षित बना दिया गया है, क्योंकि इस नियम के चलते हम रात में घण्टों स्टेशन पर बैठे रहते हैं। तबीयत खराब हो तब भी। ज्वाइंट एक्शन कमेटी की एक सदस्य नेहा कुमारी ने बताया कि इन सभी बातों की शिकायत करने पर हमें कहा जाता है कि ‘बीएचयू की शिकायत ‘मालवीय मूल्य’ का अपमान है।’ बीएचयू से स्नातक पास भगत सिंह छात्र मोर्चा की श्रुति कुमारी का कहना है कि ‘बीएचयू के वीसी खुद बीएचयू में मुंह पर कालिख पोत रहे हैं, उसे बदनाम कर रहे हैं, और दोष हमें दे रहे हैं।’ एमएमवी की लड़कियों ने बताया कि प्रवेश के समय उनसे एक शपथपत्र पर दस्तखत कराया गया था, कि वे किसी भी राजनैतिक गतिविधि, धरने या प्रदर्शन में हिस्सेदारी नहीं करेंगी। इस घटना के बाद भी लड़कियां जब धरने पर बैठ गयीं, तो एक वार्डेन ने लड़कियों को डांटते हुए कहा कि ‘हमारे साथ भी यह सब हो चुका है, लेकिन हम तुम्हारी तरह शार्ट्स पहनकर धरना देने नहीं चले जाते थे।’ दूसरी वार्डेन ने लड़कियों से कहा कि बनारस में रहना है तो ये सब झेलना ही होगा। तीसरी ने लड़कियों को सुरक्षा के उपाय बताते हुए कहा कि ‘अंधेरा होने के बाद बाहर मत जाओ, उसी ऑटो में बैठो जिसमें केवल लड़कियां बैठी हों, अगर लड़के बैठे हों, तो उनके और अपने बीच में बैग रख लो।’ आकांक्षा इसमें आगे जोड़ देती हैं कि ‘फिर भी कुछ हो जाये तो चुपचाप बैठ जाओ, बीएचयू का ‘मालवीय मूल्य’ यही कहता है।
जांच टीम के निष्कर्ष
जांच टीम ने ये पाया कि
1-बीएचयू का मौजूदा आन्दोलन बेशक 21 तारीख की छेड़खानी की घटना के बाद शुरू हुआ, लेकिन यहां छात्रों खासतौर पर लड़कियों में काफी पहले से लगातार होती ऐसी घटनाओं और लड़कियों से विवि प्रशासन द्वारा किये जाने वाले भेदभाव के कारण उनके अन्दर काफी आक्रोश था, जो 21 तारीख की घटना के बाद फूट पड़ा।
2- आन्दोलन में बाहरी तत्व नहीं शामिल थे, बल्कि यह बीएचयू के छात्रावासों में रह रही लड़कियों द्वारा शुरू किया गया था, तथा इसमें बीएचयू की लड़कियां ही शामिल थीं। इन्हें बीएचयू में पढ़ने वाले लड़कों का मजबूत सहयोग प्राप्त था। इन्हें बाहरी लोगों का समर्थन था और यह बढ़ता गया, क्योंकि वीसी के न सुनने के कारण आन्दोलन लम्बा खिंचता गया।
3-बीएचयू परिसर के अन्दर की सुरक्षा व्यवस्था अपर्याप्त है और यहां आये दिन बदतमीजी की घटनायें घटित होती रहती हैं।
4- बीएचयू प्रशासन में मुख्य पदों पर तैनात ज्यादातर अधिकारी पितृसत्तात्मक और सामंती मानसिकता से ग्रस्त हैं। इसी कारण लड़कियों की बार-बार की शिकायत और घटनाओं के घटते जाने के बाद भी वे लड़कियों को ही चुप रहने की सलाह देते रहते हैं। इसके अलावा लड़कियों को ‘संस्कारी’ बनाने के नाम पर वे उन पर पिछड़े सामन्ती मूल्य थोपते रहते हैं।
5- 21 तारीख की रात से शुरू हुआ अनशन समाप्त भी हो सकता था यदि वीसी लड़कियों से मिलकर उनकी मांगों को पूरा करने का आश्वासन दे देते। आन्दोलन इस कारण दो दिन खिंच गया और तनावपूर्ण हो गया, क्योंकि वीसी उनकी साधारण सी मांग मानने और सुनने से इंकार करते रहे। अतः आन्दोलन को इस स्थिति तक ले जाने के लिए वीसी खुद जिम्मेदार हैं।
6- बीएचयू में 23 सितम्बर को हुए लाठीचार्ज के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार चीफ प्राक्टर और वीसी हैं। लड़कियों का डेलीगेशन उनके ऑफिस के सामने रात 11 बजे बात करने गया, लेकिन वे बाहर नहीं आये। चीफ प्राक्टर ने खुद लड़कियों पर लाठियां भाजी, इस बात को हर लड़की और लड़के ने कहा।
7- लाठीचार्ज में न सिर्फ लड़कियों और लड़कों को पीटा गया, बल्कि महिला अध्यापिकाओं को भी पीटा गया, जो वहां आन्दोलन में शामिल होने नहीं, बल्कि लड़कियों की सुरक्षा के लिए वहां मौजूद थीं। लाठीचार्ज में पत्रकारों को भी चोटे आयी हैं।
8- लाठीचार्ज के साथ पुलिस ने रबर बुलेट का भी इस्तेमाल किया, जिससे कुछ लोगों को गम्भीर चोटें आयीं हैं।
9- लड़कियों की ओर से पत्थरबाजी की गयी है, तब जब पुलिस पीएसी बल हॉस्टल के अन्दर घुस कर उन्हें पीट रही थी। लेकिन यह पत्थरबाजी थोड़ी ही देर हुई। किसी भी तरह के बम फेंकने की कोई घटना किसी भी पक्ष की ओर से नहीं हुई है।
10- वीसी और प्राक्टर इस बात के भी दोषी हैं कि रात 12 बजे हुई लाठीचार्ज के बाद उन्होंने कई लड़कियों को असुरक्षित सड़कों पर छोड़ दिया, क्योंकि छात्रावासों के गेट बन्द कर दिये गये और परिसर के अन्दर और आसपास हो रही लाठीचार्ज के कारण लड़के-लड़कियां अन्दर जाने की हिम्मत भी नहीं कर सके। लड़कियों को अपने दोस्तों के घरों में भी आश्रय लेना पड़ा, जिसके कारण वे रात भर सदमे में रहीं। यह बीएचयू प्रशासन द्वारा की गयी एक और आपराधिक कार्यवाही है।
11- अगले दिन यानि 24 सितम्बर को शाम 4 बजे तक छात्रावासों को खाली कर देने का फरमान भले ही वीसी की ओर से अलिखित था, लेकिन वार्डेन ने हर छात्रावास में इसका नोटिस लगा दिया था, जिसके कारण लड़कियों को भारी असुरक्षा के साथ बिना रिजर्वेशन कई-कई घण्टों तक स्टेशन पर बैठना पड़ा और सफर करना पड़ा।
12- लड़कियां बेहद विपरीत परिस्थितियों में पढ़ने के लिए घर से बाहर निकल कर आती हैं। बीएचयू में ऐसी लड़कियों की आबादी ज्यादा है, इस घटना ने इन लड़कियों की आगे की पढ़ाई और उनके भविष्य को अंधेरे में डाल दिया है। इसके लिए सीधे तौर पर बीएचयू का असुरक्षित माहौल और यहां के जिम्मेदार पदाधिकारी ही दोषी हैं।
जांच टीम की मांगें
1-वीसी को तत्काल बर्खास्त कर उनके उपर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।
2-चीफ प्राक्टर, जिनके उपर हर किसी ने यह आरोप लगाया कि लाठीचार्ज की शुरूआत उन्होंने की, को बर्खास्त कर उन पर भी एफआईआर दर्ज किया जाना चाहिए।
3- छात्रावास की वार्डेंन, जिन्होंने लड़की का साथ देने की बजाय उसे पिछड़े संस्कार का पाठ पढ़ाया, उन्हें तत्काल बर्खास्त किया जाना चाहिए।
4- लाठीचार्ज के बाद वीसी की ओर से जिन 1200 अज्ञात छात्रों पर विभिन्न धाराओं में मुकदमे दर्ज किये गये हैं उसे तत्काल वापस लिया जाय। उन्हें नोटिस भेज कर मानसिक प्रताड़ना देने का काम तत्काल बन्द किया जाय।
5- बीएचयू के अन्दर लड़कियों से किये जा रहे भेदभाव पर तत्काल रोक लगायी जानी चाहिए। तथा सुरक्षा के लिए उनकी सभी मांगों को पूरा किया जाय।
6- बीएचयू में इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए जीएसकैश की स्थापना की जाय।
7- बीएचयू के अन्दर काम करने वाले पदाधिकारियों, वीसी से लेकर सुरक्षाकर्मी तक के बीच जेंडर सेंसिटिविटी पर कार्यशालायें चलाकर उन्हें शिक्षित-प्रशिक्षित किया जाय।
8- इस पूरे मामले की जांच किसी महिला मजिस्टेट की निगरानी में करायी जाय।

जांच की तारीख- 25 सितम्बर
जांच टीम के सदस्य-
के के रॉय, वरिष्ठ सदस्य व पूर्व महासचिव उप्र पीयूसीएल
सीमा आज़ाद, संगठन सचिव, उप्र पीयूसीएल
उत्पला शुक्ल, महासचिव, इलाहाबाद पीयूसीएल
जांच टीम ने मुख्य तौर पर जिन लोगों से बात चीत की-
आंदोलन में शामिल छात्राओं से, संख्या लगभग 25। इनमें से कई लड़कियों ने अपने नाम से बयान देने से मना किया, क्योंकि उन्हें यहीं रह कर आगे भी पढ़ाई करनी है। इसलिए हम इस रिपोर्ट में ज्यादातर लोगों का बयान उसके नाम से नहीं दे रहे हैं।
आंदोलन में शामिल छात्रों से, संख्या लगभग 25,
ज्वाइंट एक्शन कमेटी, के लगभग 10 सदस्यों से
चीफ प्राक्टर से, लेकिन उन्होंने वीसी के बयान के बगैर बात करने से इंकार कर दिया।
वीसी, कई बार फोन करने के बाद भी इन्होने फोन रिसीव नहीं किया। 25 की शाम तक वीसी ने कोई भी बयान नहीं दिया था। उसी दिन रात से उन्होने कई टीवी चैनलों को बयान देना शुरू किया।

 जारी 2 अक्टूबर 2017

सौजन्य: सीमा आज़ाद


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