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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

20 सितंबर, 2018

दूरगामी सोच पर राजसत्ता का हमला


सुनील कुमार

गौतम नवलखा सहित पांच सामाजिक कार्यकर्ता 28अगस्त से अपने-अपने घर में कैद हैं। राज्य सत्ता आखिर इन लोगों से क्यों डरती है? इन पांचों लोगों की उम्र 50-83 साल के करीब है। आखिर इस उम्र में वे ऐसा क्या कर रहे थे? मैंने इसमें से कुछ लोगों के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़कर काम किया है, जिनमें से एक हैं गौतम नवलखा, जिनकी उम्र 65 से अधिक है। इस उम्र में सरकार अपने मुलाजिमों को रिटायरमेंट देती है, लेकिन गौतम जैसे बुद्धिजीवियों को कैद करके रखना चाहती है। गौतम के साथ काम करते वक्त उनकी युवा-स्फूर्ति और दूरगामी सोच को देखा है। गौतम दिल्ली के मजदूरों से लेकर पूरे भारत में रह रहे शोषित-पीड़ित जनता के लिए हर वक्त सोचने वाले व्यक्ति हैं। बवाना फैक्ट्री में आग लगी थी, जहां 17 मजदूरों की जलने से मौत हो गई थी। गौतम वहां कई बार गये और उनकी स्थिति को जानने के लिए उस इलाके के मजदूरों से मिले। गौतम दिल्ली जैसे महानगर की महिलाओं से लेकर आदिवासी इलाकों की महिलाओं और छात्रावासों में रहने वाली लड़कियों की सुरक्षा की चिन्ता करते हैं। वे दिल्ली के झुग्गियों-झोपड़ियों के विस्थापन से लेकर दूर-सुदूर गांव में हो रहे विस्थापितों की दर्द को समझते हंै। वे देश में फर्जी मुठभेड़ और राजकीय दमन की मुखालफत करते रहे हैं तथा साथ में माओवादियों द्वारा की गई नियामत अंसारी की हत्या का भी मुखालफत करते हैं। गौतम जिस तरह 40 साल के पुराने साथियों से मिलते हंै, उसी तरह पहले दिन मिलने वाले साथियों के साथ भी मिलते हैं।


एक साल पहलेसीडीआरओ के 10 साल पूरा होने पर 2-3 सितम्बर, 2017 को हैदराबाद में गौतम ने बोलते हुए कहा था कि आने वाले समय डेमोक्रेटिक राइट्स के नजरिये से चुनौतीपूर्ण होने वाले हैं। इसलिए हमें क्रिएटिव तरीके से काम करने के लिए सोचना होगा। अपने कथन के ठीक एक साल बाद गौतम को ही राज्य सत्ता के दमन का शिकार होना पड़ा। छत्तीसगढ़ के पालनार बालिका आश्रम में नाबालिग बच्चियों के साथ हुए यौनहिंसा में संविधान का मखौल उड़ाने वाले अधिकारियों पर आश्चर्य व्यक्त किया। जिले के एसपी ने सशस्त्र पुलिस बलों के साथ बच्चियों के छात्रावास में जाकर प्रोग्राम कियाजहां पर यौनाचार की घटना घटित हुई। गौतम का स्पष्ट कहना था कि केवल ये पुलिसकर्मी ही दोषी नहीं हैं जो यौनाचार कियेबल्कि वे अधिकारी भी दोषी हैं जिन्होंने बच्चियों के छात्रावास में प्रोग्राम करने की इज्जात दी। जिले के एसपी दोषी हैं जो सशस्त्र पुलिस वालों के साथ छात्रावास में जाते हैं। गौतम ने इन अधिकारियों पर पास्को ऐक्ट की तहत कार्रवाई करने और यौनहिंसा की शिकार बच्चियों की सुरक्षा की मांग की।
बुर्कापाल से आए आदिवासियों महिलाओं ने बताया कि कैसे पुलिस वाले उनके घर के पुरुषों को घर से उठा कर ले गए और उन लोगों को इनामी माओवादी बताकर जेल में डाल दिया। ये महिलाएं अपने गाने द्वारा अपने दुख को व्यक्त करती हैं -‘‘खेती का समय हैघर में पुरुष नहीं है कैसे हम खेती करेंगे। पुलिस आती हैहमारे सामानों को  तोड़ फोड़ देती हैघर में रखे अनाज को मिट्टी में मिला देती है’’। गौतम ने कहा कि मीडिया बुर्कापाल की घटना की पूरी बात आम जनता को नहीं बतातीवह तोड़-मरोड़ कर लोगों तक यह बात पहुंचाती है। गौतम का मानना है कि लोगों की जीविका के साधनजल-जंगल-जमीन का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण हैइसलिए बस्तर में संघर्ष आज से नहीं सन् 1950 से चल रहा है। बैलाडीला से शुरू हुआ संघर्ष आज नगरनार तक पहुंच गया हैजहां जमीन छीने जाने पर 13 पंचायत के लोग इक्ट्ठा हो गए।
सरकार के जनविरोधी कानूनों पर सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि आदिवासी जंगलों से महुआ इक्ट्ठा करके बेचते हैंजिस पर सरकार ने नये कानून बना दिये कि आदिवासी 5 किलो से अधिक और लोकल ठेकेदार 5 क्ंिवटल से अधिक महुआ बाजार में नहीं ले जा सकते। इससे महुआ का दाम कम हो गयाजिससे बड़े ठेकेदारों और शराब माफियाओं को फायदा हुआ।
उन्होंने चिंता जताई कि भारत में 1 प्रतिशत लोगों के पास देश का 60 प्रतिशत खजाना है जबकि 70 प्रतिशत लोगों के पास मात्र 7 प्रतिशत है और यह गैरबराबरी और तेजी से बढ़ रही है। भारत के अन्दर नये साम्राज्य खड़े होते जा रहे हैं जिनके पास अपनी प्राइवेट सेना भी है। उन्होंने बताया कि रिलायंस के पास 16,000 की आर्मी है जिसमें ज्यादातर वे सैनिक-अफसर हैं जो कारगिल युद्धमुम्बई आॅपरेशन में रहेया इसी तरह के एक्टिब आॅपरेशन में शामिल रहे हैं। उनका अपना साइबर सेल है। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि यह आर्मी किसके खिलाफ इस्तेमाल की जायेगीयह प्राइवेट आर्मी किसके साथ खड़ी होगीयह चिंता जाहिर करते हुए गौतम ने डेमोक्रेटिक राइट्स संगठनों के सामने इसे चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि हम डेमोक्रेटिक राइट्स वाले राज्यसत्ता से लड़ना जानते हैंलड़ते रहे हैं और जेल जाते रहे हैं। सरकार से लड़ने के लिए अनेकों दरवाजे हैं- कोर्टआरटीआईएनएचआरसी आदिजहां पर हम जा सकते हैं और अपनी बात कह सकते हैं। लेकिन हमें इस नये साम्राज्य से लड़ने के लिए नये तरह के औजार (सोच) को ईजाद करना होगा।


उन्होंने एक आंकड़े का जिक्र करते हुए कहा कि देश में सरकारी नौकरियां कम होती जा रही हैंबढ़ रही है तो एक ही जगह मिलिट्री में। उन्हांेने चिंता व्यक्त की कि जब मिलिट्री का निजीकरण होगा तो इस देश का क्या होगाहमें बड़े उद्योग घराने से सीधे मुकाबला करना होगाजो कि सरकार के वाया नहीं हो सकता। यह मुकाबला किस तरह से होगायह सोचने कि जरूरत है।
गौतम जैसे लोग एक दूरदृष्टि रखते हैं और आने वाले वक्त में जनता के अन्दर चेतना का संचार करते हैंउनमें नई तरह की सोच डालने का प्रयास करते हैं। ऐसी सोच और दृष्टि राज्यसत्ता और चंद धन्नासेठों को नागवार गुजरी है जिसका परिणाम  है कि ये लोग 15 दिन से अधिक समय से अपने घर में बंदी की तरह रह रहे हैं।  
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