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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

27 सितंबर, 2018

राहुल गांधी के नाम खुला पत्र

उदय चे


श्रीमान राहुल गांधी,
अध्यक्ष, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस।
     
 आज भारत बहुत ही नाजुक दौर से गुजर रहा है। हिंदुत्वादी ताकतो के हमले मुस्लिमो, आदिवासियों, दलितों व मजदूर-किसानों पर बढ़ते जा रहे है। इन हमलों के खिलाफ आवाज उठाने वाले कलाकारों, लेखकों, नाटककारों, छात्रों, बुद्विजीवियों की भी आवाज दबाने के लिए दमन जारी है।
आज आप भारत की राजनीति के विपक्ष के मजबूत चेहरे हो। आपको भारत का एक बड़ा तबका हिन्दुतत्ववादी सत्ता के खिलाफ लड़ने वाला योद्धा के तौर पर देखता है। उनको लगता है कि आप हिन्दुतत्व की सत्ता के हमलों से उनको बचाओगे।  उनको लगता है कि आप जिस पार्टी के मुखिया हो उस पार्टी का भारत की आजादी के दौर में ऐसे नेताओं ने नेतृत्व किया है जिनका धर्मनिरपेक्षता, बहुलतावाद व स्वायत्तता के पक्ष में एक मजबूत पक्ष रहा है। वही उनका साम्प्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता, जातिय कट्टरता के खिलाफ भी मजबूत पक्ष रहा है।


आज जो भारत का धर्मनिरपेक्ष कानून है, अलग-अलग राष्ट्रीयताओ, संस्कृतियो, क्षेत्रो को जो स्वायतताये है। उसके पीछे आम जनमानस का बहुत बड़ा संघर्ष है। उस संघर्ष ने साम्प्रदायिक व फासीवादी ताकतों को नकारते हुए देश का नेतृत्व कॉग्रेस जो उस समय की आम जनमानस की पार्टी थी को दिया। कॉग्रेस में उस समय महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू नेतृत्व कारी भूमिका में थे। आप उन दोनो नेताओं के वारिस हो। गांधी सरनेम आपके परिवार को महात्मा गांधी का ही दिया हुआ है। भारत का एक बड़ा तबका जाने-अनजाने आपमें नेहरू और महात्मा गांधी को देखता है।
महात्मा गांधी जी धार्मिक होते हुए भी साम्प्रदायिकता, फासीवाद व कट्टर हिन्दुतत्व के खिलाफ एक महान योद्धा थे। इसी कारण हिंदुत्त्ववादी आंतकवादियो ने उसकी जान ले ली। वही जवाहर लाल नेहरू जो उस समय के प्रगतिशील आंदोलन के अगुवा दस्ते के रूप में मजबूती से खड़े थे।
शहीद-ऐ-आजम भगत सिंह अपने लेख "Different views of new leaders" में उस समय के नेताओ के बारे में लिखते हुए जवाहर लाल नेहरू के बारे में लिखते है कि-

पंडित जवाहर लाल नेहरू कहते है कि-

 “Every youth must rebel. Not only in political sphere, but in
social, economic and religious spheres also. I have not much use
for any man who comes and tells me that such and such thing
is said in Koran, Every thing unreasonable must be discarded
even if they find authority for in the Vedas and Koran.”

पंडित जी एक स्थान पर कहते है कि -

“To those who still fondly cherish old ideas and are striving to
bring back the conditions which prevailed in Arabia 1300 years
ago or in the Vedic age in India. I say, that it is inconceivable
that you can bring back the hoary past. The world of reality will
not retrace its steps, the world of imaginations may remain
stationary.”

आजादी के बाद सत्ता कैसी हो -

“They should aim at Swaraj for the masses based on socialism. That
was a revolutionary change with they could not bring out without
revolutionary methods...Mere reform or gradual repairing of the existing
machinery could not achieve the real proper Swaraj for the General
Masses. "Different views of new leaders" भगत सिंह

         देश की सत्ता की बागडोर हाथों में आने के बाद नेहरू वो सब नही कर पाए जो उनके विचार थे। इसके पीछे सत्ता के लिए विचारो से समझौता भी हो सकता है। लेकिन फिर भी उन्होंने बहुत से मुद्दों पर मजबूती से संघर्ष किया जिसकी झलक आपको सविधान में दिखती है।
लेकिन क्या उनके वारिसों ने उनके विचारों को आगे बढ़ाया।
उनके वारिस के तौर पर पूर्व प्रधान मंत्री आपकी दादी व आपके पिता जी ने अपनी सत्ता बनाये रखने के लिए हिन्तुत्व के साथ पिछले दरवाजे से गठजोड़ ही किया। दोनो ने नरम हिन्तुत्व की राजनीति के तौर पर अपने आपको पेश किया।
साम्प्रदायिक सिख दंगे हो या पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी द्वारा राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने व रामराज्य लाने की घोषणा साफ-साफ नेहरू के विचारों के एक दम उल्ट थी। ऐसे ही आज आप नरम हिंदुत्व के एजेंडे के रास्ते पर हो। अपने आपको हिन्दू साबित करने के लिए आप कभी सोमनाथ मंदिर जाते हो तो कभी कैलास मानसरोवर जाते हो ताकि भाजपा द्वारा आपकी बनाई हिन्दू विरोधी छवि को आप नकार सके।
मै अब दोबारा आपसे मुखातिब होता हूँ। आप अपने आपको सैद्धान्तिक राजनीतिज्ञ के तौर पर पेश करते हो। आपने अपने आपको कॉग्रेस की तरफ से भारत का प्रधान मंत्री का दावेदार भी पेश किया है।
लेकिन मेरा आपसे सवाल है कि आप वैचारिक तौर पर जवाहर लाल नेहरू के साथ खड़े हो या अपनी दादी व पिताजी के साथ खड़े हो।
क्या आप ईमानदारी से स्वीकार कर सकते हो कि पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी द्वारा देश मे लगाया आपातकाल संविधान का गला घोंट कर लोकतंत्र की हत्या था। क्या आप सिख दंगो के लिए ईमानदारी से माफी मांगते हुए स्वीकारोगे की उस समय बहुत बड़ी गलती हुई थी। जिसकी भरपाई करना नामुकिन है लेकिन भविष्य में ऐसी किसी भी घटना के समर्थन में मै नही खड़ा होऊंगा।  आज आप फासीवादी सत्ता द्वारा गिरफ्तार वामपन्थी विचारकों की गिरफ्तारी का विरोध करते हो लेकिन क्या आप ये भी स्वीकार करोगे की इन्ही 5 में से 4 विचारकों को आपकी सरकार निर्दोष होते हुए वर्षों जेल में सड़ा चुकी है। 90% अपंग प्रोफेसर GN साईं हो या कोबाड गांधी हो जिनको आपकी सरकार ने सिर्फ जेल में इस लिए डाल दिया क्योकि वो मेहनतकश आवाम की बात कर रहे थे। कामरेड आजाद जो माओवादियों की तरफ से आपकी सरकार से शांति वार्ता की तरफ बढ़ रहे थे जिनको आपकी सरकार ने फेक एनकाउन्टर में मार दिया।
क्या आप स्वीकारोगे की जम्मू & कश्मीर की स्वायत्तता को आपकी पार्टी की सरकारों ने कमजोर किया है व देश के अलग-अलग हिस्सों में स्वायत्तता के लिए उठे आंदोलनों को सत्ता ने दमन किया है। क्या आप मानोगे की आपकी पार्टी की सरकारों ने पूंजीपतियों की जल-जंगल-जमीन की अंधी लूट में शामिल होते हुए आदिवासियों का बड़ी निर्दयता से दमन किया। आपकी पार्टी की गलत नीतियों के कारण लाखो किसान आत्महत्या करने पर मजबूर हुए। क्या आप स्वीकारोगे की आपकी सरकारों के समय लाखो करोड़ के घोटाले हुए। क्या स्वीकारने की हिम्मत है आपमे की आपकी पार्टी की ही गलत नीतियों के कारण भारत की जनता ने विकल्प के तौर पर फासीवादियों को सत्ता सौंप दी।

एक पूंजीवादी राजनीतिज्ञ के तौर पर बहुत मुश्किल है ये सब स्वीकारना, लेकिन एक इंसान के लिए नामुकिन नही है ये सब, इतिहास के पन्ने ऐसे उदाहरणों से भरे पड़े है। सम्राट अशोक जिसने सत्ता के नशे में कितना रक्तपात बहाया इतिहास गवाह है लेकिन जब महात्मा बुद्ध के विचार ने उसको प्रभावित किया तो उसने अपने आप पर ग्लानि हुई और उसी दिन उसने अपने आपको बदल लिया उसके बाद उसने जो मानवता के लिए कार्य किये उसका भी इतिहास गवाह है। उसी कार्यो ने सम्राट अशोक को महान सम्राट अशोक बनाया।
मुझे लगता है कि आप भी ये सब कर सकते हो। हो सकता है इससे आपको बहुत ज्यादा राजनीतिक नुकशान भी हो जाये। लेकिन अगर आप ईमानदारी से ये सब स्वीकारते हो और भविष्य में मेहनतकश आवाम के लिए लड़ने, साम्प्रदायिकता, साम्राज्यवाद, फासीवाद के ख़िलाफ़ लड़ने की बात करते हो तो आप भारत ही नही दुनियां की मेहनतकश व पीड़ित आवाम के सच्चे हीरो साबित होंगे। एक इंसान के लिए इससे न कोई बड़ी उपादी होगी और न ही कोई बड़ा पद होगा।
०००

  उदय चे का एक लेख और नीचे लिंक पर पढ़िए

भारत बंद: एक मूल्यांकन
उदय चे
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/04/blog-post_7.html?m=1



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