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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

07 सितंबर, 2015

कविता : बद्रीनारायण

॥ मत होना उदास ॥

कुछ जून ने बुना
कुछ जुलाई ने
नदी ने थोड़ा साथ दिया
थोड़ा पहाड़ ने
बुनने में रस्सी मूँज की।

प्रभु की प्रभुताई बाँधी जायेगी
यम की चतुराई
हाथी का बल
सोने-चाँदी का छल बाँधा जायेगा
बाँधा जायेगा
विषधर का विष

कुछ पाप बाँधा जायेगा
कुछ झूठ बाँधा जायेगा

रीति तुम चुप रहना
नीति मत होना उदास।

॥ आप उसे फोन करें ॥

आप उसे फोन करें
तो कोई जरूरी नहीं कि
उसका फोन खाली हो
हो सकता है उस वक्त
वह चाँद से बतिया रही हो
या तारों को फोन लगा रही हो

वह थोड़ा धीरे बोल रही है
संभव है इस वक्त वह किसी भौंरे से
कह रही हो अपना संदेश
हो सकता है वह लंबी, बहुत लंबी बातों में
मशगूल हो
हो सकता है
एक कटा पेड़
कटने पर होने वाले अपने
दुखों का उससे कर रहा हो बयान

बाणों से विंधा पखेरू
मरने के पूर्व उससे अपनी अंतिम
बात कह रहा हो

आप फोन करें तो हो सकता है
एक मोहक गीत आपको थोड़ी देर
चकमा दे और थोड़ी देर बाद
नेटवर्क बिजी बताने लगे
यह भी हो सकता है एक छली
उसके मोबाइल पर फेंक रहा हो
छल का पासा

पर यह भी हो सकता है कि एक फूल
उससे काँटे से होने वाली
अपनी रोज रोज की लड़ाई के
बारे में बतिया रहा हो
या कि रामगिरि पर्वत से
चल कोई हवा
उसके फोन से होकर आ रही हो।
याकि चातक, चकवा, चकोर उसे
बार बार फोन कर रहे हों

यह भी संभव है कि
कोई गृहणी रोटी बनाते वक्त भी
उससे बातें करने का लोभ संवरण
न कर पाये
और आपके फोन से उसका फोन टकराये
आपका फोन कट जाये

हो सकता है उसका फोन
आपसे ज्यादा
उस बच्चे के लिए जरूरी हो
जो उसके साथ हँस हँस
मलय नील में बदल जाना चाहता हो
वह गा रही हो किसी साहिल का गीत

या हो सकता है कोई साहिल उसके
फोन पर, गा रहा हो
उसके लिए प्रेमगीत
या कि कोई पपीहा
कर रहा हो उसके फोन पर
पीउ-पीउ
आप फोन करें तो कोई जरूरी
नहीं कि
उसका फोन खाली हो।

         ॥सपने॥

मुझे मेरे सपनों से बचाओ

न जाने किसने डाल दिए ये सपने मेरे भीतर
ये मुझे भीतर ही भीतर कुतरते जाते हैं

ये धीरे-धीरे ध्वस्त करते जाते हैं मेरा व्यक्तित्व
ये मेरी आदमीयत को परास्त करते जाते हैं

ये मुझे डाल देते हैं भोग के उफनते पारावार में
जो निकलना भी चाहूँ तो ये ढकेल देते हैं

ये मेरी अच्छाइयों को मारते जाते हैं मेरे भीतर
ये मेरी संवेदना, मेरी मार्मिकता, मेरे पहले को हतते जाते हैं
ये मुझे ठेलते जाते हैं एक विशाल नर्क में
मैं चीखता हूँ जोर से
आधी रात

॥ एक कथा ॥

अपने प्रिय को सुनाता हूँ एक कथा
जैसे एक बढ़ई गढ़ता है लकड़ी को
रच देता है काठ का घोड़ा
एक जादूगर आता है और उसे छू लेता है
सजीव हो उठता है काठ का घोड़ा
एक राजकुमार कसता है उस पर जीन
और नीले आकाश में उड़ जाता है
कितने भाग्यशाली हैं हे प्रिय
काठ का घोड़ा, राजकुमार और नीला आकाश
उनसे भी भाग्यशाली है हे प्रिय
लकड़ी को जोड़कर नया संसार रचता
वह बढ़ई
काश मैं भी तुम्हें रच पाता,
तुम एक फूल होती जिसमें खिला होता
मेरा प्यार
तुम सावन की बारिस होती
जिसमें बरसता रहता प्यार
तुम ब्रह्मावर्त से आने वाली मलयनील
होती
जिसमें
महकता रहता प्यार
तुम वो नदी होती
जिसमें छल-छल मचलता होता मेरा प्यार,

मैं कदली बन में खोया
अकेला ढूँढ़ता हूँ तुझे

�� परिचय

जन्म : 5 अक्टूबर 1965, भोजपुर, बिहार

भाषा : हिंदी, अंग्रेजी

विधाएँ : कविता, सामाजिक इतिहास

मुख्य कृतियाँ

कविता संग्रह : सच सुने कई दिन हुए, शब्दपदीयम, खुदाई में हिंसा
सामाजिक इतिहास : लोक संस्कृति में राष्ट्रवाद, उपेक्षित समुदायों का आत्म-इतिहास, ‘सन सत्तावन की लोक स्मृतियाँ, लोककथाएँ, लोकगीत एवं छायाचित्र,’ लोक संस्कृति और इतिहास, The making of the Dalit public in North India: Uttar Pradesh, 1950- present, Fascinating Hindutva -Saffron Politics and Dalit Mobilisation, Women Heroes and Dalit Assertion in North India, Multiple Marginalities: An Anthology of Identified Dalit Writings, Documenting Dissent: Contesting Fables, Contested Memories and Dalit Political Discourse,
संपादन : दलित वैचारिकी की दिशाएँ, प्रयाग : अतीत, वर्तमान और भविष्य, साहित्य और सामाजिक परिवर्तन, Rethinking Villages

सम्मान

भारत भूषण पुरस्कार, बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान, शमशेर सम्मा
न, राष्ट्र कवि दिनकर पुरस्कार, स्पंदन सम्मान, केदार सम्मान 

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000 बद्रीनारायण
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टिप्पणियाँ:-

ब्रजेश कानूनगो:-
आप उसे फोन करें कविता कई आत्मीय और संवेदनशील दृश्यों और अनुभूतियों से साक्षात्कार करवाती है।अच्छी कवितायेँ।

प्रज्ञा :-
बद्रीनाथ जी की कविताएँ जीवन के छोटे छोटे दृश्य रचकर सम्वेदना की भूमि पर सपने खिला देती हैं। समाज में सपने भले रोंदे जाने को अभिशप्त हों अभी बाकी है फोन पर बातें और बढ़ई का बनाया घोडा।

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