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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

07 मार्च, 2018

असगर वजाहत की कहानियां

मूर्ति संवाद

1.
लेनिन की मूर्ति तोड़ तो दी गई लेकिन फिर सवाल पैदा हुआ कि उसे कहां फेंका जाए।काफी बहस होती रही। हील - हुज्जत होती रही। जब कुछ तय न पा सका तो लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने कहा, मुझे वहीं फेंक दो जहां हज़ारों साल से टूटी हुई मूर्तियां फेंकी जाती रही हैं।


2.
लेनिन की मूर्ति तोड़ तो दी गई लेकिन फिर बहस होने लगी की मूर्ति किसने तोड़ी है। सब लोग अपना अपना दावा पेश करने लगे । किसी ने कहा, मैंने तोड़ी है ।किसी ने कहा, मैंने तोड़ी है। बड़ी बहस शुरू हो गई जो लात - जूते में बदल गई । क्योंकि लेनिन की मूर्ति तोड़ने वाले का शानदार 'कैरियर' सामने था।
जब यह तय न हो पाया कि लेनिन की मूर्ति किसने तोड़ी है तो लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने कहा, तुम लोगों ने नहीं, मेरे लोगों ही ने मेरी मूर्ति तोड़ी है।

3.
लेनिन की मूर्ति जब तोड़ी जा रही थी तो मूर्ति के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई ।कुछ देर बाद मूर्ति हंसने लगी।
तोड़ने वालों को बड़ी हैरानी हुई । उन्होंने  पूछा, आप क्यों हंस रहे हैं? आपको तो तोड़ा जा रहा है।
मूर्ति ने कहा, तुम लोग मेरी पसंद का काम कर रहे हो।
तोड़ने वालों ने कहा, कैसे?
लेनिन बोले , मैं जीवन भर  यही करता रहा हूं।

4.
लेनिन की मूर्ति ने अपने तोड़ने वालों से सवाल किया।
मूर्ति ने कहा, तुम लोग किसकी मूर्ति तोड़ रहे हो?
लोगों ने कहा, लेनिन की ।
मूर्ति ने कहा, मेरा पूरा नाम क्या है जानते हो?
तोड़ने वालों ने कहा, अरे हमें अपने-अपने नाम नहीं मालूम, आपका नाम क्या जानेंगे।



5.
लेनिन की टूटी हुई मूर्ति ने तोड़ने वालों से पूछा तुम लोग सिर्फ  तोड़ते हो या या कुछ जोड़ भी सकते हो ?
उन लोगों ने कहा, जोड़ने का काम हमारा नहीं है ।
मूर्ति ने पूछा,  जोड़ने वाले कहां हैं?
तोड़ने वालों ने जवाब दिया, वे उधर बैठे हैं।
- क्यों उधर क्यों बैठे हैं ? मूर्ति ने पूछा
तोड़ने वालों ने कहा,  हमने इतना तोड़ दिया है  कि अब उनकी समझ में नहीं आ रहा कि क्या क्या जोड़ें।

6.
मूर्ति ने तोड़ने वालों से पूछा,  तुम मूर्ति के अलावा और क्या-क्या तोड़ सकते हो ?
तोड़ने वालों ने कहा,  बहुत कुछ तोड़ सकते हैं।  जिसे भी ना पसंद करते हैं, जो हमें पसंद नहीं है उसे हम तोड़ देते हैं।  बड़ी-बड़ी इमारतें तोड़ देते हैं।  जिंदा लोगों को तोड़ देते हैं। और तो और हम मुर्दा लोगों को तोड़ देते हैं।  हमसे अच्छा यह काम और कोई नहीं कर सकता।
मूर्ति ने पूछा, क्या तुम  जोड़ना भी जानते हो?
तोड़ने वालों ने कहा, ये क्या होता है?

7.
मूर्ति ने अपने गिराने वालों से पूछा, यह बताओ क्या  संसार के दूसरे देशों में भी मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं?
मूर्ति गिराने वाले प्रसन्न हो गए ।
उन्होंने कहा, यह पवित्र काम तो सारे संसार में हो रहा है ।
मूर्ति ने पूछा, कौन कौन कर रहा है?
मूर्ति गिराने वालों ने कहा, जो जो कर रहे हैं, सब हमारे भाई हैं।


8.
मूर्ति तोड़ने वालों ने मूर्ति से पहला सवाल किया, तुम्हें कोई बचाने क्यों नहीं आ रहा ?
मूर्ति ने जवाब दिया, अगर वे अपने आपको बचा पाएंगे तो मुझे बचाने आएंगे।

9.
मूर्ति ने अपने तोड़ने वालों से पूछा, आप लोगों को मुझ से इतनी घृणा थी तो आपने मुझे पहले क्यों नहीं तोड़ा?
मूर्ति तोड़ने वालों ने कहा,  विरोध का डर था।
मूर्ति ने पूछा, आप विरोध को पसंद नहीं करते?
तोड़ने वालों ने कहा, बिल्कुल नहीं हम विरोध और विरोधियों को पसंद नहीं करते। हम वीर हैं। हम अपनी शक्ति वहीं दिखाते हैं जहां कोई विरोध नहीं होता।

10.
लेनिन की मूर्ति ने पूछा, तुम लोग मूर्तियों के अलावा और क्या-क्या तोड़ोगे?
उन्होंने कहा, हम तोड़ने में एक्सपर्ट हैं । जो चाहेंगे तोड़ देंगे।
लेनिन की मूर्ति ने कहा, तुम सब कुछ तोड़ सकते हो लेकिन लोगों का हौसला नहीं तोड़ सकते।

असग़र वजाहत की कहानियां

1 टिप्पणी:

  1. मूर्ति ने अपने तोड़ने वालों से पूछा, आप लोगों को मुझ से इतनी घृणा थी तो आपने मुझे पहले क्यों नहीं तोड़ा?
    मूर्ति तोड़ने वालों ने कहा, विरोध का डर था।
    मूर्ति ने पूछा, आप विरोध को पसंद नहीं करते?
    तोड़ने वालों ने कहा, बिल्कुल नहीं हम विरोध और विरोधियों को पसंद नहीं करते। हम वीर हैं। हम अपनी शक्ति वहीं दिखाते हैं जहां कोई विरोध नहीं होता। behad zaroori post

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