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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

10 सितंबर, 2018

विविध

पत्थरों और लोहे पर सपने साकार करता कलाकार

संदीप नाईक

ये है नीरज अहिरवार, उम्र 38 वर्ष, भोपाल से चित्रकला में मास्टर डिग्री और रचनात्मक व्यक्तित्व -कला के लिए समर्पित, बीना के रहने वाले नीरज अब कला नगर भोपाल के हो गए है और यही साधनारत है


नीरज अहिरवार


भदभदा रोड पर एक खुले मैदान में अपना काम करते है, कड़े और अबोले पत्थरों को आकार देकर दुनियाभर में चर्चित बना देते है  कलाकृति मानो बोल पड़ती हो, यह एकाध बीघा में फैला नवनिर्मित पार्क है जो कुशा भाऊ ठाकरे जी के नाम पर है, यहां झुग्गियां थी और नीरज कहते है कि झुग्गियों में जुआ, अवैध शराब आदि गलत काम होते थे इसलिए उन्हें तोड़कर यह पार्क विकसित किया गया है, पार्क में लगी स्व कुशा भाऊ ठाकरे की प्रतिमा भी नीरज ने बनाई है

दो दिन भोपाल में था तो इनके काम के बारे मे पता चला, मित्रों के साथ कल सुबह इनका काम देखकर हैरानी हुई और खुशी भी

इन दिनों ये एक घोड़े पर काम कर रहें हैं पांच टन लोहे को तोड़ मोड़कर और मोल्ड करके एक विशाल घोड़े को इन्होंने तैयार किया है जो लगभग तैयार है और भोपाल में एम्स के नजदीक किसी चौराहे पर यह जल्दी ही स्थापित किया जाएगा, इस घोड़े को इस तरह से लगाया जाएगा मानो यह एक दीवार को तोड़कर पूरे उद्दाम वेग से बाहर आ रहा है दीवार भी टूटी हुई होगी और प्रचंड वेग से आता यह घोड़ा अपने जोश और ताकत से बाहर की ओर कूदता दिखाई देगा यह शानदार काम स्मार्ट सिटी भोपाल में नगर निगम द्वारा प्रायोजित है जिसे पूरा करने मव नीरज को छह माह लगे है


नीरज अहिरवार, संदीप नाईक और साथी

नीरज मूल रूप से चित्रकार है पर बजाय केनवास के पत्थरों पर अपनी अभिव्यक्ति को उकेरना ज्यादा पसंद करते है , राजस्थान से लेकर दूरदराज के क्षेत्रों से भारी पत्थर लाकर वे उन्हें अपनी साधना और मेहनत से आकार देते है, कल उन्होंने बताया कि इस कार्य में वे कई परम्परागत कारिगरों की मदद भी लेते हैं और युवाओं को कौशल सीखाते हुए उन्हें लगभग एक वर्ष तक आजीविका भी उपलब्ध कराते है

वे कहते है कलाओं के संवर्धन और संरक्षण और फैलाव का काम समाज का है और राज्याश्रय से क्षणिक आर्थिक मदद मिल सकती है परंतु कलाओं को प्रोत्साहित करना, बच्चों युवाओं और लोगों में कलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करने का बड़ा काम कलाकारों और समाज का ही है

बहरहाल नीरज को बधाई और शुभेच्छाएँ
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