image

सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

31 जनवरी, 2019

लेख:

उत्तर कोरिया-रहस्य रोमांच से भरी राजनीति का रक्तरंजित इतिहास
————————————————————————
                           
 जसबीर चावला 


कोरिया प्रायद्वीप पर जापान का शासन १९१० से रहा था.१९४५ में द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया.कोरिया दो हिस्सों में बाँटा गया.उत्तर में तात्कालिक रूप से सोवियत संघ और दक्षिण में संयुक्त राष्ट्र ने सत्ता संभाली.दोनों हिस्सों के पुनर्मिलन पर अनेक बार वार्ताएँ हुई पर विफल रही.अंत: में १९४८ दो अलग-अलग सरकारें बनी,उत्तरी क्षेत्र के कोरिया में 'समाजवादी लोकतांत्रिक जनवादी गणराज्य' और दक्षिण में 'कोरिया का पूंजीवादी गणराज्य'.





बँटवारे के बाद जल्दी ही उत्तर कोरिया नें दक्षिण कोरिया पर सैन्य आक्रमण कर दिया.यह युद्ध १९५० से १९५३ तक चला,जो इतिहास में 'कोरिया युद्ध' के नाम से जाना जाता है.लंबे युद्ध के बाद दोनों के मध्य युद्ध विराम हो गया.हाँलाकि किसी शांति समझोते पर हस्ताक्षर नहीं किये गये.आज तक दोनों देशों के बीच जबरदस्त तनातनी रही है और दोनों तरफ सेनाएँ सीमा पर मुस्तेद हैं.

उत्तर कोरिया स्वयँ को एक आत्मनिर्भर समाजवादी राज्य मानता है,जहाँ औपचारिक रूप से चुनाव होते हैं,लेकिन सच तो यह है कि देश किम इल-सुंग और केवल उनके परिवार के द्वारा शासित एक देश है.सभी संस्थाओं पर उनके ही परिवार का सतत क़ब्ज़ा रहा है.'श्रमिक पार्टी'और 'कोरिया के पुनर्मिलन के लिए बने डेमोक्रेटिक फ्रंट' पर उनका ही क़ब्ज़ा है.सत्ता का सारा ताना बाना किम परिवार के आभा मंडल को महिमा मंडित करने का रहा है.उनके शब्द ही कानून है.उत्तर कोरिया में मानवाधिकारों का उल्लंघन आम हैं.वहाँ ९५ लाख सक्रिय,आरक्षित और अर्धसैनिकों की बड़ी फौज है,जिसमें १२ लाख से अधिक सक्रिय सैनिक है.चीन,अमेरिका और भारत के बाद यह दुनिया की चौथी सबसे बड़ी है सेना है.उत्तर कोरिया के पास परमाणु हथियार हैं और यह देश आये दिन अंतरमहाद्विपीय बेलेस्टिक मिसाईलों को दाग कर सारे संसार में सनसनी फैलाता रहा है.

उत्तरी कोरिया पर किम वंश का तीन पीढ़ियों से शासन है.पहले नेता किम इल-सुंग ने १९४८ में सत्ता संभाली.उनकी मृत्यु बाद पुत्र किम जांग-इल १९९४ में और उसकी मौत के बाद उसका बेटा किम जोंग-उन २०११ से सत्ता पर काबिज हैं. किम जाँग-उन से कुछ महिनों पहले सिंगापुर में अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प और दक्षिण कोरिया की बातचीत हुई है.इस बातचीत से कोरिया प्रायद्वीप के बीच चली आ रही कलह के सुलझनें के आसार हैं.रासायनिक-आणविक हथियारों के नष्ट करनें की मंशा से न केवल अमेरिका से संबंध सुधरेंगे बल्कि संसार में भी शांति का आग़ाज़ होगा.

किम इल सुंग के शासन के दौरान हमारे देश के समाचार पत्रों में पूरे पृष्ठ के प्रचारात्मक विज्ञापन छपा करते थे.किम ख़ानदान के तीनो दादा,पुत्र और पोते नें अक्सर संसार को अपनी कई हैरत अंगेज़ हरकतों से चौंकाया है.तीनों व्यक्ति वादी रहे हैं और सत्ता में अधिनायक बने रहनें के लिये अनेक दुस्साहसी कारनामें किये हैं.यहाँ सत्ता के लिये हत्या,टार्चर,जेल में डालना,अपहरण खूब हुए हैं.

बात करते हैं किम ख़ानदान की कुछ चर्चित घटनाओं की. १९६६ में किम जांग-इल अपनें पिता के शासन काल में उत्तर कोरिया के पब्लिसिटी-प्रापेगण्डा विभाग का प्रमुख और मोशन पिक्चर एंड आर्ट डिवीज़न का निदेशक बना.अपनें पिता किम इल-सुंग की कथित फिलासफी को उभारनें के लिये उसनें कला के हर रूप का खूब इस्तेमाल किया.लेखक आर्मस्ट्रांग की पुस्तक 'टायरेनी ऑफ़ द वीक: नॉर्थ कोरिया एंड द वर्ल्ड १९५०-१९९२' में लिखा है कि किम जांग-इल उत्तर कोरियाई की हर विधा को ऐसी दिशा में ले गया जिसे विशेष रूप से उसके पिता की प्रशंसा करने के लिए ही डिज़ाइन किया गया था.वहाँ फ़िल्मे मात्र प्रचार फ़िल्में ही बन रही थी.किम जाँग-इल को लगा कि कुछ अंतरराष्ट्रीय स्तर की फ़ीचर फिल्में बनना चाहिये.उसके पास 'वीसीआर' पर चलने वाली १५००० विडीयो केसट का ज़ख़ीरा था जिनमें हॉलीवुड की भी ढेरों चर्चित केसट थी.

वह 'जेम्स बाँड' और उसकी फिल्मों का दीवाना था,और जेम्स बाँड जैसे कारनामें करने के लिये बाँड का ही तरीक़ा अपनाया.उसनें दक्षिण कोरिया के प्रसिद्ध फिल्म निदेशक शिन सांग-ओक और उसकी खूबसूरत अभिनेत्री पत्नी चोई इन-हे के अपहरण का प्लान बनाया.दक्षिण कोरिया में शिन दंपत्ति का 'शिन फिल्म स्टूडियो' था जहाँ ६० के दशक में कई प्रसिद्ध फिल्में बनी.

शिन की अभिनेत्री पत्नी 'चोई इन-हे' उन दिनों हांगकांग में फिल्म बना रही थी.२२ जनवरी १९७८ को उसका अपहरण किम जाँग-इल के एजेंटों द्वारा हांगकांग से कर उसे उत्तरी कोरिया के नाम्पो हार्बर ले आये.उसे एक आलिशान विला में रखा गया.एक शिक्षक उसे किम इल-सुंग की फिलासफी,उनके कथित जीवन दर्शन को पढ़ाता था.चोई को किम इल सुंग से जुड़े सभी कर्मस्थलों-संग्रहालयों में ले जाया गया.किम जांग-इल उसे फिल्मों, ओपेरा,संगीत,और पार्टियों में ले गया.चोई से बेहतर फिल्में बनानें के लिये राय माँगी.चोई जानती थी कि हांगकांग से उसका अपहरण उसके पति शिन को भी उत्तरी कोरिया लानें के लिया किया गया है.

चोई के गायब हो जाने के बाद उसरे पति शिन सांग-ओक ने उसकी गहन खोज की.उसकी एक और पत्नी भी थी.चोई की कोई खबर न मिलनें पर छे महिनों बाद उसनें उसे तलाक दे दिया.शिन उन दिनो अपनी दक्षिण कोरिया सरकार के साथ भी संघर्ष कर रहा था क्योंकि सरकार ने 'शिन स्टूडियो' का फिल्म लाइसेंस निरस्त कर दिया गया था.

अपनी फिल्मों को पुन:विश्व पटल पर लानें के लिये शिन दुनिया की यात्रा पर निकला.१९८० में शिन हांगकांग में था.वहाँ से उसका भी अपहरण कोरियाई जासूसों द्वारा कर के उसे भी उत्तरी कोरिया लाया गया.उसे भी भव्य आवास और सारी सुविधाएँ दी गई लेकिन उसे उसकी पत्नी चोई के बारे में कुछ नहीं बताया.शिन ने दो बार भागने का प्रयास किया.उसे कारावास में डाल दिया गया.२३ फरवरी,१९८३ को उसे  जेल से रिहा किया गया और ७ मार्च,१९८३ को किम जोंग-इल द्वारा आयोजित एक पार्टी में चोई के अपहरण के ५ साल बाद शिन और चोई दोनों मिले.

किम जोंग-इल नें दोनों को वैश्विक स्तर की फ़िल्में  बनाने के निर्देश दिए.शिन के लिये 'प्योंगयांग' के 'चॉसन फिल्म स्टूडियो' के दरवाजे खोल दिये गये.किम जानता था कि उनकी प्रचारात्मक फिल्मों से अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के दर्शक प्रभावित नहीं होते.उसनें दंपत्ति को उन विषयों का चयन करने की अनुमति दी जो विदेशों में स्वीकार्य हों.शिन ने अक्टूबर १९८३ को काम करना शुरू किया.उन्हें चेकोस्लोवाकिया के एक फिल्म फ़ेस्टीवल में अपनी फिल्मों में से एक के लिए पुरस्कार मिला.किम जाँग-इस खुश हुआ.(मोगाम्बो खुश हुआ) उन्होंने किम जोंग-इल की आभा मंडित करनें के लिये एक मँहगी और अंतिम फिल्म 'पुलगासरी' बनाई जो तब कि लोकप्रिय 'गोडजिला' फिल्मों से प्रभावित थी.

शिन दंपत्ति का उत्तरी कोरिया में दम घुटता था.उन्होंने भागने का फैसला किया.किम जांग-इल उन पर खूब विश्वास करता था.उसनें उनसे १९८४ में बेलग्रेड मे उन दोनों को मिडीया को यह बताने के लिये भेजा कि वे स्वेच्छा से उत्तरी कोरिया क्यों आये हैं,और क्यों खुश हैं.

'पुलगासरी' फिल्म के बाद,किम ने उनको १९८६ में वियना भेजा.वहाँ अपने गार्ड से आँख बचाकर दोनों भाग कर अमेरिकी दूतावास चले गये और राजनैतिक शरण माँगी.अमेरिका ने दोनों को शरण दी.शिन अमेरिका जाकर वर्षों तक हॉलीवुड मे फिल्मों से जुड़े रहे.बाद में दोनों दक्षिण कोरिया लौट गये.उनके दक्षिण कोरिया लौटने पर उत्तरी कोरिया नें दावा किया कि उनके देश ने उनका अपहरण नहीं किया था.वे दोनों स्वेच्छा से अधिक धन कमाने के लालच से उत्तरी कोरिया आये थे.
उत्तर कोरिया ने एक और दुस्साहसी कारनामा दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति चुन डू-ह्वान की हत्या के षड़यंत्र का किया.९ अक्टूबर १९८३ को दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति चुन डू-ह्वान बर्मा (म्यांमार) की राजधानी रंगून की यात्रा पर गए.यात्रा में उन्हें वहाँ १९४७ में स्वतंत्र बर्मा के सँस्थापकों में से एक 'आंग सैन' की स्मृति में बने 'शहीद मक़बरे' पर  पुष्पांजलि अर्पित करना थी.राष्ट्रपति के कर्मचारी मकबरा स्थल पर वक्त से इकट्ठा होना शुरू हुए.तभी छत में छिपा कर रखे तीन बमों में से एक का जबरदस्त विस्फोट हुआ.विस्फोट से छत उड़ गई और वहाँ खड़े लोगो पर जा गिरी.इस हादसे में २१ लोगों की मौत और ४६ लोग घायल हुए.मरनें वालों में चार वरिष्ठ दक्षिण कोरियाई मंत्रियो के अलावा राष्ट्रपति के सुरक्षा सलाहकार,अधिकारी थे.तीन पत्रकारों सहित चार बर्मी नागरिक भी मारे गये.
राष्ट्रपति चुन डू-ह्वान भाग्य से ही बचे.यातायात की अव्यवस्था से उनकी कार कुछ मिनट देर से पहुँची.बिगुल वादक ने उनके आनें के वक्त अनुसार वक्त के पहले बिगुल बजा दिया और षड़यंत्र कारियों नें बिगुल सुनकर विस्फोट कर दिया.जाहिर है ये बम उत्तर कोरिया के एजेंटों द्वारा प्लांट किये थे.

उत्तर कोरिया के शासकों नें एक और घृणित कारनामा किया.२९ नवंबर १९८७ को दक्षिण कोरिया की 'कोरियन एयर फ्लाइट 858' जो बगदाद, इराक और सियोल के बीच नियमित उड़ान भरने वाली एक अंतरराष्ट्रीय यात्री उड़ान थी,उसके यात्री केबिन में दो एजेंटों ने अबू धाबी के पहले स्टॉप ओवर के दौरान विमान में डिवाइस और बम लगाये.विमान जब भारतीय सीमा अंडमान सागर के ऊपर से बैंकाक के दूसरे स्टॉप ओवर के लिये उड़ान पर था तो बम विस्फोट हो गया.इस विस्फोट में सभी १०४ यात्रियों और ११ चालक दल के सदस्य (ज्यादा दक्षिण कोरियाई नागरिक थे) मारे गये. 

बाद में विस्फोटक रखने वाले उत्तरी कोरिया के दो एजेंटों में एक महिला और एक पुरुष बहरीन में पकड़े गये.पकड़े जाने पर उन्होंने सिगरेट में छुपे सायनाइड के केप्सूल खा लिये.पुरुष की मौत हो गई लेकिन महिला किम ह्योन-हुई बच गई.किम ह्योन-हुई ने बाद में एक किताब,'द टियर्स ऑफ़ माई सोल' लिखी,जिसमें उसनें बताया कि सेना द्वारा चलाए जा रहे एक जासूसी स्कूल में उसका गहन प्रशिक्षण किया गया.मुकदमें के दौरान उसने स्वीकार किया कि उसका पूरी तरह ब्रेन वाश किया गया था.उस वक्त उत्तर कोरिया में किम उल सुन का शासन था.किम जोंग-इल जो उसका वारिस बना,यह उसकी साज़िश थी.हुई को मौत की सुनाई गई लेकिन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति रोह ताई-वू ने मृत्युदंड से बदल कर आजन्म कारावास कर दिया.उधर किम जोंग-इल ने हुई को उत्तरी कोरिया का ग़द्दार घोषित किया.

ऐसे ही उत्तरी कोरिया ने अमेरिका का एक जहाज़ 'युएसएस पुएब्लो' को २३ जनवरी १९७८ को 'रायो द्वीप'के पास गश्त करते हुए हमला कर पकड़ लिया.उसके ८३ लोगों के चालक दल को बंदी बना लिया.इस कार्रवाही में एक अमेरिकी सैनिक की मौत हो गई.कोरिया का कहना था कि यह एक जासूसी जहाज़ हे जो उसकी सीमा में अनाधिकृत घुसा है.अमेरिका कहना था कि वह पर्यावरण अनुसंधान में लगा जहाज है,खुले समुद्र में था,और कोरिया ने उस पर आक्रमण किया है.अमेरिका तब विएतनाम युद्ध में उलझा था और वहाँ राष्ट्रपति लिंडन बी जानसन थे.जहाज और चालक दल को बंदी बनाये रखनें संसार में तनाव बढ़ गया.शीत युद्ध छिड़ गया.कोरिया की तरफ चीन-रूस का ब्लाक था और अमेरिका के साथ दक्षिण कोरिया और अन्य पश्चिमी देश.
ग़ौरतलब है कि आज भी वह जहाज उत्तरी कोरिया के क़ब्ज़े में है और उसे प्योंगयांग में पॉटोंग नदी में 'विक्टोरियस युद्ध संग्रहालय' के रूप में रखा गया है.अमेरिका ने अपने इस जहाज को जहाज़ी बेड़े से औपचारिक रूप से ख़ारिज नहीं किया.उसके स्थान पर दूसरा जहाज इसी नाम का बेड़े में है.यह देखना दिलचस्प होगा कि ट्रम्प-किम जाँग-उन की किसी वार्ता में क्या कभी इस जहाज को वापस माँगा जायेगा ?



१९५३ की शांति संधि के बाद दोनों कोरियाओं के मध्य विसेन्यीकृत क्षेत्र बना.एक तरफ उत्तर कोरिया दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र की सेना,जिसमें दक्षिण कोरिया और अमेरिकन सैनिक थे.विसेन्यीकृत क्षेत्र युद्ध के दौरान बनाये बंदियों के वापस अपनें देशों में जानें के लिये 'पनमुंजम' स्थान पर एक पुल बना था.पुल से एक बार गुजर जाने के बाद वापस लौटा नहीं जा सकता था.इसे 'ब्रिज ऑफ नो रिटर्न' कहा जाता था.दोनों देशों के सैनिक अपनें अपनें क्षेत्रों की अपनी चौकियों पर मुस्तेद रहते थे.उस विसेन्यीकृत जगह पर एक ऐसा 'पापलर प्रजाति' का घना पेड़ था जो दक्षिण कोरिया को उत्तरी कोरिया की गतिविधियाँ देखने में बाधक था.उस पेड़ की अमेरिका के सैनिक कुल्हाड़ी से डालियों की छँटाई कर रहे थे तो उत्तरी कोरिया ने हमला कर अमेरिका के दो सैनिकों को मार दिया और कुल्हाड़ी छीन कर ले गये.इतिहास में इसे 'पनमुंजम एक्स मर्डर इंसिडेंट' के नाम से जाना जाता है.उत्तर कोरिया का कहना था कि इस पेड़ को किम इल-सुंग द्वारा लगाया गया है.इसे काटा नहीं जा सकता.तीसरे दिन दक्षिण कोरिया और अमेरिकी सेना ने पूरी तैयारी के साथ इस पेड़ का केवल २० फुट लंबा तना याद दिलाने के लिये छोड़कर,पूरी तरह से छँटाई कर दी.उत्तर कोरिया ने बाद में इन हत्याओं की जवाबदारी स्वीकार की.छीनी गई कुल्हाड़ी को उसने अपनें संग्रहालय में रख दिया.इस सैन्य कार्यवाही में दक्षिण कोरिया के सैनिकों में शामिल मून जेई-इन भी थे जो बाद में दक्षिण कोरिया के २०१६-१७ में राष्ट्रपति रहे.१९९७ में पेड़ के उस तनें के स्थान पर एक स्मारक बना दिया गया.
उत्तरी कोरिया के किम ख़ानदान के इतिहास में अनेकों कारनामें हैं,जिन्होने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में बहुत उथल पुथल मचाई है.देखना है कि वर्तमान राष्ट्रपति किम जाँग-उन जो २०११ से ही चर्चा में है,संसार में शांति के लिये क्या कोई सकारात्मक कदम उठाते हैं ?

०००





कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें