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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

06 दिसंबर, 2017

अनामिका चक्रवर्ती की कविताएं 




कविताएं

1

अंतिम यात्रा
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अपनी मानसिक हत्या का अनावरण कर
जब करना हो तुम्हें दैहिक आत्महत्या
तब कारण सहित एक स्पष्टीकरण पत्र लिख देना
जिससे तुम्हारी मौत के प्रश्न चिन्ह पर
बे सिर-पैर बातों की मक्खियाँ न भिन-भिनाएँ

सुनते है आत्महत्या आपराध है पाप है
परन्तु, अपराधी तो तुम अब न कहलाओगे
आत्महत्या करने की भी अब स्वतंत्रता है
और पाप करने की सजा अगले जन्म में
जन्म लेने के उपरान्त ही पाओगे
तो, अगले जन्म की बात सोचकर
क्यों इस जन्म के फैसले को कमजोर किया जाये
और मौत को गले लगाने का विचार क्यों छोड़ा जाये?

तो चलो तैयारी कुछ ऐसी की जाए
जो सांसो की रफ़्तार बढ़ाये बिना,
रक्तसंचार को रोक दें
धड़कन की लय को तोड़ दें
जो जीवन पर खींची गई,
रेखा के अंतिम छोर से,
मृत्यु के द्वार पर प्रवेश करने के मध्य
आने वाले क्षणिक समय पर,
अनायस ही जीवन को पाने के
उठती हुई असाध्य पीड़ा की अनुभुति अंश मात्र ही हो।

आत्महत्या के उपाय लागू करने से पहले ,
सोचते हुये कुछ ऐसी  बातें
किसी भ्रम में किसी मोह में न पड़ जाना
कि क्या तुम्हारे चले जाने से,
किसी का जीवन बाधित तो नहीं होगा
किसी के सर पर अनाथ का नाम तो न होगा
कोई बूढ़ा जीवित लाश बन तो नहीं जाएगा
आँखें होते हुए अंधा तो नहीं कहलाएगा
पेट चलाने की खातिर कोई बेवा,
बाजार की रौनक तो नहीं बन जाएगी
अपनी जवान भूख दबाते दबाते ,
कहीं खुद ही तो नहीं मिट जाएगी ।

हाँ, बहुत सरल उपाय है आत्महत्या करना
बिना खुद को हत्यारा बनाए,
अपनों की हत्या कर,
उन्हें जीवित छोड़ देना
किसी जन्म में उनके किये गए,
किसी पाप के प्रतिफल को इस जन्म में,
तुम अपनी मृत्यु शोक के रूप में देकर
ये उनके लिये मोक्ष का रास्ता,
तय करते हुये विदा लोगे।

चूंकि किसी के जाने से,
जीवन रुकता नहीं किसी का
इस हेतु अपनी आत्मा पर बिना कोई बोझ लिये
तुम अडिग रहो अपने फैसले पर,
आत्महत्या कायरता कैसे हो जाती है,
वरन, साहस लगता है खुद को मिटाने में
इतनी खूबसूरत दुनियाँ से असमय विदा लेने में
सारी सोच से तुम जब पार चले जाओ
और अपने प्रथम विचार पर ही थम जाओ
अंतिम यात्रा का रास्ता तय कर लेना
तब तुम स्वयं को जीवन से मुक्त कर देना
पंचतत्व में विलीन हो जाना।



2

न रहे तुम श्रेष्ठ
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तुम श्रेष्ठ थे
तुम पुरुष थे
मेरा अभिमान थे

तुम जब पिता थे, भाई थे, मित्र थे
मेरी कोख को संपूर्णता प्रदान करके
मुझे ब्रम्हाण्ड का सबसे सुंदर नाम माँ देने वाले
मेरी संतान थे।

 परन्तु स्त्री का मर्म न समझे तुम,
 कोख का कर्ज़ ना जान सके तुम,
 अभिमान का मान न रख सके,
 विश्वास और बंधन की साख न बचा सके,
 तब तुम न पुरुष रहे
 न तुम श्रेष्ठ रहे।

 बन के रह गये एक मांस का लोथड़ा
 और परिवर्तित हो गए मात्र लिंग में।

 जिसकी आँखों से स्त्रावित हुई वासना
 विचारो से स्त्रावित हुआ पाप
 और स्त्रावित होता चला गया
 देह को भोग्य समझकर
 आत्मा को नष्ट करने का लोभ।

 स्त्री को पाने की असीम लालसा लिए
 धँसते चले गए तुम कामावेश में
 जिससे जन्मता गया
 कुंठित समाज/ अविश्वास/ असुरक्षा ।

 फिर न उठ सके कभी तुम
 न रहे तुम श्रेष्ठ
 न रहे तुम पुरुष ।


महावीर वर्मा


3

नमक/रोटी
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तुम रोटियों पर सवाल करोगे
या रोटियों के जले हुए दाग़ पर सवाल करोगे
या करोगे सवाल उनके जले हुए पर
नमक छिड़कने का
हाँ सुना तो है कि गरीब की खुराक भी यही होती है
तो सवालों से क्या डरना

फिर अब तो ये सवाल भी नहीं रहे ,
बचे तुम्हारे लिए
किसी फेंके हुए पत्तल के जुठन बराबर भी
तो न रहे सवाल न रहा डर
सवाल तो अब खुरो में चले गए


4
इश्तेहार

 हर शनिवार को बैठती थी
अखबार पर नज़र गड़ाये
और पन्ना होता था
 भास्कर मैट्रिमोनी रिश्तों की शुरूआत....
अम्मा नें कभी स्कुल का मुँह तक नहीं देखा था
मगर बेटियों को पढ़ते रट्टा लगाते
देखती सुनती रही
तो न रहे अक्षर उसके लिये
 काला अक्षर भैस बराबर
सीख गई थी थोड़ा बहुत
 वह भी पढ़ना लिखना
जो उसके सबसे बड़े
 कर्ज को उतारनें के काम के लगते थे  उसको
 हर शनिवार को ढूँढती थी
 इस्तेहारो में अपनी बेटियों की ज़िंदगी
पार कर देना चाहती थी सही वक़्त पर
आखिर अपनी कोख में,
 पराये धन को जन्म जो दिया था।
इसलिये तो अपने संस्कारो को
 सूद बनाकर असल धन
 बेटी को विदा कर देना चाहती थी।


5

बोझ

रात सिर्फ अंधेरी होती है
सोने भर से नींद कहाँ आती है
बिस्तर पर एक बोझ सा पड़ा रहता है
थका मांदा सा शरीर।
छत पर टक टकी लगाये
मगर छत से पार होते हुये
आकाश के अनंत में कहीं
 खुद को ढूँढती रहती है।
चादर और तकिये की चेष्टा
उस ऊष्मा को जन्म देने की
जिसके गोद में एक नींद रात भर बसर कर ले
मगर खुद के कहीं छूट जाने की बैचेनी
रक्त को भी ठंडा कर देती है।
और फिर जमे हुये रक्त से
 जीने की ताकत को खींच कर
फिर एक सुबह खुद को ढोने के लिये
 मलकर आँखों को मसल लेती है अपने सपनों को
और सर उठाती इच्छाओं को
बांधकर कर्त्तव्य के आँचल में
फर्ज के पहलू में
फिर एक बार खुद को सौप देती है।



महावीर वर्मा


6

मृत्यु

नहीं होती मृत्यु अकस्मात्
न होती मिथ्यान कोई भ्रम होता है
जीवन में कभी कभी ये
इ्च्छा में शामिल भी होती है
मृत्यु अपूर्ण नहीं होती
न होती कोई जिद है
न इसका कोई अंत होता है न शुरूआत
न ये प्रतिद्वंदी है न प्रतिस्पर्धा करती है
इसकी जीत तय है
इस पर कोई तर्क-वितर्क नहीं हो सकता
इसे किसी उम्र ,बंधन और संबंध से
कोई मोह नहीं होता
ये न जाने जात-पात, ऊँच-नीच
बड़ी निष्ठा और आत्मविश्वास के साथ
ले जाती है हमें अपनें तय समय में
क्योंकी जानती है वह
संपूर्ण संसार में चाहे हम
सबका साथ छोड़ दें
मृत्यु का साथ कभी नहीं छोड़ते
एक बार जो साथ जाते है,
तो बस चलें ही जाते है
फिर कभी न लौटनें के लिये।
मृत्यु हत्या नहीं, दुर्घटना नहीं,
आत्महत्या नहीं और कोई आपदा भी नहीं।
मृत्यु मध्य रात्री या भोर के अंतिम क्षण का
कोई स्वप्न भी नहीं।
एक सर्व सत्य है।
मृत्यु तय होती है
मृत्यु अकस्मात् नहीं होती।

7

महानगर     

साँकल होती है शहर के दरवाजों पर
घरों में कुण्डियाँ नहीं लगी होती हैं
हर कस्बा शहर जाकर बूढ़ा हो जाता है,
जवानी पगडंडियों पर छूट जाती है।
मिट्टी के आँगन पर पड़ी दरारें
नहीं भरी जा सकती कंक्रीट से
और जहाँ भर दी जाती हैं,
वहाँ दरारें रिश्तों में पड़ी होती हैं।
नजर आता है आसमाँ गलियों सा,
जमीं पर गलियाँ,
अनाथों सी लगती है
रौनकें तो सिर्फ रातों को होती हैं यहाँ
स्ट्रीट लाईटों और गाड़ियों की हेडलईटों से।
दिन के उजाले डरते है जहाँ
खिड़कियों के अन्दर झाँकने से,
वहाँ न जाने कैसे दिन
और कैसी रातें होती हैं।

8

रात का बचा हुआ बासी खाना

बची हुई बासी रोटियाँ
और बचे हुए बासी भात के लिए
जब ताकते है गली में गाय को
और गैलरी की रेलिंग पर आते कौवों को
तो मानकर चलते हैं कि
गाय को खिलाना बड़ा पुण्य का काम है
और कौवा काला बचाएगा शनि के प्रकोप से
मन को मना ही लेते है कि मगर फिर
एक अपराध बोध से मन खिन्न हो जाता है
शर्मिंदगी से धरती पर गड़े जाते हैं
जब सारा पुण्य कमाकर
सुबह की पहली चाय के साथ
अख़बार के पहले पन्ने पर
खाली खेत के बीच में लगे पेड़ से
फाँसी में लटके किसान की तस्वीर देखतें है
और पढ़ते है फसल के नुक्सान और क़र्ज़ से परेशान
होकर मरने वालों किसानो का आँकड़ा बढ़ा
तब सारा पुण्य, पाप में बदला हुआ सा लगने लगता है।




महावीर वर्मा




तुम मिलना

तुम मिलना मुझे उन रास्तों पर कभी
जहाँ से सब के गुजर जाने के बाद
बहुत अकेला हो रास्ता
हम मिलकर बनेगे उसके पथिक ।
तुम मिलना उस स्वप्न में कभी
जहाँ सिर्फ तुम
सत्य का शिलान्यास कर सको।
तुम मिलना नदीं की उस धारा में कभी,
जहाँ चाँद बनकर
मिल सको जल के कण कण में।
तुम मिलना देवताओं की उस संसार में कभी,
जहाँ वास हो तुम्हारा,
आस्था का विश्वास के रूप में।
तुम मिलना जीवन के उस अंतिम क्षण में कभी
जहाँ मेरी मुक्ति के लिये बन सको
पवित्र शब्दों का उच्चारण ।

10

आसमानी

चखना चाहती हूँ
नीले आसमां को
क्या वो भी होता होगा
समंदर की तरह खारा।
लहरें कभी मचलती होगी वहाँ भी
चाँद के तट पर बैठकर,
छूना चाहती हूँ लहरों को।
कोई संगीत तो वहाँ भी
जरूर गुनगुनाता होगा।
नर्म रेत पर कोई
अपनें प्रेयस का नाम लिखता होगा।
अपनी उदासियों को सौपता होगा
जाती हुई लहरों को।
जो छुप जाती है चाँद के पीछे कहीं।
यादों को लपेटकर चाँदनी में
सीप का मोती बनाता होगा कोई।
खुद ही डूब जाऊँ मैं
समंदर को बाहों में समेटकर नीलें आसमां में कहीं
या चखकर, बन जाऊँ आसमानी
हाँ ,एक बार चखना चाहती हूँ
नीलें आसमां को ।
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अनामिका चक्रवर्ती की कविताओं पर नीचे लिंक पर नवनीत शर्मा की टिप्पणी पढ़िए:


https://bizooka2009.blogspot.in/2017/12/blog-post_80.html?m=1

परिचय
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नाम - अनामिका चक्रवर्ती
संप्रति -स्वतंत्र लेखन, समाज सेवा
शिक्ष- स्नातक, कम्प्युटर में पी.जी.डी.सी. ए.
लेखन - कहानी, लघुकथा, आलेख, व्यंग्य, कविता, मुक्तक आदि ।

प्रकाशित साहित्य :
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1- "धूप के राज़ महकते हैं" (एकल काव्य संग्रह)
2- विभिन पत्र-पत्रिकाओं और समाचार-पत्रों में कविता / कहानी / आलेख और
रचनायें प्रकाशित ।
दुनियाँ इन दिनों, लहक, अटूट बंधन, उमाश्री, पूर्वांचल, रेवान्त-लखनऊ,
परिकथा, शोध दिशा , सरिता, दिल्ली सेल्फी- हिन्दी साप्ताहिक,
इन्द्रप्रस्थ भारती- दिल्ली, समाज कल्याण - दिल्ली (सरकारी पत्रिका),
फिल्मी पत्रिका मिसाल रायपुर छत्तीसगढ़ ,समाचार पत्र- दैनिक भास्कर (रंस
रंग में ), नव भारत, हरीभूमि , दैनिक जागरण, पत्रिका, पीपल्स समाचार
भोपाल।
- म्युजिक एलबम - "प्रतिति लव एण्ड सपोर्ट गर्ल चाइल्ड" में गीत
- हिंदी फिल्म "मीराधा" में गीत लिखा जिसे गाया है जावेद अली एवं शाहदाज अली ने
राष्ट्रीय चैनल दूरदर्शन पर फिल्म का प्रसारण
- आकाशवाणी से रचनाओं का नियमित रूप से प्रसारण एवं घर आँगन में परिचर्चा
का प्रसारण

 सम्मान :
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- कोरिया जिला की साहित्यिक संस्था "कोरिया साहित्य व कला मंच" की अध्यक्ष
- अपने गृह नगर से 26 जनवरी को सम्मान की प्राप्ति
- गंतव्य संस्थान दिल्ली द्वारा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर "राष्ट्रीय
स्त्री शक्ति" सम्मान
- आरोग्य दर्पण उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा "मैं हूँ बेटी" सम्मान

मनेन्द्रगढ़ जिला कोरिया ,
छत्तीसगढ़ - 497446
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6 टिप्‍पणियां:

  1. अनामिका के साहित्यिक कैनवास का आकर बेहद विस्तृत है, जो उनकी अलग अलग कविताओं से पढ़ कर पता चल रहा है, और चलता रहा है :) शुभकामनायें मित्र !!

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  2. सभी रचनाएँ एक से बढ़कर एक जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम होगी .... हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ अनामिका!

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