विजय चोरमारे जी की कविताएं
मराठी से हिन्दी अनुवाद: टीकम शेखावत
विजय चोरमारे |
उसके सवाल
कविता वाली प्रेयसी सुंदर होती है
और मैं तो उतनी सुंदर नहीं
फिर कैसे लिखोगे
मुझ पर कविता?
उसके सवाल से वह
नहीं पड़ा असमंजस में
ना ही हुआ भावुक
परन्तु थोड़ा झन्ना गया भीतर से
सम्पूर्ण देह में बसा हुआ
उसका अस्तित्व!
उसे कौन सा मापदंड लगाएं, सौंदर्य का!
उसका अस्तित्व मिट जाए
तब
शायद साँसे भी थम जाएगी डर लगा उसे!
सांसों से जुड़ा हुआ है उसका अस्तित्व
कविता की खातिर
दाव पर लगाने की हिम्मत नहीं हो पाई उसकी
वह निशब्द होकर कविता सँजोता रहा
भीतर ही भीतर
उसके साथ
उसके विद्यमान रंगरूप के साथ
जीवन से बेहतर सौंदर्य
और कहीं होता है भला?
सादा सा सवाल
कितने ही
साधारण सवालों से
असमंजस में पड़ जाते हैं
और
घायल होते हैं हम......
हाउ आर यू ?
.....................
ठीक नहीं हूँ,
ऐसा कहा नहीं जाता
और
अगर कहें ठीक हूँ
तो फिर
झूठ बोलना पड़ता है
औरत
औरत
पिसना
पिसती है
औरत
पिसना
पिसती है
औरत
जलावन-सी
जलती है
दंगा- फ़साद
दंगा-फ़साद और संचारबंदी के
कितने आदि हो गए हैं लोग यहाँ के?
कल, परसों, या कभी आगे चलकर
सारे धर्म बर्खास्त हो गए
जातियां दफ़न कर दी गई
मनुष्य की पशु प्रवृत्ति गल गई
भूल गए लोग लड़ना-झगड़ना
कारण ही नहीं बचा दंगे-फ़साद के लिए तब......?
कैसे बढ़ेगा अख़बारों का सर्क्युलेशन?
न्यूज़ चैनल्स किसका कवरेज़ देंगे?
लाल किले से भाईचारे का सन्देश किसे देंगे?
इंसान खो बैठेगा अपनी पहचान
भेद न होगा इंसान और जानवर में
इस ग्लोबल विलेज में
दंगे ही हैं
आदमी और जानवर के बीच की अलग पहचान
अनेक धर्म
अनेक जाति
अनेक प्रांत
अनेक भाषा
अनेक नदियाँ
अनेक प्रश्न
सड़ते रहें
एक दंगा
कितनों का जीवन चंगा!
खैरलांजी
सूचना का विस्फोट
दुनिया का एक गाँव में तब्दील हो जाना
संचार की क्रांति
किसी के मुट्ठी में इंडिया, वन इंडिया
लेंडलाइन, वायरलेस, मोबाइल, इन्टरनेट
एम्एम्एस, ईमेल, चेटिंग
हो रहीं है चर्चाएँ और छा रहें हैं परिसंवाद
मानदेय पाने वाले
पारंपरिक ठेकेदार बैठे है एसी में!
कोई नहीं बोल रहा
किन्तु
सारे गाँव ने मिलकर किए हत्याकांड की खबर
कैसे नहीं पहुंची इतने दिनों तक
अब बदलनी चाहिए इन्साफ की कसौटी
निन्यानवे निरपराध फांसी पर चढ़ जाए
कोई बात नहीं
परन्तु, छुट न पाए एक भी गुनहगार
न्याय
किसने हटा दी है
पट्टी
न्यायदेवता के आँखों पर से
और बांध दी है
न्यायाधीश की आँखों पर?
क्या डर नहीं बिलकुल
न्यायालय की अवमानना का?
जब दलितों के घर जलाए गए
तब
गाव की बिजली गुल हो गई थी
आग लगाने वालों के चेहरे नहीं पहचान सका कोई भी
परिणाम स्वरूप,
बिना ठोस सबूतों के
छुट गए सभी निर्दोष!
शायद ये भी मान ले ,
पकड़े गए लोगों के हाथों से
मिटटी के तेल की गंध नहीं आई
घर जलाए गए थे यह तो सच है ना?
घर नहीं जलाए गए तो फिर
जो जला था वह दरअसल
क्या था?
और कैसे लगी थी आग?
जवाब का इंतज़ार करना होगा...
तब तक
पट्टी रहने दीजिये न्यायाधीश की ही आखों पर!
न्यायलय की न हो जाए अवमानना
कम से कम इसलिए कोई घर तो नहीं जलाएगा!
कितना स्कोर हुआ?
कितना हुआ स्कोर?
दोस्त,
कौन सा स्कोर चाहिये?
दंगे में मारे गए मृतकों का
बम धमाके में जो बलि चढ़ गए उनका
कुम्भ मेले की भगदड़ में मरे लोगों का
फुटपाथ पर गाड़ी तले कुचले
इस देश के
सम्माननीय नागरिकों का
आत्महत्या करने वाले किसानों का
प्रेमभंग न सह सकने वाली प्रेमिकाओं का
या फिर गर्भ में मारी गयी लड़कियों का?
कुल मिलाकर पूरा स्कोर चाहिए
या फिर
मेल-फीमेल का अलग अलग?
आकड़े सरकारी चाहिए या
एनजीओं वाले?
दरअसल कौन सा स्कोर चाहिए?
गरबा
कितना बढ़िया गरबा खेलते हैं ये लोग
स्टीरियों बंद पड़ने पर भी
नहीं टूटती इनके डांडियों की लय
इन्सान के सन्दर्भ में सारी परिकल्पनाओं
को बदल देता यह माहौल
कितने ताकतवर के हैं ये लोग
कल तक घर जलाने वाले
क़त्ल करने वाले ये हाथ
कितना बढ़िया डांडिया खेल रहें हैं
स्टिरियो बंद पड़ने पर भी
नहीं चूकती इनके डांडियों की लय
उनकी पूजा का समय नहीं पता मुझे
शायद वे भी भूल गए होंगे प्रार्थना
महाआरती की भीड़ में सब घुलमिल जाता है
आवाज़ और सही सही शब्द याद नहीं भी आए तब भी
तालियों के ताल में
घंटियों की लय में बढ़ सकते हैं आगे
दरअसल किसलिए है यह आरती
और
प्रार्थना किसके लिए?
जब भूचाल आता है
जब ढहते हैं मकान
साथ में अपने आत्मीय दफ़न होते समय
नहीं काम आती कोई भी प्रार्थना
मंदिर मस्जिद भी ढह जाते है धड़ाधड़
ढून्ढनीं पड़ती है मूर्तियां मलबे के नीचे से
एवं धर्मग्रंथों की प्रतियां भी
कितना जल्दी उठता है इंसान
मलबे के नीचे से
संवरता हैं और हो जाता है तैयार भी
मलबा हटाने से पहले
लगा लग कर धार तैयार रहती हैं उनकी तलवारें
कल तक आरती का थाल सजाने वाली ये औरतें
कितने अच्छी तरह से जलाती है होली
और ये मंदिर निर्माण के लिए निकली औरतें
कितनी निडर दिख रहीं हैं,
हाथो में त्रिशूल थामे
‘मंदिर वहीँ बनाएंगे’
लगे तो पहले अगल बगल में
अभ्यास हेतु इंसानों की मज़ार बना देंगे?
कितना बढ़िया गरबा खेलते हैं ये लोग
स्टीरियों बंद पड़ने पर भी
नहीं टूटती इनके डांडियों की लय
आदमी की सांस रुकने पर भी
नहीं टूटती
इनके कलेजे की लय
युद्ध की कविता
चिट्ठी देने हेतु आया पोस्टमेन
कारगिल का पता पूछने लगा
तब समझा कि
शुरू हो गया है युद्ध!
तब तक कभी महसूस नहीं हुई
घूसखोरी इतनी सीरियस
रोज़ धमाल मचता था टीवी पर
युद्ध के समाचार सुनते
एवं युद्धभूमि से सीधे प्रसारित क्लिपिंग्स देखते
टीवी पर नहीं दिखी आमने सामने की लड़ाई कभी
रोज़ वही एक तोप
और पीठ पर वजन ढोते
चोटी की तरफ दौड़ते हुए सैनिक
पेट की खातिर सेना में भरती हुआ
अपने गाँव वाला बजरंग दिखा क्या कहीं पर
बड़ी बारिकी से मैं खोजते रहता टी वी पर
फिर उकता गया सबसे
तब भी
हर एक खबर देखनी ही पड़ती थी
प्रिय देश के खातिर
हड़कंप मचा दिया था अखबारों ने
हर एक पन्ने पर युद्ध के किस्से-कहानियां.....
दिलीप कुमार, शबाना आज़मी, आमीर खान
द्वारा
जबरदस्ती बुलवाई गई देशप्रेम की बातें
वीरगति को प्राप्त सैनिकों की
व उनके परिजनों की
दिल दहला देने वाली कहानियां....
‘शादी तय हुई ही थी कि बुलावा आ गया’
‘देह पर लगी हल्दी अभी तक सूखी भी नहीं थी’
स्मृतियों का कोलाहल और मात्र कोलाहल
पीछे छूट गए बाल बच्चो के लिए
चार दिन सराहना के,
शौर्य के, प्रशस्ति गान के
जब अपने जवान वीरगति को प्राप्त हो रहे थे
तब उस पार वाले भी मर रहे थे,
कुत्ते की मौत
जवाबी कारवाही में!
उनके रिश्तेदारों के साक्षात्कार
नहीं पढ़ने में आये कभी
ग्लोबल विलेज में
मरणोप्रान्त मिलने वाले विशेषण
करते रहे कोलाहल मन के भीतरर
मरने के बाद भी
क्या होते हैं इंसान के रास्ते अलग-अलग?
मन में उठा प्रश्न जब हैरान करने लगा
तब मुझे ही
मेरे
देशप्रेम पर शक होने लगा?
सरकार- १
कोई भी हो सरकार
मुंबई की या फिर दिल्ली की
कार्यशैली होती है एक ही
हवाई सर्वेक्षण बिना
नहीं समझती वह ग्राउंड रियलिटी!
उनका पैकेज नहीं होता फलित
अर्थी शमशान पहुंचने तक
सरकार- २
मेलघाट में मरे बच्चे कुपोषण से
या
रालेगन का बुढ़ऊ बैठ गया अनशन के लिए, तब भी
सरकार के गले में नहीं अटकता निवाला
पानी गले तक आ जाये तब भी सरकार
रोकथाम नहीं करती
सूखे के समय
सरकार कभी कुँए में नहीं झांकती
बाढ़ के समय भी सरकार की
नय्या कभी नहीं डूबती!
सरकार के घर में
रोज़ ही होती है मारामारी, उठा- पटक
अपमानित करना व एक दूजे पर उछालना कीचड़
रहता है जारी
सरकार का सब घाटे का व्यापार
सरकार की खेती मतलब कपास और प्याज
सरकार के गन्ने में भी
गायब चीनी की मिठास
एक भी परीक्षा ढंग से होती नहीं पास
फिर भी
क्यों नहीं करती सरकार आत्महत्या ?
नीला तोता
मास्टरजी ने कहा है
बच्चों से
कि बनाओ तोते का चित्र
और मास्टरजी गए हैं कक्षा से बाहर
तम्बाखू - खैनी रगड़ने.
किसी और कक्षा में कठिन सा गणित देकर
एक मास्टरनी भी
आ गई है बाहर
दोनों की गपशप
चल पड़ती है देर तक
तब तक, बच्चे हल कर देते हैं गणित
व भर देते है तोते में रंग
समय था इसलिए कुछ बच्चे
तोते को डाल पर बैठा कर
अमरुद की फांक दे देते हैं खाने,
तो किसी का तोता डाल पर
झूला झूलते हुए करता हैं टाइमपास
कक्षा में बस तोते ही तोते हैं
पूरी कक्षा हो गई हरी-भरी
बच्चे खामोश हो जाते हैं..
मास्टरजी के वापस कक्षा में आने पर
मास्टरजी देखने लगते हैं चित्र हर एक का
किसी के चोंच में दोष दिखाते
कहीं आकार का मजाक बनाते,
मास्टरजी निपटा देते हैं पूरी कक्षा..
एक चित्र के पास चिल्लाते हैं ठिठककर,
“तेरे बाप ने भी कभी देखा है नीला तोता?”
मास्टरजी के गुस्से पर
हंस पड़ती हैं पूरी कक्षा ..
परंतु वह बच्चा चुप हैं बिलकुल चुप
तोते की लाल चटकदार चोंच का अवलोकन करते…
मास्टरजी ने नीला तोता क्या देखा!
बच्चे पर “बाप” का तंज कस दिया
किन्तु बच्चे की रंगपेटी नहीं देखी…..
देखी होती तो उवे भी जान पाते
बच्चे इतने बेवकूफ नहीं होते!
रंगपेटी में नहीं होता
हरा और सुआपंखी रंग
तब उसका समीपतम होता है नीला रंग..केवल नीला रंग
यह अच्छे से पता होता है बच्चों को..
बच्चे की आँखों में छाए हैं
तोते के समूह के समूह!
हरे झख तोतों के
उसमें
उसका भी है एक नीला तोता
ऊँची
उड़ान
भरता हुआ.....
बच्चे राष्ट्रगान के लिए खड़े होने पर...
राष्ट्रगान के लिए खड़े होने पर
बच्चे आजकल चुलबुलाते हैं
किसी भी सुर व ताल में गाकर
नहीं पहुँचते अड़तालीस सेकेंड तक
इस बात का बच्चों को कोई अफ़सोस नहीं
या फिर
राष्ट्रगान के प्रोटोकोल का किसी ने पालन नहीं भी किया
तब भी उस बारे में बच्चो को कुछ नहीं कहना होता
फ़िर भी बच्चे आजकल
राष्ट्रगान के लिए खड़े होने पर चुलबुलाने लगते हैं
बच्चे, कक्षा में
बिनधास पूछते हैं सवाल
राष्ट्रगान पर!
राष्ट्रगान के आशय पर!
बच्चों के सवालों से घिर कर
मास्टरजी की हो जाती है बोलती बंद
पंजाब सिंध गुजरात मराठा को
बारीक़ पीसते हैं बच्चे,
पंजाब कहो तो, खालिस्तान के विषय में पूछते हैं,
सिंध कहो तो, पकिस्तान के विषय में पूछते हैं,
गुजरात कहो तो, गोधरा के बारे में पूछते हैं,
मराठा कहो तो,
जाति-उपजाति पर पूछ्ते हैं......
विंध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्चारते हुए बच्चे
हिमशिखर की तरह चमकते हैं
झिलमिलाते हैं नदी की धारा की तरह
जिस किनारे घटित हुई पूरी रामायण
उस सरयू नदी का जिक्र क्यों नहीं है राष्ट्रगान में?
ये पूछते हैं बच्चे!
राष्ट्रगान यानी,
क्या राष्ट्र के नाम अर्पित श्रद्धांजलि होती है ?
तो फिर राष्ट्रगान और श्रद्धांजलि के लिए खड़े होने
के बीच कोई अंतर नहीं हो सकता क्या?
ऐसा भी पूछते है बच्चे......
पत्थर तोड़ते भरी धूप में,
निराई करते भर बरसात में,
बुवाई करते,
मोट खीचते,
हल चलाते हुए,
क्या, गा नहीं सकेंगे राष्ट्रगान
उन्मुक्त कंठ से?
ये भी पूछते हैं बच्चे.......
मास्टरजी नहीं कर पाते
बच्चों की शंकाओं का समाधान
बच्चों की आँखों में विद्रोह देख
कभी कभी डरते भी हैं मास्टरजी
'अखबार पढ़कर, टी.वी देखकर
बच्चे बहुत बिगड़ गए हैं
उन्हें समय रहते
ठीक करना होगा......
उन्हें देने ही होगी तेज़ धूप में खड़े रहने की सज़ा
कम से कम अड़तालीस सेकंड '
ले लेते हैं निर्णय, मास्टरजी !
राष्ट्रगान के लिए खड़े होने पर
बच्चे आजकल
चुलबुलाने लगते हैं......
उनकी सुनता आया और.........
वे बोले
हमारा टूथपेस्ट इस्तेमाल किजिये
फिर बोले
आयुर्वेदिक टूथपेस्ट ज्यादा लाभदायक होता है
बाद में कहने लगे
उँगलियों से ही घिसिए पावडर
मसूड़े मज़बूत होते हैं!
दांत दिखने चाहिए चमकदार
मुंह से आने न पाये बदबू इसलिए
कुछ और भी ब्रांड सुझाए उन्होंने
(साली, राख ही अच्छी थी इतने झंझट के मुकाबले)
सुझावों से शुरू हुआ दिन
जितना सुना, उतने ही बढ़ते चले गए सुझाव
अब अपने लिये निर्णय ले पाना भी हो चुका मुश्किल
बढ़ रही है पराधीनता
चाय पावडर लिजिए ताज़ा, आसाम के बागानों से
देह के कीटाणु साफ़ करता नहाने का साबुन
सफेदी का चमत्कार - वाशिंग पावडर
वाशिंग मशीन भी कपड़ों की मुलायम धुलाई हेतु
कहते हैं अनोखा स्वादयुक्त है यह नमक
कितना भी खाइए यह तेल, ह्रदय को कोई धोखा नहीं
मुलायम शेविंग क्रीम, रेज़र जो ज़ख्म न होने दे!
खाइए भरपेट पिज़्ज़ा, बर्गर
अपचन होने तक
उस पर ले लीजिये
पानी में झाग पैदा करती पावडर
बच्चों के लिए
पत्नी के लिए
प्रेमिका के लिए
बूढ़े माँ बाप के लिए
है कुछ न कुछ हर किसी के लिए
ठंड के लिए, ग्रीष्म के लिए,
बरसात के लिए
ठंड के लिए
गर्मी-लू के लिए
सूटिंग व शर्टिंग अभिनेताओं जैसा
रेडीमेड की बात ही कुछ और है, मॉडल की तरह
पहले जेबे खाली की, फ़िर
एक एक कर शरीर के कपडे भी
निकलवाए चड्डी बनियान के साथ
नए कपड़े दिखाने से पहले
अब लुटने जैसा कुछ भी नहीं बचा
तो कर दी है बिजली गुल
उनके द्वारा निर्मित परिस्थितियों में
अँधेरे में अँधेरा बनकर
अब करूँ तो क्या करू टीवी शुरू होने तक ?
नहीं सूझ रहा कुछ भी मुझे?
ग्रहदशा फिर गई है देश की
ग्रहदशा फिर गई है देश की,
ग्रहदशा!
सलाह दी है न्यूमरॉलॉजिस्ट ने
देश के नाम में तबदीली की
संसद के विशेष अधिवेशन के लिए किया जा रहा है विचार
यज्ञ रचाया गया है दरबार हाल में
एनसीइआरटी में रच बस गई है
पुराण की संस्कार कथाएँ
इश्तिहार दिया है यु जी सी ने
ज्योतिष-विज्ञान प्रोफेसरों के लिए
कुल मिलाकर सारे कुलपतियों ने
लगाया है ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का कोर्स
इश्तिहार के गुलाबी पैकेज में
सिमट गई है संपादकों की प्रतिबद्धता
एबीसी का सर्टिफिकेट जोड़कर
ग्राहक आ गया है केंद्र स्थान पर
इंसान तो छुट गया कब का पीछे
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने भर रखा है
सामाजिक प्रबोधन का टेंडर
नैतिकता के गुब्बारे को पिन चुभो दी है
कंडोम के इश्तिहारों ने
सेंसेक्स के हाथों में हाथ डालकर
पसर गया है सेक्स अखबार के पन्ने पन्ने पर
टीवी के परदे पर उल्टा-सीदा बढ़ रहा है
सेंसेक्स का है कृत्रीम-अकृत्रिम उतार चढाव
वियाग्रा का मार्केट परवान पर है
पंधरा अगस्त रह गया है सिर्फ ड्राय डे बनकर
सरकारी कर्मकांड
एवं रेडिओ टीवी के देशभक्ति भरे गीतों तक सीमित
‘मेरे देश की धरती सोना उगले...’
उगता कुछ भी नहीं, ज़हर के सिवा
बाकी जो बोया हुआ है जल जाता है मिटटी में ही
बोने वाला फांसी लगा लेता है खुदको
मेढ़ वाले पेड़ पर
नहीं लगता रेडियो पर कभी
उसके पसंद का गीत
झंडा उलटा फहरे, तो ही
आते है टीवी वाले दौड़े दौड़े
किसी को भी कुछ नहीं लगता
झंडा ऊँचा रहेने के बारे में…
बजट का बेग लेकर आए हैं हँसते हुए
वित्त मंत्री
कोट पर गुलाब का फूल लगाना भूल गए
या, जल गए हैं फूलों के सारे बागीचे?
बजट का भाषण भी लगता है शुष्क, सुखा कोरा
विदर्भ मराठ वाडा की तरह
कविता की पंक्तियां भी नहीं ज़बान पर
सभी राजकवि कुडुक हो गए हैं
या किसी कवि को नहीं आता छेड़ने
आशाभरा सुर ?
कौन सा परिमाण लगाएं
यहाँ की तरक्की की गति नापने ?
बच्चों के पैदा करने से लेकर
चल अचल संपत्ति को देखकर
अंदाज़ लगाया जाता है तरक्की का!
कौनसा परिमाण पैमाना लगाओगे
जीवन की सांझ ढलने पर
भूखे- कंगाल हो चुके कलाकारों पर!
कविता के शब्द-संख्या से कैसे
तय कर सकोगे कवि का मानदेय?
निरोध से भी नहीं शिथिल हो रहा
बढती जनसँख्या का विस्फोट
नसबंदी से भी नहीं होता किसी का चरित्र उजला
राष्ट्रीय शोक मनाते हुए भी
नहीं चूकता, शासकीय विश्रामगृह पर मांसाहारी भोजन
सामान्य आदमी के सफ़ेद कपड़े
पीले पड़ जाते हैं बनियान के साथ
उनकी सफ़ेदी बनाए रखनेवाली
पावडर किस बाजार में मिलती है?
कवि
कवि खोजता है भीड़ में
सखी की आँखे
कवि बन जाता है
पहरेदार सखी के सपनो का!
कवि भावुक
कवि शर्मिला
कवि श्रद्धालु
सखी की प्रतीक्षा करते करते
मांगता है देवी से मन्नत
कवि कभी किसी का नाम नहीं लेता
आम्बेडकर, शाहू, फुले या फ़िर
चार्वाक और गौतम बुद्ध
लेकिन अगर नौबत आ ही गई
तो
कवि परमेश्वर की कॉलर पकड़कर
जवाब मांगने से भी पीछे नहीं हटता
कवि को नहीं आता
सीधा सरल हिसाब
कम्प्युटर तो क्या,
सादा केलकुलेटर भी नहीं
इस्तेमाल किया होता है कवि ने
चाय, सिगरेट के पैसे निकाले नहीं
कि हो जाती है कवि की जेब खाली
तब भी कवि
कम्प्यूटर की अकड़ को
चलने नहीं देता
जन्मकुंडली के साथ बायोडाटा
फीड करने पर भी कम्प्युटर
नाप नहीं पाता
कवि के मन की गहराई
कवि समय से आगे चलता है
फ़िर भी कवि को नहीं होता ध्यान
रेलवे लाइन का,
लाल नारंगी समंदर के
जानलेवा पानी का
कवि चलते रहता है
चलते ही रहता है
भारी भरकम रेल-गाड़ी
निकल जाती है धड़धड़ाती हुई
दम तोड़ती, धड़कती कवि की देह से
धगधग करती कवि की देह में
झर रहे हैं इंसानों के लिए गीत
ज़ख्म
डॉक्टर ने पूछा
‘कविता करते हो?’
मैंने कहा ‘हां, लेकिन
आपने कैसे पहचाना?’
वे बोले,
‘ज़ख्म अब तक भर
जाना चाहिए था
कविता लिखना बंद कर दो
यही इलाज है ज़ख्म का’
मैंने कहा
“रहने दीजिये डॉक्टर
मुझे इस ज़ख्म को सँजोकर रखनी होगी”
परिचय :-
विजय चोरमारे
विजय चोरमारे – युवा पत्रकार ( उपसंपादक महाराष्ट्र टाइम्स, मुंबई) व कवि हैं।
प्रगतिशील विचारधारा के मराठी के जाने माने कवि
1987 में दैनिक सकाल (मराठी) से पत्रकारिता की शुरुवात। तत्पश्चात लोकमत (कोल्हापूर व मुंबई) और प्रहार (मुंबई) अखबार में काम.
मराठी में तीन कविता संग्रह प्रकाशित पापण्यांच्या प्रदेशात, शहर मातीच्या शोधात व आतबाहेर सर्वत्र.
कवि प्रियदर्शन के कविता संग्रह ‘नष्ट कुछ भी नही होता’ का मराठी से हिन्दी में अनुवाद ‘काहीच नष्ट होत नसतं’ (इस अनुवाद के लिए सोनइंदर पुरस्कार -2016 से सम्मानित)
पुरस्कार: (पत्रकारिता) - १) के. के. बिर्ला फाउंडेशन, नई- दिल्ली से फेलोशिप, २) पंडित दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण विकास शिश्यवृत्ति, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार, ३) सरोजिनी नायडू पुरस्कार (हंगर प्रोजेक्ट, नई- दिल्ली ४) ग. गो. जाधव उत्कृष्ट पत्रकारिता पुरस्कार, महाराष्ट्र सरकार, ५) तरवडी (जि. अहमदनगर) से दीनमित्रकार मुकुंदराव पाटील पुरस्कार॰
पुरस्कार (साहित्य) - आतबाहेर सर्वत्र काव्यसंग्रह के लिए -१) इंदिरा संत पुरस्कार, महाराष्ट्र सरकार क्वा अन्य 6 पुरस्कार. शहर मातीच्या शोधात के लिए- १) यशवंतराव चव्हाण प्रतिष्ठान पुरस्कार, पुणे, २) बालकवी पुरस्कार, धरणगाव, जि. जळगाव। स्त्रीसत्तेची पहाट के लिए गुणीजन साहित्य पुरस्कार, औरंगाबाद
भ्रमणध्वनी - 09594999456
ई-पत्र- vijaychormare@gmail.com
अनुवादक:-
टीकम शेखावत |
टीकम शेखावत
संपर्क : ई-पत्र tikamhr@gmail.com ,
भ्रमणध्वनी - 09765404095
कवि, फ़िल्म समीक्षक व मीडियाकर्मी - पुणे
टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में उप मुख्य प्रबन्धक- मानव संसाधन
भ्रमणध्वनी - 09765404095
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