जापानी कवि ज्यून तकामी की कविताएँ
रूसी से अनुवाद: अनिल जनविजय
कविताएँ
पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब
पहाड़ पर
चढ़ना चाहते हैं सब
ऊँचे से ऊँचे पहाड़ पर ।
घाटी में
उतरना कोई नहीं चाहता
यह काम दुनिया में किसी को नहीं आता
अपने मन में उतरना किसी को नहीं भाता ।
जैसे अंगूर में होता है बीज
अंगूर के दाने में जैसे
छिपा होता है बीज़
मेरे मन के भीतर भी वैसे
छिपी है खीज।
खट्टे अंगूर से बनती है
तेज़ मादक शराब
ओ खीज मेरे दिल की
बन जा तू भी ख़ुशी की आब।
जाड़ा
जाड़े की ठण्ड
इतनी भयानक होती है कि
कि जम जाते हैं हाथ कभी
तो कभी पैर पाला खाते हैं।
और उदासी
भेदती चली जाती है हमेशा
दिल को गहराई तक।
हरापन
एक दिन मैंने
अपने घर की खिड़की से
जब बगीचे में झाँका।
ऐसा लगा अचानक
बाँध लिया हो अपनी बाँहों में जैसे
वो हरा वृक्ष बाँका।
जाना-पहचाना रास्ता
शुरू-शुरू में
एक ही रास्ते पर घूमना
बड़ा ऊबाऊ लगता था मुझे।
लेकिन धीरे-धीरे
मैं उसका आदी होता गया
उस रास्ते पर घूमना
मुझे अच्छा लगने लगा
एक नया ही दृश्य मैं देखता
हर दिन
अपने उस परिचित रास्ते पर।
आज सवेरे
उस जनविहीन रास्ते के किनारे
मैंने कुछ घण्टीनुमा फूलों को खिले हुए देखा
मेरे मन में बजने लगी हज़ारों घण्टियाँ अचानक।
गीत
वह पुराना गीत जो हम गाते थे स्कूल में
बच्चे गा रहे हैं सुरीली आवाज़ में
मेरी आँखों में आँसू उतर आते हैं।
रेडियो पर यह गीत सुनकर
स्मृति में झलकने लगते हैं बच्चों के सफ़ेद चेहरे
जिनके साथ मैं भी कभी गाता था यह गीत।
बच्चे कोशिश कर रहे हैं पलकें न झपकाने की
सुनहरी मछलियों के तरह खोलते हैं अपने छोटे-छोटे मुँह
उनकी पतली सफ़ेद गरदनों पर दिखाई नहीं देता उनका टेंटुआ।
जब छोटे थे हम और गाते थे
साथ-साथ बजाती थी हारमोनियम
लम्बे घाघरे वाली वह टीचर
झण्डारोहण होता था और मिठाई बाँटी जाती थी।
मैं स्मृति में डूबा था
और इस बीच
बच्चों ने शुरू किया नया गीत
जो हमारे उन दिनों में गाया नहीं जाता था।
आकाश से आने वाली आवाज़ें
मेरे सिर के ऊपर से उड़ते हुए
चिड़िया ने
धीमे से कुछ कहा।
"मैं तुम्हारी बात समझ गया, चिड़िया !"
मैंने उत्तर दिया।
पर सच बात तो यह है कि
मैं डूबा था
अपनी ही सोच में
आकाश से आने वाली आवाज़ों पर
बिना कोई ध्यान दिए।
जीवन और मौत की सीमारेखा पर
क्या है वहाँ
जीवन और मौत की सीमारेखा पर?
युद्ध के दिनों की बात है यह
घने जंगलों से गुज़र कर मैं
पहुँच गया था वहाँ
बर्मा और थाईलैण्ड की सीमा है जहाँ
वहाँ कुछ भी ऐसा विशेष नहीं था
सीमारेखा का कोई अवशेष नहीं था।
मैं गुज़रा कई बार
भूमध्य रेखा के पार
देखा नहीं वहाँ भी कोई नया संसार
सिर्फ़ समुद्र था विशाल, गहरा नीला अपार।
बर्मा और थाइलैण्ड में थे
सब एक से मनुष्य
वर्षा के बाद आकाश में चमक रहा था इन्द्रधनुष।
हो सकता है वहाँ भी उस मेखा पर
जीवन और मौत की सीमारेखा पर
इन्द्रधनुष हो कोई चमकीला
सात सौ रंगों वाला
हरा-लाल-नीला-पीला-रंगीला।
अविचल पेड़
बहते समय के पार
समय शाश्वत दिखाई देता है,
बहते बादलों के पार
नीला आकाश।
बादल चलते रहते हैं
आकाश रहता अचल,
हवा चलती रहती है
पेड़ अविचल।
रचनात्मकता
बादलों को कौन चलाता है?
धकेलता है कौन उन्हें?
हवा के सिवा?
पर हवा को कौन देता है गति?
कोई तो होगा?
कौन है जो चुपचाप पेड़ों को लादता है फलों से?
कौन है जो मुझसे लिखवाता है कविता?
कोई तो होगा?
क्या एक ही है यह 'कोई तो'?
जो फलों से लाद देता है पेड़ों को
और हवा को देता है गति।
गति देने वाले इस 'कोई तो' को,
और फल लादने वाले इस चुप्पा को,
अब महसूस कर रहा हूँ मैं
अपने मन के भीतर गहरे कहीं।
ठकठकाहट
ठक ! ठक ! ठक !
वैद्य बजाता है उँगलियाँ
मेरी छाती पर
और पूछता है रहस्य मेरी देह का।
ठक ! ठक ! ठक !
मेरी छाती घरघराती है
और बताती है रहस्य मेरे गेह का।
ठक ! ठक ! ठक !
मन होता हूँ
मैं भी खटखटाऊँ किसी का दिल
जो खोल दे अपना मन मेरे लिए।
मुझे सपने में दिखा जलयान
सपने में दिखा मुझे एक जलयान
सफ़ेद था सफ़ेद पूरा वह जलवाहन।
इतनी ख़ूबसूरत थीं उसकी शुभ्र पाँखें
कि ख़ुशी से भर आई थीं मेरी आँखें।।
तभी आ गया वहाँ भयानक तूफ़ान
सपने में डूब रहा था वह जलयान।
अथाह गहरे सागर में डूब गया जो
मेरे सपनों में आता है आज भी वो।।
००
परिचय
जन्म18 फ़रवरी 1907
निधन17 अगस्त 1965
उपनाम ज्यून तकामी
जन्म स्थान फ़ुकुई, होन्स्यू द्वीप, जापान ।
कुछ प्रमुख कृतियाँ
पेड़ों का स्कूल(1950),घटता वज़न, मौत की अथाह गहराई से (1964),खोया वसंत (1967) तीनों कविता-संग्रह। भूल जाते हैं पुराने दोस्त (1936)उपन्यास।
अनुवादक
अनिल जनविजय
मास्को ,रशिया
+7 916 611 48 64 ( mobile)
रूसी से अनुवाद: अनिल जनविजय
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ज्यून तकामी |
कविताएँ
पहाड़ पर चढ़ना चाहते हैं सब
पहाड़ पर
चढ़ना चाहते हैं सब
ऊँचे से ऊँचे पहाड़ पर ।
घाटी में
उतरना कोई नहीं चाहता
यह काम दुनिया में किसी को नहीं आता
अपने मन में उतरना किसी को नहीं भाता ।
जैसे अंगूर में होता है बीज
अंगूर के दाने में जैसे
छिपा होता है बीज़
मेरे मन के भीतर भी वैसे
छिपी है खीज।
खट्टे अंगूर से बनती है
तेज़ मादक शराब
ओ खीज मेरे दिल की
बन जा तू भी ख़ुशी की आब।
जाड़ा
जाड़े की ठण्ड
इतनी भयानक होती है कि
कि जम जाते हैं हाथ कभी
तो कभी पैर पाला खाते हैं।
और उदासी
भेदती चली जाती है हमेशा
दिल को गहराई तक।
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महावीर वर्मा |
हरापन
एक दिन मैंने
अपने घर की खिड़की से
जब बगीचे में झाँका।
ऐसा लगा अचानक
बाँध लिया हो अपनी बाँहों में जैसे
वो हरा वृक्ष बाँका।
जाना-पहचाना रास्ता
शुरू-शुरू में
एक ही रास्ते पर घूमना
बड़ा ऊबाऊ लगता था मुझे।
लेकिन धीरे-धीरे
मैं उसका आदी होता गया
उस रास्ते पर घूमना
मुझे अच्छा लगने लगा
एक नया ही दृश्य मैं देखता
हर दिन
अपने उस परिचित रास्ते पर।
आज सवेरे
उस जनविहीन रास्ते के किनारे
मैंने कुछ घण्टीनुमा फूलों को खिले हुए देखा
मेरे मन में बजने लगी हज़ारों घण्टियाँ अचानक।
गीत
वह पुराना गीत जो हम गाते थे स्कूल में
बच्चे गा रहे हैं सुरीली आवाज़ में
मेरी आँखों में आँसू उतर आते हैं।
रेडियो पर यह गीत सुनकर
स्मृति में झलकने लगते हैं बच्चों के सफ़ेद चेहरे
जिनके साथ मैं भी कभी गाता था यह गीत।
बच्चे कोशिश कर रहे हैं पलकें न झपकाने की
सुनहरी मछलियों के तरह खोलते हैं अपने छोटे-छोटे मुँह
उनकी पतली सफ़ेद गरदनों पर दिखाई नहीं देता उनका टेंटुआ।
जब छोटे थे हम और गाते थे
साथ-साथ बजाती थी हारमोनियम
लम्बे घाघरे वाली वह टीचर
झण्डारोहण होता था और मिठाई बाँटी जाती थी।
मैं स्मृति में डूबा था
और इस बीच
बच्चों ने शुरू किया नया गीत
जो हमारे उन दिनों में गाया नहीं जाता था।
आकाश से आने वाली आवाज़ें
मेरे सिर के ऊपर से उड़ते हुए
चिड़िया ने
धीमे से कुछ कहा।
"मैं तुम्हारी बात समझ गया, चिड़िया !"
मैंने उत्तर दिया।
पर सच बात तो यह है कि
मैं डूबा था
अपनी ही सोच में
आकाश से आने वाली आवाज़ों पर
बिना कोई ध्यान दिए।
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महावीर वर्मा |
जीवन और मौत की सीमारेखा पर
क्या है वहाँ
जीवन और मौत की सीमारेखा पर?
युद्ध के दिनों की बात है यह
घने जंगलों से गुज़र कर मैं
पहुँच गया था वहाँ
बर्मा और थाईलैण्ड की सीमा है जहाँ
वहाँ कुछ भी ऐसा विशेष नहीं था
सीमारेखा का कोई अवशेष नहीं था।
मैं गुज़रा कई बार
भूमध्य रेखा के पार
देखा नहीं वहाँ भी कोई नया संसार
सिर्फ़ समुद्र था विशाल, गहरा नीला अपार।
बर्मा और थाइलैण्ड में थे
सब एक से मनुष्य
वर्षा के बाद आकाश में चमक रहा था इन्द्रधनुष।
हो सकता है वहाँ भी उस मेखा पर
जीवन और मौत की सीमारेखा पर
इन्द्रधनुष हो कोई चमकीला
सात सौ रंगों वाला
हरा-लाल-नीला-पीला-रंगीला।
अविचल पेड़
बहते समय के पार
समय शाश्वत दिखाई देता है,
बहते बादलों के पार
नीला आकाश।
बादल चलते रहते हैं
आकाश रहता अचल,
हवा चलती रहती है
पेड़ अविचल।
रचनात्मकता
बादलों को कौन चलाता है?
धकेलता है कौन उन्हें?
हवा के सिवा?
पर हवा को कौन देता है गति?
कोई तो होगा?
कौन है जो चुपचाप पेड़ों को लादता है फलों से?
कौन है जो मुझसे लिखवाता है कविता?
कोई तो होगा?
क्या एक ही है यह 'कोई तो'?
जो फलों से लाद देता है पेड़ों को
और हवा को देता है गति।
गति देने वाले इस 'कोई तो' को,
और फल लादने वाले इस चुप्पा को,
अब महसूस कर रहा हूँ मैं
अपने मन के भीतर गहरे कहीं।
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महावीर वर्मा |
ठकठकाहट
ठक ! ठक ! ठक !
वैद्य बजाता है उँगलियाँ
मेरी छाती पर
और पूछता है रहस्य मेरी देह का।
ठक ! ठक ! ठक !
मेरी छाती घरघराती है
और बताती है रहस्य मेरे गेह का।
ठक ! ठक ! ठक !
मन होता हूँ
मैं भी खटखटाऊँ किसी का दिल
जो खोल दे अपना मन मेरे लिए।
मुझे सपने में दिखा जलयान
सपने में दिखा मुझे एक जलयान
सफ़ेद था सफ़ेद पूरा वह जलवाहन।
इतनी ख़ूबसूरत थीं उसकी शुभ्र पाँखें
कि ख़ुशी से भर आई थीं मेरी आँखें।।
तभी आ गया वहाँ भयानक तूफ़ान
सपने में डूब रहा था वह जलयान।
अथाह गहरे सागर में डूब गया जो
मेरे सपनों में आता है आज भी वो।।
००
परिचय
जन्म18 फ़रवरी 1907
निधन17 अगस्त 1965
उपनाम ज्यून तकामी
जन्म स्थान फ़ुकुई, होन्स्यू द्वीप, जापान ।
कुछ प्रमुख कृतियाँ
पेड़ों का स्कूल(1950),घटता वज़न, मौत की अथाह गहराई से (1964),खोया वसंत (1967) तीनों कविता-संग्रह। भूल जाते हैं पुराने दोस्त (1936)उपन्यास।
अनुवादक
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अनिल जनविजय |
अनिल जनविजय
मास्को ,रशिया
+7 916 611 48 64 ( mobile)
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