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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

06 दिसंबर, 2017

फ़िलिम: पूँजीवाद का संकट:‘सुपर हीरो’ व ‘एंग्री यंग मैन’ की वापसी 
तीसरी क़िस्त )

अभिनव सिन्हा
‘मैन ऑफ़ स्टील’ सर्वाधिक अतिसरलीकृत रूप में साम्राज्यवाद और नवउदारवादी पूँजीवाद के प्रभुत्वशील तर्क को रेखांकित करने और अमेरिकी संस्कृति के मानक पर एकलसंस्कृतिकरण का काम करने का प्रयास करती है। यह फिल्म नोलन की बैटमैन त्रयी के अनुसार अन्धकारमय सन्दर्भ में विकल्पहीनता और आशाहीनता के नवउदारवादी यथार्थवादी चित्रण पर आधारित नहीं है। ऊपरी तौर पर यह फिल्म उम्मीद की बात करती है। जैसा कि सुपरमैन (काल एल/क्लार्क केण्ट) का पिता फिल्म में एक दृश्य में सुपरमैन को बताता है कि ‘एस’ के प्रतीक का उनके ग्रह क्रिप्टॉन पर अर्थ है उम्मीद। फिर यही बात सुपरमैन अपनी प्रेमिका लुइस लेन को भी एक अन्य दृश्य में बताता है। लेकिन वास्तव में यह फिल्म उम्मीद के नाम पर कुछ देती नहीं है। यह एकदम नग्न तौर पर अमेरिकी पूँजीवाद के नवउदारवादी और साम्राज्यवादी तर्क को बल देने का प्रयास करती है। जब सुपरमैन का पिता सुपरमैन को क्रिप्टॉन ग्रह की सभ्यता के पतन का कारण बताता है, तो वह कहता है कि पहले उनकी सभ्यता अलग-अलग ग्रहों को औपनिवेशीकृत करती थी और वहाँ के वातावरण को अपने अनुसार ढालती थी। यही उनकी सभ्यता के विस्तार और विकास का कारण था। बाद में, यह सभ्यता अपने औपनिवेशिक विस्तार को छोड़ देती है और यही उसके पतन का कारण बनता है। यह कहीं न कहीं अमेरिका के सतत् विस्तार और सतत् युद्ध के सिद्धान्त को बल देता है। यह इस पक्ष में राय बनाने का काम करता है कि आज अमेरिकी साम्राज्यवाद के समक्ष भी सतत् युद्ध में उलझे रहने के अलावा कोई रास्ता नहीं है और वह अपनी उत्तरजीविता के लिए युद्ध पैदा करता है।
सुपरमैन के पिता जोर-एल और माँ लोर-वॉन शिशु काल-एल (सुपरमैन) और क्रिप्टॉन की सभ्यता के एक अंश को बचाने के लिए उसे एक कैप्स्यूल यान में रखकर पृथ्वी पर भेज देते हैं, जिसके बारे में उन्होंने पहले ही जाँच-पड़ताल कर ली होती है। पृथ्वी पर काल-एल का यान अमेरिका में कैन्सस में गिरता है और वहाँ शिशु सुपरमैन जोनाथन केंट व मार्था केंट को मिलता है। वे एक सामान्य अमेरिकी लड़के की तरह उसका पालन-पोषण करते हैं। 

धीरे-धीरे वह अपने इतिहास को जानता है, अपनी शक्तियों को पहचानता है। ज़ाहिर है कि इसके बाद वह अक्सर ऐसी जगहों पर मौजूद रहता है जहाँ कोई हादसा होता है और उसके बाद वह एक रखवाले की तरह लोगों की रक्षा करता है! इसी बीच क्रिप्टॉन ग्रह का जनरल ज़ॉड (जिसने सुपरमैन के पिता की हत्या भी की थी) पृथ्वी के अस्तित्व के लिए ख़तरा बन जाता है। वह पृथ्वी पर मनुष्यों की सभ्यता को समाप्त करना चाहता है। इसके लिए वह सुपरमैन को अपने साथ शामिल करने का प्रयास करता है। लेकिन अन्ततः सुपरमैन इससे इंकार कर देता है और जनरल ज़ॉड से पृथ्वी की सभ्यता (जिसका अर्थ कुल मिलाकर उद्देश्यों के लिए अमेरिकी पूँजीवादी सभ्यता है) को बचाता है। इस बीच एक दृश्य है जिसमें सुपरमैन सपना देखता है कि वह मनुष्यों के कंकालों के बीच डूब रहा है। इसके बाद वह जनरल ज़ॉड के साथ शामिल न होने और उससे पृथ्वी को बचाने का फैसला लेता है। वास्तव में, सपने में जनरल ज़ॉड अपनी जिस योजना को अमली जामा पहना रहा है, उसकी तुलना अगर किसी चीज़ से की जा सकती है तो वह है यूरोपीय पूँजीवाद द्वारा अमेरिका की मूल सभ्यता का विनाश और मूल रेड इण्डियंस का कत्ले-आम। लेकिन फिल्म में यह रूपक पूरी सच्चाई को पलट देता है। यहाँ श्वेत अमेरिका पीड़ित बन जाता है और इस रूप में सुपरमैन की मदद का अधिकारी भी। जनरल ज़ॉड के हमले के दृश्य को देखते ही आपको अपने टेलीविज़न स्क्रीन पर देखे हुए 11 सितम्बर 2001 के वर्ल्ड ट्रेड सेण्टर के हमले के दृश्य याद आते हैं। यह पूरा दृश्य लगभग वैसा ही है जिसमें इमारतें तबाह हो रही हैं और लोग अपनी जान बचाने के लिए सड़कों पर भाग रहे हैं। फिल्म में उस शहर का नाम मेट्रोपोलिस है, लेकिन आप आसानी से समझ सकते हैं कि वह वास्तव में न्यूयॉर्क है। इस प्रकार अमेरिका एक बार फिर बाह्य आतंकवादी हमले के शिकार के तौर पर प्रकट होता है, जिसके विरुद्ध कोई भी जवाबी कार्रवाई लाज़िमी है। यह आतंकवाद के पैदा होने को दूसरी दुनिया से आये एक शैतान जनरल ज़ॉड की हरक़तों का परिणाम मानती है और इस प्रकार मध्यपूर्व में इस्लामी कट्टरपंथी आतंकवाद को पैदा करने, पालने-पोसने और एक भस्मासुर में तब्दील करने में अमेरिकी भूमिका को पूरी तरह नज़रन्दाज़ भी कर देती है और साथ ही ‘वॉर ऑन टेरर’ को वैधता प्रदान करने का प्रकार्य भी करती है। अमेरिकी साम्राज्यवादी हस्तक्षेप को यह फिल्म आत्मरक्षा के युद्ध के तौर पर पेश करने का प्रयास करती है। सुपरमैन स्वयं एक दैवीय चरित्र है जो दूसरी दुनिया से आया और उसके पास पृथ्वी पर ईश्वर जैसी शक्तियाँ हैं। इस तरह से साम्राज्यवादी हस्तक्षेप में अमेरिका को ईश्वर का समर्थन भी प्राप्त है, जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति अक्सर कहा करते हैं, ‘गॉड इज़ विद अमेरिका’।
ज़ाहिर है इस सुपरहीरो के आत्मान्वेषण की पूरी यात्रा  पौरुष के आत्मान्वेषण की यात्रा  होती है। एक साम्राज्यवादी-पूँजीवादी राज्यसत्ता का जेण्डर हमेशा पुरुष ही होता है। नतीजतन, जैसे-जैसे सुपरमैन अपनी शक्तियों की पहचान करता जाता है और उसमें अपने जीवन के उद्देश्य की समझ आती है, वैसे-वैसे वह अपने दोनों पिताओं (जोर-एल और जोनाथन केंट) के गौरव को पुनर्स्थापित करने के बारे में सोचता है। यह पौरुष का आत्म-बोध वास्तव में किसी भी मर्दाना (masculine) चरित्र के आत्म-बोध की साँचाबद्ध (typical) यात्रा है। यह पौरुषपूर्ण आत्म-बोध ही तो वह चीज़ है जो पुरुषों को सौष्ठवपूर्ण, वीर और आकर्षक बनाती है! और सुपरमैन को एक महानायक के तौर पर स्त्रियों में लोकप्रिय तो होना ही है। इस रूप में सुपरमैन के पूरे चरित्र को एक पिटे-पिटाये फॉर्मूले के आधार पर विकसित किया जाता है। यही कारण है कि लुइस लेन को फिल्मकार एक स्वतन्त्र स्त्री के तौर पर चिह्नित करता है, मगर अन्त में आपको पता चलता है कि ऐसा तो सिर्फ़ परिघटनात्मक स्तर पर किया जा रहा था। वास्तव में, सुपरमैन अन्ततः लुइस लेन को और दुनिया को बचाता है और लुइस लेन को अन्ततः एक सुपरहीरो बॉयफ्रेण्ड मिल जाता है।
इसके अलावा, जैसा कि पूँजीवादी संस्कृति उद्योग के उत्पाद के तौर पर बनी आज की लगभग सभी फिल्मों में होता है, इसके तमाम दृश्य विभिन्न उपभोक्ता सामग्रियों के प्रचार से भरे होते हैं। जैसे कि ‘मैन ऑफ स्टील’ में नोकिया, अमेरिकी सेना और सेवेन-इलेवन आदि के प्रचार आप लगातार फिल्म के पर्दे पर देख सकते हैं। और ये दृश्य सिर्फ़ उत्पाद का प्रचार नहीं हैं बल्कि समूची साम्राज्यवादी व नवउदारवादी उपभोक्तावादी संस्कृति और माल अन्धभक्ति का प्रचार करते हैं।
‘आयरन मैन’ श्रृंखला सुपरहीरो फिल्मों में एक ख़ास स्थान रखती है। आयरन मैन सम्भवतः सबसे जेनुइन अमेरिकी सुपरहीरो है। यह अमेरिकी पूँजीवादी समाज और संस्कृति के सबसे प्रातिनिधिक मूल्यों का सबसे ग़ैर-विचारधारात्मक तौर पर प्रतिनिधित्व करता है। आयरन मैन की कहानी अमेरिकी पूँजीवादी व्यक्तिवाद के विजय की गाथा है। इस चरित्र में एक निजी जासूस या जाँचकर्ता, योद्धा, विजिलान्ते और वैज्ञानिक तथा तकनोलॉजिकल महाप्रतिभा का मिश्रण है। यह अमेरिकी व्यवहारवादी सोच का भी सबसे खुले तौर पर प्रतिनिधित्व करता है। आयरन मैन उर्फ टोनी स्टार्क क्लिंट ईस्टवुड के अमेरिकी नायक और स्टीव जॉब्स का एक मिश्रित रूप भी है। वह क्लिंट ईस्टवुड के नायक के समान किसी भी संकट या समस्या के समाधान के लिए द्रुत, हिंसक और प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से समाधान का हिमायती है। आयरन मैन एक ऐसे दौर में अमेरिकी अपवाद-वाद के मिथक का पुनर्सृजन करने का प्रयास करता है, जिस दौर में यह अमेरिकी अपवाद-वाद पूर्णतः ध्वस्त हो चुका है। वियतनाम युद्ध में अमेरिका की शर्मनाक पराजय और इराक़ से लेकर अफगानिस्तान तक में उसकी किरकिरी के बाद आयरनमैन अमेरिकी साम्राज्यवाद और उसके अपवाद-वाद की एक ‘विश-फैण्टेसी’ के रूप में प्रकट होता है। आयरन मैन किसी भी रूप में आदर्शवादी सुपरहीरो नहीं है। वह अक्सर व्यंग्य की मुद्रा में रहता है। जीवन के हर नये परिवर्तन को बिन्दास तरीके से लेता है। वह अपने अत्यधिक धनी होने, उपभोक्तावादी होने को लेकर किसी शर्म या अपराध-बोध से ग्रस्त नहीं है। उल्टे वह एक रसिया किस्म का अतिधनाढ्य है जो कि अपने भोगवाद, लम्पटई और ऐशो-आराम का जश्न मनाता है, उसका दिखावा करता है। लेकिन साथ ही वह अच्छाई का प्रतिनिधित्व करता है; उसका एक कर्तव्य-बोध और नैतिकता है। यहाँ आपको नीत्शे का उबेरमेंश का सिद्धान्त याद आ सकता है। आयरन मैन भी उत्पादन ही नहीं बल्कि शासन करने के श्रम से भी मुक्त है और उसके अन्दर शक्ति की ज़बर्दस्त व्यक्तिवादी आकांक्षा है। इस रूप में वह अमेरिकी साम्राज्यवाद का आधुनिक काउबॉय भी है। वह अमेरिकी सामाजिक डार्विनवाद और बीमार व्यक्तिवाद का बेशर्मी से समर्थन और हिमायत करता है। टोनी स्टार्क एक हथियार बनाने की कम्पनी चलाता है। जब अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना के लिए अपने एक बेहद विनाशकारी हथियार का प्रदर्शन करने के दौरान वह आतंकवादी हमले में घायल हो जाता है तो वह ग़ौर करता है उस पर हमले के लिए भी उसी की कम्पनी के बनाये हथियारों का इस्तेमाल किया गया है जिसका कारण यह है कि उसी के कम्पनी के एक बुरे व्यक्ति ने देश के हितों को तिलांजलि देकर आतंकवादियों को हथियार मुहैया कराये थे। यहाँ पर आप देख सकते हैं कि बुरे पूँजीपति को अच्छे पूँजीपति टोनी स्टार्क से अलग दिखाया जा रहा है। बहरहाल, टोनी स्टार्क आतंकवादियों की कैद में ही आयरन मैन में तब्दील होता है। यहाँ आप नीत्शे के तकलीफ़ के कल्ट के सिद्धान्त को देख सकते हैं। तकलीफ़ें ही महानता पैदा करती हैं। उबेरमेंश तकलीफ़ों की भट्ठी में पनपता है। लेकिन टोनी स्टार्क तकलीफ़ों के इस अनुभव के बाद हथियारों की मैन्युफैक्चरिंग बन्द कर देता है। लेकिन ऐसा वह इसलिए नहीं करता कि उसका हृदय-परिवर्तन हो गया है और वह शान्तिवादी बन गया है। अब वह अपने वैज्ञानिक और तकनोलॉजिकल संसाधनों और मेधा का इस्तेमाल आयरन मैन का सूट बनाने में करता है।
आयरन मैन का असली मकसद है अमेरिकी वर्चस्व को और वैश्विक हवलदार की उसकी भूमिका को पुनर्स्थापित करना। इसके लिए ऐसी चीज़ें करने की आवश्यकता है जो कि अमेरिकी सेना तमाम किस्म के नियमों और कानूनों में बँधी होने के कारण नहीं कर सकती है। ये काम एक कारपोरेट शस्त्र व्यवसायी कर सकता है। आगे आयरन मैन अमेरिकी सेना के साथ मिलता हुआ दिखता है और अमेरिकी सेना से तालमेल में काम करता है। अमेरिकी सेना स्वयं ऐसे आयरन मैन सूट का इस्तेमाल करने लगती है और आयरन मैन और अमेरिकी सेना मिलकर शत्रुओं का संहार करते हैं। इस रूप में यह कारपोरेट राज्य की मुसोलिनी की अवधारणा का एक अमेरिकी संस्करण निर्मित करता है जिसमें कारपोरेट हित और पूँजीवादी राज्यसत्ता का फ़्यूज़न हो गया है। आप कह सकते हैं कि यह अमेरिकी साम्राज्यवाद और अमेरिकी पूँजीवादी जनवाद के साथ एक कारपोरेट राज्य है। ‘अवेंजर्स असेम्बल’ में आयरन मैन को शीत युद्ध के दौर में सबसे प्रतीकात्मक नायक कैप्टन अमेरिका और दिव्य सहायता के रूप में थोर का साथ भी मिलता है!
टोनी स्टार्क बेहद अमीर है। वह असाधारण वैज्ञानिक और तकनोलॉजिक प्रतिभा का धनी है। वह अपने प्रतिभावान पिता की सच्ची औलाद है। यहाँ हम पूँजीवादी उत्तराधिकार और विरासत का भी एक साँचाबद्ध चित्रण देख सकते हैं। महानता वंश में ही होती है! और इसके साथ अगर अमेरिकी मेहनतीपन, ढेर सारा पैसा, वैज्ञानिक-तकनोलॉजिकल प्रतिभा का मिश्रण हो जाय तो व्यक्तिगत महानता की एक नयी कहानी लिखी जा सकती है। टोनी स्टार्क की कहानी भी अमेरिकी पूँजीवादी व्यक्तिवाद की सेंसेशनल विजय की कहानी है। वह सुपरमैन जैसा नैतिक होने की बजाय एक काउबॉय जैसी नैतिकता में यक़ीन रखता है और इसलिए अपने एकल व्यक्तिवाद के साथ वह जेम्स बॉण्ड मार्का उपभोक्तावाद और साथ ही क्लिंट ईस्टवुड जैसे काउबॉय का मिश्रण करता है। अमेरिकी वेस्टर्न्स के समान यहाँ भी अमेरिकी पूँजीवाद के विस्तार के लिए एक अनन्त विस्तार को चित्रित किया गया है। लेकिन यह विस्तार अब अमेरिकी महाद्वीप के भीतर अमेरिकी पूँजीवादी सभ्यता का पश्चिमी सीमान्त नहीं है। बल्कि अमेरिकी पूँजीवाद के अनन्त विस्तार के लिए अन्तहीन खुला मैदान अब पूरी पृथ्वी है। आयरन मैन जब चाहे दुनिया के किसी कोने में जाकर किसी भी शत्रु का ख़ात्मा कर सकता है। दुनिया के बाकी देश इसके बारे में कुछ नहीं कर सकते और इस आधुनिक अमेरिकी काउबॉय से निपटने की ताक़त उनके पास नहीं है। काउबॉय फिल्मों के मूल निवासी खलनायकों और बुरे श्वेत खलनायकों की जगह अब दूसरे ‘दुष्ट’ राष्ट्रों ने ले ली है। साथ ही, कुछ बुरे पूँजीपतियों को भी आयरन मैन ठिकाने लगाता है, जो कि देशभक्त नहीं रह गये हैं!
आयरन मैन का चरित्र रॉबर्ट डाउनी जूनियर ने अपनी विशिष्ट आकर्षक शैली में निभाया है। उसका स्टाइल उसे लोकप्रिय बनाने में काफ़ी मदद करता है। इसलिए आयरन मैन फिल्मों द्वारा साम्राज्यवादी विस्तारवाद, हस्तक्षेप, युद्ध और नवउदारवादी भोगवाद, माल अन्धभक्ति का बेशर्म, अपराध-बोध मुक्त और अश्लील चित्रण भी युवाओं के बीच आयरन मैन को लोकप्रिय बनाता है। इस रूप में आयरन मैन फिल्में अमेरिकी बीमार व्यक्तिवाद, सामाजिक डार्विनवाद और ‘विनर्स टेक ऑल’ की विचारधारा के एक प्रभावी वाहक का काम करती हैं और अमेरिकी साम्राज्यवाद की ज़्यादतियों और नरसंहारों का नैसर्गिकीकरण कर उन्हें स्वीकार्य बनाने का प्रयास करती हैं।
अगर सुपरहीरो फिल्मों की बात की जाये तो सम्भवतः इस शैली में बनी तमाम फिल्मों में सबसे प्रभावी और सफल फिल्मों में सबसे पहले क्रिस्टोफर नोलन की बैटमैन त्रयी (बैटमैन बिगिन्स, द डार्क नाइट और द डार्क नाइट राइज़ेज़) का नाम आयेगा। बैटमैन त्रयी को दरअसल एक फिल्म और एक कहानी के तौर पर देखा जाना चाहिए। इस एक कहानी में सुपरहीरो बैटमैन यह सीखता है कि एक सच्चे पूँजीवादी सार्वभौम होने का अर्थ क्या है और इसके लिए उसे क्या करना होगा। बैटमैन त्रयी की फिल्मों में पूँजीवादी विजयवाद अपने नग्न रूप में प्रकट नहीं होता है। इनमें पूँजीवादी समाज की पतनशीलता, हताशा, भ्रष्टाचार और असमानता को छिपाने का प्रयास नहीं किया गया है। फिल्म कभी यह नहीं बोलती कि पूँजीवादी समाज में मूलतः सबकुछ ठीक-ठाक है। लेकिन इस फिल्म का सबसे पहला सन्देश यह है कि पूँजीवादी समाज में असमानता, शोषण, भ्रष्टाचार के बावजूद इसका कोई विकल्प नहीं है; यदि इसका कोई विकल्प पेश करने का प्रयास किया गया तो अन्ततः वह अराजकता और आतंकवाद में समाप्त होगा। इस रूप में यह फिल्म छद्म युग्मों की एक बाइनरी पेश करती हैः पतनशील पूँजीवाद बनाम अराजकता। तीसरा कोई विकल्प नहीं है। इस रूप में यह छद्म बाइनरी किसी भी विकल्प की सम्भावना से इंकार करती है।
नोलन की बैटमैन त्रयी की पहली कड़ी में ही मौजूदा आर्थिक संकट का विस्तृत चित्रण है। लेकिन यह संकट पूँजीवादी व्यवस्था की नैसर्गिक गति और आन्तरिक ढाँचे से पैदा हुआ संकट नहीं है। यह ‘लीग ऑफ़ शैडोज़’ द्वारा किये गये षड्यन्त्र का परिणाम है। पहली फिल्म में बैटमैन के बैटमैन बनने की कहानी को दिखलाया गया है। बैटमैन वास्तव में एक कारपोरेट पूँजीपति ब्रूस वेन है। उसके मुनाफ़े का बड़ा हिस्सा हथियारों की मैन्युफैक्चरिंग और स्टॉक बाज़ार में सट्टेबाज़ी से आता है। इस विरोधाभास को हल करने के लिए फिल्म साथ ही ब्रूस वेन को एक मानवतावादी और फिलैन्थ्रोपिस्ट के रूप में भी पेश करती है जो दान-कर्म करने और अनाथालय वगैरह भी चलाने के लिए पैसे देता है। अनाथालय चलाने के लिए वह इसलिए भी पैसे देता है क्योंकि वह स्वयं भी बचपन में अनाथ हो गया था, जब उसके माता-पिता को एक गुण्डे ने बचपन में मार दिया था। ब्रूस वेन के बैटमैन बनने की प्रेरणा उसी घटना से आती है। बहरहाल, इस अच्छे पूँजीपति को इस फिल्म त्रयी में हमेशा बुरे और भ्रष्ट पूँजीपति के बरक्स खड़ा किया जाता है जैसे कि डॉक्टर ईथन क्रेन और डैगेट। ये बुरे पूँजीपति फिल्म में लुटेरे, देशभक्ति से रिक्त और भ्रष्ट पूँजीवाद के प्रतीक के रूप में दिखते हैं, जबकि ब्रूस वेन और उसके कम्पनी के कई डायरेक्टर या पूँजीवादी टेक्नोक्रैट लूसियस फॉक्स अच्छे, ज़िम्मेदार, मानवतावादी और नैतिक पूँजीवाद के प्रतीक के रूप में दिखलाये जाते हैं। लूसियस फॉक्स तो उस समय बैटमैन की अन्तरात्मा की आवाज़ बनने का प्रयास भी करता है जब बैटमैन एक श्मिटियन सार्वभौम बनने की प्रक्रिया में गॉथम के सारे नागरिकों के मोबाइल को टैप और ट्रैक करता है, ताकि वह जोकर को पकड़ सके। फॉक्स कहता है, “यह अनैतिक है—यह एक व्यक्ति के हाथ में बहुत अधिक शक्ति है।” लेकिन बैटमैन स्पष्ट कर देता है कि वह इस शक्ति को सदा अपने हाथ में केन्द्रित नहीं रखेगा और इसका प्रयोग केवल लूसियस फॉक्स ही कर सकता है। यहाँ यह भी दिखलाया जाता है कि अभी बैटमैन नैतिकता के बन्धनों से पूर्ण रूप से मुक्त हो एक सच्चा पूँजीवादी सार्वभौम बनने को तैयार नहीं है।
बहरहाल, लीग ऑफ़ शैडोज़ के खलनायक (रास अल गुल व बेन तथा जोकर) भ्रष्ट और बुरे पूँजीवाद का इस्तेमाल करके ही अपने कुकर्मों को अंजाम देते हैं। लेकिन बैटमैन त्रयी के खलनायक पैसे या सत्ता में दिलचस्पी रखने वाले खलनायक नहीं हैं। रास अल गुल, बेन और जोकर को पैसों में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं है और इस तथ्य को रेखांकित करने के लिए फिल्म हर कड़ी में कुछ विशेष वाकयों को पेश करती है, जैसे कि जोकर द्वारा नोटों के ढेर को जलाया जाना या फिर बेन द्वारा पूँजीपति डैगेट को यह सन्देश देना कि वह पैसों से उसे ख़रीद नहीं सकता। साथ ही, बैटमैन को भी एक पूँजीपति होने के बावजूद पैसों में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसीलिए वह वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोत के निर्माण के लिए पहले एक काफ़ी ख़र्चीले न्यूक्लियर रिएक्टर का निर्माण करता है और जब उसे पता चलता है कि इसे एक ख़तरनाक परमाणु बम में भी तब्दील किया जा सकता है तो वह उस परियोजना को ही बन्द कर देता है हालाँकि इससे ब्रूस वेन की कम्पनी दिवालियेपन की हालत में पहुँच जाती है। यह वास्तव में दो अतिमानवों के टकराव को पेश करता हैः बैटमैन फिल्म के खलनायक भी एक रूप में उबेरमेंश की भूमिका में ही हैं, जो कि परिघटनात्मक स्तर पर पूँजीवादी समाज को चुनौती पेश करते दिखलाये गये हैं और बैटमैन वह उबेरमेंश है जो कि पूँजीवादी जनवाद के रखवाले के तौर पर पेश किया जाता है। बल्कि कह सकते हैं कि बैटमैन के तीनों प्रमुख शत्रु ही उसे वास्तव में एक पूँजीवादी उबेरमेंश, एक पूँजीवादी सार्वभौम बनने में मदद करते हैं। बैटमैन स्वयं पूँजीपति वर्ग के प्रति सशंकित है। वह बुर्जुआ वर्ग का एक आदर्शवादी और नैतिक हिरावल है और उसके और आम पूँजीपतियों के बीच के फर्क को फिल्म बार-बार रेखांकित करती है। इस रूप में बैटमैन और उसके शत्रुओं में हम नैतिकता की एक विशिष्ट प्रवृत्ति को देख सकते हैं। यह बात जोकर के विषय में ऊपरी तौर पर लागू होते हुए नहीं दिखती है। लेकिन फिर भी, जोकर में भी पूँजीवादी पतन के बरक्स एक विशिष्ट नैतिकता की पहचान की जा सकती है।

इन फिल्मों में बार-बार गॉथम, जो कि बैटमैन का शहर है और शान्ति और व्यवस्था का प्रतीक है, में सतह के नीचे सुलगते असन्तोष को दिखलाया गया है। ऊपर से नज़र आ रही शान्ति तूफ़ान के आने के पहले का सन्नाटा है। तीसरी फिल्म में सेलीना काइल (ऐन हैथवे) ब्रूस वेन से कहती है कि एक तूफ़ान आ रहा है जिसके आने पर तुम लोग (धनी लोग) अपने आपसे पूछोगे कि तुम लोग इतने समय तक इतने प्राचुर्य और ऐश्वर्य के साथ कैसे जीते रह सकते थे, जबकि हम जैसे आम लोगों के लिए तुम इतना कम छोड़ रहे थे। फिल्म में सेलीना काइल एक टुटपुँजिया लेकिन बेहद तेज़-तर्रार चोर है और वह निचले वर्गों के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही है। वह स्वयं बेन के दिखावटी क्रान्तिकारी जुमलेबाज़ी से शुरू में प्रभावित हो जाती है, जो कि धनिक वर्ग के पतनशील ऐश्वर्य के विरुद्ध अराजकतापूर्ण बग़ावत का आह्नान करता है। बाद में, वह इस अराजकतावादी विद्रोह की विद्रूपता को देखती है और बैटमैन के साथ आ जाती है।
बैटमैन का एक उसूल है कि वह कभी बन्दूक का इस्तेमाल नहीं करता और साथ ही वह किसी अपराधी को मारता नहीं है। वह बस उसे कानून के हवाले करने में मदद करता है। लेकिन फिल्म इस नियम या आत्म-आरोपित नैतिक बाध्यता को एक सुपरहीरो, एक उबेरमेंश की भूमिका में एक बाधा के तौर पर पेश करती है। त्रयी के पहले हिस्से ‘बैटमैन बिगिन्स’ में रास अल गुल गॉथम को बरबाद करने के लिए उस पर हमला करता है और इस हमले के लिए वह ब्रूस वेन के औद्योगिक ढाँचे का ही इस्तेमाल करता है। रास अल गुल लीग ऑफ शैडोज़ से है जो कि एक सदियों पुराना संगठन है। यह संगठन यह मानता है कि जब सभ्यता अपनी पतनशीलता के चरम पर पहुँच जाती है तो एक बार उसके विनाश की आवश्यकता होती है। इसके ज़रिये काउण्टर को दुबारा ज़ीरो पर रीसेट कर दिया जाता है और फिर नये सिरे से शुरू से शुरुआत होती है! आप देख सकते हैं कि पूँजीवादी पतनशीलता के विकल्प के तौर पर किसी ‘एग्ज़ॉटिक’ मूर्खता को पेश किया गया है! ख़ैर, गॉथम चूँकि पूँजीवादी पतनशीलता का एक प्रतीक है इसलिए रास अल गुल गॉथम पर हमला करता है। ब्रूस वेन भी लीग ऑफ शैडोज़ में ही प्रशिक्षित होता है और बैटमैन बनने की क्षमता अर्जित करता है। लेकिन वह लीग ऑफ़ शैडोज़ के रास्ते का परित्याग कर गॉथम वापस आ जाता है और बैटमैन बनता है। बहरहाल, रास अल गुल ने गॉथम पर हमले में ब्रूस वेन के उद्योगों के ढाँचे का इस्तेमाल किया जो कि ब्रूस वेन के नियन्त्रण में था और वेन उसके बारे में कहीं ज़्यादा अच्छी तरह से जानता था। इसके कारण अन्ततः ब्रूस वेन रास अल गुल को हरा देता है, लेकिन वह रास अल गुल को मारता नहीं, बल्कि उसे ‘मरने देता है’। बैटमैन कहता है, ‘मैं तुम्हें मारूँगा नहीं, लेकिन तुम्हें बचाना मेरी मजबूरी नहीं है।’ लेकिन स्पष्टतः यह कोई प्रभावी तर्क नहीं है। रास अल गुल बैटमैन को अपने आपको मारने की ही चुनौती देता है और अलग-अलग समय पर वह बैटमैन को एक सार्वभौम, एक सच्चे उबेरमेंश की अपनी भूमिका को अपनाने के लिए उकसाता है। वह कहता है, ‘तुम अभी तक समझ नहीं पाये कि क्या करना अनिवार्य है।’ श्रृंखला की पहली फिल्म में तो बैटमैन रास अल गुल को अपने हाथों से मारने से बच जाता है। लेकिन बैटमैन की नैतिक बाध्यताओं और बन्धनों पर पहली फिल्म में ही सवाल खड़े कर दिये गये हैं। फिल्म स्पष्ट तौर पर यह प्रश्न पूछती है कि क्या नैतिक बन्धनों और बाध्यताओं के साथ पूँजीवादी राज्यसत्ता वास्तव में सार्वभौम हो सकती है? क्या प्रबोधन के जनवाद और समानता के उसूलों के साथ पूँजीवादी सार्वभौम या उबेरमेंश व्यवस्था को बरक़रार रखने का काम कर सकता है? क्या ऐसा हो सकता है कि सार्वभौम व्यवस्था से दूरी लेकर, उससे अलग होकर भी व्यवस्था की रक्षा करे?
श्रृंखला की दूसरी फिल्म में बैटमैन का मुकाबला एक ऐसे खलनायक से होता है जो कि पूर्ण अराजकता में विश्वास करता है। वह रास अल गुल और लीग ऑफ़ शैडोज़ के समान सभ्यता का इसलिए विनाश नहीं करना चाहता कि सभ्यता पतनशीलता के चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी है और उसे फिर से शुरू करना होगा। उसका पूँजीवादी सभ्यता, पूँजीवादी नैतिकता, पूँजीवादी संरचनाओं में कोई यक़ीन ही नहीं है। वह एक सर्वखण्डनवादी अराजकतावाद का हिमायती है और उसका कोई सकारात्मक प्रस्ताव नहीं है। वह अस्तित्व और सभ्यता की ही अर्थहीनता को दिखला देना चाहता है। इस रूप में वह कोई विकल्प नहीं रखता। वह मानता है कि केवल ‘अराजकता ही न्यायपूर्ण होती है।’ यह क्रान्तिकारी अराजकतावाद से कोसों दूर है जो कि मज़दूर वर्ग में एक टुटपुँजिया क्रान्तिकारिता के ट्रेण्ड के रूप में पैदा हुई थी। यह पूँजीवादी सभ्यता के मरणासन्न और पतनशील दौर में पैदा हुई एक पैथोलॉजिकल, सर्वखण्डनवादी अराजकतावादी प्रतिक्रिया है। जोकर एक प्रसंग में अस्पताल में पड़े हार्वी डेंट को एक नीत्शेइयन मोनोलॉग बोलता है जिसमें कि वह अपने सर्वखण्डनवादी अराजकतावाद को स्पष्ट करता है। वह कहता है कि वह अराजकता का अभिकर्ता है; वह योजनाएँ और स्कीमें बनाने में यक़ीन नहीं करता, वह बस करता है। जोकर आगे कहता है कि पुलिस कमिश्नर गॉर्डन जैसे लोग स्कीमें बनाते हैं। लेकिन स्कीमें बनाने वालों में वह बैटमैन का नाम नहीं लेता। जोकर भी बैटमैन को सार्वभौम बनने के लिए प्रेरित करता और चुनौती देता है। वह एक जगह बैटमैन को कहता है, “उन लोगों की तरह बात मत करो! तुम जानते हो कि तुम उनमें से नहीं हो।” आप कह सकते हैं कि बैटमैन त्रयी में सभी खलनायक एक उपकरण हैं जो कि बैटमैन को एक श्मिटियन पूँजीवादी सार्वभौम बनने के लिए प्रेरित करते हैं और उसे समझाते हैं कि इसके अलावा पूँजीवादी राज्यसत्ता, पूँजीवादी उबेरमेंश के लिए और कोई रास्ता नहीं है। एक अन्यायपूर्ण व्यवस्था, एक ग़ैर-बराबरी वाले समाज में कानून और व्यवस्था को बरक़रार रखने का काम कानून और व्यवस्था से इतर होकर ही किया जा सकता है! बैटमैन व्यवस्था के आन्तरिक संकट और पूँजीवादी समाज की पतनशीलता को देख रहा है और समझ रहा है। उसके बावजूद वह कानून और व्यवस्था को बरक़रार रखने, यानी कि इसी व्यवस्था को बरक़रार रखने पर बल देता है। वहीं दूसरी ओर वह अपनी नैतिक दुविधाओं और ज़ंजीरों से भी मुक्त नहीं हो पाता है। जोकर इन्हीं अन्तरविरोधों का लाभ उठाता है और इस प्रक्रिया का पर्याप्त आनन्द लेता है। वह बैटमैन के सामने दो विकल्प रखता है या तो वह अपने नैतिक नियमों को तोड़कर जोकर की हत्या करे और एक पूर्ण पूँजीवादी सार्वभौम में तब्दील हो जाये या फिर वह अपने नैतिक नियमों और बुर्जुआ जनवाद के बन्धनों में बँधा रहे और जोकर द्वारा लायी जा रही तबाही को जारी रहने दे। यहाँ हम जो प्रक्रिया घटित होते देख रहे हैं वह है व्यवस्था का निषेध (Negation) या फिर उसकी पुष्टि (Affermation)। जोकर व्यवस्था के सिर्फ़ शुद्ध निषेध का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि बैटमैन व्यवस्था की शुद्ध पुष्टि का प्रतिनिधित्व करता है। इन दोनों के बीच की ग़ैर-द्वन्द्वात्मक बाइनरी जानबूझकर पेश की गयी है क्योंकि ऐसी बाइनरी वास्तव में किसी भी बदलाव की गुंजाइश को समाप्त कर देती है। परिवर्तन की प्रक्रिया न तो शुद्ध रूप से निषेध की प्रक्रिया होती है और न ही शुद्ध रूप से पुष्टि की प्रक्रिया। ऐसी कोई भी प्रक्रिया मूलतः निषेध का निषेध (Negation of Negation) की प्रक्रिया ही हो सकती है।
ज़ाहिर है कि तमाम सुपरहीरो फिल्मों में हमेशा बुरे और अच्छे के बीच के टकराव को आदर्श रूप में चित्रित किया जाता है। बुरा क्यों बुरा है इसकी आम तौर पर कोई कारणात्मक व्याख्या नहीं होती; बुरा बस बुरा होता है; यही बात अच्छाई के चित्रण पर भी लागू होती है। और उसे एक प्रकार के छद्म (पूँजीवादी) यथार्थवाद के ज़रिये पेश किया जाता हैः ‘ऐसा ही होता है! कुछ लोग बुरे होते हैं और वे बुरे कामों को अंजाम देते हैं! इसीलिए हमें हमारे सुपरहीरोज़ की आवश्यकता होती है।’ ‘दि डार्क नाइट’ में भी जोकर किसी विकल्प के प्रस्ताव के बग़ैर पूँजीवादी समाज की खोखली नैतिकता, असमानता, अन्याय और रूपवाद का मज़ाक उड़ाता है और उसकी आलोचना करता है। चूँकि यह आलोचना अपने आप में पूँजीवादी समाज की मरणासन्नता और खोखलेपन के तमाम पहलुओं को उजागर करती है इसलिए जोकर का चरित्र दुनिया भर में पूँजीवाद-विरोध का एक प्रतीक बन गया है। यही कारण है कि फिल्म के जिस हिस्से में पूँजीवादी समाज की नैतिकता की जोकर की आलोचना को ग़लत दिखाया जाता है वह पूरी फिल्म का सबसे कमज़ोर दृश्य है। यह दृश्य वह है कि जिसमें कि जोकर दो नावों में बम लगा देता है; इन नावों में से एक में गॉथम शहर के ख़तरनाक अपराधी होते हैं और दूसरे में सामान्य नागरिक होते हैं; पहली नाव के बम का डेटोनेटर जोकर दूसरी में सवार लोगों के हवाले कर देता है और दूसरी नाव के बम का डेटोनेटर पहली नाव के लोगों के हाथ और दोनों पर ही सवार लोगों को एक निश्चित समय में एक-दूसरे की नाव को उड़ा देने के लिए कहता है, अन्यथा वह दोनों ही नावों को उड़ा देने की धमकी देता है। अन्ततः, दोनों ही नावों के लोगों पर अन्तरात्मा का आकस्मिक हमला होता है और वे एक-दूसरे की जान नहीं लेते! यह दृश्य दर्शकों को सहमत करने में असफल होता है। जोकर इस पर यह टिप्पणी करता है, “आजकल आप किसी भी चीज़ पर भरोसा नहीं कर सकते!” जोकर का चरित्र निश्चित रूप से बहुत ही प्रभावी ढंग से गढ़ा गया चरित्र है और एक बहुत ही स्वयंस्फूर्त सर्वखण्डनवादी अराजकतावाद है, जो पूँजीवादी व्यवस्था के रूपवाद और नकली नैतिकता से बेतरह नफ़रत करता है। इस चरित्र को हीथ लेजर ने जिस तरीके से पर्दे पर उतारा है, उसे हॉलीवुड फिल्मों के इतिहास के सर्वश्रेष्ठ परफॉर्मेंस में से एक कहा जाय तो यह अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लेकिन फिर भी जोकर द्वारा पूँजीवादी नैतिकता और आचार की यह आलोचना कोई प्रगतिशील वैज्ञानिक आलोचना नहीं है जो कि आलोचना की प्रक्रिया में ही एक विकल्प को पेश करती है, बल्कि यह नीत्शे की ‘जीनियॉलजी ऑफ मॉरल्स’ के मानवतावाद-विरोध और सर्वखण्डनवादी अराजकतावाद का एक प्रतिगामी मिश्रण है, जो केवल परिघटनात्मक तौर पर रैडिकल दिखता है। बहरहाल, जोकर पूँजीवादी सार्वभौमता के समक्ष जो चुनौती पेश करता है और बैटमैन के अन्तरविरोधों को जिस तरह उजागर करता है, उसे फिल्म के अन्त में पुलिस कमिश्नर गॉर्डन और बैटमैन एक प्रकार से स्वीकार करते हैं। वे एक प्रकार से यह मानते हैं कि पूँजीवादी सार्वभौमता कभी भी नैतिक नहीं हो सकती है। नतीजतन, एक संसदीय आपातकाल (‘अपवादस्वरूप स्थिति’) लागू कर दी जाती है, जिसके कानूनी प्रावधान डेंट कानून के रूप में सामने आते हैं और डेंट कानून एक प्रकार से बैटमैन की असफल सार्वभौमता का विकल्प बनते हैं, जो कि फर्जी नैतिकता में फँसी हुई थी। बैटमैन अभी तक, रास अल गुल के शब्दों में, यह समझ नहीं सका था कि क्या करना अपरिहार्य और अनिवार्य है। लेकिन जैसा कि होता है, कोई भी संवैधानिक कानूनी प्रावधान किसी न किसी प्रकार की नैतिक बाध्यता में फँसा ही होता है। इस रूप में डेंट कानून भी क्रमिक प्रक्रिया में निष्प्रभावी हो जाता है। वैसे भी यदि कानूनी संवैधानिक ढाँचे में डेंट कानून जैसा कोई कानून लागू किया जाता है तो वह राज्यसत्ता की हिंसा को ऐसी व्यापकता देता है जो कि उसके वर्चस्व के लिए ही एक ख़तरा बन जाता है।वर्चस्वकारी प्राधिकार का एक ही अर्थ हो सकता है बिना ज़ोर-ज़बर्दस्ती के लोगों को ऐसी स्थिति में रखना जिससे कि वे बिना प्रश्न उठाये प्राधिकार को स्वीकार करें। डेंट कानून जैसे कानून के ज़रिये ऐसा नहीं हो सकता। इसलिए संवैधानिक पूँजीवादी राज्यसत्ता की ही अपनी एक सीमा होती है और वह अपवादस्वरूप स्थिति पर निर्णय लेने में आन्तरिक रूप से अक्षम होती है। पूँजीवाद के राजनीतिक व आर्थिक संकट के दौर में यह बात और भी ज़्यादा लागू होती है। यही कारण है कि एक ऐसे प्राधिकार (सार्वभौम) की आवश्यकता होती है, जो कि पूँजीवादी राज्यसत्ता से अलग भी रहे और पूँजीवादी शासन की ही रक्षा भी करे। यह कार्य एक श्मिटियन सार्वभौम ही कर सकता है, जिसका एक वास्तविक अवतरण, श्मिट के अनुसार हिटलर था!
बैटमैन त्रयी में संवैधानिक पूँजीवादी राज्यसत्ता का सार्वभौमता पर दावा जानबूझकर कमज़ोर दिखलाया गया है। मिसाल के तौर पर, राज्यसत्ता हर जगह कमज़ोर, भ्रष्ट, निष्प्रभावी निकाय के तौर पर प्रदर्शित की गयी है। इस राज्यसत्ता को बाईपास करने के रास्ते अपराधियों ने निकाल लिये हैं। वे उससे डरते नहीं। डेंट कानूनों के बाद पैदा किया गया राज्यसत्ता का भय भी लघुजीवी रहा और अपराधियों ने अपने तौर-तरीके बदलकर उससे बच निकलने के रास्ते निकाल लिये। बैटमैन इस रूप में एक सार्वभौम था कि उसे अपने प्राधिकार की स्वीकार्यता के लिए किसी प्रकार की ज़ोर-ज़बर्दस्ती की आवश्यकता नहीं थी। लेकिन वह सार्वभौमता की सभी शर्तों को पूर्ण करने के लिए तैयार नहीं था। तीसरी फिल्म ‘दि डार्क नाइट राइज़ेज़’ में अन्ततः बैटमैन सार्वभौमता की सारी शर्तों को पूरा करने और इस ज़िम्मेदारी को उठाने के लिए तैयार होता दिखता है। तीसरी फिल्म में एक बार फिर विकल्प के तौर पर एक ऐसी अराजकता का चित्रण किया गया है जिससे कि लोग इस कदर डर जायें कि वे पूँजीवादी समाज की दमनकारी, अन्यायपूर्ण और शोषणकारी “स्थिरता” और “सुरक्षा” को ही स्वीकार कर लें। इस फिल्म का मुख्य खलनायक है बेन। बेन ‘लीग ऑफ शैडोज़’ का सदस्य है और वह रास अल गुल की ही पुरानी योजना को अमल में लाने के लिए आता है। लेकिन बाद में पता चलता है कि वह इतनी मेहनत अपने संगठन के विचारों से प्रेरित होकर नहीं बल्कि रास अल गुल की बेटी तालिया से प्रेम की वजह से कर रहा था! यहाँ यह फिल्म यह भी टिप्पणी करती नज़र आती है कि वास्तव में विचारधारात्मक प्रेरण कभी भी लोगों को प्रेरित नहीं करता; कोई न कोई व्यक्तिगत या निजी चाहत ही अन्ततः लोगों को संचालित करती है। बहरहाल, बेन रास अल गुल और जोकर के विपरीत एक प्रकार का अराजकतावादी विद्रोह संगठित करता है। लेकिन आप पाते हैं कि उसके विद्रोही सिपाही वास्तव में सशस्त्र भाड़े के गुण्डे हैं! उनमें सामान्य मेहनतकश जनता, मज़दूर आदि नहीं शामिल हैं! वास्तव में, मेहनतकश जनता और मज़दूर वर्ग तो इन तीनों ही फिल्मों में या तो अनुपस्थित है या उसका चित्रण जान बचाने के लिए भागती भीड़ आदि के रूप में ही किया गया है। दूसरी ओर, बेन के अराजकतावादी विद्रोह को इस रूप में चित्रित किया गया है कि उसकी तुलना आप कई ऐतिहासिक घटनाओं से कर सकते हैं, जैसे कि बास्तीय किले पर धावा, बोल्शेविक क्रान्ति के ठीक पहले, उसके दौरान और उसके ठीक बाद फैली “अराजकता” और बुर्जुआ वर्ग की सम्पत्ति की ज़ब्ती आदि, मॉस्को मुकदमे का वह चित्र जो कि पश्चिमी साम्राज्यवादी मीडिया ने बहुप्रचारित किया है और साथ ही ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट आन्दोलन। मिसाल के तौर पर, एक दृश्य में बेन गॉथम की एक मुख्य जेल पर हमला कर डेंट कानूनों के तहत बन्दी बनाये गये कैदियों को छुड़वा लेता है। जो खून की प्यासी भीड़ उस जेल से बाहर आती दिखलायी जाती है उसमें अधिकांश लोग काले, मुलैटो, चिकानो आदि हैं। एक दूसरे दृश्य में बेन को वॉल स्ट्रीट को ऑक्युपाई करते हुए दिखलाया गया है! हालाँकि, यह कब्ज़ा बेन सशस्त्र भाड़े के गुण्डों के अपने गिरोह द्वारा करता है! लेकिन चूँकि ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट जनता के बीच लोकप्रिय आन्दोलन था इसलिए इसके बिम्बों का इस्तेमाल बैटमैन के पक्ष में भी किया जाता है। जैसे कि बैटमैन के प्रतीक की छाया को एक इमारत पर डाला जाना जो कि वास्तव में आपको उस वाकये की याद दिलाता है जबकि ऑक्युपाई आन्दोलन के नारे को वेरिज़ॉन वायरलेस की इमारत पर प्रोजेक्ट किया गया था। इस रूप में फिल्म ऑक्युपाई वॉल स्ट्रीट आन्दोलन के एक ख़ास पहलू पर हमला करती है, जिसमें कि दार्शनिक और ऐतिहासिक तौर पर हिंस्र सम्भावना-सम्पन्नता थी। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस आन्दोलन में आन्दोलनकारियों द्वारा कोई हिंसा नहीं की गयी थी। लेकिन ‘ऑक्युपाई’ करना राज्यसत्ता के दृष्टिकोण से अपने आप में एक हिंसक कार्रवाई थी जोकि एक संकटग्रस्त, मरणासन्न और खोखले हो चुके शासक वर्ग को भयभीत करने के लिए पर्याप्त है। इसीलिए ऑक्युपाई आन्दोलन के बिम्बों और छवियों पर फिल्म में दोनों पक्षों से दावा पेश किया गया है और बताया गया है कि इस आन्दोलन का हिंस्र पहलू उसी तरह से विपदा लाने वाला है, जिस तरह से बेन गॉथम पर विपदा लाता है। यही कारण है कि वॉल स्ट्रीट पर बेन के हमले को भयावह रूप में चित्रित किया गया है, जो कि किसी भी सम्पत्तिधारी (चाहे वह टुटपुँजिया ही क्यों न हो!) को भयाक्रान्त करने के लिए पर्याप्त है। हालाँकि बेन इस प्रक्रिया में पूँजीवादी सट्टेबाज़ी और बुरे पूँजीवाद पर टीका-टिप्पणी भी करता रहता है, लेकिन इससे उस दृश्य की प्रमुख प्रभावोत्पादकता पर कोई फर्क नहीं पड़ता।
बेन के इस हमले से पैदा होने वाली असुरक्षा ही वह कारक बनती है जो कि अन्त में बैटमैन को सभी लोगों को एक व्यवस्था-समर्थक एकता में बाँधने में कामयाब बनाती है। लोग अराजकतावादी “आज़ादी” के ख़तरों की बजाय पूँजीवादी “सुरक्षा” के इत्मीनान को अपनाते हैं। बेन पूँजीवादी व्यवस्था के विरुद्ध अराजकतावादी विद्रोह के ज़रिये गॉथम को नष्ट करना चाहता है। गॉथम के लोगों का चित्रण, जैसा कि हमने बताया, एक विशेष प्रकार है जिसमें कि वास्तविक जनता ग़ायब है। जनता या तो लम्पट टुटपुँजिया या लम्पट ग़रीब लोगों के रूप में सामने आती है, जोकि बेन द्वारा गॉथम के लोगों को “शहर पर अपना दावा पुनः पेश करने की आज़ादी” का लाभ उठाते हुए शहर भर में लूटपाट मचा रहे हैं, या फिर वह पत्रकारों की भीड़ है जो कि बेन द्वारा जेल पर हमले के दौरान भाग रहे हैं। इस तरह से जनता फिल्म में एक आकारहीन और अनिश्चयपूर्ण निकाय है जिसे कि बेन जैसे षड्यन्त्रकारी आसानी से अपनी जुमलेबाज़ी का शिकार बना लेते हैं।

इस फिल्म का खलनायक भी बैटमैन को पूर्ण सार्वभौम बनने की चुनौती देता है और इस रूप में बैटमैन को पूर्ण सार्वभौम बनाने का एक उपकरण है। फिल्म की शुरुआत में ही बैटमैन की सार्वभौमता की कमज़ोरी को दिखलाने के लिए ब्रूस वेन को बीमार, कमज़ोर हो चुके व्यक्ति के रूप में दिखलाया जाता है। और उसके विपरीत लीग ऑफ शैडोज़ के मुखिया बेन को दर्शाया जाता है जो अत्यधिक शक्तिशाली है, जो कि किसी भी नैतिकता, नियम और कानून को त्यागने को तैयार है और इस रूप में सार्वभौम की भूमिका को पूर्ण रूप से अपनाने के लिए तैयार है। उसकी यह शक्ति ही उसे बैटमैन को लड़ाई में हराने और बैटमैन की कमर तोड़ने में सक्षम बनाती है। लेकिन वह बैटमैन को मारने की बजाय उस जेल में डाल देता है जिससे भागना नामुमकिन है और जिसमें वह स्वयं था। वहाँ वह बैटमैन को कहता है कि तुम्हें यहाँ पड़े रहकर गॉथम की तबाही देखनी होगी और फिर तुम्हें मेरी ओर से मरने की इजाज़त है। यह एक ओर स्वयं के सच्चे सार्वभौम होने की अभिव्यक्ति है (जबकि अधीनस्थ व्यक्ति का खुद के जीवन पर भी नियन्त्रण नहीं रह जाता) लेकिन साथ ही यह बैटमैन को एक सार्वभौम बनने की चुनौती भी है। यह पूँजीवादी व्यवस्था को एक चुनौती है कि यदि वह सभी प्रकार के बुर्जुआ जनवादी बाध्यताओं और नियम-कानूनों का परित्याग करने को तैयार नहीं है तो आने वाले समय में उसका अस्तित्व ही संकट में पड़ जायेगा क्योंकि पूँजीवादी समाज अपने भयंकर असमानता, अन्याय और शोषण के साथ हमेशा शान्ति से नहीं चल सकता है। जब बैटमैन इस चुनौती को स्वीकार करता है और जेल में अपनी शक्ति पुनः अर्जित करता है, तो उसके भीतर भी एक बदलाव आता है। अब वह सार्वभौम बनने और उसके लिए सभी नैतिकताओं का परित्याग करने को तैयार है। बैटमैन वापस आकर बेन को हराता है और फिर वही बात बेन को कहता है, ‘अब तुम्हें मेरी ओर से मरने की आज्ञा है।’ तभी बेन की प्रेमिका और रास अल गुल की बेटी तालिया बैटमैन को चाकू भोंक देती है। लेकिन तभी सेलीना काइल बैटमैन की बैट मोबील पर प्रकट होती है और बेन को मार डालती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बैटमैन को बेन को अपने हाथों से नहीं मारना पड़ा। बैटमैन का यह कहना ही कि तब तुम्हें मरने की इजाज़त है, यह दिखलाता है कि बैटमैन अब पुराना बैटमैन नहीं रहा। ब्रूस वेन अपनी इच्छा के विपरीत पाता है कि उसे व्यवस्था से इतर होकर व्यवस्था की रक्षा करने की भूमिका यानी कि एक सच्चे सार्वभौम की भूमिका निभानी होगी। लेकिन वह स्वयं इसके लिए तैयार नहीं है। इसलिए अन्त में वह गॉथम को परमाणु बम से बचाते हुए मारे जाने का स्वाँग करता है (या सम्भवतः सच में मारा जाता है क्योंकि बाद में अल्फ्रेड का एक कॉफी हाउस में ब्रूस वेन और सेलीना काइल को एक नयी ज़िन्दगी जीते हुए देखना एक सपना भी हो सकता है)। पुलिस बल का एक जूनियर ऑफिसर ब्लेक अब नया बैटमैन बनने की प्रक्रिया में दिखलाया जाता है। यानी ब्रूस वेन ने बैटमैन के रूप में पूर्ण सार्वभौम की भूमिका को स्थायी तौर पर अपनाने से इंकार कर दिया है। लेकिन एक पूँजीवादी व्यवस्था को पूर्ण सार्वभौम चाहिए ही होता है। इसलिए बैटमैन ख़त्म नहीं होता। इस पूर्ण सार्वभौम की भूमिका को अपनाने के लिए ऑफिसर ब्लेक आगे आता है और पुलिस बल से इस्तीफ़ा देते हुए वह पुलिस कमिश्नर गॉर्डन के शब्दों को दुहराते हुए कहता है, “कभी-कभी संरचनाएँ बेड़ियाँ बन जाती हैं।” यह फिल्म का प्रतीकात्मक कथन है और उसका सन्देश है।
इस तरह से यह फिल्म वास्तव में पूँजीवादी व्यवस्था और समाज के शोषण, असमानता और अन्याय को छिपाने का प्रयास नहीं करती क्योंकि ऐसा करना व्यर्थ होगा। इसलिए यह फिल्म पूँजीवादी यथार्थवाद के साथ इस तथ्य को स्वीकार करती है। लेकिन साथ में बेन के रूप में एक छद्म विकल्प को पेश करती है। इस फिल्म त्रयी की हर फिल्म एक छद्म विकल्प पेश करते हुए पूँजीवादी व्यवस्था को एकमात्र सम्भव विकल्प के रूप में पेश करती है और वास्तव में सम्भव विकल्पों का एक ऐसा कैरीकेचर पेश करती है, जो कि जनता की निगाह में उन्हें डिस्क्रेडिट करे। मिसाल के तौर पर, त्रयी की आखि़री फिल्म में, जैसा कि हमने ऊपर बताया, फ्रांसीसी क्रान्ति और रूसी क्रान्ति के बिम्बों का इस्तेमाल जानबूझकर किया गया है। जेल पर बेन का हमला और उसके बाद की अराजकता एक मँडराते हुए संकट का भय पैदा करने वाला दृश्य  है। साथ ही, मॉस्को मुकदमे के विषय में साम्राज्यवादी दुष्प्रचार पर आधारित बेन द्वारा चलाये जा रहे जन ट्रिब्यूनल का दृश्य यह दिखलाता है कि जनता न्याय करने में अक्षम है। केवल पूँजीवादी जनवाद की तयशुदा प्रणालियों के ज़रिये ही न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है, चाहे वह अधमरा और निहायत देर से मिलने वाला न्याय हो। जनता का द्रुत न्याय भयंकर और भयावह है। बुनियादी सन्देश यह है कि आप उन लोगों पर भरोसा करें जो सत्ता चला रहे हैं, चाहे यह सत्ता कितनी ही दोषपूर्ण क्यों न हो।
साथ ही, चलते-चलते फिल्म एक प्रकार से विकीलीक्स और स्नोडेन के खुलासों पर भी टिप्पणी करती है। फिल्म का यह सन्देश कई दृश्यों में उभरकर सामने आता है कि जनता सत्य के लिए तैयार नहीं है! जनता के सामने यदि सत्य को तत्काल उजागर किया गया तो यह विनाशकारी होगा। और जो ये सच्चाइयाँ उजागर करते हैं, वे दरअसल देशद्रोही और बुरे लोग हैं। मिसाल के तौर पर, गॉर्डन का गुप्त पत्र जो कि यह बताता है कि गॉथम का ‘व्हाइट नाइट’ हार्वी डेंट एक अपराधी बन चुका था, बेन द्वारा जनता के सामने उजागर कर दिया जाता है और नतीजतन पूरी बुर्जुआ व्यवस्था और न्याय पर से ही जनता का भरोसा उठ जाता है और इससे बेन को अवसर मिल जाता है कि वह अपनी आतंकवादी अराजकता फैला सके। साथ ही, ब्रूस वेन का न्यूक्लियर रिएक्टर सूचना लीक होने की वजह से ही बेन के हाथ लग जाता है क्योंकि तालिया बेन को इस रिएक्टर के बारे में बता देती है, जिसे कि ब्रूस वेन अपना साथी मानता था। तालिया की मुखबिरी का नतीजा यह होता है कि बेन उस रिएक्टर को गॉथम को नष्ट करने के लिए एटम बम बनाने में इस्तेमाल करता है। इस प्रकार वह झीना पर्दा उठ जाता है जिसे बैटमैन और कमिश्नर गॉर्डन गिराये रखना चाहते थे, यानी न्याय और जनवाद का वह झीना पर्दा जो पूँजीवादी व्यवस्था की असलियत को छिपाता है। और पूँजीवादी व्यवस्था के इस सत्य के उजागर होने से वह पूरी व्यवस्था ही संकट में पड़ जाती है जो कि अपनी तमाम कमियों के बावजूद एक स्थिरता, सुरक्षा और निश्चितता दे रही होती है; वह सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था जिसकी मानव जाति उम्मीद कर सकती है। इस रूप में बैटमैन फिल्म त्रयी सही मायने में उत्तरआधुनिक फिल्में हैं।
यह संयोग नहीं है कि नोलन बैटमैन त्रयी की अपनी तीसरी फिल्म में चार्ल्स डिकेन्स के ‘ए टेल ऑफ टू सिटीज़’ के दृश्यों से प्रभावित दृश्य खड़े करते हैं। स्लावोय ज़िज़ेक ने अपनी समीक्षा में दिखाया है कि अल्फ्रेड ब्रूस वेन के अन्तिम संस्कार पर इसी उपन्यास की आख़िरी पंक्तियाँ पढ़ता है। वास्तव में, ये तीनों ही फिल्में अच्छे पूँजीपति और बुरे पूँजीपति के बीच के अन्तर को जिस रूप में इस्तेमाल करती हैं, उसे भी डिकेन्सियन कहा जा सकता है। बुरा पूँजीवाद किस प्रकार के विनाशकारी जनविद्रोह की ओर ले जा सकता है, ‘ए टेल ऑफ टू सिटीज़’ में डिकेन्स इसका वर्णन करते हैं। बैटमैन त्रयी की तीसरी फिल्म में बेन के अराजकतावादी विद्रोह का चित्रण काफ़ी-कुछ वैसा ही है। यहाँ नोलन की उदारवादी चिन्ताएँ भी प्रकट हो रही हैं। नोलन पूँजीपति वर्ग को चेता भी रहे हैं कि इस प्रकार की पतनशीलता अन्ततः घातक हो सकती है। लेकिन चूँकि नोलन भी कहीं न कहीं जानते हैं कि ऐसी चेतावनियों का आदमखोर पूँजीवाद पर कोई विशेष असर नहीं पड़ने वाला है, इसलिए वे साथ में समस्या का एक निदान भी सुझाते हैं जो और कुछ नहीं बल्कि एक श्मिटियन पूँजीवादी सार्वभौम ही हो सकता है। लेकिन साथ ही नोलन अराजकतावादी विद्रोह की हिंसा से सभी को भयभीत करना चाहते हैं। वह याद दिलाते हैं कि रॉब्सपियेर के ‘आतंक के राज्य’ में क्या हुआ था!इस रूप में वह हिंसा के प्रश्न को ही वर्गेतर बना देते हैं; जनता की हिंसा का एक ख़ास विकृत चित्रण किया जाता है और राज्यसत्ता की हिंसा को जवाबी हिंसा और कानून, व्यवस्था और शान्ति पुनर्स्थापित करने की हिंसा के रूप में दिखलाया जाता है; यह दिखलाया जाता है कि लोग बेन के अराजकतावादी विद्रोह (के ढोंग) की हिंसा को देखकर सुरक्षा की चाहत में किस प्रकार बैटमैन और पुलिस के साथ एकजुट हो जाते हैं। हिंसा के प्रश्न का यह ट्रीटमेण्ट स्पष्टतः पूँजीवादी व्यवस्था की सतत् जारी हिंसा को अप्रासंगिक बना देता है। ज़िज़ेक ने मार्क ट्वेन की प्रसिद्ध रचना ‘ए कनेक्टिकट यांकी इन किंग आर्थर्स कोर्ट’ के इस उद्धरण को पेश करते हुए इस चित्रण पर सही टिप्पणी की है, हालाँकि फिल्म की उनकी कुल आलोचना से सहमत होना थोड़ा मुश्किल हैः
“अगर हम याद करें और इस पर विचार करें तो हम पाते हैं कि ‘आतंक का राज्य’ एक नहीं बल्कि दो हैं; एक वह जो कि उबलते आवेग में ढला हुआ था, और दूसरा जो कि हृदयहीनता और ठण्डेपन से भरा हुआ था—हमारे कन्धे मामूली ‘आतंक’, क्षणिक ‘आतंक’ की ‘भयावहताओं’ पर काँप उठते हैं; अगर ग़ौर किया जाय तो कुल्हाड़ी के हाथों अचानक द्रुत मौत, भूख, ठण्ड, अपमान, क्रूरता और गहरे शोक के हाथों जीवन भर चलने वाली मौत की तुलना में क्या है? एक शहर का कब्रिस्तान उस संक्षिप्त से ‘आतंक’ से भरे गये ताबूतों को जगह देने के लिए पर्याप्त है जिसके नाम पर काँप उठने और मातम मनाने के लिए हमें इतनी श्रमसाध्यता के साथ प्रशिक्षित किया गया है; लेकिन उस ज़्यादा पुराने और वास्तविक आतंक के कारण भरे गये ताबूतों के लिए सारा फ्रांस छोटा पड़ेगा, वह अकथ्य रूप से कड़वा और भयंकर आतंक, जिसे उस व्यापकता या करुणा के साथ देखना हममें से किसी को भी नहीं सिखाया गया, जिसका कि वह अधिकारी है।”
मानव इतिहास में किसी भी मुक्तिकामी, वास्तव में मुक्तिकामी प्रक्रिया में कुछ न कुछ बल प्रयोग, आतंक या हिंसा होती ही है। वर्ग समाज का यह अकाट्य ऐतिहासिक सत्य है। यह फिल्म हिंसा की भयावहता को पूँजीवादी परिप्रेक्ष्य से दिखाकर हर प्रकार के मुक्तिकामी जनान्दोलन पर ही चोट करती है और जनता में भी उसके प्रति भय पैदा करती है। इस रूप में यह फिल्म कई स्तरों पर काम करती है और उसका पूरा बिम्ब-विधान क्रिस्टोफर नोलन ने बड़े ही करीने से रचा है। वैसे तो इस फिल्म में मॉडर्निस्ट स्थापत्य-कला, रंगों के प्रयोग, ध्वनियों और पार्श्व संगीत के प्रयोग पर भी विस्तार से लिखा जाना चाहिए। लेकिन अभी यह हमारे लेख की सीमा से परे है। इस फिल्म में, हम कह सकते हैं, कि नोलन एक सच्चे और उम्दा कंज़र्वेटिव कलाकार के समान फिल्म की विधा का सूक्ष्मतम, व्यापकतम और कुशलतम इस्तेमाल करते हैं और इसीलिए यह फिल्म बहुसंस्तरीय है, बहुस्वरीयता से परिपूर्ण है और ख़तरनाक तरीके से साम्राज्यवादी नवउदारवादी तर्कों का वर्चस्व स्थापित करने का प्रयास करती है। और यही कारण है कि सुपरहीरो फिल्मों में नोलन की बैटमैन त्रयी एकदम अलग और विस्तृत आलोचनात्मक समीक्षा की माँग करती है। यहाँ हमारा मकसद केवल इस फिल्म की समीक्षा नहीं बल्कि सुपरहीरो फिल्मों की शैली के रूप और अन्तर्वस्तु की आलोचनात्मक पड़ताल था। इसीलिए इस फिल्म की एक बेहद संक्षिप्त और असन्तुष्ट करने वाली समीक्षा हमने यहाँ रखी है।
अन्त में, हम कहना चाहेंगे कि पूँजीवादी आर्थिक व राजनीतिक संकट के दौर में पलायनवादी कल्पनाओं के रूप में और वास्तविक समस्याओं के फैण्टास्टिक समाधान प्रस्तुत कर यथार्थ में अनुपस्थित मूल्यों व अभाव (lack) की एक प्रतिगामी पूर्ति कर सुपरहीरो फिल्में समूची पूँजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था की सेवा करती हैं और जनता की पहलकदमी की भावना (वह जिस मात्रा में भी हो या सम्भावना के रूप में हो) को ख़त्म करने और उस पर चोट करने का काम करती हैं। इनमें बैटमैन त्रयी जैसी फिल्में इस कार्य को कई स्तरों पर व्यवस्था के लिए वैधीकरण तैयार करते हुए करती हैं। ये फिल्में छद्म विकल्पों का द्वन्द्व पेश कर जनता के समक्ष एक विकल्पहीनता की स्थिति के पक्ष में राय बनाती हैं और यह यक़ीन दिलाने का प्रयास करती हैं कि जो है वह सन्तोषजनक नहीं है, लेकिन यही वह सर्वश्रेष्ठ स्थिति है, जिसकी हम उम्मीद कर सकते हैं। ये फिल्में वर्तमान साम्राज्यवाद के कुकर्मों को सूक्ष्म सिनेमैटिक रूपकों के ज़रिये सही ठहराने का प्रयास करती हैं। साथ ही, ऐसी तमाम फिल्में समाज में किसी उबेरमेंश की वांछनीयता के लिए स्वीकार्यता बनाकर प्रतिक्रिया की ज़मीन भी पैदा करती हैं। यह संयोग नहीं है कि तमाम दक्षिणपंथी और फासीवादी राजनीति के नेताओं को राजनीतिक प्रचार अभियानों के दौरान सुपरमैन, बैटमैन, आयरन मैन या किसी और सुपरहीरो के रूप में पेश किया जाता है जो कि अपनी निर्णायकता, द्रुत और हिंस्र न्याय, आदि के ज़रिये सबकुछ ठीक कर सकता है। इनमें से एक-एक फिल्म की व्यापक और सूक्ष्म आलोचना की आवश्यकता है और जनपक्षधर सांस्कृतिक आलोचकों को यह कार्य हाथ में लेना चाहिए। वैसे तो दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्यवादी संस्कृति उद्योग हॉलीवुड के हर उत्पाद की ही करीबी से आलोचनात्मक पड़ताल की जानी चाहिए।
·   साभार नान्दीपाठ


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