शिवकुमार बिलगरामी की ग़ज़लें
गज़ले
एक
तुम्हें बादल दिखायेगा , तुम्हारे वोट ले लेगा
मगर कोई सियासतदां तुम्हें पानी नहीं देगा
ग़रीबो के लिए जब भी कोई भी योजना आये
तो तुम भी देखना मंज़र कि इस पर कौन झपटेगा
बरसनेवाले बादल की यही तो ख़ास फ़ितरत है
ज़रूरत है जहाँ उसकी वहाँ हरगिज़ न बरसेगा
सियासत ख़त्म हो जिस दिन मुझे बेहद ख़ुशी होगी
मगर उस दिन सुना है ये किसी का दिल भी टूटेगा
ज़माने को बदलने की करो तदबीर कितनी भी
अगर तुम ख़ुद न बदले तो ज़माना खाक बदलेगा
दो
सुब्ह जब अखबार आता है तो डर जाता हूँ मैं
मौत की ख़बरों को पढ़कर रोज़ मर जाता हूँ मैं
फेसबुक पर ज़ुल्म के हैं कैसे कैसे वीडियो
देखते ही इनको अंदर तक सिहर जाता हूँ मैं
दल प्रवक्ता न्यूज़ चैनल पर अजब बातें करें
सुनके उनकी बेतुकी बातें बिखर जाता हूँ मैं
अधमरे से लोग हैं फुटपाथ पर लेटे हुए
रोज़ इनका दर्द लेकर अपने घर जाता हूँ मैं
खूं ख़राबा की दुकानें अम्न के रस्ते पे क्यों
रास्ता कोई दिखाओ ये किधर जाता हूँ मैं
तीन
आदमी की ज़िन्दगी में तल्खियाँ क्यूँ हैं
आँख में नफ़रत जुबां पर गालियाँ क्यूँ हैं
किसलिए है हर किसी के दिल में जलती आग
हर किसी के दिल में उठती आँधियाँ क्यूँ हैं
बात करने का सलीक़ा तक नहीं आता
नर्म लहज़े में भी इतनी सख़्तियाँ क्यूँ हैं
सर्द चेहरों को ज़रूरत गुफ़्तगूँ की है
सर्द चेहरों पर मगर खामोशियाँ क्यूँ हैं
मैं भी सोचूँ तुम भी सोचो क्यों हुआ ऐसा
दो दिलों के बीच इतनी दूरियां क्यूँ हैं
चार
कोई पैदल तो कोई कार में दौड़ रहा है
जिसको देखो वही संसार में दौड़ रहा है
अपने अपने हैं भरम और बहाने अपने
कोई नफ़रत में कोई प्यार में दौड़ रहा है
इसकी आदत है कि इसकी है कोई मजबूरी
किसलिए आदमी रफ़्तार में दौड़ रहा है
हर किसी की है यहाँ एक डगर तय , फिर भी
हर तरफ आदमी बेकार में दौड़ रहा है
ये तेरा हुक़्म है रब , या कि तेरी है मर्ज़ी
हर कोई क्यों तेरे संसार में दौड़ रहा है
पांच
अच्छे अच्छों को ये अंगरेज़ी पढ़ा देते हैं
छोटे बच्चे भी हमें बुद्धू बना देते हैं
घर के बच्चों से कोई बात न करना घर की
घर की बातें ये पड़ोसी को बता देते हैं
अपने बच्चों को कभी डाँट के देखो तो सही
हम कहें एक तो ये चार सुना देते हैं
इनसे सोने के लिए रात में जो कह दें तो
इतना रोते हैं कि हमको भी रुला देते हैं
अपना दुखदर्द न कहते हैं कभी भी हमसे
अपना दुखदर्द खिलौनों को सुना देते हैं
छ:
कैसे -कैसे कलयुगी हैं इस धरा पर हे प्रभू !
किस तरह ख़ुद को रखूँ इनसे बचाकर हे प्रभू !
सच न देखें ,सच न बोलें,सच श्रवण से भी बचें
क्या यही हैं गाँधी जी के तीन बन्दर हे प्रभू !
सोच में जिनके घुसा है प्राण घातक वायरस
क्या कोई उनके लिए भी है दवाघर हे प्रभू !
ये कहाँ , और मैं कहाँ , तू मुझको इनसे दूर रख
गिर नहीं सकता हूँ मैं इनके बराबर हे प्रभू !
अग्निवाणों से करूँ मैं मेघवर्षा किस तरह
कर रहे अन्याय मुझ पर तुम सरासर हे प्रभू !
सात
तुम्हारे सब्ज बाग़ों में हमें सूखा नहीं दिखता
मज़े की बात लेकिन यह कहीं दरिया नहीं दिखता
तुम्हारा वादा था हमसे कि तुम चेहरे खिलाओगे
मगर हमको कोई खिलता हुआ चेहरा नहीं दिखता
तुम्हारे इश्तहारों में तरक़्क़ी की नुमाइश है
मगर हमको तरक़्क़ी का कहीं जल्वा नहीं दिखता
हज़ारों ख़ूबियों के संग यही इक ऐब है तुम में
तुम्हें अपने सिवा जग में कोई अच्छा नहीं दिखता
तुम्हारी रहनुमाई पर भरोसा हम करें कैसे
हमें तुमसे बड़ा जग में कोई झूठा नहीं दिखता
आठ
शहर की आबो -हवा से आक्सीज़न है नदारद
गाँव में भी बिन धुआँ का स्वच्छ ईंधन है नदारद
आजकल के इन बड़ों का क्यों करे सम्मान कोई
उम्र में , पद में बड़े हैं , पर बड़प्पन है नदारद
बैंक में बैलेंस रखते जो करोड़ों डालरों का
उन अमीरों में मगर संतोष का धन है नदारद
जो पहनकर जीन्स और टी -शर्ट चलते हैं सड़क पर
उनके अंदर भी विचारों का खुलापन है नदारद
इसलिए अपराध बढ़ते जा रहे हैं देश भर में
क्योंकि सिस्टम से हमारे दे दनादन है नदारद
नौ
लोग चिल्लाते रहे आग बुझाने के लिए
और झुंड आते रहे आग लगाने के लिए
उनका नारा था हुक़ूक़ों की लड़ाई है ,मगर
गुंडे आये थे वहाँ लूट मचाने के लिए
यही वो खेत हैं गेहूँ के जहाँ महिलायें
छटपटाई थीं बहुत लाज बचाने के लिए
मीडिया पूछ रहा है ये किसी "मुर्दे" से
कौन आया था ये दूकान जलाने के लिए
ये अजब देश है जिसमें कोई सरकार नहीं
ये पुलिस और प्रशासन है दिखाने के लिए
दस
इन्हें देखो कभी भी मुस्कुराना कम नहीं होता
सियासत में किसी को भी किसी का ग़म नहीं होता
ये बातें खूब करते हैं कि दुनिया हम बदल देंगे
मगर दुनिया बदलने का किसी में दम नहीं होता
उठाये फिर रहे परचम कि जैसे जान दे देंगे
मगर ताउम्र इनका एक ही परचम नहीं होता
तुम्हारी बदमिजाज़ी से हमें अब ये भी लगता है
सियासत में शराफ़त का कोई मौसम नहीं होता
जहाँ पर भी सियासत से क़सम खाई है लोगों ने
वहाँ पर फिर कोई झगड़ा ,कोई मातम नहीं होता
००
शिवकुमार बिलगरामी |
गज़ले
एक
तुम्हें बादल दिखायेगा , तुम्हारे वोट ले लेगा
मगर कोई सियासतदां तुम्हें पानी नहीं देगा
ग़रीबो के लिए जब भी कोई भी योजना आये
तो तुम भी देखना मंज़र कि इस पर कौन झपटेगा
बरसनेवाले बादल की यही तो ख़ास फ़ितरत है
ज़रूरत है जहाँ उसकी वहाँ हरगिज़ न बरसेगा
सियासत ख़त्म हो जिस दिन मुझे बेहद ख़ुशी होगी
मगर उस दिन सुना है ये किसी का दिल भी टूटेगा
ज़माने को बदलने की करो तदबीर कितनी भी
अगर तुम ख़ुद न बदले तो ज़माना खाक बदलेगा
दो
सुब्ह जब अखबार आता है तो डर जाता हूँ मैं
मौत की ख़बरों को पढ़कर रोज़ मर जाता हूँ मैं
फेसबुक पर ज़ुल्म के हैं कैसे कैसे वीडियो
देखते ही इनको अंदर तक सिहर जाता हूँ मैं
दल प्रवक्ता न्यूज़ चैनल पर अजब बातें करें
सुनके उनकी बेतुकी बातें बिखर जाता हूँ मैं
अधमरे से लोग हैं फुटपाथ पर लेटे हुए
रोज़ इनका दर्द लेकर अपने घर जाता हूँ मैं
खूं ख़राबा की दुकानें अम्न के रस्ते पे क्यों
रास्ता कोई दिखाओ ये किधर जाता हूँ मैं
तीन
आदमी की ज़िन्दगी में तल्खियाँ क्यूँ हैं
आँख में नफ़रत जुबां पर गालियाँ क्यूँ हैं
किसलिए है हर किसी के दिल में जलती आग
हर किसी के दिल में उठती आँधियाँ क्यूँ हैं
बात करने का सलीक़ा तक नहीं आता
नर्म लहज़े में भी इतनी सख़्तियाँ क्यूँ हैं
सर्द चेहरों को ज़रूरत गुफ़्तगूँ की है
सर्द चेहरों पर मगर खामोशियाँ क्यूँ हैं
मैं भी सोचूँ तुम भी सोचो क्यों हुआ ऐसा
दो दिलों के बीच इतनी दूरियां क्यूँ हैं
चार
कोई पैदल तो कोई कार में दौड़ रहा है
जिसको देखो वही संसार में दौड़ रहा है
अपने अपने हैं भरम और बहाने अपने
कोई नफ़रत में कोई प्यार में दौड़ रहा है
इसकी आदत है कि इसकी है कोई मजबूरी
किसलिए आदमी रफ़्तार में दौड़ रहा है
हर किसी की है यहाँ एक डगर तय , फिर भी
हर तरफ आदमी बेकार में दौड़ रहा है
ये तेरा हुक़्म है रब , या कि तेरी है मर्ज़ी
हर कोई क्यों तेरे संसार में दौड़ रहा है
पांच
अच्छे अच्छों को ये अंगरेज़ी पढ़ा देते हैं
छोटे बच्चे भी हमें बुद्धू बना देते हैं
घर के बच्चों से कोई बात न करना घर की
घर की बातें ये पड़ोसी को बता देते हैं
अपने बच्चों को कभी डाँट के देखो तो सही
हम कहें एक तो ये चार सुना देते हैं
इनसे सोने के लिए रात में जो कह दें तो
इतना रोते हैं कि हमको भी रुला देते हैं
अपना दुखदर्द न कहते हैं कभी भी हमसे
अपना दुखदर्द खिलौनों को सुना देते हैं
छ:
कैसे -कैसे कलयुगी हैं इस धरा पर हे प्रभू !
किस तरह ख़ुद को रखूँ इनसे बचाकर हे प्रभू !
सच न देखें ,सच न बोलें,सच श्रवण से भी बचें
क्या यही हैं गाँधी जी के तीन बन्दर हे प्रभू !
सोच में जिनके घुसा है प्राण घातक वायरस
क्या कोई उनके लिए भी है दवाघर हे प्रभू !
ये कहाँ , और मैं कहाँ , तू मुझको इनसे दूर रख
गिर नहीं सकता हूँ मैं इनके बराबर हे प्रभू !
अग्निवाणों से करूँ मैं मेघवर्षा किस तरह
कर रहे अन्याय मुझ पर तुम सरासर हे प्रभू !
सात
तुम्हारे सब्ज बाग़ों में हमें सूखा नहीं दिखता
मज़े की बात लेकिन यह कहीं दरिया नहीं दिखता
तुम्हारा वादा था हमसे कि तुम चेहरे खिलाओगे
मगर हमको कोई खिलता हुआ चेहरा नहीं दिखता
तुम्हारे इश्तहारों में तरक़्क़ी की नुमाइश है
मगर हमको तरक़्क़ी का कहीं जल्वा नहीं दिखता
हज़ारों ख़ूबियों के संग यही इक ऐब है तुम में
तुम्हें अपने सिवा जग में कोई अच्छा नहीं दिखता
तुम्हारी रहनुमाई पर भरोसा हम करें कैसे
हमें तुमसे बड़ा जग में कोई झूठा नहीं दिखता
आठ
शहर की आबो -हवा से आक्सीज़न है नदारद
गाँव में भी बिन धुआँ का स्वच्छ ईंधन है नदारद
आजकल के इन बड़ों का क्यों करे सम्मान कोई
उम्र में , पद में बड़े हैं , पर बड़प्पन है नदारद
बैंक में बैलेंस रखते जो करोड़ों डालरों का
उन अमीरों में मगर संतोष का धन है नदारद
जो पहनकर जीन्स और टी -शर्ट चलते हैं सड़क पर
उनके अंदर भी विचारों का खुलापन है नदारद
इसलिए अपराध बढ़ते जा रहे हैं देश भर में
क्योंकि सिस्टम से हमारे दे दनादन है नदारद
नौ
लोग चिल्लाते रहे आग बुझाने के लिए
और झुंड आते रहे आग लगाने के लिए
उनका नारा था हुक़ूक़ों की लड़ाई है ,मगर
गुंडे आये थे वहाँ लूट मचाने के लिए
यही वो खेत हैं गेहूँ के जहाँ महिलायें
छटपटाई थीं बहुत लाज बचाने के लिए
मीडिया पूछ रहा है ये किसी "मुर्दे" से
कौन आया था ये दूकान जलाने के लिए
ये अजब देश है जिसमें कोई सरकार नहीं
ये पुलिस और प्रशासन है दिखाने के लिए
दस
इन्हें देखो कभी भी मुस्कुराना कम नहीं होता
सियासत में किसी को भी किसी का ग़म नहीं होता
ये बातें खूब करते हैं कि दुनिया हम बदल देंगे
मगर दुनिया बदलने का किसी में दम नहीं होता
उठाये फिर रहे परचम कि जैसे जान दे देंगे
मगर ताउम्र इनका एक ही परचम नहीं होता
तुम्हारी बदमिजाज़ी से हमें अब ये भी लगता है
सियासत में शराफ़त का कोई मौसम नहीं होता
जहाँ पर भी सियासत से क़सम खाई है लोगों ने
वहाँ पर फिर कोई झगड़ा ,कोई मातम नहीं होता
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