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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

03 अप्रैल, 2018

मेले में कविता

प्रस्तुति: मुरारी शर्मा


हिमाचल के सुंदरनगर कस्बे में नलवाड़ मेले के अवसर पर कविताओं के माध्यम से हिमाचल के कवियों ने सामाजिक कुरीतियों और विसंगतियों पर प्रहार करते हुए साहित्यिक माहौल बनाया। सुकेत साहित्य परिषद एवं मेला कमेटी के सौजन्य से कवि गोष्ठी का आयोजन करके यह संदेश दिया गया कि कविता के बिना अब मेले भी अधूरे लगने लगे हैं इसलिए राज्य स्तरीय सुकेत नलवाड़ एवं मेला कमेटी की ओर से सुकेत साहित्य एवं सांस्कृतिक परिषद के सहयोग से कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।


इस अवसर पर मशहूर कवि गणेश गनी ने बतौर मुख्यअतिथि शिरकत की। इस मौके पर  जिला भर से तथा कुल्लू से करीब पचास कवियों ने हिस्सा लिया। सुकेत साहित्य एवं संस्कृति परिषद के अध्यक्ष गंगा राम राजी ने कहा कि परिषद हर वर्ष मेला कमेटी के सहयोग से इस तरह के आयोजन करती आई है। इस कवि सम्मेलन में कविताओं के माध्यम से कवियों ने सामाजिक कुरीतियों, रूढिय़ों और विसंगतियों पर करारा प्रहार किया।
कवि गोष्ठी का आगाज कुल्लू से आए संगीतकार व कवि कैलाश गौतम ने गजल सुनाकर किया। वहीं पर हेमराज ने मंडयाली हास्य कविता सुनाई, वही पर कवयित्री अर्पणा धीमान ने कहा- काल की आंख से छलकती पीड़ा की धारा ही तो हूं मैं, यथार्थ से जूझता जीवन सागर का किनारा ही तो हूं मैं। वरिष्ठ कवयित्री हरिप्रिया शर्मा ने कहा - एकांत में बैठे शब्दों के पास बहुत पास सरक आए विचार शब्द बन गए फूल । लोकगायिका एवं कवयित्री रूपेश्वरी शर्मा ने कहा - मां मैं जानती हूं तुम्हें भाया होगा मेरा यह रूप ओ अम्मा, मैं उडऩे लगी हूं वायुयान सी, मैंने पढ़ लिए हैं विज्ञान के सभी रहस्य । लोकसंस्कृति कर्मी एवं कवि कृष्ण चंद्र महादेविया ने अपनी कविता कुछ यूं बयां की- गेहूं मटर के बिस्से हवा ने थपथपाया, बादलों के पर्दे में चांद छुप गया गौशाला के पीछे बुल और बुलबुल चहकते रहे।   वहीं पर अपने शायराना अंदाज में शायर रवि राणा शाीहन ने कहा- ऐ रफीको क्यों भला ऐसा है आलम, सांप जैसी हो गई क्यों नसल -ए-आदम।
कवि गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए जगदीश कपूर ने कहा -रात की रानी की खुशबू दे रही हमको सदाएं, शोख सावन की घटा में आओ चलें कहीं घूम आएं। इस अवसर पर किरण गुलेरिया ने अपनी सुरीली आवाज में गीत सुनाया। वहीं पर किरन शर्मा, एलआर शर्मा, पॉमिला ठाकुर ने भी अपनी कतिा का पाठ किया। इसके अलावा प्रियवंदा शर्मा, रश्मि शर्मा, भीम सिंह चौहान, हेमराज,  विजय विशाल, बीआर शर्मा, आरके गुप्ता, सुरेंद्र मित्रा, रतन लाल शर्मा, गंगाराम राजी, सुरेश सेन निशांत, शीतल, प्रेरणा, पल्लवी, दीनू कश्यप, सरीर कश्यप, पवन चौहान, घनश्याम , सुषम लता सूद, हीरा सिंह, दीक्षा, राजेंद्र पाल, उमेश गौतम, विनोद कुमार, चंपा शर्मा, यादविंद्र शर्मा आदि करीब पचास कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया।


हिंदी के चर्चित कवि गणेश गनी ने अपने सम्बोधन में कहा कि यदि संगीत आत्मा का भोजन है तो फिर कविता हृदय को निश्छल और विचारों को साफ करती है, कविता दृष्टिकोण को स्पष्ट करती है, कविता से जीवन मे तनाव नहीं रहता। हमें नकली कविता नहीं लिखनी है, कविता में लोक, स्थानीयता, लोकोक्तियां, मुहावरे आदि आने चाहिए। स्थानीय मुद्दों को वैश्विक बना कर कविता के फ़लक को बड़ा किया जा सकता है। गणेश गनी ने अपील की कि लिखने से ज़्यादा जरूरी किताबें और पत्रिकाएं पढ़ना है। बिना पढ़े लिखना व्यर्थ है और मात्र दोहराव है। संगीत, कला और साहित्य के बिना मनुष्य पूंछहीन पशु समान है। कविता को आम पाठक तक पहुंचाने के लिए काल्पनिक कविता नहीं बल्कि लोकधर्मी कविता ही काम करेगी। गोष्ठी में यह भी चर्चा हुई कि क्यों आज भी कबीर प्रासांगिक है।
गणेश गनी ने अपनी कविता किस्से चलते हैं बिल्ली के पांव पर श्रोताओं को सुनाई-

किस्से चलते हैं बिल्ली के पाँव पर !

उसने आग से मांगे चमकीले रंग
और रात के कैनवास पर उकेरी
एक मशाल जलती हुई
इसे थामने के लिए जिस हाथ की
कल्पना की थी
वो हाथ ज्वालामुखी से निकला
और आकाश में ऊंचा उठता गया
अंधेरे में जहां जलती हुई मशाल बनी थी
यह धधकता हुआ लावा ठंडा होने पर ही
हुआ कड़ा और मजबूत

धरती पर उजाले का एक बिंदु बना
अंधकार बहुत बड़ा था
हत्याएं करने को
और जहां हत्यारे को पकड़े जाने का भय था
वहां खोज निकाला हत्या करने का नया तरीका
वह आत्महत्या करने को उकसाता था बस

जिन लोगों को अब तक नहीं हुआ था यकीन
कि अराजकता गणतंत्र की दहलीज़ तक पहुंची है
उनकी आंखें फटी और मुँह खुले रह गए
जब संविधान के पहले पन्ने से न्याय जैसा शब्द राजधानी में अदालत के बाहर सड़क पर आ गया

वो ऐसे सोता है इन दिनों
लोग सोचते हैं सुषुप्त ज्वालामुखी होगा
वो अभागा कहलाया जब से
उसने अपने सर पे
लालटेन टांगना शुरू किया तबसे
हालांकि बदला कुछ नहीं अब तक

उसपर शक करना ठीक नहीं होगा
वो कविता की लय जानता है
वो जानता है यह भी कि
आग से खेलना उतना खतरनाक नहीं होता
जितना भूख से
वो खाली पेट आग पर चल लेता है

वो आठवें सुर के गीत लिखता है
कहते हैं कि वो ताल का भी पक्का है
बर्फ़ के दिनों में किस्से चलते हैं बिल्ली के पांव पर
और क़िस्सागो अखरोट भी तोड़ता है ताल में।
००




1 टिप्पणी:

  1. यह आयोजन बहुत ही सफ़ल रहा…सुकेत साहित्यिक एवं सांस्कृतिक परिषद हर वर्ष यह कार्यक्रम करवाती है…इस बार का आकर्षण गणेश गनी जी रहे।

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