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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

15 अप्रैल, 2018

राहुल सांकृत्यायन की विरासत और आज की चुनौतियाँ

प्रस्तुति: कविता कृष्णपल्लवी

राहुल फाउंडेशन और नौजवान भारत सभा द्वारा राहुल सांकृत्यायन के स्मृति दिवस 14 अप्रैल के अवसर पर 'जन-मनीषी महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन की विरासत और आज के समय की चुनौतियाँ' विषय पर विचार-गोष्ठी आयोजित की गई|



गोष्ठी का संचालन करते हुए कार्यक्रम की संयोजिका कविता कृष्णपल्लवी ने कहा कि, आज के फासीवादी दौर में राहुल सांकृत्यायन को याद करने का अर्थ भारतीय भौतिकवादी परम्परा से आम जन को परिचित कराना है| राहुल का कृतित्व व व्यक्तित्व विराट है| राहुल ने अपने समय के किसानों-मजदूरों के आंदोलनों में शिरकत करने के साथ ही जनता की दिमागी गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने के लिए लगातार धार्मिक पाखंडो, रूढ़ियों के ख़िलाफ़ लिखा| उनकी जीवन यात्रा उनके विचार की विकास यात्रा भी है| एक मठ के महंत से अपने जीवन की शुरुआत कर आर्यसमाजी से बौद्ध धर्म के अनुयायी होते हुए वैज्ञानिक समाजवाद की विचारधारा तक की यात्रा वही कर सकता है जो तार्किक और वैज्ञानिक हो|

नौजवान भारत सभा के अपूर्व ने कहा कि, आज जिस तरह धार्मिक फासीवादी संगठन धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करके जनता के बीच साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा दे रहे ऐसे में आज जरुरी है कि भारत की वास्तविक दार्शनिक परम्परा से लोगों को परिचित कराया जाये| भारत के छह दर्शन में तीन दर्शन (न्याय,सांख्य,वैशेषिक) भौतिकवादी हैं| भारत की परम्परा नानक, कबीर, रैदास, दादू, पलटू की परम्परा है| भारत की भौतिकवादी परम्परा से परिचित कराने का काम राहुल सांकृत्यायन ने किया|



प्रो.रंधावा ने कहा कि, राहुल को याद करने का आज के दौर में एक ही मकसद है कि आज फासीवादी उभार की चुनौतियों का सामना करने के लिए नए रणकौशल विकसित किये जायें| भारतीय समाज की जातिगत विशेषता को ध्यान में रखते हुए जाति व जातिगत उत्पीड़न को खत्म करने के तरीके इज़ाद किये जायें|

कॉम.बच्ची राम कौंसवाल और राजेश सकलानी ने कहा कि, राहुल का जुड़ाव देहरादून उत्तराखंड से भी रहा है| अपनी यात्रा के दौरान राहुल लम्बे समय तक यहाँ रहे| वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली, कुर्मांचल, वोल्गा से गंगा, दिमागी गुलामी, दर्शन-दिग्दर्शन, साम्यवाद ही क्यों, वैज्ञानिक भौतिकवाद आदि के साथ ही उन्होंने सैकड़ों किताबें लिखीं | जहां भी वे गए वहां की भाषा को उन्होंने रचा-पचा लिया | गूढ़ से गूढ़ विषयों पर भी बहुत ही सरल भाषा में लिखा|



समर भंडारी ने कहा कि, राहुल की लेखनी जनता के लिए, जनता के पक्ष में थी| इसका कारण ये था कि वे जनता के आंदोलनों में रहे, उसे नेतृत्व दिया| खुद भी लाठी-गोली का मुकाबला किया और जेल गए|

कार्यक्रम में राजेश पहवा, संजीव घिल्डियाल आदि ने भी बात रखी| कार्यक्रम में संजय प्रधान, कैलाश नौडियाल, तरसेम शर्मा, अनीता सकलानी, पुष्पेन्द्र, अपूर्व काला, प्रतीक, आयुष शर्मा, विवेक, सतीश धौलाखंडी, पृथ्वीराज सिंह, गीतिका, अरविन्द सिंह, फेबियन आदि शामिल थे|

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