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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

04 अक्तूबर, 2018

निर्बंध नौ:

मातृत्व की इच्छा कोई गुनाह नहीं है

यादवेन्द्र


यादवेन्द्र

आजकल मेरी बेटी अपनी एक साल की बच्ची को पापा और दादी के पास छोड़ कर जकार्ता गयी हुई है - प्रोफ़ेशनल असाइनमेंट्स इन कारणों से आसानी से टाले नहीं जा सकते वह भी प्राइवेट सेक्टर में (वह स्वीडन की दूरसंचार कंपनी एरिक्सन में काम करती है) ..... उससे जब भी बात करता हूँ बेटी को लेकर उदासी की आहट मुखर हो ही जाती है हाँलाकि शब्दों में यह कभी नहीं व्यक्त होती। पढ़ी हुई स्त्रियों को मान सम्मान और कमाई के लिए नौकरी करनी जरुरी है पर उसकी कीमत छोटे बच्चों को चुकानी ही पड़ती है - इन दोनों के बीच जो जितना बढ़िया संतुलन बना ले वह उतना सुखी और सफल माना जाता है। नये समय की यह एक बड़ी चुनौती है - जिम्मेदारी बढ़ गयी पर उसको साझा करने वाला संयुक्त परिवार बिखर गया।

गर्भवती होने की वजह से पुलिस भर्ती में अयोग्य अभ्यर्थी


अभी पिछले हफ़्ते पटना के "दैनिक भास्कर" के पहले पन्ने पर बिहार में दरोगा बहाली के फिजिकल टेस्ट के बारे में विस्तृत खबर छपी थी कि उन पदों के लिए आवेदन करने वाली जो महिला अभ्यर्थी गर्भवती थीं उन्हें उलटे पाँव सीधा वापस लौटा दिया गया। ऐसी हताश युवतियों का कहना था कि जब हमारी  मेडिकल रिपोर्ट में गर्भावस्था का ज़िक्र डॉक्टर ने स्पष्ट शब्दों में किया था तो हमें फिजिकल टेस्ट के लिए चिट्ठी क्यों भेजी गई और यहाँ आने पर हमें अपात्र घोषित कर  के वापस क्यों लौटाया जा रहा है। उनका यह भी कहना था कि या तो हमें शुरू में फिजिकल टेस्ट की तारीखों के बारे में बता दिया जाता ....  या अलग से कुछ महीनों के विलम्ब से हमारा टेस्ट आयोजित किया जाए।  इसी खबर में आगे लिखा है कि टेस्ट स्थल पर उपस्थित पुलिसकर्मी  हैरान हताश स्त्रियों पर रहम खाने के बदले फ़ब्तियाँ कस रहे थे - "जाइये ,घर जा कर एन्जॉय करिये .... भगवान् ने आपलोगों को तोहफ़ा दे ही दिया।"  इस पूरे मामले की तकनीकी बारीकियों के बारे में मुझे ज्यादा नहीं मालूम पर इस प्रकरण से जो बुनियादी सवाल उठता है - जिन  प्रतियोगिताओं  के लिए स्त्रियों की पात्रता होती है उनके निर्णायक स्तर तक पूरा होने तक क्या अभ्यर्थियों को गर्भ धारण न करने के बारे में स्पष्ट चेतावनी दी जाती है कि इस अवधि में गर्भवती होने पर उनकी पात्रता जाती रहेगी ?- उसका जवाब एक सभ्य, संवेदनशील व लैंगिक बराबरी का दावा करने वाले समाज को ढूँढना ही होगा। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो यह सीधा सीधा स्त्रियों को नौकरी से जानबूझ कर बाहर रखने का उदाहरण क्यों न माना जाए। यदि यह स्पष्ट चेतावनी दी जाती है तो इसके बड़े और मोटे अक्षरों में न सिर्फ़ लिखना चाहिए बल्कि समय समय पर अभ्यर्थियों को बार बार बताया भी जाना चाहिए।

जैकिंडा

इसके साथ ही हमारे सामने न्यूजीलैंड की प्रधानमन्त्री जैकिंडा आर्डेन की कुछ दिन पहले की दुनिया भर में चर्चित तस्वीर मेरी आँखों के सामने है जिसमें   वे संयुक्त राष्ट्रसंघ में तीन महीने की बेटी को लेकर सम्मिलित हुईं - पहले वे जब गर्भवती हुईं तो राजनीतिक हलकों में और मिडिया में तरह तरह की प्रतिगामी चर्चा हुई और यह कहा जाने लगा कि बच्चे को दूध पिलाती स्त्री देश कहाँ  सँभाल पायेगी। एक बड़े मीडिया हॉउस के दबंग पत्रकार ने ऐसा ही कोई सवाल  पूछा तो जैकिंडा तैश में आ गयीं और बोलीं : बच्चे पैदा करना या न करना किसी स्त्री का बुनियादी अधिकार है और इसके बारे में पूछताछ करना उसकी प्राइवेसी के अधिकार में हस्तक्षेप करना है जिसे मैं स्पष्ट तौर पर अस्वीकार्य  मानती हूँ ।मैं इसके बारे में सबके सामने बोल रही हूँ तो यह मेरा अपना चुनाव/ फैसला  है पर 2017 में आप मुझसे बाल बच्चों को लेकर मेरा क्या प्लान है यह भरी सभा में चर्चा करने को कहें तो यह मुझे सिरे से अस्वीकार्य है ... मैं इसका जवाब नहीं दूँगी ,नहीं दूँगी और कोई भी इसके लिए मुझे बाध्य नहीं कर सकता।

पर सारे तानों को दरकिनार कर जैकिंडा आज अपनी बेटी को भी कुशलतापूर्वक सँभाल रही हैं और देश को भी।इस बैठक के लिए जब वे जहाज पर चढ़ीं तो पहले उन्होंने सभी यात्रियों से बेटी के रोने गाने से होने वाली असुविधा के लिए माफ़ी माँग ली।  उनके पति  ने बड़ा मजेदार वाकया सुनाया कि उपर्युक्त बैठक के लिए  जब जापानी प्रतिनिधि मंडल हॉल में घुसा तो जैकिंडा बेटी के पोतड़े बदल रही थीं - जापानी मुँह फाड़े इस अनहोने दृश्य को देखने लगे।

सेरेना विलियम्स


महान टेनिस खिलाड़ी सेरेना विलियम्स पिछले वर्ष जब से बेटी ओलंपिया की माँ बनी हैं अपने हर इंटरव्यू और सोशल मीडिया पोस्ट पर उसके बारे में खुले आम बातें करती हैं - इतना ही नहीं वे अपने टूर्नामेंट के दौरान बिटिया को टेनिस कोर्ट पर भी ले जाती हैं। कामकाजी महिलाओं के मातृत्व पर उन्होंने पिछले महीनों में जो लिखा कहा है उनको संकलित किया जाये तो एक किताब बन जाए।
बेटी के बारे में उनकी कुछ बातें:

मैं ओलंपिया को सुला तो देती हूँ पर बिस्तर पर रखना अच्छा नहीं लगता, उसे गोदी में लिए रहना मुझे बेहद प्रिय है....लगता है हरदम उसे दूध पिलाती रहूँ।
नई बनी माँएँ, आप अपने बच्चे को कितने देर तक दूध पिलाती हैं?मैं तो इस ख्याल से भावुक हो जाती हूँ कि उसे अब मुझे अपने से अलग करना होगा।
मैंने ओलंपिया को बाँहों में उठाया और उससे बात करने लगी - हमने मिलके उसकी सलामती के लिए प्रार्थना की।मैंने उससे कहा : मैं अब तुम्हें अपना दूध नहीं पिलाऊँगी... हर माँ को एकदिन यह छोड़ना ही पड़ता है।यह कहते कहते में भावुक ही गयी...मेरा गला  भर आया और रुलाई छूट गयी।पर ओलंपिया खुश थी।
ओलंपिया के चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती है...मैंने उससे बहुत कुछ सीखा है।
वह कभी हार नहीं मानती...जब मैं कह रही हूँ कभी नहीं तो इसके मायने हुए कभी नहीं।मुझे उसका यह स्वभाव बेहद प्रिय है।

आज ओलंपिया पहली बार चली.... यह देखने के लिए मैं नहीं थी,प्रैक्टिस कर रही थी।पर जैसे ही इसके बारे में पता चला,मेरी रुलाई छूट गयी।

मैं ओलंपिया के साथ जितनी देर रहना चाहती हूँ नहीं रह पाती...अधिकांश कामकाजी स्त्रियों के साथ भी यही मुश्किल है।आप घर रहें या नौकरी के लिए बाहर जायें बच्चों के साथ काम का संतुलन बनाये रखना वास्तव में एक अनूठी कला है....आप सभी लोग असली हीरो हो।मैं कहती हूँ कभी कभार कोई दिन या पूरा हफ़्ता भी बच्चों के साथ विकट बन पड़ता होगा - फ़िक्र मत करें, मेरे साथ भी ऐसा कई बार होता है।
लंदन की अल्ट्रा रनर सोफी पॉवर की एक तस्वीर पिछले दिनों पूरी दुनिया में खूब मशहूर हुई जिसमें 105 मील की अपनी रेस में वे रुक कर तीन माह के बेटे को दूध पिला रही हैं। बेटे को वे हर तीन घंटे बाद दूध पिलाती थीं पर इस रेस में पहली बार उन्हें सोलह घंटे बाद यह मौका मिला।इस बेहद कठिन रेस के लिए दो साल की तयारी की दरकार होती है और इसी अवधि में बच्चे के जन्म की चुनौती उन्होंने सबकुछ जानते हुए स्वीकार की - बच्चे के साथ उनका लगाव इतना है और वे इन तस्वीरों की मार्फ़त माँओं को संदेश देना चाहती हैं कि मातृत्व की इच्छा कोई गुनाह नहीं है और माँ बनने के साथ साथ दुनिया का मुश्किल से मुश्किल काम भी किया जा सकता है।अपनी बात ज्यादा असरदार बनाने के लिए सोफी ने रेस की समाप्ति से पचास मीटर पहले बेटे को फिर से गोद में ले लिया और उसके साथ ही फिनिशिंग लाइन पार की।."द गार्डियन" के साथ बातचीत करते हुए वे कहती हैं : मीडिया में छपी तस्वीर वहाँ रौशनी डालती है जिसके बारे में स्त्रियाँ बात करने से आमतौर पर परहेज करती हैं।माँओं के ऊपर हरदम यह गुनाह बन कर सवार रहता है कि किसी और बात में लग कर कहीं ऐसा न हो कि वे बच्चे के ऊपर सौ फ़ीसदी ध्यान देने से चूक जाएँ .... पर मेरा मानना है कि अपनी शारीरिक व भावनात्मक सेहत की अनदेखी कर के आप सर्वश्रेष्ठ माँ कभी नहीं बन सकतीं। समझती और चाहती यही हैं स्त्रियाँ पर खुल कर बोलने से बचती हैं।हमारी तस्वीर की मार्फ़त स्त्रियाँ साफ़ साफ़ शब्दों में यह कहती है कि माँ बनने के बाद भी हम वही रहते हैं,हमारी पहचान बदलती नहीं।पुरुषों के पिता बनने से उनकी पहचान तो नहीं बदलती, फिर हम क्यों माँ बनने के नाम पर इतना डर सहम जाते हैं?
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निर्बंध आठ नीचे लिंक पर पढ़िए

भाषाएं अकारण चुप या मुखर नहीं होतीं
https://bizooka2009.blogspot.com/2018/09/21-1930-www.html?m=1

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