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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 जनवरी, 2019

समकालीन विश्व में गाँधी जी की प्रासंगिकता

( गाँधी जी की 150 वीं जयंती पर विशेष )

सुधांशु धर द्विवेदी




सुधांशु धर द्विवेदी


भारत के दो महान विचारकों का सर्वाधिक वैश्विक प्रभाव रहा है  वे हैं बुद्ध और गांधी जी । दोनों सत्य और अहिंसा के प्रहरी रहे हैं। इनमें से गांधी जी के प्रति सभी तरह के कट्टरपंथी तबकों की खास कुदृष्टि रही है। चाहे वह हिन्दू कट्टरपंथी हों या मुस्लिम अथवा वामपंथी या अम्बेडकर वादी.... ये सभी गांधी जी से घृणा करते हैं क्योंकि गांधी जी का दर्शन प्रेम, अहिंसा, सहिष्णुता , समरसता के भारतीय आदर्शों पर आधारित है पर हर तरह का कट्टरपंथी विचार किसी न किसी के प्रति घृणा के विचार पर आधारित है। हिन्दू कट्टरपंथी मुस्लिमों-ईसाईयों-दलितों , मुस्लिम कट्टरपंथी सभी तरह के काफिरों , वाम कट्टरपंथी कथित बुर्जुआ लोगों और अम्बेडकरवादी कट्टरपंथी सवर्णों के प्रति घृणा प्रदर्शित करके अपने विचार को आगे बढ़ा सकते हैं ....ऐसे में प्रेम और अहिंसा से पगा गांधी विचार उनके आड़े आ जाता है, और चूंकि गांधी ने अपना कोई कल्ट स्थापित नहीं किया तो वे बड़े आसानी से इन विचारधाराओं के निशाने पर आते रहते हैं और इससे किसी की " आस्था आहत नहीं होती "....खासकर संघी गांधी से विशेष खिन्न रहते हैं क्योंकि गांधी दुनिया को हिंदुत्व का ऐसा पाठ देते हैं जो वसुधैव कुटुम्बकम की प्राचीन भारतीय आदर्श से परिचालित होता है। गांधी पूना समझौते के बाद हिन्दू धर्म को विभाजन से बचाने वाले महानायक बनकर उभरते हैं और ईश्वर अल्ला तेरे नाम और वैष्णव जन जैसे गीत जनगीत बन जाते हैं। इससे मुस्लिम-ईसाई-दलित घृणा के रथ पर सवार बौने चितपावन ब्राह्मणों के संघ को सबसे ज्यादा दिक्कत आती है तो वे अपने लाखों मुखों से प्रतिदिन गांधी विरोध के सैकड़ों झूठ प्रसारित करने में लग जाते हैं और आज के डिजिटल युग मे इंटरनेट पर ऐसे करोड़ों झूठ पड़े गंधा रहे हैं और भारतीय शिक्षा प्रणाली की असमर्थता ने हमारे करोड़ों युवाओं को भी इस असह्य बदबू ने अपने आगोश में ले लिया है ( यहाँ तक 10 साल तक मुझसे दूर रही मेरी बेटी अनन्या भी इस दुर्गंध से दुष्प्रभावित हो चुकी है )......इसलिए भारतीय विचारों व भारतीय आत्मा के इस सबसे महान आत्मा के बारे में नए सिरे से आमलोगों को परिचित कराने की सबसे बड़ी जरूरत है वरना समुदायों के बीच घृणा की राजनीति हमारे देश व समाज को कहीं का नहीं छोड़ेगी!






मेरे क़ातिल , ये जिस्म है इसे जाना था कभी
मेरे सपनों का अगर क़त्ल कर सको तो करो !
ध्रुव गुप्त



     आज मेरे हिसाब से हिंसा की बढ़ती प्रवृत्ति , पर्यावरण का नाश, राजनीति का प्रदूषण , गरीब अमीर के बीच बढ़ती खाई, परिवार और समुदाय का विघटन , गाँव और कृषि का विनाश , मूल्यहीन और फलहीन शिक्षा, गंदगी , बढ़ते रोग ..... जैसी तमाम चीजों से भारत ही नहीं पूरी दुनिया आक्रांत है। उपभोक्ता वाद और उदारीकरण ने मानवता के ऊपर व्यापार को वरीयता दे रखी है। इसी व्यापार ने ( खासकर खनिज तेल , हथियारों आदि के व्यापार ने ) इराक , सीरिया , अफगानिस्तान, यमन, नाइजीरिया , लीबिया जैसे अनेक देशों को या तो नष्टप्राय कर दिया है या फिर ऐसी कोशिश हो रही है। गाँधी जी का कहना था कि " यह धरती हमारी ज़रूरतें पूरी कर सकती है हमारे लोभ नहीं " .....पर लालच में अंधे होकर हम धरती धन को नष्ट करने में जुट गए हैं। कालिदास की तरह जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं। यदि हम गांधी जी के स्वराज का सही अर्थ समझ सकें, जिसका वास्तविक अर्थ है आत्मनियंत्रण तो हम सिर्फ आवश्यकता भर लें और अपनी जरूरतें सीमित करना भी सीख लें , यही मूल मंत्र होगा अपनी धरती को बचाने का।  दुनिया के विभिन्न राष्ट्रों, धर्मों , समुदायों के बीच हिंसक तनाव ने युद्ध और आतंकवाद को जन्म दिया है। यदि हम गांधी विचार के अनुसार धर्म के उत्स को जान सकें और अहिंसा के विचार को अपना सकें तभी इन कुप्रवृत्तियों को रोका जा सकेगा। हथियार से लड़ा जाने वाला आतंकवाद के विरुद्ध कोई युद्ध स्थायी परिणाम नहीं दे सकेगा। हमें जानना होगा कि अहिंसा कायरता नहीं बल्कि वीरता की पराकाष्ठा है। यह अहिंसा ही हमारे समाज, देश और फिर विश्व को घृणा से पूरित हिंसा से बचा सकती है। हिंसा का जवाब प्रतिहिंसा के रूप में देने पर दोनों पक्ष हिंसा अनंतकाल तक झुलसते हैं पर कोई हल नहीं निकलता। कश्मीर जैसे विवादों को भी अंततः ऐसे ही हल किया जा सकेगा। कश्मीरी लोगों को समझना होगा कि अब भारत को तोड़ना संभव नहीं है और भारतीय लोगों को भी कश्मीरी लोगों को दिल मे जगह देनी होगी। ....भारत की सबसे बड़ी समस्या है दुष्ट लोगों का शासन पर प्रभुत्व! यदि भारत के लोगों को राजनीति में धर्म की गांधी जी विचारधारा समझ मे आ जाये तो अधर्मी राजनेता लोगों से दूर हो जाएंगे। थॉमस पिकेटी,डेविड हार्वे , स्पिलिट्ज जैसे अर्थशास्त्री आय की असमानताओं को दुनिया की शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा मान रहे हैं। गाँधी के आर्थिक विचार भले ही कुछ लोगों को अप्रासंगिक दिखें पर उनमें असमानता से लड़ने की अभूतपूर्व ताकत है। खेती, पशुपालन, बागवानी, शिल्प कर्म , कुटीर उद्योग आदि पर आधारित गांधी वादी मॉडल रोजगार और विषमता से लड़ने में आज भी सबसे बड़ा हथियार हो सकता है। वंदना शिवा, नाना जी देशमुख, कमला देवी चटोपाध्याय जैसे अनेक लोगों ने गांधी विचार से प्रेरित होकर ऐसे तमाम सफल प्रयोग भी किए हैं। आज भी हज़ारों की संख्या में गांधीवादी पर्यावरण, रोजगार, शिल्पकर्म , शिक्षा आदि क्षेत्रों में निःस्वार्थ तरीके से सक्रिय हैं। नेल्सन मंडेला, मार्टिन लूथर किंग जूनियर , आँग सान सू की जैसे अनेक अनुयायी विश्व भर में गांधी विचार की अलख जगा रहे हैं। आज जब सत्ता गांधी जी को महज एक सफाई कर्मी बना देने पर तुली हुई है , हमें गांधी जी के विचारों के मर्म को जानकर बदलाव लाने होंगे। हमें गांधी को महज कॉंग्रेस से जोड़ने की जड़ प्रवित्तियों से बचना होगा और अपनी अगली पीढ़ी के लिए, अपनी धरती के लिए गांधी विचारों को स्वयं धारण करना होगा और अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी इसके लिए तैयार करना होगा।

यही गांधी जी को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

संक्षिप्त परिचय

सुधांशु धर द्विवेदी

437, भाई परमानंद कॉलोनी , मुखर्जी नगर , दिल्ली - 110009


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