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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

18 अगस्त, 2024

आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं

 नोबेल पुरस्कार विजेता कवियत्री मार्था मेरिडोस की प्रसिद्ध कविता "You Start Dying Slowly", का हिन्दी अनुवाद |

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आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं

 मार्था मेरिडोस











आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप

करते नहीं कोई यात्रा,

पढ़ते नहीं कोई किताब

सुनते नहीं जीवन की ध्वनियाँ,

करते नहीं किसी की तारीफ़।


आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, जब आप

मार डालते हैं अपना स्वाभिमान,

नहीं करने देते मदद अपनी और न ही करते हैं मदद दूसरों की।


आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप

बन जाते हैं गुलाम अपनी आदतों के, 

चलते हैं रोज़ उन्हीं रोज़ वाले रास्तों पे,

नहीं बदलते हैं अपना दैनिक नियम व्यवहार,

नहीं पहनते हैं अलग-अलग रंग, या

आप नहीं बात करते उनसे जो हैं अजनबी अनजान।


आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप

नहीं महसूस करना चाहते आवेगों को, 

और उनसे जुड़ी अशांत भावनाओं को, 

वे जिनसे नम होती हों आपकी आँखें, 

और करती हों तेज़ आपकी धड़कनों को।


आप धीरे-धीरे मरने लगते हैं, अगर आप

नहीं बदल सकते हों अपनी ज़िन्दगी को, जब हों आप असंतुष्ट अपने काम और परिणाम से,

अग़र आप अनिश्चित के लिए नहीं छोड़ सकते हों निश्चित को,

अगर आप नहीं करते हों पीछा किसी स्वप्न का,

अगर आप नहीं देते हों इजाज़त खुद को, अपने जीवन में कम से कम एक बार, किसी समझदार सलाह से दूर भाग जाने की..।

तब आप धीरे-धीरे मरने  लगते हैं..!!

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अनुवाद: भाषा सिंह 

2 टिप्‍पणियां:

  1. जिंदा रहने के लिए कुछ -कुछ , रोज-रोज बदलना होता है। रूढ़ियों से लड़ना होता है। परंपरा का ध्वजवाहक होकर भी स्थिति -परिस्थिति के अनुकूल चलना होता है और बनना होता नये का स्वीकारक।

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