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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 अगस्त, 2024

आपदा में अवसर की तलाश !


             

 यह भाजपा को वर्तमान प्रधानमंत्री ने दिया हुआ मंत्र है ! जो उन्होंने मार्च 2020 में कोरोना की पहली लहर के समय कहा था ! जब की उस समय कोरोना के उपर कोई भी दवा इजाद नही हुई थी ! और एकदम नई बिमारी होने की वजह से लगभग संपूर्ण विश्व में ही अफरा-तफरी का माहौल बन गया था !

    


डॉ.सुरेश खैरनार 

लेकिन इस मंत्र का प्रयोग नरेंद्र मोदीजी ने अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में 27 फरवरी 2002 के बाद गोधरा कांड के 59 अधजले शवोको, और आधे-अधूरे पोस्टमार्टम के बगैर !  खुद मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ढाईसौ किलोमीटर की यात्रा कर के गुजरात विश्व हिंदु परिषद के अध्यक्ष श्री जयदीप पटेल को सौंपने की प्रक्रिया ! और सबसे अहम बात गोधरा की महिला कलेक्टर, श्रीमती जयंती वी रवी के, विरोध के बावजूद ! गोधरा के मामलेदार की मदद लेकर विश्व हिंदु परीषद और बजरंग दल के लोगो के कब्जे में देना कौन सा आपदा में अवसर था ?

                      जो कि कानूनी तौर पर उन शवों को नजदीक के रिश्तेदारों को सौंपना छोड़ कर ! जो कि गुजरात के पुलिस मॅन्यूअल Vol. As provided in Rule 144,145,223 and 224 where you will find salutary provisions recommending a quick dispatch of the bodies for postmortem to the nearest Hospital, prohibition of teking photographs which are revolting in nature and quite disposal of dead bodies keeping in mind the sensibilities of the victim's relative. And yet in violation of statutory rules on that fretful day, all the bodies were transported to Ahmedabad"

'legal malice '

       Further "Clearly 59 bodies could not have moved more than 200 kilometres to Ahmedabad without the knowledge of the chief minister, the chief Secretary and Director General of police. Clearly, an intentional violation of procedure was done for the call for Gujarat Bandh given by the political party which constituted the government in Gandhinagar. In violating a laid - down procedure, legal malice is established beyond doubt and when this legal mallce has manifested itself into widespread violence resulting in massive carneg across the States, elements of criminal conspiracy are clearly established "

           उन लाशों को ट्रकों को उपर बगैर ढके लादकर ! गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में जुलूस निकाला गया है ! और 28 फरवरी से संपूर्ण गुजरात में विश्व हिंदु परिषद और बजरंग दल तथा  बीजेपी और संघ के तरफसे गुजरात बंद का ऐलान किया गया था ! और केरल हायकोर्ट ने बंद करने के निर्णय पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद सत्ताधारी पार्टी का बंद को समर्थन था ! मतलब गोधरा कांड की अधजली बॉडीयो को गुजरात दंगों के भड़काने के लिए फ्यूल के तौर पर इस्तेमाल करने वाले आपदाओं में अवसर की तलाश वाले के सिवाय और कौन हो सकता है ?

                लेकिन कमाल की बात है कि इन सभी मुद्दों पर नाही नानावटी कमिशन ने ध्यान दिया, और सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा नियुक्त कि गई एसआईटी ने ! और दिसंबर 2013 में नरेंद्र मोदी को क्लिन चिट दे दी गई है ! क्या भारत की न्यायिक संस्थाओं का पतन होने की शुरुआत आजादी के बाद गुजरात के दंगों के तथाकथित न्याय के नाम पर और पुलिस - प्रशासन की ओर से इस कांड में कहा - कहा और कैसी - कैसी कोताही बरती गई है ?

         पर भी कुछ लोग कहते हैं, कि सबसे ज्यादा सजा देने का रेकॉर्ड गुजरात के दंगों के केसेस में ही हुआ है ! मुझे आज अचरज होता है कि मुख्य गुनाहगार जो एक षडयंत्र के तहत पूरे दंगे की राजनीति कर के सही - सलामत तो है ही लेकिन अपनी चौवालिस इंची छाती का एक फीट नाप बढाजढाकर आज हिंदुहृदय सम्राट के पोजीशन में आकर 140 करोड़ आबादी के छातीयो पर मुंग दल रहा हैं ! और देश की सार्वजनिक संपत्ति को औने-पौने दामों में बेच रहा है ! संसद से लेकर न्यायालय प्रशासन, सभी संविधानिक संस्थाओं को सिर्फ और सिर्फ अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इस्तेमाल कर रहा है ! और सर्वसामान्य मजदूरों से लेकर किसानों को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है ! 

            उसके बावजूद संघ के हरावल दस्तों के नेतृत्व में, नियोजित तरीकों से मतदाता सूची में नाम देख कर और खाना बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले गॅस सिलिंडर का तथा पेट्रोल की कैनो का इस्तेमाल किया गया है ! इतना नियोजित आजाद भारत के इतिहास का पहला राज्य पुरस्कृत दंगा था ! जिसे गुजरात प्रयोग के नाम से भी जाना जाता है ! इसलिए सबसे पहले मैं जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर की प्रस्तावना जो Crime Against Humanity नाम से गुजरात दंगों के 508 पन्ने के जांच आयोग को, तत्कालीन कॅबीनेट मंत्री श्री. हरेन पंड्या ने बताया था, कि "27 फरवरी 2002 की रात्रि कैबिनेट की बैठक में, नरेंद्र मोदी ने कहा" कि कलसे गुजरात में जो भी कुछ प्रतिक्रिया हिंदुओं के द्वारा होगी उसे कोई भी नहीं रोकेगा" ! यह सुनकर जस्टिस कृष्ण अय्यर ने हरेन पंड्या को पुछा कि !" यह आपको कहते हुए डर नहीं लगता ?" और जस्टिस कृष्ण अय्यर की भविष्यवाणी सही साबित हुई है ! उन्होंने अपने प्रस्तावना में, जो पहले पन्ने पर छपी है Foreword  की कुछ पंक्तियां देकर शुरू करता हूँ ! "What a shock and shame that INDIA'S fair Secular name should suffer dastardly disgrace through the recent Government - abetted Gujarat communal rage, compounded by grisly Genocide Carnage and savage arsonous pillage, victimising people of Muslim vintage - and unkindest cut of all '-allegedly executed with the monstrous abetment of chief minister Modi his colleagues and party goons. The gravamen of this pogrom-like operation was that the administration reversed its constitutional role and by omission and commission, engineerd the loot, ravishmen and murder wich was methodically perpetrated through planned process by chauvinist VHP elements, goaded by terrorist appetite. What ensued was a ghastly sight the like of which, since bleeding partition days, no Indian eye had seen, no Indian heart had conceived and of which no Indian tongue could adequately tell. Hindutva barbarians came out on the streets in different parts of Gujarat and in all fleming fury, targeted innocent and helpless Muslims who had nothing to do with the antecedent Godhra event. They were brutalised by miscreants uninhabited by the police ; their women were unblushingly molested ; and Muslim men, women and children, in a travesty of justice, were burnt alive. The chief minister, othe - bound to defend law and order, vicariously connived at the inhuman violence and some of his ministers even commanded the macabre acts of horror.

        There was none to question the malevolent managers of communal massacre. The criminal outrage, there was none in uniform to resist, not even to record information of the felonies. Nor was there any impartial official to render succour or assure civilised peace. When government failed and the local media distorted the truth. The Fascist trend flourished and the barbaric,fanatic, rapist human animals remained unchecked.

Awakened by this sinister scenario, people of consciousness, all over the country, felt the gory, catastrophe merited investigation, 

                   भारतीय संसदीय राजनीति के इतिहास में आजादी के बाद पहली बार ! किसी भारतीय राजनेता ने दंगे के उपर अपने राजनीतिक करियर बनाने की ताजा मिसाल है ! वर्तमान समय में भारत के प्रधानमंत्री श्री. नरेंद्र मोदी ! जिसे वह खुद आपदा में अवसर की तलाश जैसा नाम दे चुके हैं ! 

         अब जिन - जिन लोगों के अंदर का जमीर नष्ट हो गया है ! उन सभी लोगों के वह अपने रोल मॉडल बने हैं ! और यही सबसे ज्यादा चिंता का विषय हैं ! क्योंकि भारत जैसे बहुधर्मिय, बहुजातीय, बहुसांस्कृतिक देश की एकता और अखंडता के लिए इस तरह के धार्मिक आधार बनाकर राजनीतिक दलों से खतरा हैं !

             और मेरे जैसे सानेगुरुजी के संपूर्ण विश्व को अपने ओटमे लेकर चलने वाले साहित्यकार की कविता ! "खरा तो एकची धर्म जगाला प्रेम अर्पावे" ( सच्चा धर्म वहीं है जो समस्त विश्व को प्रेम अर्पण करने की सिख देता हो ! ) जैसी प्रार्थना गाते हुए जीवन की शुरुआत हुई हो ! ऐसे आदमी के गले नरेंद्र मोदी कभी किसी का रोल मॉडल बन सकता है ? यह बात गले नही उतरती है ! क्योंकि मुझे विदेशों में जाने के समय जब मैं भारत से आया हूँ ! कहता हूँ, तो मुझे कहा जाता है ! कि ओ यू आर कमिंग फ्राम गांधीज कंट्री !

             इस गुजरात के रोल मॉडल के अपनी जन्मना जाती (तेली) की जनसंख्या गुजरात की कुल जनसंख्या में दो प्रतिशत से कम होने के कारण, नरेंद्र मोदी को जब अक्तूबर 2001 में दिल्ली से गुजरात के मुख्यमंत्री, गुजरात बीजेपी के सत्ता में बैठे हुए मुख्यमंत्री केसुभाई पटेल को हटा कर ! झगड़े के कारण तात्कालिक रूप से कुछ समय के लिए भेजा गया था ! और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है ! कि नरेंद्र मोदी भले उम्र के सत्रह साल के थे ! तबसे आर एस एस के स्वयंसेवक बनने के बाद ! संघ की तरफ से अस्सी (1985) के दशक में बीजेपी बनाने के बाद बीजेपी के लिये भेजा था ! लेकिन गुजरात बीजेपी के आपसी झगड़े के कारण ही इनका नाम लो प्रोफाइल के तौर पर मुख्यमंत्री के पद पर 2001 के अक्तूबर को, नियुक्त किया गया था ! और उसके पहले इन्होंने ग्रामपंचायत का भी चुनाव में हिस्सा नहीं लिया था ! तो मुख्यमंत्री बनने के बाद, छ महीनों के भीतर विधानसभा का सदस्य बनने का नियम के कारण ! इन्हें कोई सुरक्षित सिट चाहिए थी ! तो एलिसब्रिज नाम की अहमदाबाद शहर की सिट से ! हरेन पंड्या रेकॉर्ड मार्जिन से चुने हुए प्रतिनिधि को ! नरेंद्र मोदी ने अपने लिए खाली करने के लिए ! इस्तीफा देने के लिए कहा तो  हरेन पंड्या साफ मना कर दिये !

          तो वह राजकोट विधानसभा चुनाव में 24 अक्तूबर के दिन ! विधानसभा के चुनाव जीते थे ! और उसके  बाद अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करना है ! यह उनकी पहली प्राथमिकता होना स्वाभाविक था ! और गोधरा कांड में आपदा में अवसर जो उन्होंने अपने बचपन से, संघ की हिंदुत्व की शिक्षा - दिक्षा के कारण ! यह मौका अपने हिंदुहृदयसम्राट बनने के लिए विशेष रूप से इस्तेमाल किया ! और भारतीय संसदीय जनतंत्र को एक विशेष धर्म की राजनीति के केंद्र बिंदु बनाने की योजना बखुबी अमल में लाने में कामयाब हुए हैं ! यही उनके आपदा में अवसर की तलाश हैं ! और वह खुद दोपहर के बाद अहमदाबाद से गोधरा 250 कीलोमिटर के सफर करते हुए सिधे गोधरा कांड में जली हुई बॉडीयोके शवविच्छेदन के कार्यक्रम के दौरान पहुंचे और अपने साथ विश्व हिंदु परिषद के अध्यक्ष जयदीप पटेल के कब्जे में मामलेदार को बुलाया और तथाकथित औपचारिकता कराके सभी अधजली बाँडिजको ओपन ट्रकों में लादकर 28  फरवरी 2002 के सुबह से अहमदाबाद के रास्तें पर जुलूस निकालने में कौन सी कानून और व्यवस्था की बहाली होने वाली थीं ?   या इसमें भी आपदा में अवसर की तलाश थी ? 

            दुसरी महत्वपूर्ण भूमिका बात कीसी राज्य को अपने यहां के कानून - व्यवस्था के लिए अगर सेना की आवश्यकता लगती हैं ? तो वहां के मुख्यमंत्री खुद सेना को बुलाने के लिए लिखते हैं ! तब कहीं सरसेनापती निर्णय लेते हैं ! तो गोधरा कांड के बाद श्याम को या दुसरे दिन 28 फरवरी 2002 को भारत की सेना को बुलाया ! और वह आने के तीन दिन तक उसे अहमदाबाद एअरपोर्ट के बाहर नही आने देना ! मतलब कानून व्यवस्था की फार्मालिटिज तो की है ! लेकिन आॅन पेपर पर जमीन पर नही ! आर्मी को तीन दिन तक अहमदाबाद के एअरपोर्ट के बाहर नहीं निकलने देने में क्या आपदा में अवसर की तलाश थी  ? 

             गुजरात के दंगों को देखते हुए भारतीय सेना के सरसेनापती जनरल पद्मनाभनने लेफ्टनंट जनरल झमिरुद्दीन शाह के नेतृत्व में 1 मार्च को 3000 जवानों की 63 हवाई जहाज की खेपों में अहमदाबाद एअरपोर्ट पर उन्होंने उतारने के बावजूद, तीन मार्च तक उन्हें स्टेटद्वारा लाजिस्टिक नही देकर उन्हें अहमदाबाद एअरपोर्ट के बाहर नहीं निकलने दिया था !  यह है जस्टिस कृष्ण अय्यर की " What a shock and shame that India's fair Secular name should suffer drastically disgrace through the recent government - abetted Gujarat communal rage, compounded by grisly Genocidal carnage and savage arsonous pillage, victimising people of Muslim vintage - and 'unkindest cut of all' - allegedly executed with the monstrous abetment of chief minister Modi, his colleagues and party goons. The he gravamen of this pogrom - like operation was that the administration reversed its CONSTITUTIONAL ROLL ! And by omissions and commission, engineered the loot, ravishment and murder which was methodically perpetrated through planned process by chauvinist VHP elements, goaded by terrorist appetite. 

          आजादी की पचहत्तर वी सालगिरह के समय, इस तरह के सांप्रदायिक मानसिकता वाले लोगो का ! सत्ता में बने रहना भारत जैसे बहुविधी संस्कृति वाले देश की एकता और अखंडता के लिए चिंता की बात हैं ! उसका सबसे बड़ा उदाहरण बीस वर्षों के पहले गुजरात में इन्हें मुख्यमंत्री रहते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था की "आपने राजधर्म का पालन नहीं किया !" और वह आज 140 करोड आबादी की जनसंख्या के देश के, प्रमुख पदाधिकारी होते हुए ! गत दस साल की कार्यशैली को देखते हुए ! लगता नहीं कीं भारत में रह रहे सभी लोगो के लिए उन्हें कोई लगाव हो ? कश्मीरसे 370 हटाने ,नागरिकता वाले बील, लवजेहाद, गोहत्या बंदी, मंदिर बनाने की प्रक्रिया से लेकर हिजाब, सिविल कोड जैसे मुद्दों पर जानबूझकर अल्पसंख्यक समुदायों को डराने के लिए, कोरोना जैसी महामारी का भी इस्तेमाल किया जाता हैं ! गुजरात माॅडल के साथ भारत का उग्र हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद की आडमे ! अल्पसंख्यक समुदायों को डराने वालें आदित्यनाथ या हेमंत बिश्वा शर्मा हो या खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या गृहमंत्री अमित शाह हो ! सभी ने भारतीय संविधान की शपथ ग्रहण करने के बाद इन महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे हैं ! 

                              और पिछले दो सप्ताहों से पस्चिम बंगाल में एक महिला डाक्टर के साथ हुए अत्याचार को लेकर जिस तरह से भाजपा विशुध्द राजनीतिक हुडदंग कीए जा रहा है वह शतप्रतिशत नरेंद्र मोदी के आपदाओं में अवसर के तलाश के अंतर्गत चलाया जा रहा षड्यंत्र है ! मैंने इसके पहले भी लिखा है कि भारत में प्रति दिन 88 महिलाओं के साथ अत्याचार किए जा रहे हैं और इस में दलित तथा आदिवासियों के महिलाओं की संख्या सब से अधिक है और महिलाओं के साथ किए जा रहे अत्याचारों में लगभग भारत के सभी प्रदेश शामिल हैं कलकत्ता के महिला डाक्टर के साथ हुई घटना के दिन ही बिहार के मुजफ्फरपुर में एक दलित लड़की के साथ अत्याचार हुआ है ! और उसी दिन महाराष्ट्र में मुंबई के पास बदलापूर में तो तीन साल की बालिकाओं के साथ अत्याचारों की घटनाओं के होने के बावजूद सिर्फ बंगाल की घटना को लेकर भाजपा ममता बनर्जी को हटाने का आपदा में अवसर की कोशिश के सिवाय कुछ नहीं है ! भाजपा को महिलाओं के अत्याचारों की इतनी चिंता है तो बदलापूर, मुजफ्फरपुर मणिपुर तथा भाजपा शासित राज्यों में भी आयेदिन महिलाओं के साथ किए जा रहे अत्याचारों को लेकर इस तरह का आंदोलन क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्या यह सिर्फ ममता बनर्जी को हटाने के लिए आपदा में अवसर की कोशिश है ??????????? 

डॉ. सुरेश खैरनार, 29 अगस्त 2024, नागपुर.

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