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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

28 अगस्त, 2024

केरल फ़िल्म इंडस्ट्री में हेमा कमिटी की अनुशंसाएं लागू हो

तुहिन, असीम गिरी

नई दिल्ली,28 अगस्त 2024. क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) ने केरल फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीडन की जांच के लिए बने " हेमा कमिटी" की रपट को पारदर्शी तरीके से लागू करने की मांग केरल सरकार से की।साथ ही केरल फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीडन के आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग भी राज्य सरकार से की।

विदित हो कि केरल सरकार ने हेमा कमेटी का गठन तुरंत नहीं किया था। केरल में एक मशहूर अभिनेत्री के साथ यौन उत्पीड़न के बाद, WCC सदस्यों द्वारा फिल्म उद्योग में महिलाओं के खिलाफ शोषण और हिंसा को उजागर करने के लिए किए गए बहुत प्रयास के बाद ही हेमा आयोग का गठन किया गया था। रिपोर्ट 2019 में बनाई गई थी और इसे जारी होने में लगभग 5 साल लग गए। इससे भी बदतर यह है कि इस रिपोर्ट के जारी होने में देरी के कारण कई महिला कलाकारों को न्याय से वंचित किया जा रहा है। WCC सदस्यों द्वारा किए गए गहन प्रयास का ही नतीजा है कि यह रिपोर्ट अब सामने आ रही है। यह खुलासा हुआ है कि रिपोर्ट से कई पैराग्राफ और पेज छिपाए गए हैं।


इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, कई प्रमुख अभिनेताओं पर आरोप लगे। पहला आरोप एक बंगाली अभिनेत्री  रीताभरी चक्रवर्ती ने रंजीत नामक एक बहुत प्रसिद्ध मलयाली निर्देशक के खिलाफ लगाया था । लेकिन आरोप के बाद, केरल  वाम मोर्चा सरकार के सांस्कृतिक और युवा मामलों के मंत्री साजी चेरियन द्वारा जारी किया गया पहला बयान पीड़िता के खिलाफ था और निर्देशक का समर्थन करता हुआ दिखाई दिया जो बहुत निराशाजनक है।  लेकिन आरोपों के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी ही नहीं, यह कितनी गैरजिम्मेदाराना प्रतिक्रिया है। दुर्व्यवहार के सबसे ज्यादा आरोप अब माकपा विधायक मुकेश पर लगे हैं।


जब यह रिपोर्ट पहली बार सामने आई थी, तब कहा गया था कि इस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन कड़े हस्तक्षेप के कारण ही सरकार को जांच के लिए एक टीम नियुक्त करनी पड़ी।


सबसे बड़ी बात यह है कि केरल के कुख्यात "अभिनेत्री  पर यौन हमला मामले" की पीड़िता को अभी भी न्याय नहीं मिल पाया है, जिसे अपने ही एक सह-कलाकार से और भी बदतर शोषण और हमले का सामना करना पड़ा था, यह बात सरकार की विश्वसनीयता को खत्म करती है। इसलिए, क्या गारंटी है कि दूसरों को भी न्याय मिलेगा?

यहां सिर्फ केरल फिल्म इंडस्ट्री की बात नहीं है बॉलीवुड सहित देश के हर क्षेत्र में मर्दवादी  घोर महिला विरोधी मानसिकता के चलते महिलाओं को  हर पल असुरक्षा और हैवानियत के साए में जीना पड़ता है।कोलकाता में युवा डॉक्टर के खिलाफ  हुए दरिंदगी के बाद पूरे देश में आज बारह साल पहले निर्भया मामले की तरह महिला उत्पीड़न के खिलाफ जबरदस्त जागृति देखने को मिल रही है। यह भी तथ्य है कि सबसे ज्यादा महिला विरोधी  क्रूर अत्याचार, पूरे देश में पिछले दस सालों से अधिक समय से सत्तासीन संघी मनुवादी/ ब्राम्हणवादी फासीवादी ताकतों के राज में हो रहे हैं।  आरएसएस फासिस्ट ही  सबसे ज्यादा महिला विरोधी मर्दवादी हैं और मनुस्मृति आधारित हिंदुराष्ट्र बनाने के लिए कटिबद्ध हैं। जिस मनुस्मृति के  अनुसार महिलाओं को दलितों आदिवासियों और उत्पीड़ित वर्गों की तरह मानव का दर्ज़ा नहीं दिया गया है।

क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) ,देश भर में महिला उत्पीड़न और घोर मर्दवादी सोच के खिलाफ ,पीड़िताओं के हक में न्याय की मांग कर रहे जन उभार के साथ मजबूती से खड़ा है।


तुहिन, असीम गिरी 

अखिल भारतीय संयोजकद्वय

क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम)

1 टिप्पणी:

  1. यह केरल फ़िल्म इंडस्ट्री का ही नहीं, बल्कि दुनिया भर की फ़िल्म इंडस्ट्री का सच है।

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