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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

30 अगस्त, 2024

पुष्पराज की कविताएं



मजदूर का पसीना












चित्र:- मुकेश बिजौले


कवि जो रोटी बेलता है

कवि जो रोटी पकाता है

कवि जो रोटी पचाता है

वह सोचता है

रोटी पैदा करने के बारे में।

वह सोचता है

रोटी के बिना भूख की तड़प के बारे में।

वह सोचता है

भूख से तड़प कर हुई हर एक मौत के बारे में।

वह सोचता है

क्या "भूख" दुनियाँ की 

सबसे महानतम कविता का नाम है।

वह सोचता है

क्या "मजदूर" दुनियाँ के सबसे बड़े कवि का नाम है।

वह सोचता है 

रोटी पचाने के बाद

रोटी कमाने के बारे में ।

वह सोचता है 

भूख ,रोटी औऱ मजदूर 

जैसे शब्द प्रतिबंधित होने चाहिए।

वह सोचता है

भूख और रोटी की तड़प से हुई हर एक मौत पर लिखा जाए

शहीद, शहीद ,शहीद।

कवियों गिनो

भूख और रोटी के निमित्त शहीदों के नाम।

शहीद मजदूर प्रथम अगर रामजी था 

तो दूसरे शहीद श्रमिक का नाम 

क्या लक्ष्मण था।

शहीद मजदूर तृतीय का नाम भूलते क्यों हो

लिखो -शहीद मजदूर तीसरे का नाम भरत ही था।

प्रथम मेरा भाई था

तो दूसरा,तीसरा,चौथा क्या कसाई था।

सबके नाम लिखो

इंडिया गेट के सामानांतर खड़ा करो

शहीद श्रमिक स्मृति गेट।

एक, दो,तीन के बाद कुल कितने मरे

"चायवाले" को नहीं पता "छायवाले" का नाम।

राम,लक्ष्मण, भरत सब मर चुके हैं

राम मरे,लक्ष्मण मरे,भरत मरे।

मर गए भरत तो कैसे बचा भारत?

भगवानों की अकाल मौत हुई है।

अब भगवानों का अस्तित्व समाप्त करो

रामजी की भूख से हुई मौत के बाद 

"राम मंदिर" का नाम "क्षुधा मंदिर", "भूख मंदिर","रोटी मंदिर","मजदूर मंदिर"होना चाहिए।

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मजदूर का पसीना कविता जिन 
रामजी महतो की  त्रासद मौत के बाद लिखी गई थी।यह तस्वीर उन्हीं रामजी महतो की है। कोविड आपदा के दौरान दिल्ली में ड्राइवरी करने वाले रामजी महतो ने 16 अप्रैल 2020 को 850 किलोमीटर की पदयात्रा करने के बाद प्रधानमंत्री जी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में दम तोड़ दिया था।रामजी को अभी 400 किलोमीटर की पदयात्रा कर बिहार के बेगूसराय के बखरी स्थित अपने ग्राम पहुंचना था।17 अप्रैल 2020 की द टेलीग्राफ के लखनऊ संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव की रिपोर्ट  Migrant falls and dies on PM’s turf ने रामजी महतो को लावारिश लाश होने से बचा दिया था।मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने धमकी दी थी कि श्रमिकों को हम बिहार घुसने नहीं देंगे।जातीय जनगणना के सूत्रधार मुख्यमंत्री ने अपने रक्तकुल के श्रमिक रामजी महतो की मृत काया को बिहार प्रवेश की अनुमति नहीं दी थी।वाराणसी के दारोगा गौरव पाण्डेय ने रामजी की अंत्येष्टि कर इंसानियत की मिसाल कायम की थी।काशी के दिवंगत साहित्यकार चौथीराम यादव ने गौरव पाण्डेय की  सार्वजनिक रूप से सराहना की थी


कविता पूछती है 

तो पूछते हैं फिराक

इलाहाबाद का नाम बदला गया

और तुमने इंकलाब नहीं किया।

पूछते हैं महाप्राण 

कि "राम की शक्तिपूजा" के बाद 

अयोध्या में किस राम को पुनर्जीवित किया गया।

पूछते हैं मुक्तिबोध 

क्या यह "अंधेरे समय" के खिलाफ

रौशनी के चमत्कार का समय है।

पूछते हैं धूमिल 

अपने-अपने जन्मदिवसों में मग्न साहित्यकारों

लूट गया जब लोकतंत्र 

तो हिन्दी का साहित्यकार कौन है

हिन्दी साहित्य क्यों मौन है।

राहुल सांकृत्यायन प्रसन्न हैं 

कि बिहार में जब उनके सारे चिन्ह मिटा दिए गए

लुटेरे इतिहास भक्षक के साथ खड़े साक्षात कवि कमल हैं।

प्रेमचंद जी का प्रगतिशील लेखक संघ 

एक तस्कर सम्राट के पुत्र को विधायक बनाकर धन्य है।

रहस्य को खोलना मना है

मेरे जिंदा होने का मतलब 

यह कि वे मुझे इस समय मारना नहीं चाहते हैं।

लखनऊ में बुल्डोजर बा 

तो बिहार में कौन चीज बा 

बिहार में चरणामृत बा 

बिहार में पलटुआ के आरती बा।

नागार्जुन के धरती पर आलोक धन्वा के सुरंग बा

सुंरँगे में सोना बा,चांदी बा ,सपना के महल बा।

अभूतपूर्व विद्वता ,सेक्युलर जहाज पर 

रजा फाउंडेशन के टाका पर

अपूर्व आनंदमय  भाषण बा।


(पंकज चतुर्वेदी की "पूछती है कविता" के आलोक में)

28 अगस्त 2024

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"एकल पुरुष

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"अकेली स्त्री " को

 एक विचारधारा मानने की संकल्पना

अगर मानवता के हक में है 

तो "एकल पुरुष" को व्याधि नहीं माना जाए।

विधवाओं के संताप से सताए हुए देश में 

विधुरों का दर्द अव्यक्त ही रह गया।

विदुषियों,विद्वानों वाले राष्ट्र में 

विस्थापित स्त्रियों का दर्द 

किसी विस्थापित स्त्री को ही लिखना पड़ेगा।

बलात्कार पीड़िता स्त्रियों का दर्द 

किसी बलात्कार पीड़िता को ही लिखना होगा।

एक घरेलू नौकरानी की आत्मकथा 

पहली बार एक घरेलू नौकरानी की 

अपनी कलम से दर्ज हुई।

जैसे सिरसा की बलात्कार पीड़िता साध्वी स्त्रियां 

छुपकर भूमिगत ही रहती हैं।

फेमिनिस्टों ने जैसे 

आलो-आँधारी का मूल्यांकन नहीं किया।

जांबाज विदुषी स्त्रियों की व्यस्तताएं भी समझिए

लिट् फेस्टिवल,बुक फेयर,ऑनलाइन भाषण ।

भारत की जांबाज विदुषी स्त्रियों ने जानने की कोशिश नहीं की कि 

भारत का सबसे बड़ा खूंखार-बर्बर बलात्कारी 

जब पैरोल पर जेल से बाहर निकलता है

तो सिरसा की बलात्कार पीड़िता साध्वियों 

का भय कितना अधिक बढ़ जाता है।

बलात्कार पीड़िताओं का

 ताउम्र भूमिगत जीवन मानवता का उत्कर्ष है क्या?

गुरुदेव के "एकला चलो" से अगर हम ताकतवर हुए होते 

तो हम सत्तापरस्त पत्रकार बिरादरी में 

इतने अस्पृश्य नहीं हुए होते।

वैधव्य अगर सुख नहीं है 

तो विधुर होना पूर्णतः अभिशाप है

"एकल पुरुष" वैधव्य और विधुर के मध्य का शोक है।

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चित्र 

फेसबुक से साभार 



युद्ध के बारे में

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उन्हें जंगली कहा गया

उन्हें हिंसक कहा गया।

बलात्कार,हत्या,दंगे

इन जंगली चौपायों ने नहीं रचाए।

उन्होंने परिवार नियोजन नहीं कराए

तो क्या खाद्यान्न संकट गिलहरी और बकरियों की देन है?

उन्होंने भाषाएँ नहीं सीखी

इसलिए वे विश्वविद्यालयों के वक्ता नहीं बनाए गए।

वे निरक्षर ही रहे 

इसलिए अकादमी पुरस्कार का उन्हें लालच भी नहीं।

उन्होंने विवाह नहीं रचाए 

इसलिए उन्हें तलाक और पुनर्विवाह की चिंता नहीं।

उन्हें अर्थ गरिमा का नहीं मालूम

इसलिए हिजाब ,बुर्के,घूँघट से बेहतर

वे सब दिन नग्न ही रह गए।

उन्हें प्रेम का अर्थ नहीं पढाया गया

इसलिए वे  मनुष्यों से घृणा नहीं कर पाए।

वे घृणा का अर्थ नहीं जान पाए

इसलिए किसी युद्ध में उन्होंने तोप नहीं दागे।।

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संक्षिप्त परिचय


पुष्पराज का जन्म माँ के गाँव में हुआ और पालन-पोषण बिहार में पिता के यहाँ हुआ। युवा होने के बाद वे यात्री भी बन गये और उन्हें खानाबदोश या खानाबदोश पत्रकार के रूप में जाना जाता है। चाहे वह कलिंगनगर (उड़ीसा) में टाटा समूह का खून-खराबा हो, प्लाचीमड्डा (केरल) में कोका कोला के खिलाफ जनता का उभार हो या विकास के नाम पर नर्मदा घाटी के आदिवासियों और किसानों को बर्बाद करना, पुष्पराज ने हमेशा अपने अनुभवों को दर्ज किया है। जैसा कि यह पत्रकारिता में है। प्रभात खबर ने एक समय अपनी रिपोर्ताज को सिलसिलेवार प्रकाशित करना शुरू किया था, जिसे जनसत्ता ने आगे बढ़ाया. मुसहरों की स्थिति और 2007 की बाढ़ पर केंद्रित उनकी रिपोर्टें हिंदुस्तान में प्रकाशित हुईं और लोकप्रिय हुईं। 2002 में 'हंस' में प्रकाशित 'मऊ जेल में सात दिन' और नक्सल आंदोलन के घने इलाकों से लौटने पर जनसत्ता में प्रकाशित रिपोर्ट उनकी अलग पहचान साबित करती है। पेंगुइन प्रकाशन से हिन्दी और अंग्रेज़ी में प्रकाशित उनकी किताब 

'नंदीग्राम डायरी ' ने पुष्पराज को ख़ूब ख्याति प्रदान की है। पुष्पराज कविता, रिपोर्ताज, संस्मरण लेखन के साथ- साथ समय-समय पर देश में चलने वाले जन आंदोलनों में भी सक्रिय भागीदारी करते रहे हैं।



3 टिप्‍पणियां:

  1. सुजीत कुमार सिंह03 सितंबर, 2024 08:41

    मर्मस्पर्शी कविताँ।

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  2. सभी बातें बोलकर कहना व सुनना छोड़ दो तुम,
    सुनो आँखें बाँचती जो बेवशी के गीत...

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  3. नानाप्रकार के पाखंडों का पर्दाफाश करती, तीखे और ज़रूरी सवाल करती कविताएँ. कवि ने किसी को भी नहीं बख्शा है. ऐसी कविताएँ लिखने का साहस तमाम क्षुद्र स्वार्थों और लोभ या लालच से ऊपर उठ चुका कवि ही कर है. पुष्पराज जी को हार्दिक बधाई और साधुवाद.

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