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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

13 अप्रैल, 2015

मनीषा पाण्डे जी की कविता

चयनित कविता में आज
मनीषा पांडे की  कविता
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रूठना-मनाना
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1.
लड़की सोचती है कभी-कभी
अगर मैं सचमुच रूठ गई तुमसे किसी दिन
तो क्या तुम सचमुच मुझे मनाओगे।

2.
जिंदगी के छोटे-छोटे झगड़े
जो रूठने और मनाने के
मनुहार करने और मान जाने के
निश्छल खेल हो सकते थे
उदासियों के बोझ में बदल गए
उदासियां दुख बन गईं
दुख पहाड़
लड़की रूठने से पहले उदास हो गई
उदास लड़की मनाए जाने से पहले
पत्थर
3.
रात चली जाती है
उम्मीद बची रहती है
कल रात फिर रूठी नहीं थी लड़की
वह उदास थी
जब रूठी थी पहली बार
किसी ने नहीं मनाया
रूठी हुई लड़की
धूल बन गई
धूल अदृश्य थी चादर की सलवटों में छिपी हुई
मेज के पाए के नीचे दबी हुई
दिखाई नहीं देती किसी को

4.
मनाए जाने से पहले उदास हो गई
रूठी हुई लड़कियां
मृत्यु के मुहाने पर खड़ी
बिता देती हैं पूरी उम्र

5.
बचपन में लड़की
अकसर रूठ जाती थी
बाथरूम में छिप जाती
पूरा घर मनाता
रूठी हुई लड़की को
मां छाती से लगाकर दुलराती
पिता गोदी में उठाकर घुमाने ले जाते
बर्फ का गोला खिलाते
बर्फ के गोले से मान जाती थी लड़की
पूरे बचपन ऐसे ही रूठती रही
रूठना इसीलिए था
क्योंकि मनाना था
उसे यकीन था
कि कोई मनाने आएगा जरूर

6.
लड़की अब न रूठती है, न कुछ मांगती है
बस जीती है डर में
डर है कहीं रूठ गई तो
यकीन है कोई मनाएगा नहीं
वह शिकायत भी नहीं करती
किसी बात पर नहीं लड़ती
बचपन की रूठी हुई लड़की
उदास औरत में बदल रही है
उदास औरत दुख में
दुख आंसू में
आंसू पहाड़ हो रहे हैं
लड़की पत्थर

7.
वह छूता है
उदास औरत को सब जगह
सिवा उसकी उदासी के

8.
जो लड़कियां जिंदगी में कभी रूठी नहीं
मनाई नहीं गईं
किन किताबों में, किन ग्रंथों में दर्ज हैं
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प्रस्तुति : राजेश झरपुरे । छिन्दवाड़ा ।
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