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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

20 मार्च, 2018

बलवन्त सिंह आज़ाद: एक गुमनाम योद्धा

उदय चे

पिछले दिनों राजस्थान में संगरिया, हनुमानगढ़ के पास गया हुआ था एक दोस्त से मिलने। दोस्त से किसान, मजदूर, महिला मुद्दों पर चर्चा चल निकली, अब चर्चा चल ही निकली तो चर्चा आजादी  की लड़ाई के दौर में जा पहुंची। उस दौर में मेरी मुलाकात उस इलाके के एक गुमनाम महान योद्धा से हुई। जो आजादी से पहले गोरे अंग्रेजो और आजादी के बाद काले अंग्रेजो के खिलाफ लड़ा और लड़ते हुए सहादत पायी। सामंतवाद, साम्प्रदायिकता, जातिवाद के खिलाफ उन्होंने बहुत लिखा। मजदूर-किसान की समस्याओं पर लिखा। ये लिखना और बोलना ही उनके कत्ल का कारण बना। लुटेरी ताकतों ने उसकी आवाज को बंद कर दिया।

उदय चे


ये क्रांतिकारी योद्धा थे बलवंत सिंह आजाद जिसको लोग प्यार से पूरे इलाके में "बल्लू" कहते थे। इलाके की जनता उससे बहुत प्यार करती थी। जिस दिन उनकी हत्या हुई पूरे संगरिया में किसी ने चूल्हा नही जलाया। पूरे इलाके में बलवंत सिंह की हत्या पर गम और हत्यारों के खिलाफ रोष था। सबको मालूम भी था कि हत्या किसने और क्यों की है। लेकिन कोई सामुहिक आवाज हत्यारों के ख़िलाफ़ नही उठ सकी। इसका सबसे बड़ा कारण बलवंत सिंह के पिता जी जो उस इलाके के बहुत बड़े सामन्त थे। हत्या करने वाले भी बड़े सामन्त और राजनीतिज्ञ थे। बलवन्त सामन्तवाद के खिलाफ लड़ रहा था। सामंतवाद को खत्म करना चाहता था। इसलिए अपनो ने भी उनकी हत्या के खिलाफ आवाज नही उठाई।

उनकी पत्नी  विद्या जी जो उस समय 23-24 साल की थी और उसकी 3 दूध पीती बेटियां थी। बलवन्त सिंह की हत्या के बाद उनके सामन्त पिता ने भी बलवन्त सिंह की पत्नी और उसकी बेटियों का साथ नही दिया। अपना हक भी विद्या जी को बड़े संघर्षो के बाद मिला। विद्या जी ने अपनी अंतिम सांस तक जिनकी कल 18.03.2018 को 95 साल की उम्र में मौत हो गयी उस समय तक अनपढ़ होते हुए भी बलवन्त सिंह के उसूलों पर चलती रही और एक मजबूत महिला की तरह जिंदगी में संघर्ष किया।
बलवन्त सिंह ने कई बुक्स भी लिखी। लेकिन जो बाद में न संभालने के कारण नष्ठ हो गयी। उसके बहुत ही सीमित दस्तावेज मिले। जिनको पढ़कर अहसास हुआ कि उन्होंने उस समय बहुत ही जबरदस्त लिखा है।

दलित जिनको आज भी सवर्ण जातियां समानता का सविधान होने के बावजूद बराबरी देना नही चाह रही और प्रतिदिन दलित उत्पीड़न की घटनाएं अलग-अलग जगह से सामने आती रहती है।
दलित जिनको उस समय अछूत जातियां कहा जाता था। जिनके साथ सवर्ण जातियां जानवरों से भी बुरा व्यवहार करती थी। शहीद भगत सिंह भी अपने लेख "अछूत समस्या" में बहुत अच्छे से इस समस्या को उठा चुके थे। अछूतों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक अधिकार न के बराबर थे। उस दौर में बलवन्त सिंह अछूत जातियों को महान जाति लिखकर संबोधित करते है।
वही वो सवर्ण जातियों को सम्बोधित करते हुए कहते है की ये मुट्ठी भर विदेशी जिनका कोई अस्तित्व नही है ये हमारे राजा बने बैठे है, तो सिर्फ तुम्हारे जातीय गौरव के कारण, तुम्हारे जातीय गौरव के कारण ही 7 करोड़ जनसंख्या की महान जाति जिनको आपने दूर रखा हुआ है। जिनको आप अछूत कहते हो।


वो सभी जातियों के नेताओ से अपील करते है कि आपके भिन्न-भिन्न मत हो सकते है। उन मतों को रखते हुए एक दूसरे पर विश्वास करके ही भारत मे रहना होगा।

हिन्दू नेताओ से भी वो अपील करते हुए लिखते है कि -
"हिन्दुओं के नेताओ से सविनय प्रार्थना है कि वो दूसरी जातियों को संतुष्ट रखने के लिए आत्म-त्याग का उदाहरण दे। जिस प्रकार छोटे भाई के रूठने पर सब कुछ दे दिया जाता है। तुम भी अल्पसंख्यक जातियों को खुश रखो"
बलवन्त सिंह के बचे हुए दस्तावेज पढ़कर आसानी से उसकी विचारधारा को समझा जा सकता है। वो दलितों और अल्पसंख्यको की बराबरी की बात करते है। क्योकि जिस दौर में ये सब बलवन्त सिंह लिख रहे थे उस दौर में हिन्दू-मुश्लिमो में साम्प्रदायिक दंगे बढ़ रहे थे। इसलिए वो अपील करते है कि सभी बराबरी से ओर भाईचारे से रहे, शांति से रहे तभी हम आजादी की लड़ाई को लड़ सकते है। हमारा दुश्मन अंग्रेज है न कि मुस्लिम या अछूत

देश की आजादी कैसी हो इस पर भी उनकी रॉय स्पष्ठ है -
वो लिखते है कि हम गुलामी से रिहा होने चाहते है। लेकिन आजादी कैसी हो।
अल्पसंख्यक को आजाद मुल्क में क्या मिलेगा।
मजदूर-किसान को क्या मिलेगा।
देशी राज्य रहेगें?
देशी राज्यो के बारे में वो कहते है किअगर देशी राज्य मतलब रियासते अपने को भारत मे अपना बपौती अधिकार रखना चाहती है तो ये असम्भव होगा आजाद मुल्क में।

देशी रियासतों के क्रूर सत्ता का जिक्र करते हुए लिखते है कि उन्होंने प्रजा की गाढ़ी कमाई पर एसो-आराम किया है। प्रजा की बहू-बेटियों की इज्जत, मान, धर्म की कभी इन्होंने प्रवाह तक नही की, प्रजा की बच्चीयों की दिन-दहाड़े ये नर पिशाच इज्जत लूट लेते है। इनको तो खत्म होना ही होगा। इनका खात्मा जरूरी है।

जीवन के अंतिम दिनों में -
    देश आजाद होने के बाद पूरा देश विभाजन के कारण हिन्दू-मुस्लिम के दंगों से गुजर रहा था। पूरे देश मे उथल-पुथल मची हुई थी। कहीं खुशी तो कहीं गम की लहर थी। इसी का फायदा उठाकर सामंत, कट्टर साम्प्रदायिकतावादी, जातिवादी जो आजादी से पहले पर्दे पीछे से अंग्रेजो को मद्दत करते थे। अब लूट मचाने के लिए कॉग्रेस में घुस गए थे। उन्ही में से कुछ नेता जिनका बलवन्त सिंह ने उनके कृत्यों का विरोध किया। उन नेताओं ने उनको जान से मारने की धमकियां दी। इस संधर्भ में एक पत्र बलवन्त सिंह ने कॉग्रेस की अखिल भारतीय कमेटी को लिखा। इस पत्र को ही उन्होंने हजारो की संख्या में छपवाकर जनता में वितरीत किया। इस पत्र में उन्होंने उन सभी लुटेरो की पोल खोल दी। इसी पत्र से बौखलाए हुए लुटेरो ने उनकी हत्या कर दी।
इस पत्र में वो लिखते है कि -
बहुत से स्वार्थी कांग्रेस के राजस्थान के नेता जिनमे चौधरी कुम्भाराम, चौधरी रामचन्द्र प्रधान बीकानेर, चौधरी नन्दा राम, चौधरी जीवन राम आदि का नाम लिखते हुए बलवन्त सिंह लिखते है की कैसे ये नेता राजस्थान में साम्प्रदायिकता भड़का रहे है। कैसे चापलूसी करके ये नेता जिनकी छवि कट्टर जातीय और साम्प्रदायिक है कॉग्रेस में घुस गए है जो अब इन्ही दंगो का फायदा उठाकर ये नेता सरकारी जमीनों पर कब्जा कर रहे है और कालाबाजारी कर रहे है। बलवन्त सिंह इन नेताओं को जनता का और कॉग्रेस का महा शत्रु बताता है और कहता है कि जनता को ऐसे गद्दारो से सचेत रहते हुए अपने पांव पर खड़ा होना चाहिए। बलवन्त सिंह कॉग्रेस की अखिल भारतीय कमेटी से मांग करते है कि ऐसे नेताओं को बाहर करके कॉग्रेस को कलंकित होने से बचाये।
बलवन्त सिंह जिसकी आवाज को उस समय लुटेरी ताकतों ने बन्द कर दिया। ऐसे हजारो बलवन्त सिंह है जिनकी आवाजें लुटेरो द्वारा बन्द कर दी गयी। हमारा एक छोटा सा प्रयास है कि ऐसी आवाज जिनको दफनाने की कोशिश की गई। उन आवाजो को आज आवाज दे सकें।
क्योंकि लुटेरा अब भी जिंदा है। वो नए रूप- रंग में है। वो सत्ता पर काबिज है। वो धर्म-जात का चोला पहने हुए है। वो वर्दी में है। वो चुन-चुन कर क्रांतिकारी कतारों का शिकार कर रहा है। वो उस समय से ज्यादा ताकतवर है। उसके कत्ल का सिलसिला अभी रुका नही है दबोलकर, पनसारे, कलबुर्गी, गौरी लंकेश, रोहित इस लिस्ट में बहुत नाम जुड़ जाएंगे इनसे पहले भी और बाद में भी। हत्यारो की इस मुहिम को रोकना है तो हमको उन क्रांतिकारी योद्धाओ की आवाज को आवाज देनी होगी। लड़ना ही होगा।
इंक़लाब जिंदाबाद
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यह लेख बलवन्त सिंह की पत्नी विद्या जी को समर्पित

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