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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

26 मार्च, 2018

भास्कर चौधुरी की कविताएं



भास्कर चौधुरी 



 कविताएँ

बच्चे

सोचता हूँ
जब कभी देखता हूँ
उन बच्चों को
क्या सोचते होंगे वे
मेरे बारे में

मैंने जब भी देखा उन्हें
मुस्कुरा कर
वे भी बस मुस्कुरा दिए

जब कभी भी हाथ हिलाया
हाथ हिलाया बच्चों ने भी

मैंने देखा गुस्से से
आंखें तरेरकर
वे देखने लगे मेमने की तरह ..





सुनो तो

सुनो तो
क्योंकि तुम मेरे हो
क्योंकि तुमने कहा था कभी
प्रेम करते हो तुम मुझसे
अपने प्राणों से अधिक

सुनो तो
क्योंकि तुम मेरे बच्चों के पिता हो
क्योंकि तुमने भी सात फेरे लिए थे मेरे साथ
मेरा हाथ अपने गरम हाथों में लेकर तुमने
बुदबुदाया था
पंडित जी के पीछे-पीछे
कि खयाल रखोगे मेरा
अपने प्राणों से ज़्यादा
सुनोगे मेरी अच्छी बुरी
सुनोगे मेरा चाहा अनचाहा
क्या हुआ तुम्हें
इन दिनों जबकि मुझे तुम्हारी
सबसे ज़्यादा ज़रूरत है
तुमने मुझे सुनना छोड़ दिया है

सुनो तो
लोगों को कहते हुए सुना है मैंने
कि तुम अच्छे कवि हो
और इंसान भी अच्छे हो
कि तुम अच्छा सुनते भी हो

सुनो तो... !!




मनुष्य

तुम्हारे चेहरे में जो
उदासी का रंग है
ऐसा बहुत कम होता है
उन्हें
जब मैं
पढ़ पाता हूँ
हाँ जो रंग
खुशियों के संग हैं
जो रंग ताज़ा हैं
जो अभी फीके नहीं पड़े हैं
अक़्सर मैं उन्हें
ताड़ लेता हूँ ..

ऐसा कब होगा
मैं जब
इन रंगों के भेद को पढ़ पाउंगा
एक साधारण सा कवि से
अच्छा मनुष्य बन पाउंगा ...



कविता

कितनी बड़ी है दुनिया यह
यह समुद्र
यह पहाड़
इतना पानी
इतनी मिट्टी
अथाह और अनंत
जाने क्या क्या
और कितना कुछ
समा जाए इनमें
इस दुनिया में
बाप रे बाप
पर
देखो तो उस कविता को
कितनी जगह है उसमें
समो लेने की
पूरी की पूरी दुनिया !
समुद्र !!
पहाड़ !!!










धुंध

धुंध सामने हो आंखों के तो
दिखाई नहीं देती हैं
गगनचुंबी इमारतें
इमारतों के सामने खड़ी
आधी-पूरी झोपड़ियाँ
दंगों में जले सरकारी दफ़तर
स्कूल और कॉलेज
दंगो के पीछे की राजनीति
राजनीति सरहदों पर और
सरहदों के भीतर
दिखाई नहीं देती हैं

धुंध हो सामने तो
कुछ भी साफ नहीं होता

चाहती हैं सरकारें
छाई रहे धुंध
पड़ी रहे पट्टी हमारी
आँखों पर !!




समाचार

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मंदिर का उद्घाटन
हिंदू
और मुस्लिम
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गड़ा हुआ धन
सेक्स
बाबा
कोहली
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ख़ून
बलात्कार
नक्षत्र
तारे
अंगूठियां
कोरिया
किम जोंग-उन
यही है
कुल जमा
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चलो चाटें
टीवी और अखबार !!



भास्कर चौधुरी

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