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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

23 मार्च, 2018

अमित कुमार मल्ल की कविताएँ


अमित कुमार मल्ल 


कविताएँ

एक 

जंगल ला कर सहन में बसा लिया
जानवर आकर , मेरे भीतर रहने लगा


दो 
पत्थर फेंकना है तो तराशिये ज़रूर,
तहज़ीब और कायदे का ये ज़माना है


तीन 

आदमी कभी आदमी नहीं होता है
कहीं उससे कम तो कही खुदा होता है

पहुचता है शम्शान, कोंख से निकलकर
फिर भी सातों समंदर पार करता है आदमी

दो रोटी व दो गज जमीन ही कमाई है
फिर भी सिकंदर बना फिरता है आदमी

अपने से रूबरू होने मे कतराता है
फिर भी लोगो से खुलकर मिलता है आदमी

दुःख और दुश्वारिया से जुझते निकलते
आसूं की जात पूछता है आदमी








चार 
ज़माने का नया दस्तूर है
अमन के लिए जंग लड़ी जाती है


पांच 
तमाम कहने,सुनने,मशवरो के बीच
मैं ऐलान करता हूँ
ढूंढना मत मेरे निशान
मैने रंग बदल लिया है



छ:
हर चेहरे मे   ,मैंने  इन्सान  ढूँढा  है

मेरा  जुर्म  संगीन है मुझे  सजा  दीजिये



सात 

दुनिया के मसायल छोड़ने पर भी
चैन से रहने न दिया, दोस्तो की दुआओ


आठ 

जिन्दगी तेरी चौखट पे
महसूस हो रहा है
किताबों में जो पढ़ा था
वो किसी पागल ने लिखा था


       



नौ 

वक़्त
समंदर बन
या सैलाब

लहरों के साथ
थपेड़े पर
उड़ कर भी
नहीं डूबुंगा

तैरूँगा
तिनके की तरह




दस 

लड़ो
लड़ो
लड़कर जीतने के लिए

जीत
न हो
लड़ो
जमकर लड़ने के लिए

साँस न दे
साथ अंत तक
लड़ो
लड़ने की शुरुआत के लिए

प्रारंभ न
हो तो भी
लड़ो
लड़ाई के विश्वास के लिए

विश्वास
बन जाये
पिघलती बर्फ
लड़ो
लड़ाई के सपने के लिए




ग्यारह 

लिखना
मेरी भी एक दास्ताँ
देना मुझे भी कागज का टुकड़ा

लिखना
वह लिखता था
जब कोई पढ़ता नहीं था

लिखना
वह बोलता था
जब   लोग  चीख नहीं पाते थे
जबाँ चिपक जाती थी

लिखना
वह तब भी विश्वास करता था
जब
संदेह किया जाता था
उसकी
इयत्ता पर

लिखना
वह
तब भी इन्सानियत देखता था
जब केवल
जाति
धर्म
वर्ग
देखा जाता था

और लिखना
वह
तब भी परिचय की
मुस्कराहट लिये खड़ा रहता था
जब
कोई किसी से मिलता नहीं
जब
कोई कोई किसी से मिलना नहीं चाहता
किसी को जानना नहीं चाहता








तेरह 

अखबार नवीसों
लिखना
यह स्थान लिखना
यह वक्त लिखना
यह पहर लिखना
मेरा नाम लिखना
मैंने ही यह
ऐलान किया है
यह भी लिखना

सामने
दिख रहे
गुलाब का फूल
खुशबू वाला है
सुन्दर है
अच्छा है
लेकिन लिखना
इसकी टहनियों में
कांटे भी है
जो अक्सर गड़ते है
दुःख देते है

मैं देख रहा हूँ
स्पर्धा
स्पर्धा नही है
खरगोश और
भेड़िये की दौड़ है

जिन
असहाय वृद्धो को
मनुष्यो के जंगल मे
जीने को छोड़ा है
उन्हें
समाज की छतरी
वक्त की मार से
नही बचा पा रही है
ये असहाय
असमय हो गए

यह भी लिखना
कोई सुविधा भोग रहा है
कोई सुविधा खोज रहा है
हर कोई
भाग रहा है
खोज रहा है




चौदह 

मोड़ -दर -मोड़
अन्धरे व उजाले का सफ़र है
जीने वाले यू ही
टुकड़ो को सिया करते है




पंद्रह 

पिघलकर गम दौड़ रहा है
जिस्म के जर्रे जर्रे में
गैरतमंद आंसू रुक न सके
जमीर की बेगैरत मौत पर




सोलह 

मैं मुस्कराता बहुत मगर
सूखा डाला है मुस्कराहट को तेरी सुनी आँखो ने

मैं उड़ता आसमाँ मे, मगर
तेरे बँधे पंख उड़ने से रोक देते है

मैं झूमना चाहता हूँ, मगर
तेरी बेबसी की लड़खड़ाहट याद आती है

लोग कहते है खुश हो. मगर
तेरे दिल का दर्द मुझ्रे भी रुलाता है

उँचाइयो की तमन्ना दिल मे तो ,मगर
अपने साथियों को भुलाउ कैसे









सत्रह 

कुछ
प्रश्न ,
दाएँ
बाएँ करते

बचते
बचाते
फिर भी टकरा जाते है

प्रश्नो से
मैं नज़र नहीं
मिला पाता

आँखों
की
करुणा
कमज़ोरी

तलवार निकलने
के बाद
चलने नहीं देती

प्रश्नो
से
टकराना होगा
टकराना ,
भी
कुछ प्रश्नो का हल है






परिचय 
.नाम  - अमित कुमार मल्ल
 जन्मस्थान - देवरिया
 शिक्षा - एम 0 ए 0, एल 0 एल 0 बी0
 व्यवसाय - सेवारत  । कानपुर नगर में  ।
           
 रचनात्मक उपलब्धियां- 
1982 से साहित्यिक क्षेत्र में ।
प्रथम काव्य संग्रह - लिखा नहीं एक शब्द , 2002 में प्रकाशित ।
प्रथम लोक कथा संग्रह - काका के कहे किस्से , 2002 मे प्रकाशित ।
दूसरा काव्य संग्रह - फिर , 2016    में प्रकाशित ।
2017 में  ,प्रथम काव्य संग्रह - लिखा नही एक शब्द का अंग्रेजी अनुवाद not a word was written प्रकाशित ।
काव्य संग्रह - फिर , की कुछ रचनाये , 2017 में ,पंजाबी में अनुदित होकर पंजाब टुडे में प्रकाशित ।
तीसरा काव्य संग्रह - बोल रहा हूँ , बर्ष 2017 में प्रकाशित ।
कविताये , लघुकथाएं व लेख , देश के प्रमुख समाचारपत्रों व पत्रिकाओं में प्रकाशित ।

अन्य -
आकाशवाणी लखनऊ से काव्य पाठ ।

 पुरस्कार / सम्मान -
राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान , उत्तर प्रदेश द्वारा 2017 में ,डॉ शिव मंगल सिंह सुमन पुरस्कार , काव्य संग्रह , फिर , पर दिया गया ।
सोशल मीडिया पर लिखे लेख को 28 जन 2018 को पुरस्कृत किया गया ।

मोब न0 9319204423
इ मेल -amitkumar261161@gmail.com

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