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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

27 मार्च, 2018

कसम का द्वितीय राज्य सम्मेलन सम्पन्न

प्रस्तुति: तुहिन

( आज के दौर में सांस्कृतिक प्रतिरोध की भूमिका पर संगोष्ठी आयोजित )



क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम, छत्तीसगढ़ ) पिछले दो दशक की निरंतरता में एक वैकल्पिक संस्कृति के विकास पथ पर पूरी सक्रियता से अग्रसर है।इसके मददेनजर कसम द्वारा 25 मार्च  को अपना द्वितीय राज्य सम्मेलन तथा “आज के दौर में सांस्कृतिक प्रतिरोध की भूमिका ‘‘ पर सेमीनार गौरी लंकेश नगर (वृंदावन हॉल,सिविल लाईन) रायपुर में संपन्न हुआ। सम्मेलन में मुख्य वक्ता साहित्यकार व जन संस्कृति मंच के सदस्य  कैलाश वनवासी थे। अध्यक्ष के रूप में लेखक संजीव खुदशाह, कसम के अ.भा. संयोजक तुहिन, शिक्षाविद व जाति उन्मूलन आंदोलन से जुड़ी अंजू मेश्राम तथा समाजसेवी अखिलेश एडगर उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन कसम की राज्य संयोजक चंद्रिका एवं आभार स्वाति  ने किया। सम्मेलन में प्रबुद्ध बुद्धिजीवीगण, प्रो.एच.सी. रब्बानी, निसार अली, ऑरोदिप, दीपिका, टिकेश्वर, तेजराम विद्रोही , दीपा, रविन्द्र कुमार,  कंचन (ट्रांसजेंडरों के अधिकार के लिए सक्रिय) ने भी अपनी बात रखी। इस अवसर पर बिपाशा राव, शिवानी मैत्रा,  चंद्रिका व कसम के सांस्कृतिक दल द्वारा कविता व जनगीतों को प्रस्तुत किया गया। सम्मलेन में इस अवसर पर नारा दिया गया की भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने की साजिश का प्रतिरोध करो, विचार, खानपान और सांस्कृति की आजादी के लिए संघर्ष करो । इस अवसर पर तर्कशील पत्रकार गौरी लंकेश, लेखक षणमुखम पुल्लापट्टा (केरल), कवि अजमेर सिंह औलोख (पंजाब ),कवि केदारनाथ सिंह , कवि चन्द्रकांत देवताले व कवि कुंवरनारायण का श्रध्दापूर्वक स्मरण किया गया ।


कार्यक्रम में “आज के दौर में सांस्कृतिक प्रतिरोध की भूमिका ‘‘ जैसे ज्वलंत विषय पर सेमीनार में मुख्य वक्ता के रूप में वक्तव्य देते हुए साहित्यकार कैलाश वनवासी ने कहा कि सांप्रदायिक ताकतों के मंसूबो को समझने की जरूरत है। देश में गंगा-जमुनी तहजीब को खत्म करने तथा लोगों के अधिकारों पर चोट करने की साजिश की जा रही है। असहिष्णुता की समस्या का समाधान खोजने के बजाय एकता को खंडित करने का प्रयास किया जा रहा है। इसे प्रबुद्ध लोगों को समझने और इसका सामना करने के लिए विवेकपूर्ण निर्णय के साथ तैयार होने की जरूरत है। एक ऐसे समय में जब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है और ऐसी ताकतें जो किसी भी प्रकार के विरोध को गवारा करना न चाहती हांे, सामाजिक जीवन के सभी क्षेत्रांे में विशेषकर प्रगतिशील सांस्कृतिक क्षेत्र व साहित्यकारों संस्कृतिकर्मियों पर कायराना हमले किए जा रहे हैं। ये ताकतें जो किसी भी प्रकार के स्वतंत्र विचारों के प्रति असहिष्णु हैं, लोगों की भोजन शैली व पहनावे के अधिकार को भी नकार रही हैं। हमारे देश की गंगा-जमुनी तहजी़ब और बहुलतावादी परंपराओं को ये ताकतें ध्वस्त करना चाहती हैं। ये ताकतें हमारे देश के इतिहास व संस्कृति का सांप्रदायीकरण व विकृतिकरण करना चाहती हैं। इस नवउदारवादी, नवउपनिवेशिक सांस्कृतिक हमले के खिलाफ प्रतिरोध व वैज्ञानिक चेतना को बढाएं  ।




कार्यक्रम में प्रारंभिक वक्तव्य रखते हुए तुहिन ने कहा कि वर्तमान समय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा मंडरा रहा है। अपने विचार व्यक्त करने की आजादी बाधित हो रही है। धर्म और जातिगत विद्वेष फैलाने तथा समाज को अलग-अलग वर्गों में बाटने का कुचक्र चल रहा है जिससे अनेकता में एकता की हमारी बुनियाद को कमजोर किया जा रहा है। इस कठिन दौर में देश के बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों, समाजसेवियों को समाज को जोड़ने व सुगठित करने का पुरजोर प्रयत्न करना चाहिए। ऐसी गंभीर परिस्थिति में कर्नाटक में तर्कशील पत्रकाए, गौरी लंकेश की  कट्टर सांप्रदायिक तत्वों ने हत्या की है । हम 14-15 अप्रैल 2018 को क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच की ओर से  प्रगतिशील सांस्कृतिक महोत्सव तथा अखिल भारतीय सम्मेलन का आयोजन  भोपाल (म.प्र.)में कर रहे हैं। यह सम्मेलन गौरी लंकेश, डॉ. एम.एम. कलबुर्गी, डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, कॉ. गोविंद पंसारे तथा वो सभी जिन्होंने धर्मनिरपेक्ष, जनवादी, सांस्कृतिक मूल्य तथा वैज्ञानिक चेतना पैदा करने की मुहिम में अपनी कुर्बानी दी उनकी स्मृति में सच्ची श्रद्धांजलि होगी। यह सम्मेलन फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टीट्यूट पूना, जादवपुर, जे.एन.यू., बी.एच.यू. टीस के विद्यार्थियों के तथा इस प्रकार की तमाम ताकतों जो मौजूदा थोपे गए सांस्कृतिक आतंक के खिलाफ उठ खड़े हुए हैं, के बहादुराना संघर्ष के प्रति सम्मान प्रदर्शित करना होगा। साथ ही साथ इस तरीके से प्रतिक्रियाशील ताकतों के खिलाफ प्रतिरोध विकसित करने तथा वैकल्पिक जन संस्कृति विकसित करने के लिए रास्तों की तलाश कर रही प्रगतिशील ताकतों को करीब लाने का अवसर भी मिलेगा ।

अध्यक्षताकर रहे संजीव खुदशाह ने कहा कि देश में एक बड़ा जनसमूह, धार्मिक अल्पसंख्यक एवं दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग भय में जीवन गुजार रहा है। ऐसे लोगो पर तो तलवार लटकी हुई है जो तर्कशील हैं, अंधविश्वास विरोधी हैं, सच्चाई के साथ हैं। गौरी लंकेश प्रों. कलबुर्गी और कॉ. पंसारे की हत्या के बाद जिस प्रकार से कट्टरवादी ताकतों ने इसकी जिम्मेदारी ली है और तर्कशील कार्यकर्ता प्रो भगवान को हत्या की धमकी दी गई है। उससे अंदाजा लगाया जा सकता है की भारत में तर्कशील, प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष लोगों की मनःस्थिति क्या होगी? हमें समतावादी भारत, एक भाईचारे का भारत बनाए, हिन्दू-मुस्लमानो की उपस्थिति को सहर्ष स्वीकारें व मुस्लमान हिन्दुओं की। सारे ऊंच-नीच, जाति-भेद, लिंग भेद को तोड़कर एक भेद-भाव मुक्त भारत की कल्पना ही सहिष्णु भारत है।



अंजू मेश्राम ने कहा कि बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी है कि वे सच बोलें और झुठ को नंगा करें। गौरी लंकेश नरेन्द्र दाभोलकर, पंसारे, कलबुर्गी के साथ-साथ व हिंदू दक्षिणपंथी समूहों ने जीतेजी पेरूमल मुरूगन की हत्या कर दी। मुरूगन के अंदर छिपे हिंदू दक्षिणपंथी विरोधी लेखक ने लिखना बंद कर दिया है। उनके उपन्यास ‘मदोरूभागन’ को ‘समन्वय भाषा सम्मान’ से नवाजा गया हैं। असहिष्णुता के हालातों के कई सम्मुख नामचीन लेखको व पत्रकारों ने अपने पुरस्कार लौटा दिए। कॉर्पाेरेट मिडिया, देश की गलत तस्वीर दिखता है। बाज़ार, महिलाओं को उपभोक्ता वस्तु के रूप में बनाकर पेश कर रहा है ।

अखिलेश एडगर ने कहा कि वर्तमान समय में केवल विचार व एक्शन से कुछ नहीं होगा। हमें समन्वय ढूंढना है अपने विचारों में, लेखन में, गलत बातों का विरोध सभी को मिलकर करना होगा। धुर दक्षिणपंथी, समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता पर बड़ा हमला कर रहें है । हमे साझा प्रतिरोध करना है तथा सरल भाषा में जनता को समझाना है ।

कार्यक्रम में  शिवानी मैत्रा ने ‘क्यों लोग बन गए असहनीय’, बिपाशा राव ने ‘एकला चलो रे’, निसार अली ने ‘दमदम मस्त कलंदर’, चंद्रिका ने ‘कलम उठी तो क्रांति होगी’ कविता व गीतों के माध्यम से समसामयिक मुद्दों व समाज की वर्तमान स्थिति को उठाया।

सम्मेलन में क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच की  राज्य स्तरीय समिति द्वारा 2 वर्ष का प्रतिवेदन, कार्यक्रम एवं सांगठनिक विधान पर चर्चा की गई एवं 18 सदस्यीय राज्य स्तरीय समन्वय परिषद् का गठन किया गया । सम्मेलन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर होने वाले बर्बर हमलों, इतिहास व संस्कृति के विकृतिकरण, सांप्रदायीकरण व शिक्षा के भगवाकरण, दिन प्रतिदिन बढ़ रही गरीबी, मंहगाई व बेरोजगारी, किसानों की बिगड़ती गंभीर हालातों, जातिगत उत्पीड़न, महिलाओं, आदिवासियों, अल्पसंख्यक समुदाय व मेहनतकश वर्ग के खिलाफ बढ़ते उत्पीड़न सहित सहारनपुर के चंद्रशेखर  (रावण) को तथा निरपराध मुस्लिम युवाओं को सिमी के नाम पर जेल में प्रताड़ित करने के खिलाफ व शीघ्र रिहा करने के समर्थन में भी पर प्रस्ताव पारित किए गए।



सम्मेलन में 14-15 अप्रैल 2018 तक भोपाल (म,प्र.) में होने वाले कसम के तृतीय सम्मेलन अखिल भारतीय सम्मेलन एवं प्रगतिशील सांस्कृतिक महोत्सव में भाग लेने का आह्वान किया गया। इस अवसर पर  छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में  सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि, लेखक, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी, बुद्धिजीवी व विद्यार्थीगण  उपस्थित थे।


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