मरीना त्स्वेतायेवा का जन्म 1892 में हुआ था। वह रूस के महान कवियों में अग्रणी हैं। जीवन और कविता से गहरी आसक्ति रखने वाली मरीना को ताउम्र अनेक कठिनाइयों का सामना
करना पड़ा। बेटी और बाद में पति की मृत्यु, प्रेम में हताशा और निर्वासन से जूझती मरीना ने 1941 में 49 की उम्र में आत्महत्या कर ली थी। मरीना की रचनाओं में उनके संघर्षों की अभिव्यक्ति हुई है।
कविताऍं
अनुवाद: सरिता शर्मा
पेरिस में
घर गगनचुम्बी हैं आकाश झुका है
धुंए से घिरे देश के करीब
खुशहाल पेरिस के दिल में बसती है
गहरी घोर निराशा।
शाम को सड़कों पर कोलाहल है
डूब गयी है सूरज की अंतिम किरण
सब तरफ भटक रहे प्रेमी युगल
लरजते होठ बेख़ौफ़ आँखें
मैं यहां निपट अकेली अखरोट पेड़ के पास
सुखद है उसके तने पर झुकना
पीछे रह गये मास्को की तरह मन में बिलखते रोस्तेंद के गीत
रात को पेरिस लगता उदास और पराया सा
मन का उन्माद ख़त्म होता
घर लौट रही हूँ मन में टीस लिए
किसी की सौम्य तस्वीर टंगी है
किसी की उदास आँखें देखती हैं अपनेपन से
सुन्दर तस्वीर लगी है दीवार पर
रोस्तेंद और शहीद रेस्ताद्शियन
और सेरा सपने में आते बारी बारी से
भव्य खुशहाल पेरिस में
मैं सपने देखती हूँ घास, बादलों और बरसात के
दूर से आते कहकहों के और पास की छायाओं के
मन में गहरा बसा है कहीं दर्द पहले की तरह।
०००
प्रार्थना
ईसू हे परमात्मा। मुझे और बहुत चाहिए
अब यहां दिन शुरू हुआ है
हे ईसू हे पालनहार
मुझे चाहिए चमत्कार
अभी यहां सुबह सुबह
बांच ली है मैंने जिन्दगी की किताब
तो मरने दें मुझे करने दें प्रस्थान
आप विद्वतजन कह सकते हैं मुझे सख्ती से
‘धैर्य रखो अभी जाने का वक्त नहीं है तुम्हारा’
खुद दी है तुमने हद से ज्यादा पीड़ा
हर तरह प्यासी हूँ अब मैं
मुझे सब कुछ चाहिए जिप्सी की तरह
भागूंगी लूटने के लिए, गीत गाते हुए
ऑर्गन के पास, अफ़सोस मनाना चाहती हूँ सबका
दौड़ना चाहती हूँ युद्ध करते हुए अमेज़न में
अंधेरे दुर्ग में दिव्य तारों की छांव तले
परछाइयों में राह बनाते बच्चे
गुजरा कल बन जाये किन्वदंती
और हर दिन है पागलपन का
प्रिय हैं मुझे सूली, रेशम और आवरण
आत्मा में पल भर झांका तो लगा
तुमने मुझे बचपन दिया कल्पनातीत
मरने दें अब मुझे सत्रहवें साल में।
०००
ढोल
मई की इस सुबह झूला झुलाना
कमंद में गर्वीली गर्दन पसंद है क्या
कैदी को तकुआ दो, गडरिये को शान
मुझे चाहिए बस एक ढोल।
नहीं देखे मैंने कितने ही देश
फूल खिल रहे हैं सूरज ठहरा हुआ है
ख़त्म कर दो अब आसपास के दुःख
बजो मेरे ढोल।
बजाओ ढोलची सबसे आगे
सब कुछ फरेब है बहरे के लिए
क्यों दिल चुराता है चलते चलते
कैसा अनोखा है यह ढोल।
०००
नन्हें ताबूत के सामने
कैथरीन पावलोवना पेश्कोवा के लिए
माँ ने रंग दिया ताबूत को गहरे चटख रंगों से
सोयी है नन्हीं परी इतवारी पोशाक में
माथे पर अब नहीं गिरती उसके सुनहरी लट।
गोल कंघी अब नहीं संवारती
बच्ची के अधढंके बाल
खुशियों से लबालब था
उसका नन्हा दिल
जीयी वह पांच बरस तक हंसी ख़ुशी
खेलती रही हाथ पांव मार कर
कल्पना, सपने और लिली
रोक नहीं पाये उसकी गति को
पुष्प चाहते हैं साथ रहना उसके
आरामदायक नहीं है नया तंग बिस्तर
फूल जानते हैं नन्हीं कात्या का
सोने का दिल था।
०००
अनूवादिका का परिचय
सरिता शर्मा (जन्म- 1964) ने अंग्रेजी और हिंदी भाषा में स्नातकोत्तर तथा अनुवाद, पत्रकारिता, फ्रेंच, क्रिएटिव राइटिंग और फिक्शन राइटिंग में डिप्लोमा प्राप्त किया। पांच वर्ष तक
नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया में सम्पादकीय सहायक के पद पर कार्य किया। बीस वर्ष तक राज्य सभा सचिवालय में कार्य करने के बाद नवम्बर 2014 में सहायक निदेशक के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृति। कविता संकलन ‘सूनेपन से संघर्ष, कहानी संकलन ‘वैक्यूम’, आत्मकथात्मक उपन्यास ‘जीने के लिए’ और पिताजी की जीवनी 'जीवन जो जिया' प्रकाशित। रस्किन बांड की दो पुस्तकों ‘स्ट्रेंज पीपल, स्ट्रेंज प्लेसिज’ और ‘क्राइम स्टोरीज’, 'लिटल प्रिंस', 'विश्व की श्रेष्ठ कविताएं', ‘महान लेखकों के दुर्लभ विचार’ और ‘विश्वविख्यात लेखकों की 11 कहानियां’ का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। अनेक समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में कहानियां, कवितायें, समीक्षाएं, यात्रा वृत्तान्त और विश्व साहित्य से कहानियों, कविताओं और साहित्य में नोबेल पुरस्कार विजेताओं के साक्षात्कारों का हिंदी अनुवाद प्रकाशित। कहानी ‘वैक्यूम’ पर रेडियो नाटक प्रसारित किया गया और एफ. एम. गोल्ड के ‘तस्वीर’ कार्यक्रम के लिए दस स्क्रिप्ट्स तैयार की।
संपर्क: मकान नंबर 137, सेक्टर- 1, आई एम टी मानेसर, गुरुग्राम, हरियाणा- 122051. मोबाइल-9871948430.
ईमेल: sarita12aug@hotmail.com
हिन्दी अनुवाद बहुत सार्थक सहज,सरल और बोधगम्य कविताएं प्रेरित करती। वसन्त निरगुणे भोपाल।
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