ताजमहल
कहाँ गए वो हाथ
जो प्रेम के सर्वोत्तम मानक की बुनियाद में थे
जो रच गये इतिहास
दे गए हमें प्रेम-निष्ठां, समर्पण और वचनबद्धता के चरम का प्रमाण
ताजमहल
और बता गए दुनिया को कि प्रेम....
प्रेम ऐसे किया जाता है
अपनी प्रेयसी के बहाने दुनिया को
प्रेम का उपहार दिया जाता है
साथ ही खोल गए एक भेद और भी
कि प्रेम करने वाले सबसे प्रेम नहीं करते
प्रेम नहीं करते उन हाथों से
जो उनके प्रेम की इबारत
दीवारों पर लिखते हैं
उनके प्रेम का ताजमहल गढ़ते हैं
वो प्रेम नहीं करते उन रोटियों से
जो कितने ही घरों में
उस दिन से बननी बंद हो गयीं
वो प्रेम नहीं करते उन आँखों से
जो अपने प्रियतम के कटे हाथों
को निहार कर पथरा गयीं थीं
वो प्रेम नहीं करते
नन्हे बच्चों के गालों के उस स्पर्श से
जो उन्हें उनके पिता के हाथों से मिलता
वो प्रेम नहीं करते
आने वाले कल की उन उम्मीदों से
जो किसी के अहम की सलीब पर
चढ़ा दी गयीं
एक झूठे प्रेम की बलिबेदी पर
सदा के लिए सुला दी गयीं
प्रेम करने वाले
सबसे प्रेम नहीं करते
०००
वो स्त्रियाँ
वो स्त्रियाँ
जिनके लिए घर मंदिर था
पति देवता
और घर का काम पूजा
घर के लिए जिन्होंने
अपना सर्वस्व उड़ेल दिया
वो स्त्रियाँ
जो सिर्फ़ त्याग करना जानती थी
अपने सपनों का अपनी इच्छाओं का
अपनो के लिए
परिवार के लिए
समाज के लिए
घर परिवार की ख़ुशी में ही
उनकी ख़ुशी
जिनके लिए
पहले सब
सबसे बाद में मैं
वो स्त्रियाँ
जो घर की धुरी होती थी
घर के दरवाज़े पर
नेम प्लेट तो
पुरुष के नाम की होती थी
पर घर में चलती उन स्त्रियों की ही थी
घर की असली मालिकिन
वो ही स्त्रियां
जो व्रत उपवास रखती थी
अहोई-अष्टमी
सकट बरगदाई करवा-चौथ
बच्चों के लिए, पति के लिए
हर सुबह एक दिया
घर के मंदिर में
और हर शाम
एक दिया
घर की दहलीज़ पर
जलाती रही
परिवार की सुख-शांति के लिए
देती रही तुलसी में पानी
कि घर में बरकत बनी रहे
वो स्त्रियाँ
जो अचार के मर्तबान पर
कपड़ा बांध कर
धूप दिखाती थीं
फिर उसी आंगन की खाट पर
अधलेटी होकर
कोहनी से आँखों को ढक कर
सुस्ताती थीं
छत की धूप की दिशा से
बिना घड़ी देखे ही
समय का अंदाज़ा लगा लेती थी
और फिर पति के आने पर
वैसे ही मुस्कुराती चाय की ट्रे सजाती थी
और फिर
अपनी दिन भर की खटन को दरकिनार कर
“बहुत थक गए हो न आज “
कह कर उनकी
सारे दिन की थकन
भरी चिड़चिड़ाहट को
अपने एक स्पर्श से मिटाती थीं
कहाँ खो गईं वो स्त्रियाँ
जो माएँ थीं दादियाँ नानियाँ थीं
घर की धुरी थी
रिश्तों को जोड़ने वाला सूत्र थीं
वो सबके लिए
कुछ न कुछ थीं
पर
अपने लिए अस्तित्वहीन
उन्होंने घर बनाये
घर बचाये
पर
इन्ही कोशिशों में
कितनी-कितनी बार
अंदर से स्वयं
टूटी बिखरी होंगी
ये ना उन्होंने कभी किसी को
बताया होगा
ना ही कोई
कभी जान पाया होगा
उनकी आँखों के अंदर के
सूख चुके
आँसुओं का हिसाब
किसने लगाया होगा
सोचती हूँ
कैसी होती होंगी वो स्त्रियाँ
०००
मैं कविता नही लिखती
मैं कविता नही लिखती
किस पर लिखूं कविता
कोई विषय मिला ही नहीं
मुझे पुरुषों से कोई गिला ही नहीं
पति ने सताया नहीं,
रुलाया नहीं
प्रेमी ने छोड़ा नहीं
किसी ने मेरा दिल तोड़ा नहीं
किस पर लिखूं कविता...
मेरा बचपन
लड़की होने की वजह से
झुलसाया नही गया
मेरे सपनों को
जलाया नही गया
कोई ज़ुल्म मुझ पर
ढाया नही गया
किस पर लिखूं कविता...
मुझे सास के ताने
नहीं मिले
दहेज न लाने के उलाहने
नहीं मिले
दुख-दर्द देने वाले अपने बेगाने
नहीं मिले
किस पर लिखूं कविता...
पर ऐसा नहीं कि
दुःख ने
मुझे छुआ नहीं
दर्द का अहसास
मुझे हुआ नहीं
दुख,दर्द,कसक,तड़प
और आंसुओं से
मेरा बड़ा गहरा नाता है
फिर भी इन पर कविता लिखना
मुझे नहीं भाता है
हाँ प्रेम पर भी लिखी जाती है कविता
पर मेरा प्रेम
मेरे लिए बहुत ख़ास है
उसे कैसे आम कर दूं
जो अहसास मेरा निजी है
कैसे उसे
जग के नाम कर दूं
और रही बात विसंगतियों
और विषमताओं की
तो मैंने उन्हें
एक सीधी सरल रेखा
में ढालना सीख लिया है
काश नहीं सीख पाती
सब कुछ जैसा है
वैसा न होता
तो मैं भी लिख पाती कविता
वैसे भी जिसमे ग़ुस्सा हो,रोष हो
नफ़रत हो, शिकायत हो
कविता तो वही कहलाती है
सबकी वाह-वाही पाती है
वो कविता कहां
जो मुस्कराती है
मुस्कराना
मुझसे छोड़ा नहीं जाता
बस इसीलिए कविता लिखना
मुझे नहीं आता
०००
परिचय
जानी-मानी , लेखिका कवियत्री व दूरदर्शन की उद्घोषिका अर्चना जौहरी ने लेखन की लगभग सभी विधाओं में काम किया है। पिछले 40 सालों से आप साहित्य सेवा में कार्यरत हैं।कहानी,
कविता, लेख, सीरिअल्स की पटकथाएं, एलबम्स के लिए गीत सभी कुछ लिखा हैबहुआयामी लेखन' ही आपकी ख़ूबी है।आपने डॉक्युमेंट्रीज़,जिंगल्स, फ़िल्मों में गाने व पटकथा लेखन भी किया है। हाल ही में 'वास्ता' व 'सुंदरकांड' नाम से आपकी दो फ़िल्में आई हैं, जिसमें संवाद व गीत आपके हैं। जो ओ टी टी प्लेटफॉर्म्स पर रिलीस हुईं हैंआपकी 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं -
(लेखन)
1. नवांकुर
2. ज़िंदगी-ज़िंदगी
3. यादों की कतरन
(सम्पादन)
4.मन की बात
5.चिंतन मनन व शब्द
और
6.खिड़की मन की
साथ ही साथ मंच-संचालक के तौर पर आप पिछले तक़रीबन 25 वर्षों से मुम्बई दूरदर्शन से जुड़ी हुई हैं।
पिछले दिनों दूरदर्शन पर आपके संचालन में 'साहित्य सरिता' कार्यक्रम बहुत मकबूल हुआ था, जो लगातार 5 साल चला और जिसमे लगभग सभी साहित्यकारों को आमंत्रित किया था।
आप दूरदर्शन में फ़िल्मों को पास करने की प्रीव्यू कमेटी में भी रही हैं।
आपको साहित्य सेवा के लिए ,'अमृतलाल नागर पुरस्कार'व 'माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार' सहित बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
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