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सत्यनारायण पटेल हमारे समय के चर्चित कथाकार हैं जो गहरी नज़र से युगीन विडंबनाओं की पड़ताल करते हुए पाठक से समय में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं। प्रेमचंद-रेणु की परंपरा के सुयोग्य उत्तराधिकारी के रूप में वे ग्रामांचल के दुख-दर्द, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के रग-रेशे को भलीभांति पहचानते हैं। भूमंडलीकरण की लहर पर सवार समय ने मूल्यों और प्राथमिकताओं में भरपूर परिवर्तन करते हुए व्यक्ति को जिस अनुपात में स्वार्थांध और असंवेदनशील बनाया है, उसी अनुपात में सत्यनारायण पटेल कथा-ज़मीन पर अधिक से अधिक जुझारु और संघर्षशील होते गए हैं। कहने को 'गांव भीतर गांव' उनका पहला उपन्यास है, लेकिन दलित महिला झब्बू के जरिए जिस गंभीरता और निरासक्त आवेग के साथ उन्होंने व्यक्ति और समाज के पतन और उत्थान की क्रमिक कथा कही है, वह एक साथ राजनीति और व्यवस्था के विघटनशील चरित्र को कठघरे में खींच लाते हैं। : रोहिणी अग्रवाल

17 नवंबर, 2017

अमेरिकन कवि कार्ल सैंडबर्ग की तीन  कविताएं

                 
                  कार्ल सैंडबर्ग ( 1878 - 1967 )

अमेरिकी कवि कार्ल सैंडबर्ग का बचपन बहुत संघर्षपूर्ण रहा । एक मजदूर के रुप में उन्होंने अनेक स्थानों का भ्रमण करते हुए ज़िन्दगी को बहुत करीब से देखा । बाद के वर्षों में अपनी पढ़ाई करते हुए उन्होंने विज्ञापन लेखन से लेकर अखबार के संवाददाता तक के दायित्वों का निर्वहन किया । शिकागो आने के बाद उन्होंने  ' शिकागो डेली न्यूज़ ' में सम्पादकीय लेखन भी किया ।

कार्ल सैंडबर्ग को अमेरिका में मुक्त छन्द के कवियों के बीच महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । उनकी कविता अपनी भावपूर्ण सादगी और लयात्मक सौंदर्य के लिए जानी जाती है तथा सुविख्यात अमेरिकी कवि वाल्ट व्हिटमैन की तरह ही उन्हें जनकवि की प्रतिष्ठा प्राप्त है । अपने जीवन काल में उन्हें तीन बार पुलित्जर पुरस्कार मिले । यह पुरस्कार दो बार कविता के लिए तथा एक बार लिंकन पर लिखी जीवनी के लिए प्राप्त हुआ ।



कविताएं


घास
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ऊँचे - ऊँचे ढ़ेर लगा तो लाशों के
ऑस्ट्रेलिज़ और वाटरलू में ।
मिट्टी में दबा दो उन्हें
और मुझे अपना काम करने दो -
मैं घास हूँ ; फैल सकती हूँ हर जगह ।

ऊँचे ढ़ेर लगा दो गेटिज़बर्ग में
ऊँचे ढ़ेर लगा दो ईप्रा और वेडर्न में ।
मिट्टी में दबा दो उन्हें
और मुझे अपना काम करने दो ।

दो साल , दस साल , और फिर
यात्री पूछेंगे कंडक्टर से :
यह कौन सी जगह है ?
इस वक्त हम कहाँ हैं ?

मैं घास हूँ ।
००

अवधेश वाजपेई

कबाड़ी
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मुझे ख़ुशी है कि ईश्वर ने देखा मृत्यू की तरफ
और मृत्यू को एक काम सौंप दिया -
उन सब की देखभाल जो थक चुके हैं
जीवन से

जब घिस जाते हैं घड़ी के पहिये
ढ़ीले पड़ जाते हैं कल-पुर्जे
टिक्-टिक् करती घड़ी
गलत समय बताने लगती है लोगों को
और घर के लोग उड़ाने लगते हैं मजाक ,
कितनी खुश हो जाती है यह घड़ी
जब यह भारी भरकम कबाड़ी
अपने वाहन से घर आता है
और अपनी बाहों में भर लेता है
इस घड़ी को
और कहता है :
" यहाँ तुम्हारी जरूरत नहीं
तुम्हें चलना है
मेरे साथ "
कितना खुश हो जाती है यह घड़ी
जब वो महसूस करती है
इस कबाड़ी की बाँहें
अपने इर्दगिर्द
उसे साथ लेकर जाते हुए ।
००    


अवधेश वाजपेई

अपने घर पर जल्लाद
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क्या सोचता है एक जल्लाद
जब रात गये काम से वापिस
अपने घर पहुंचता है ?
जब बैठता है अपनी पत्नी और बच्चों के साथ
एक कप कॉफी , हेम और अंडे खाते हुए
क्या वे पूछते हैं उससे
कैसा रहा आज का दिन
या फिर वे बचते हैं ऐसे विषयों से और
मौसम , बेसबॉल , राजनीति
अखबार की मज़ेदार खबरें
या फिल्मों की बातें करते हैं ?
जब वो कॉफी या अण्डों की तरफ
अपने हाथ बढ़ाता है
तो क्या वे उसके हाथों की तरफ देखते हैं ?
जब उसके मासूम बच्चे कहते हैं -
पापा घोड़ा बनों , यह देखो ! रस्सी भी है !
तब क्या मज़ाक करते हुए वो जवाब देता है -
आज बहुत रस्सी देखीं , अब और नहीं ...
या उसके चेहरे पर आ जाती है
आंनद की चमक और कहता है
यह बड़ी मजेदार दुनियां है
जिसमे हम रहते हैं ....
और यदि दूधिया चाँद झांकता होगा
रोशनदान से
उस कमरे में जहां एक मासूम बच्ची सो रही है
और चंद्रमा की किरणें घुल मिल रही हैं
बच्ची के कानों और उसके बालों से
यह जल्लाद ...
तब क्या करता होगा ?
सब कुछ आसान होगा उसके लिए
एक जल्लाद के लिए सब कुछ आसान होता है
मैं सोचता हूँ ।
_______
अनुवाद: मणि मोहन

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