मत-मतांतर: हम देखेंगे – पद्मावती
नागेश्वर पांचाल
सवेरे से एक मन था कि इंकलाब के लहू को आवाज देने वाले फैज़ साहब के बारे में सोचा जाए | मैं सोचने के मामले में जॉन के कथन को ख़ुद के बेहद करीब पाता हूँ, उन्होंने कहा “मैं लिखता हूँ ये जानने के लिए कि मैं क्या सोचता हूँ”|
पद्मावती |
“तथ्यो से खिलवाड़ कर अगर राष्ट्रमाता पद्मावती जी उनके सम्मान के खिलाफ जिस फिल्म में दृश्य दिखाए गए या बात कही गई है उस फिल्म का प्रदर्शन मध्यप्रदेश की धरती पर नहीं होगा”
खैर घोषणावीर यहाँ भी नहीं रुके, उन्होंने साथ ही दो अन्य अवार्ड की भी बात कि एक अवार्ड रहेगा राणा प्रताप के नाम और दूसरा रहेगा माँ पद्मावती के नाम| खैर मध्यप्रदेश की प्रजा का वर्तमान हाल फैज़ साहब यूँ बयां कर गए
“तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे”
ये वही प्रदेश है जहाँ शिक्षाकर्मी जाने कितनी दफ़ा भोपाल में बैठे और उनके पीठ पर लाठिया बरसाई गई, जहां किसानों की आवाज को अनसुना कर उनपर गोलियाँ चल गई | सोयाबीन के दाम कोनों पूछो मत और बिजली बिल की तो मुं वातज नी करंगा| व्यापम, राम राम माफ़ी चाहूँ दादा, मने अतरी जल्दी मरनो कोणी|
खैर बहरहाल तो जिस शख्स के इतिहास से खिलवाड़ की बात की जा रही है उनका ख़ुद का इतिहास अभी शंका के दायरे में है| मुझे जायसी की रचना “पद्मावती” लुभाती है| कल्पित जी तो यहाँ तक कहते है कि जायसी, तुलसीदास से बड़े कवि थे|
ये तो भंसाली का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि नेताओं को वो किरदार याद आ रहे है वरना कभी उनकी जुबा इस बारे में बोलती नज़र नहीं आई| कृतज्ञ होना चाहिए था लोगो को तो लेकिन हुआ उल्टा| भंसाली मार्केट के उस्ताद आदमी है वो सपने में भी चाहकर पद्मावती के खिलाफ़ ऐसा कुछ नहीं दिखायेंगे जिस से उसकी गरिमा में ऊँगली भर का अंतर आये, अब खिलजी को ताकतवर दिखाना तो जायज है, यहाँ जाने क्यों राग अलापा जा रहा है| ग़ालिब कहते है
“जान दी दी हुई उसी की थी
हक़ तो यूँ है कि हक़ अदा न हुआ"
बड़ी आसानी से मामाजी ने पुरे मुद्दे को वोटबैंक में बदल दिया और हज़ारो मुद्दे आयेंगे लेकिन ये राह फ़िर भी आसान तो ना होने वाली|
ये चंद करणी सेना के लोग {जो मोबाइल पर देखने वाले है फिल्म और घुमर तो इनके पास सेव होगा} और उसी आवाज की शक्ल में हज़ार (बे)मुद्धे अखबारों और टीवी की सुर्खियाँ बनेंगे और उनकी आवाज इतनी तेज होगी कि उज्जैन जिले की किसी तहसील को जब किसान सूखाग्रशित करने की आवाज़ उठाएंगे तो वो सुनी नहीं जायेगी|
“मसला आवाज खतम करने का नहीं
वो चाहते है कि कानों पर हो अधिकार”
मालवा, निमाड़,मेवाड़ मासूम लोगो की धरती कहलाती है, जहाँ इंदौर से निकलकर उदयपुर तक गर्मी में पानी कहकर आपकी ट्रेन के पास कोई सेठ या बच्चा आ जाता है और आपकी प्यास को वो सेवा से तृप्त करता हैं| मध्यप्रदेश के लोगो फैज़ के इस शेर पर गौर फरमा लिया जाए
“हम ऐसे सादा-दिलों की नियाज़-मंदी से
बुतों ने की हैं जहाँ में ख़ुदाइयाँ क्या क्या”
उछलना बंद करो दोस्तों, प्रेम पर सबका अधिकार है और तुम्हे बन्दर बनाया जा रहा है ताकि किसी दिन किसी भी चौराहे पर तुम्हारा तमाशा बनाया जा सकें|
खैर, हम देखेंगे, हम देखंगे, पद्मावती
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